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हाल के दिनों में, भारत में, सरोगेट या प्रॉक्सी मार्केटिंग सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये चिंता का एक अहम पहलू बन कर उभरा है. इसके दुष्प्रभाव से निपटने की दिशा में, सख्त़ नियमावली, जन जागरूकता, और अन्तराष्ट्रीय गठबंधन एवं सहयोग काफी आवश्यक है.
जब किसी क्रिकेट स्टेडियम में हो रहे क्रिकेट मैच के दौरान उत्साह अपने चरम पर होती है तो उसी वक्त, माउथ फ्रेशनर एवं सोडा के विज्ञापन, हवा की लहरों को प्रभावित कर रही होती है. सतह के नीचे की कड़वी सच्चाई तो ये है कि, इन विज्ञापनों की भी एक दूसरी सच्चाई है; ये विज्ञापन दरअसल किसी प्रकार की इलायची स्वादयुक्त वाले रोमांच, या सोडा अथवा संगीत या सीडी आदि नहीं बेच रहे है – बल्कि इन विज्ञापनों की आड़ में, दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत के जिम्मेदार, तंबाकू, गुटका एवं शराब उद्योग से जुड़े पतले परत वाले दागदार लोग होते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा प्राप्त निर्देश के मद्देनज़र भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा किया जा रहा सरोगेट मार्केटिंग, हाल के दिनों में सामने आया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने दोनों ही को निर्देश जारी किया है कि वो अपने एथलीटों को किसी भी प्रकार के शराब एवं तंबाकू उत्पादों के सरोगेट मार्केटिंग में शामिल न होने दें.
भारत में तंबाकू और शराब के कारण गैर-संचारी रोगों के एक बड़े वर्ग का निर्माण होता है, जहां अकेले तंबाकू के सेवन से ही प्रतिवर्ष 1 मिलियन से भी अधिक वयस्क मौत के शिकार हो रहे हैं.
भारत में तंबाकू और शराब के कारण गैर-संचारी रोगों के एक बड़े वर्ग का निर्माण होता है, जहां अकेले तंबाकू के सेवन से ही प्रतिवर्ष 1 मिलियन से भी अधिक वयस्क मौत के शिकार हो रहे हैं. तंबाकू का आर्थिक बोझ बहुत विशाल है: ऐसा अनुमान है कि यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 1.04 प्रतिशत तक हो होता है. और इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) 2024 में दिखाए गए विज्ञापनों की संख्या में, 15 प्रतिशत से अधिक का हिस्सा पान मसाला ब्रांडों के पास था. और इसमें उन्होंने करीबन 350 करोड़ रुपये का खर्च किया था. उनकी पहुँच काफी चौंकाने वाली थी, और इसके रोकथाम के लिए कड़े नियमों की आवश्यकता पहले से काफी अधिक हो गयी है.
सरोगेट मार्केटिंग के खिलाफ़ भारत की जारी लड़ाई में संलिप्त हाई प्रोफाइल कोर्ट के केसों से ये पता चला है कि किस प्रकार से विभिन्न कंपनियां इन नुकसानदायक उत्पादों को बाजार में बनाए रखने के लिए अपने ग्राहकों को गुमराह कर रही है. पतंजलि आयुर्वेद द्वारा गैरसत्यापित कोविड-19 उपचारों के मिथ्या प्रोत्साहन दिए जाने की वजह से काफी नकारात्मक प्रतिक्रियाओं की भरमार हो गई है एवं भारतीय चिकित्सा संघ द्वारा उच्चतम न्यायालय में इसके खिलाफ याचिका दायर की गई है. वहीं दूसरी तरफ, न्यायालय ने दिलबाग पान मसाला एवं अन्य को इस आधार पर अपने मार्केटिंग को जारी रखने के आदेश दिए हैं कि वे उनके द्वारा निषिद्ध श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते है. इसके साथ ही इसने खाद्य सुरक्षा और मानक अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) नियमावली को भी जारी रखा जिसके तहत इस निर्देश का अनुपालन तय किया जहां कि पान मसाला के 50 प्रतिशत उत्पादों के पैकेजों के फ्रंट पैक के ऊपर स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनियों का लिखा जाना अनिवार्य किया गया है.
यहाँ तक की अक्षय कुमार एवं शाहरुख खान जैसे प्रमुख हस्तियों को भी गुटखा उत्पादों के मार्केटिंग में भागीदारी के लिए सरकारी नोटिस जारी की गई, जिस वजह से सार्वजनिक प्रतिक्रिया एवं सार्वजनिक हस्तियों द्वारा इन विज्ञापनों के विकल्प को चुनते समय समाज के प्रति इन अभिनेताओं के दायित्व एवं नैतिक ज़िम्मेदारियों पर बहस को जन्म दिया गया.
