नवंबर के महीने में दक्षिणी पूर्वी एशियाई क्षेत्र में एक के बाद एक कई अहम शिखर सम्मेलन हुए. इनमें कंबोडिया में दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) और पूर्वी एशिया के शिखर सम्मेलन, इंडोनेशिया में G20 और आख़िर में थाईलैंड में एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) की बैठक हुई. इस बार एपेक का अध्यक्ष होने के नाते थाईलैंड को ज़िम्मेदारी और मौक़ा मिला कि वो, अमेरिका को अध्यक्षता सौंपने से पहले, 18-19 नवंबर 2022 APEC के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करे. एपेक के थाईलैंड शिखर सम्मेलन की थीम ‘ओपेन, कनेक्ट, बैलेंस’ थी. जिसमें APEC द्वारा हासिल किए जा सकने वाले लक्ष्यों की ओर इशारा किया गया था: ‘क्षेत्र को अवसरों के लिए खोलना, सभी आयामों में संपर्क बढ़ाना और सभी मामलों में संतुलन प्राप्त करना.’
APEC के सदस्य देशों ने पुत्राजाया विज़न 2040 को लगातार लागू करते रहने पर फिर से ज़ोर दिया. इस विज़न में तीन स्तंभों को आगे बढ़ाने की कल्पना शामिल है: व्यापार एवं निवेश; इनोवेशन और डिजिटलीकरण
इस सम्मेलन में आसियान, प्रशांत आर्थिक सहयोग परिषद (PECC) और प्रशांत महासागर के द्वीपों के मंच (PIF) शामिल हुए. ये विशेष रूप से अहम था क्योंकि सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा शामिल हुए थे और इन नेताओं ने सम्मेलन के दौरान कई द्विपक्षीय बैठकों में भी हिस्सा लिया.
शिखर सम्मेलन की प्रमुख बातें
APEC के सदस्य देशों ने पुत्राजाया विज़न 2040 को लगातार लागू करते रहने पर फिर से ज़ोर दिया. इस विज़न में तीन स्तंभों को आगे बढ़ाने की कल्पना शामिल है: व्यापार एवं निवेश; इनोवेशन और डिजिटलीकरण; और, एओटियरोआ कार्य योजना के अंतर्गत क्षेत्र में सशक्त, समावेशी और टिकाऊ विकास करना, ताकि 2040 तक एक मुक्त, गतिशील और शांतिपूर्ण एशिया प्रशांत समुदाय का स्वप्न साकार हो सके.
ऐसे कई मसले थे, जो शिखर सम्मेलन की परिचर्चाओं पर हावी रहे. इनमें रूस यूक्रेन युद्ध का प्रमुखता से ज़िक्र हुआ. इसके अलावा, वार्ताओं में आर्थिक विषय भी हावी रहे और एशिया प्रशांत क्षेत्र में मुक्त व्यापार क्षेत्र (FTAAP) की बहुवर्षीय कार्ययोजना को आगे बढ़ाने के फ़ैसले के तौर पर इस मामले में बहुत बड़ी सफलता हासिल हुई. एपेक इंटरनेट और डिजिटल अर्थव्यवस्था की कार्ययोजना (AIDER) को भी प्रस्तुत किया गया ताकि नई और उभरती हुई तकनीकों को बढ़ावा देकर उन्हें लागू किया जा सके.
BCG मॉडल को प्रोत्साहित करने के लिए थाईलैंड के मंत्रालय द्वारा बनाए गए कार्यक्रमों में से एक- ‘बी द चेंज’ पहल के तहत- BCG के नायकों यानी कंपनियों और संस्थानों की पहचान करना है.
एपेक के कनेक्टिविटी ब्लूप्रिंट (2015-2025) को लागू करने को भी प्रोत्साहन दिया गया, जिससे कनेक्टिविटी बढ़ाकर पर्यटन उद्योग को टिकाऊ बनाया जा सके. इस मामले में सीमाओं के आर-पार बेधड़क और सुरक्षित आवागमन के लिए सेफ पैसेज टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव भी रखा गया.
अर्थव्यवस्थाओं को लॉजिस्टिक्स से जुड़ी सेवाओं की राह में आने वाली बाधाएं दूर करने का प्रोत्साहन देने के लिए सप्लाई चेन कनेक्टिविटी फ्रेमवर्क एक्शन प्लान के तीसरे चरण को भी एपेक के मंत्रियों ने मंज़ूरी दी. इसके साथ 2030 तक सबके लिए खाद्य सुरक्षा लागू करने की योजना, अवैध और अनियंत्रित मछली मारने और महिलाओं को अर्थव्यवस्थाओं में उचित पद हासिल करने के लिए आगे बढ़ाने जैसी कुछ कार्ययोजनाओं का ज़िक्र करने लायक़ था.
BCG मॉडल की महत्ता
थाईलैंड के लिए APEC की मेज़बानी करना बहुत अहम था, क्योंकि इसके ज़रिए उसने दक्षिणी पूर्वी एशिया के अपने अन्य पड़ोसी देशों के बीच अपनी हैसियत साबित करने की दिशा में पहला क़दम बढ़ाया है और इससे थाईलैंड के पर्यटन और निवेश के अवसर भी बढ़े हैं. इस सम्मेलन ने थाईलैंड को अपनी बायो-सर्कुलर-ग्रीन इकॉनमी (BCG) मॉडल को दिखाने का एक विश्वस्तरीय मंच भी मिल गया. BCG में जैविक अर्थव्यवस्था शामिल है, जिसमें नवीनीकरण योग्य संसाधनों का उत्पादन किया जाता है, और उन्हें मूल्य संवर्धित उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था को लाभ होता है.
