अगर शीत युद्ध के दौरान भू-राजनीतिक मुकाबला यूरोप और अटलांटिक पर केंद्रित था तो आज ये इंडो-पैसिफिक पर केंद्रित है. वास्तव में ये हिंद महासागर है जो सबसे गंभीर बदलाव का गवाह बन रहा है. ये उस पृष्ठभूमि में हो रहा है जिसे अब एक स्वीकार्य बहुध्रुवीय दुनिया के रूप में माना जा रहा है. इस जटिल माहौल में हिंद महासागर में कई गैर-पारंपरिक किरदार तेज़ी से पैठ बना रहे हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण तुर्किए है जो कि एक उभरता मिडिल पावर (बीच की ताकत) है और एशिया और यूरोप के मिलने की जगह पर स्थित है. काला सागर, एजियन सागर और भूमध्य सागर के तट के साथ तुर्किए किसी भी तरह से हिंद महासागर में एक स्वाभाविक समुद्री ताकत नहीं है लेकिन वो ऐसा बनने की आकांक्षा रखता है. वास्तव में वो एक असली वैश्विक किरदार बनने की इच्छा रखता है और तुर्किए की नज़रें साफ तौर पर हिंद महासागर पर टिकी हैं. क्या ये कोई अवसरवादी और आकांक्षा रखने वाला नया-ओटोमन क्षेत्र है या एक सक्षम क्षेत्रीय नए किरदार के द्वारा सामरिक चाल है. हमारा मानना है कि इसका जवाब इनके बीच में कहीं छिपा है कि क्या तुर्किए की क्षमताएं इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण समुद्री किरदार के तौर पर उभरने के उसके इरादे से मेल खाती हैं या नहीं.
क्या ये कोई अवसरवादी और आकांक्षा रखने वाला नया-ओटोमन क्षेत्र है या एक सक्षम क्षेत्रीय नए किरदार के द्वारा सामरिक चाल है. हमारा मानना है कि इसका जवाब इनके बीच में कहीं छिपा है कि क्या तुर्किए की क्षमताएं इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण समुद्री किरदार के तौर पर उभरने के उसके इरादे से मेल खाती हैं या नहीं.
हिंद महासागर क्षेत्र के साथ तुर्किए की भागीदारी
हिंद महासागर में तुर्किए की विदेश नीति को आगे बढ़ाने का सबसे स्पष्ट औज़ार 21वीं शताब्दी की शुरुआत से नौसेना का महत्वपूर्ण आधुनिकीकरण और विस्तार है. वैसे तो नौसेना को प्राथमिकता अधिक निवेश से प्रेरित थी लेकिन ये तुर्किए की विदेश नीति के कदमों का भी हिस्सा था जिसका लक्ष्य तुर्किए के दक्षिण और पूर्व में समुद्र और ज़मीन पर अधिक कनेक्टिविटी और असर स्थापित करना था.
इसकी सबसे साफ अभिव्यक्ति तुर्किए की 'मावी वतन' या ब्लू होमलैंड डॉक्ट्रिन के रूप में है. ये एक समुद्री रणनीति है जो विदेश में अपने समुद्री क्षेत्रों में तुर्किए की संप्रभुता और हितों का दावा करती है. 2006 में शुरू मावी वतन डॉक्ट्रिन एक बड़े समुद्री अधिकार क्षेत्र पर तुर्किए के दावे के लिए 'कानूनी, कूटनीतिक, वित्तीय और राजनीतिक' बुनियाद मुहैया कराती है और ये तुर्किए के राजनीतिक अभिजात वर्ग (पॉलिटिकल एलिट) और रणनीतिक समुदाय- दोनों में तेज़ी से लोकप्रिय हो गई है. अपनी नई नौसैनिक ताकत का प्रदर्शन करने के लिए तुर्किए ने 2019 से ब्लू होमलैंड नौसैनिक युद्धाभ्यास की सीरीज़ शुरू की है जिसमें 100 से ज़्यादा जहाज़ और एयरक्राफ्ट शामिल होते हैं और ये अभ्यास एक साथ काला सागर, एजियन सागर और भूमध्य सागर में आयोजित होता है.