छाया 1: धोखाधड़ी का व्यापार; लेखक (1), (2), (3) द्वारा संकलित

इलायची के अलावा, पान मसाला उत्पादों के विकल्प के रूप में मुंह के कैंसर से जुड़े कार्सिनोजेन सुपारी का इस्तेमाल काफी भारी मात्रा में किया जा रहा है. इससे संबंधित ज्य़ादातर कंपनियां काफी आक्रामक अभियान में शामिल हैं; उदाहरण के लिए, 2024 के आईपीएल में, जो प्रचार विज्ञापन चलाये गये थे उसमें पिछले वर्षों की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक योगदान इन पान-मसालों था. सांस्कृतिक चेतना जगाने वाली भाषा की आड़ में इनके उत्पादों को राष्ट्रीय गौरव या सफलता की चाशनी में भिगा कर नये नारों के साथ जनता तक पहुंचाया जाता है, जैसे ‘ज़ुबान केसरी’ इत्यादि. ये ध्यान देने वाली बात है कि देश में मुंह के कैंसर के मामलों में जो बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है, वो सुपारी एवं इलायची आधारित उत्पादों की मांग में भारी वृद्धि के साथ-साथ हुआ है, इस वजह से भी ज़रूरी हो जाता है कि इससे संबंधित कानूनों का मज़बूती से पालन किया जाये और लोगों में जागरूकता फैले. चित्र-1 आईपीएल में होने वाले उत्पादों के प्रचार-प्रसार में पान मसाला का वर्चस्व दिखाता है और साथ ही स्टेडियम के भीतर बिलबोर्ड्स के ज़रिये और बाहर ऑनलाइन मीडिया में इनके वर्चस्व को दर्शाता है.
सरोगेट प्रचार की जटिलता कानून में निहित है; इसलिए, इसके केंद्र में सिगरेट एवं तंबाकू के अन्य उत्पाद अधिनियम(COTPA),2003 है,जो तंबाकू के किसी भी प्रकार के प्रचार को प्रतिबंधित करता है.लगभग सभी कंपनियां इस कानून से बच निकलती हैं क्योंकि वो उसी ब्रांड के नाम पर गैर-तंबाकू उत्पाद का प्रचार करके लाभ उठा लेती है. भारत की प्रचार मानक कौंसिल (एएससीआई) के खंड 3, के उपखंड 6 ने इस संबंध जो दिशा निर्देश तय किए हैं जिसके अंतर्गत ऐसे किसी भी प्रतिबंधित विज्ञापनों से मिलता-जुलता अन्य विज्ञापन और जो केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सी.बी.एफ.सी.) द्वारा इन विज्ञापनों का पूर्वावलोकन करती है. लेकिन उसके बावजूद उत्पाद कंपनियां इन कानूनों में कमियां ढूंढ कर इसकी अवहेलना करने का कोई मौका नहीं छोड़ती है.
अतिरिक्त वैधानिक प्रावधान आदि भी इन सरोगेट विज्ञापनों को नियंत्रित करती है. अश्लील विज्ञापन, जिसमें सट्टा भी शामिल है, भारतीय पीनल कोड 1860 की धारा 292 के तहत एक दंडनीय अपराध है. भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, की धारा 23 के अंतर्गत, ग़ैर-कानूनी वस्तुओं विशेष रूप से दांव लगाए जाने से संबंधी समझौते निहित है. विदेशी मुद्रा अधिनियम 1999, जुआ एवं सत्ता उद्योग आदि में किसी भी प्रकार की सीधी अथवा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को प्रतिबंधित करती है. ग्राहक सुरक्षा अधिनियम 1986 किसी प्रकार की ऑनलाइन अथवा प्रत्यक्ष प्रतियोगिताओं के माध्यम से होनेवाली सट्टेबाजी के विज्ञापन को अवैध एवं अनुचित व्यापार प्रथाओं के रूप में वर्गीकृत करती है.
भारत सरकार द्वारा नए नियम शर्तों को लागू करने की योजना को लागू करने के लिये उसपर काम किया जा रहा है. इसके अंतर्गत दोष साबित होने की स्थिति में देय जुर्माना राशि को बढ़ाकर 50 लाख रुपए किये जाने के साथ-साथ, विज्ञापनों के ज़रिये शराब अथवा तंबाकू उत्पाद के प्रचार पर एक से तीन साल तक के प्रतिबंध का प्रावधान शामिल किया गया है. 16 फ़रवरी 2024 को, एएससीआई के साथ-साथ उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा हितधारकों के लिए एक परामर्श केंद्र का आयोजन किया गया था, जहां सीबीएफसी के प्रतिनिधि, सूचना और प्रसार मंत्रालय, और ट्रेड्मार्क प्राधिकरण के प्रतिनिधियों ने इस सरोगेट प्रचार विज्ञापन के मुद्दे पर विचार-विमर्श किया.