BCG मॉडल को प्रोत्साहित करने के लिए थाईलैंड के मंत्रालय द्वारा बनाए गए कार्यक्रमों में से एक- ‘बी द चेंज’ पहल के तहत- BCG के नायकों यानी कंपनियों और संस्थानों की पहचान करना है. इन्हें चार पैमानों पर कसा गया है: रद्दी सामान और संसाधनों का इस्तेमाल; जैविक तत्वों का मूल्य संवर्धन; उत्पादन की पर्यावरण के दोस्ताना प्रक्रिया; प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग. इस पहल के तहत 50 कंपनियों को हीरो के तौर पर चुना गया है और बाक़ी की पहचान हो रही है, जिससे उन्हें ऐसे वैश्विक मंच पर रखा जा सके, जहां हरित तकनीक इस्तेमाल हो रही है.
विश्लेषकों का मानना है कि एक सफल मॉडल बनाने के लिए ज्ञान और तकनीक की आवश्यकता है, और BCG को ज्ञान का एक उपयोगी भंडार और व्यवस्था के विस्तार के लिए औज़ारों की ज़रूरत है.
इस विज़न को शुरुआती तौर पर 2027 तक हासिल करने के लिए 41 अरब थाई भात (THB41b) का बजट रखा गया है और इसी लिए इसे राष्ट्रीय एजेंडा बना दिया गया है. इसके अंतर्गत, पांच वर्षों में BCG मॉडल से 24 प्रतिशत GDP हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है.
घरेलू मसले
एपेक सम्मेलन उस वक़्त हुआ, जब थाईलैंड में ज़बरदस्त राजनीतिक संकट है. युवा और किसानों के प्रदर्शन पूरे देश में हो रहे हैं. सम्मेलन के उद्घाटन के दिन एक आम विरोध प्रदर्शन हुआ था, जिसमें लगभग 300 युवा औऱ किसान, BCG के विरोध के लिए शाही महल के सामने इकट्ठा हुए थे. इन सबको डर है कि सरकार बड़े पैमाने पर खेती और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा चलाई जा रही कार्बन क्रेडिट योजनाओं के लिए उनकी ज़मीनें इस योजना में शामिल कर लेगी.
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर सख़्ती की; किशोंरो समेत बहुत से प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया और स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए रबर की गोलियां चलाई गईं. ऐसी गिरफ़्तारियां और बल प्रयोग 2020 से ही चला आ रहा है. इससे लोग और भड़क उठे हैं और वो ये पहल रोकने के साथ साथ प्रधानमंत्री से पद छोड़ने की मांग कर रहे हैं.
एक अंतरराष्ट्रीय NGO ग्रीनपीस थाईलैंड के मुताबिक़, BCG योजना को जिस स्वरूप में जलवायु परिवर्तन से जोड़कर थाईलैंड का मंत्रालय आगे बढ़ा रहा है, वो बड़ी कंपनियों के हितों से जुड़ा है. क्योंकि सरकार ने इन कंपनियों को कार्बन क्रेडिट के लिए बड़े बड़े बाग़ान तैयार करने के लिए भारी रियायतें देने की योजना बनाई है. माना जा रहा है कि एक बाग़ान के लिए 96 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन की ज़रूरत होगी. ज़मीन के ऐसे विशाल टुकड़ों की मांग अपने आप ही स्थानीय समुदायों से टकराव की वजह बनेगी.
अब इस बात का मूल्यांकन करने की ज़रूरत है कि क्या BCG एक टिकाऊ अर्थव्यवस्था का समाधान है और अगर है तो इसे कामयाब बनाने के लिए किन चुनौतियों को कम करना होगा. विश्लेषकों का मानना है कि एक सफल मॉडल बनाने के लिए ज्ञान और तकनीक की आवश्यकता है, और BCG को ज्ञान का एक उपयोगी भंडार और व्यवस्था के विस्तार के लिए औज़ारों की ज़रूरत है. ऐसे में बहुवर्षीय व्यय के लिए वार्षिक फंडिंग बढ़ाने के सुझाव दिए गए हैं. इसके अलावा कुछ ख़ास परियोजनाओं को फंड देने के बजाय तमाम परियोजनाओं को एकीकृत करके फंड देने के सुझाव भी दिए गए हैं.
इससे भी अहम ये है कि इस प्रक्रिया को सामुदायिक स्तर पर स्वीकार्य बनाने के लिए ज्ञान को स्थानीय समुदायों तक पहुंचाना ज़रूरी होगा. सैन्य सरकार के प्रति लोगों में बहुत चिंता और ग़ुस्सा है और अगर जागरूकता फैलाने के स्थानीय कार्यक्रम चलाने के साथ उठाए जा रहे सवालों के सही तरीक़े से उचित जवाब नहीं दिए जाते तो सैन्य सरकार के किसी भी प्रस्ताव को नकारात्मक नज़रिए से ही देखा जाएगा.
अब ये देखना भी बाक़ी है कि क्या APEC देश BCG के बैंकॉक मॉडल पर ख़ुद अपने यहां मुहर लगाते हैं.
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