तुर्किए के रक्षा क्षेत्र में भी इसी तरह की आधुनिकीकरण की पहल देखी गई. इसी वजह से बेकर मकीना के द्वारा तैयार बेरक्तर TB2 अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) या ड्रोन, बख्तरबंद गाड़ियों और दुनिया के पहले ड्रोन एयरक्राफ्ट करियर समेत अलग-अलग तरह के आला हथियारों का उत्पादन किया गया. इसके बदले में तुर्किए के रक्षा सामानों ने मध्य एशिया, मिडिल ईस्ट और सब-सहारन अफ्रीका के साथ तुर्किए की पहुंच और भागीदारी को बढ़ाया. ये रक्षा बिक्री और कई रक्षा समझौतों के रूप में सामने आया है. इन समझौतों में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ रक्षा उद्योग के मेल-जोल से लेकर जिबूती के साथ सैन्य ट्रेनिंग और पिछले दिनों सोमालिया के साथ किया गया समुद्री रक्षा समझौता शामिल हैं. सोमालिया के साथ समझौते की बात करें तो ख़बरों के मुताबिक तुर्किए सोमालिया की नौसेना को ट्रेनिंग और उपकरण- दोनों मुहैया कराएगा.
ये समझौते दिलचस्प हैं क्योंकि हस्ताक्षर करने वाले सभी देश हिंद महासागर के तट पर स्थित हैं. लेकिन तुर्किए अब वहां जो कर रहा है, ये समझौते केवल उसकी एक झलक पेश करते हैं.
ये समझौते दिलचस्प हैं क्योंकि हस्ताक्षर करने वाले सभी देश हिंद महासागर के तट पर स्थित हैं. लेकिन तुर्किए अब वहां जो कर रहा है, ये समझौते केवल उसकी एक झलक पेश करते हैं. मालदीव को TB2 ड्रोन बेचने का तुर्किए का फैसला और मलेशिया के द्वारा तुर्किए का एडा क्लास या लिटोरल मिशन शिप (LMS) बैच 2 जंगी जहाज़ ख़रीदने के रूप में मलेशिया के साथ उसके रक्षा संबंधों का विस्तार हिंद महासागर और उसके आस-पास तुर्किए के बढ़ते प्रभाव के दूसरे उदाहरण हैं. तुर्किए ने पाकिस्तान के साथ नौसैनिक सहयोग भी बढ़ाया है. दोनों देशों की नौसेना ने न केवल साझा नौसैनिक युद्धाभ्यास किया है- तुर्किए पाकिस्तान की नौसेना की मेज़बानी में द्विवार्षिक अमन युद्ध अभ्यास में एक नियमित भागीदार है- बल्कि 2023 में तुर्किए ने पाकिस्तान को चार मॉडिफाइड (परिवर्तित) बाबर क्लास जंगी जहाज़ भी बेचे हैं. ये इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसके तहत संवेदनशील तकनीकों और इंटिलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट (बौद्धिक संपदा अधिकार) का ट्रांसफर भी शामिल है और इससे हिंद महासागर में पाकिस्तान की नौसेना की क्षमताओं में अहम बढ़ोतरी हो सकती है. इसने तुर्किए के दूरगामी मिलजेम (MILGEM) प्रोजेक्ट को भी बहुत बढ़ावा दिया है. मिलजेम एक राष्ट्रीय युद्धपोत कार्यक्रम है जिसकी आकांक्षा अलग-अलग तरह के नौसैनिक जहाज़ों जैसे कि कॉर्वेट्स, फ्रिगेट्स और डेस्ट्रॉयर्स को विकसित करना और बनाना है जो विभिन्न प्रकार के काम जैसे कि टोह लेने और पनडुब्बी के ख़िलाफ़ लड़ने में सक्षम हों.
हिंद महासागर को लेकर तुर्किए का नज़रिया
संदर्भ में कहें तो हिंद महासागर तुर्किए के द्वारा अपना दायरा और प्रभाव बढ़ाने की महत्वाकांक्षी पहेली का अगला हिस्सा लगता है. नीतियों के मामले में कहें तो 2023 की राष्ट्रीय विदेश नीति का दस्तावेज़, जिसका शीर्षक “सेंचुरी ऑफ तुर्किए” है, तुर्किए की “ऊर्जा और सप्लाई चेन की सुरक्षा” के संदर्भ में हिंद महासागर के सामरिक महत्व को उजागर करता है. ये इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) में तुर्किए की सदस्यता के मामले को भी तैयार करता है जिसे 2018 में मंज़ूरी दी गई थी.