सरोगेट मार्केटिंग की वजह से पैदा होने वाले स्वास्थ्य संबंधी चिंतायें, अपनी प्रकृति में काफी जटिल होती हैं और ये बच्चों, किशोरों एवं युवा वयस्कों के बीच काफी चिंतनीय स्थिति पैदा करती हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) इस बात की तस्दीक करती है कि भारत में, दुनियाभर के 80% से ज्यादा मौतें धुआं रहित तंबाकू (एसएलटी) के सेवन की वजह से होती है, जहां 200 मिलियन से भी ज्य़ादा वयस्क इसी उत्पाद का सेवन करते हैं. भारत में कैंसर के कुल बोझ का 30% तो अकेले मुंह के कैंसर से पीड़ित लोगों का है, और इनमें से ज्य़ादातर के लिए एसएलटी ज़िम्मेदार है. हालांकि, एनएफएचएस-4 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे) में तंबाकू का सेवन करने वालों की संख्या एनएफएचएस 5 में 45 प्रतिशत घट कर, 39 प्रतिशत तक कम हुआ है. तंबाकू के सेवन में आयी ये गिरावट स्वागत योग्य है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ये अब भी 43% है जो काफी ऊंचा है.
आईसीएमआर द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि सरोगेट एसएलटी ब्रांडों ने 2023 में आयोजित पुरुषों के आईसीसी विश्व कप में, विमल और कमला पसंद जैसे ब्रांडों के अगुवाई के साथ 41.3% के आंकड़ों के साथ विज्ञानप में अपना वर्चस्व बनाए रखा.
आईसीएमआर द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि सरोगेट एसएलटी ब्रांडों ने 2023 में आयोजित पुरुषों के आईसीसी विश्व कप में, विमल और कमला पसंद जैसे ब्रांडों के अगुवाई के साथ 41.3% के आंकड़ों के साथ विज्ञानप में अपना वर्चस्व बनाए रखा. इन ब्रांडों को रणनीतिक तौर पर विशेषत: उस वक्त ज्य़ादा मात्रा में प्रसारित किया गया, जब मैच देख रहे दर्शकों की संख्या काफी ज्य़ादा थी, विशेष करके उन मैचों में जिनमें दक्षिण एशियाई देश शामिल थे – जिस वजह से जनता की नज़रों में ये हानिकारक उत्पाद को सामान्य तौर पर देखा जाये और उन्हें स्वीकार्यता मिले.
सरोगेट मार्केटिंग, किसी पारंपरिक मीडिया के माहौल से बिल्कुल परे एक ऐसे वातावरण में अपनी पैठ बनाता है, जहां युवा दर्शक काफी संवेदनशील होते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) इस पर बिल्कुल उसी तरह से प्रतिबंध लगाने की वकालत करता है – जैसा नॉर्वे ने किया, जिसके उपरांत वहाँ होने वाले शराब के सेवन में काफी गिरावट दर्ज की गई. हाल के वर्षों में, चीन ने भी तंबाकू के किसी भी प्रकार के उत्पादन, सेवन एवं उसके प्रचार प्रसार पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. हालांकि, चीन में प्रति 100,000 के 16.1 प्रतिशत की तुलना में, भारत में, प्रति 100,000 में का 38.5 प्रतिशत लोगों की मृत्यु शराब के सेवन की वजह से हो रही है, और पुरुषों द्वारा किए जा रहे शराब के सेवन में 29 प्रतिशत की तुलना में 22 प्रतिशत की गिरावट दर्ज होने के बावजूद, सरोगेट विज्ञापन, सार्वजनिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित करते है. (एनएफएचएस 4 और 5) .
हाल ही किए गए एक अध्ययन में पोषण स्तर पर उच्च वसा, शक्कर, और सोडियम उत्पादों को शुद्ध तौर पर “प्राकृतिक” का ठप्पा अथवा लेबल किया जाना, स्पष्टतः ग्राहकों को गुमराह किए जाने का एक सुनियोजित प्रयास है.
हाल ही किए गए एक अध्ययन में पोषण स्तर पर उच्च वसा, शक्कर, और सोडियम उत्पादों को शुद्ध तौर पर “प्राकृतिक” का ठप्पा अथवा लेबल किया जाना, स्पष्टतः ग्राहकों को गुमराह किए जाने का एक सुनियोजित प्रयास है. और इनमें से अधिकांश दावे एफएसएसएआई द्वारा तय किए गए नियमों का प्रत्यक्ष उल्लंघन है. 2019 में कराए गए सर्वे में ऐसा दावा किया गया है कि तंबाकू खाने वाले 56 प्रतिशत उपभोक्ता इन सरोगेट प्रचार से अवगत नहीं थे; और, जानकारी के अभाव में करीब 70% लोग इनसे प्रभावित भी हो रहे थे. खाद्यकिसान के तौर पर प्रसिद्ध स्वास्थ्य कार्यकर्ता रेवंत हिमतसिंग्का, खाद्य लेबलों की बारीकी से जांच किए जाने को लेकर शुरू किए गए अभियान “लेबल पढ़ेगा इंडिया” के साथ सुर्खियों में आए है. एक वीडियो जिसमें एक लोकप्रिय एनर्जी ड्रिंक में मौजूद उच्च शक्कर की प्रचुरता के वायरल होने के बाद, वे जनता की नज़र में सामने ये. मुंह के कैंसर के बढ़ते दर एवं गुमराह करने वाली प्रचार सामग्री, जो कभी भी धीमी नहीं पड़ती है, उससे निपटने के लिये ये ज़रूरी हो जाता है कि मज़बूत नियमों, प्रवर्तन, और जन जागरूकता को तेज़ किया जाये.
जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरोगेट प्रचार संबंधी समस्या एक अड़चन बनी हुई है; इसलिए, बिना किसी देरी के नीतियों को सख्त़ बनाया जाना काफी आवश्यक है. अधिक सख्त़, एवं सुदृढ़ नियामक वातावरण के लिए निर्दिष्ट प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार है:
पेनल्टी को बढ़ाया जाना चाहिए एवं मीडिया कॉर्पोरेशनों को इस प्रकार के प्रचार को प्रोत्साहित करने का दोषी पाए जाने की स्थिति में दंड के माध्यम से उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए. सरोगेट प्रचार का बार-बार समर्थन करने वाली प्रसिद्ध सेलिब्रिटी या हस्तियों पर उस वक्त तक आवश्यक प्रतिबंध सुनिश्चित करना चाहिये, जो इस तरह के प्रचार को रोकने के लिये ज़रूरी हो.
विज्ञापनदाताओं को अपने प्रत्येक विज्ञापनों में उपयोग किए गए उत्पाद की सटीक प्रवृत्ति का ब्योरा देना चाहिए. अगर वे ऐसा करने में विफल होते हैं तो, गैर- अनुपालन इकाइयों को इन सरोगेट विज्ञापनों के नीचे स्वस्थ चेतावनी चलाने का अधिकार होना चाहिये. विज्ञापन संबंधी ज़रूरी प्रतिबंधों को एक्सटेंशन, प्रॉक्सी स्पोर्ट्स सट्टेबाज़ी, स्वास्थ्य पूरक, एवं जिम उत्पादों के माध्यम से कवर किए जाने की आवश्यकता है. ठीक सेबी की तरह ही जिसने वित्तीय प्रभावकों द्वारा सृजित परेशानियों से निपटने के लिए प्रयास किये, उसी तरह से स्वास्थ्य मंत्रालय को भी चाहिए कि उन्हें सभी प्रकार के स्वास्थ्य कंटेट क्रियेटर्स के लिए एक सर्टिफिकेशन और वेरिफिकेशन पाठ्यक्रम भी विकसित करना चाहिए.
नियमों को सुव्यवस्थित करने, खामियों को दूर करने एवं सख्त़ दंड प्रक्रिया लागू करने के लिए देश, अब सरकार द्वारा सार्थक कदम उठाए जाने की राह देख रहा है. सेलिब्रिटी और इन्फ्लुएंसर्स को भी चाहिए कि वे किसी भी प्रकार के हानिकारक विज्ञापनों को प्रोत्साहित करने से परहेज़ करते हुए सामाजिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी जवाबदेही का निर्वाहन करें. ये सभी लोग एक साथ मिलकर, अपने भावी पीढ़ी को न सिर्फ़ सुरक्षित कर सकते हैं बल्कि एक स्वास्थ्यवर्धक समाज का निर्माण भी कर सकते हैं.
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Dr. K. S. Uplabdh Gopal is an Associate Fellow within the Health Initiative at ORF. His focus lies in researching and advocating for policies that ...
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