हिंद महासागर का ज़िक्र 2015 में तुर्किए की नौसेना रणनीति में “सामरिक महत्व” के क्षेत्र के रूप में किया गया था. रणनीति में ये भी कहा गया था कि तुर्किए का लक्ष्य “साजो-सामान के अड्डे और स्थानीय बंदरगाह की सुविधा हासिल करके” इंटरऑपरेबिलिटी में सुधार करना है. इस उद्देश्य के लिए, जो भले ही इन नीतिगत दस्तावेज़ों से अलग है, तुर्किए की अलबेरक कंपनी ने 2013 से मोगादिशु बंदरगाह का संचालन और विस्तार किया है और हाल ही में एक और 14 साल की सुविधा के लिए एक विस्तार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. तुर्की की एक और कंपनी फेवोरी LLC ने 2015 में एक नए टर्मिनल को खोला है और वो मोगादिशु के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का संचालन कर रही है. तुर्किए ने 2017 में मोगादिशु में सोमालिया की सेना और स्पेशल फोर्स के लिए सैन्य ट्रेनिंग की सुविधा की शुरुआत की. ख़बरों के मुताबिक तुर्किए ने 2022 तक हज़ारों सैनिकों के अलावा 5,000 कमांडो, 316 अधिकारियों और 392 NCO (नॉन-कमीशंड ऑफिसर) को ट्रेनिंग दी है. सूडान की पूर्व सरकार के साथ लाल सागर के तट पर सुआकिन शहर में ओटोमन युग की एक चौकी की बहाली के लिए 2017 में एक विवादित समझौते की वजह से अटकलें लगने लगीं कि ये काम एक नौसैनिक गोदी (डॉक) और जोड़ने की सुविधा (रिसप्लाई फैसिलिटी) को छिपाने के लिए था.
तुर्किए के ओटोमन अतीत का ज़िक्र अनिवार्य रूप से ये सवाल खड़ा करता है कि हिंद महासागर में तुर्किए की नई दिलचस्पी क्या बीते हुए दौर की याद है जिसे केवल अवसरवादी नीतियों में बदला गया है. इसकी वजह ये है कि ओटोमन के सुल्तानों ने हिंद महासागर में मलक्का स्ट्रेट तक नौसैनिक अभियानों को भेजा था, मौजूदा समय के सोमालीलैंड में मुस्लिम अदल सल्तनत का उस समय समर्थन किया था जब वो अपने पड़ोसी और काफी हद तक ईसाई देश इथियोपिया के साथ संघर्ष कर रहा था और ओटोमन-पुर्तगाली संघर्ष (1538-1560) के दौरान लाल सागर में पुर्तगालियों के ख़िलाफ़ नौसैनिक लड़ाई लड़ी थी.
समुद्र को लेकर तुर्किए की महत्वाकांक्षा को नव-ओटोमन के रूप में बताना बहुत बचकाना है. इसके पीछे लंबे समय का हित है जिसका पता रोड मैप से चलता है जब राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने तुर्किए के राष्ट्रीय हित को “स्वेज़ नहर, उसके आसपास के सागर और वहां से आगे बढ़कर हिंद महासागर तक फैले होने” के रूप में परिभाषित किया. ये भले ही महत्वाकांक्षी हो लेकिन तुर्किए कभी भी अपनी सीमित भूमिका के साथ सहज नहीं रहा है. 1923 में गणतंत्र की शुरुआत के समय से तुर्किए के नेताओं- पूरे राजनीतिक परिदृश्य में, कमाल को मानने वालों से लेकर इस्लामवादियों और राष्ट्रवादियों तक- ने अलग-अलग सीमा तक तुर्किए के द्वारा बड़ी भूमिका निभाने को देखने की इच्छा के बारे में बताया है. ये भूमिका पहले आस-पास के क्षेत्र में और फिर इसे बढ़ाकर दूर-दराज के क्षेत्रों तक करने की है.
मौजूदा समय के सोमालीलैंड में मुस्लिम अदल सल्तनत का उस समय समर्थन किया था जब वो अपने पड़ोसी और काफी हद तक ईसाई देश इथियोपिया के साथ संघर्ष कर रहा था और ओटोमन-पुर्तगाली संघर्ष (1538-1560) के दौरान लाल सागर में पुर्तगालियों के ख़िलाफ़ नौसैनिक लड़ाई लड़ी थी.
लेकिन तुर्किए के नेताओं के सामने समस्या, चाहे वो 70 के दशक में हो या 90 के दशक में, ये थी कि उनके पास इन विदेश नीतियों को लगातार लागू करने के लिए राष्ट्रीय शक्ति की कमी थी. तुर्किए की मावी वतन समुद्री रणनीति को ही ले लीजिए. अब जाकर तुर्किए के सामने ये संभावना है कि वो दस्तावेज़ों की अपनी महत्वाकांक्षा को सक्रिय विदेश नीति में बदल पाए, वो भी सीमाओं के दायरे में. मध्य एशिया, पश्चिम अफ्रीका और हिंद महासागर के बेसिन के देशों के साथ उसकी भागीदारी को इसी परिप्रेक्ष्य में समझना चाहिए. लेकिन ये कदम अतीत के ओटोमन साम्राज्य के साथ जुड़ी केवल दो बातें साझा करती हैं: एक बहुत आंशिक भौगोलिक दायरा और राष्ट्र-राज्य (नेशन-स्टेट) से परे तुर्किए की स्वाभाविक भूमिका को लेकर तुर्किए के मौजूदा राजनीतिक अभिजात वर्ग का विश्वास. लेकिन ओटोमन साम्राज्य जहां ज़मीन पर नियंत्रण में दिलचस्पी रखता था, वहीं तुर्किए के मौजूदा नेताओं को इसमें दिलचस्पी नहीं है.
एक बाहरी किरदार
तुर्किए ने हिंद महासागर के क्षेत्र के साथ भागीदारी के अपने इरादे को साफ कर दिया है. लेकिन ये भागीदारी क्या रूप लेगी और क्या ये कामयाब होगी? तुर्किए के द्वारा पैन-इस्लामिक भाषा और उपनिवेशवाद विरोधी बयानबाज़ी के बावजूद इस क्षेत्र में तुर्किए की भागीदारी का स्वरूप मुख्य रूप से व्यावसायिक रहा है और इसने किसी को चौकन्ना नहीं किया. यहां तक कि मालदीव को ड्रोन बेचना या पाकिस्तान की नौसेना के आधुनिकीकरण में तुर्किए का शामिल होना काफी हद तक व्यावसायिक हितों से प्रेरित है क्योंकि तुर्किए भारत के ख़िलाफ़ सामरिक लक्ष्यों या पश्चिमी हिंद महासागर में एक ताकत बनने की तुलना में अपने तेज़ी से बढ़ते रक्षा उद्योग का विस्तार करने की तरफ देख रहा है. वास्तव में तुर्किए की ब्लू होमलैंड रणनीति बनाने वाले सेम गुर्डेनिज़ ने दूर-दराज के हिंद महासागर में तुर्किए की नौसेना की मौजूदगी को सही ठहराते हुए केवल अपने देश के “व्यावसायिक हितों” के बारे में बताया.
दूसरे देशों की तरह तुर्किए की अपनी क्षमताएं भी सीमित हैं. इसकी वजह से तुर्किए से दूर क्षेत्रों में ताकत दिखाने के लिए फोर्स की तैनाती की उसकी क्षमता में महत्वपूर्ण बाधाएं आती हैं. देश में और आसपास तुर्किए के अपने सुरक्षा ख़तरों का ये मतलब है कि उसके संसाधन मुख्य रूप से देश की सुरक्षा करने के लिए हैं, न कि दूसरे क्षेत्रों में सैन्य दुस्साहस में शामिल होने के लिए. अगर तुर्किए चाहे तो भी उसकी नौसेना के पास दूर-दराज के समुद्रों में महत्वपूर्ण और प्रभावी तैनाती के लिए संसाधन नहीं हैं.
हिंद महासागर में तुर्किए की मौजूदा पहुंच और आकांक्षाओं का कुछ देशों के द्वारा स्वागत किया जा सकता है जबकि कुछ इसकी निंदा कर सकते हैं लेकिन ये कोई बड़ी रणनीति का हिस्सा होने के बदले काफी हद तक अवसरवादी बनी हुई है. आने वाले समय की बात करें तो तुर्किए हिंद महासागर में एक सीमित भूमिका निभाएगा क्योंकि इस क्षेत्र में ज़्यादा हिस्सेदारी वाले बड़े किरदार चुनौतियों का समाधान करेंगे और उन्हें पैदा भी करेंगे.
रुशाली साहा दिल्ली में रहने वाली स्वतंत्र रिसर्चर हैं और हिंद महासागर की भू-राजनीति में विशेषज्ञता रखती हैं.
ब्रेंडन जे. कैनन अबू धाबी की खलीफा यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.
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