Authors : Madhavi Jha | Shoba Suri

Expert Speak Health Express
Published on Jan 15, 2025 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 महामारी के बाद से एनीमिया के मामले बढ़ते जा रहे हैं. इस समस्या से निपटने के लिए भारत को समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है.

भारत में एनीमिया: एक ख़ामोश सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट

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दुनिया में एनीमिया से पीड़ित लोगों की सबसे अधिक संख्या भारत में है. इसकी वजह से भारत में एनीमिया को अक्सर ख़ामोश महामारी कहा जाता है. एनीमिया को ख़त्म करने की कोशिशों के बावजूद ये लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है और हाल के दशकों में इसकी व्यापकता लगातार बढ़ रही है. एनीमिया कमज़ोरी, थकान, सांस लेने में परेशानी, पीले रंग, ठंडे हाथ-पैर, चक्कर आना, तेज़ी से दिल धड़कना और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी जैसे लक्षणों के ज़रिए दिखाई देता है. एक दुष्चक्र तैयार होता है जहां कमज़ोरी उत्पादकता और ख़ुशहाली को कम कर देती है जिससे मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और जन्म के समय कम वज़न का ख़तरा पैदा होता है. एनीमिया के दूरगामी सामाजिक और आर्थिक परिणाम होते हैं जो शारीरिक और सोचने-समझने- दोनों के विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं.  

एनीमिया की दरों में बढ़ोतरी भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में व्यवस्थागत मुद्दों को उजागर करती है जिनका जल्द-से-जल्द समाधान करने की आवश्यकता है. 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 57 प्रतिशत महिलाएं और 67.1 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं (आंकड़ा नीचे है). एनीमिया का प्रचलन प्रजनन की उम्र वाली महिलाओं, छोटे बच्चों और ग्रामीण जनसंख्या में अधिक है. एनीमिया की दरों में बढ़ोतरी भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में व्यवस्थागत मुद्दों को उजागर करती है जिनका जल्द-से-जल्द समाधान करने की आवश्यकता है. 

 Anaemia In India A Silent Public Health Crisis

स्रोत: IIPS 

पिछले दो दशकों के दौरान NFHS-3 और NFHS-4 के बीच भारत में एनीमिया की व्यापकता में कमी आई है. इस दौरान एनीमिया से जुड़े दूसरे महत्वपूर्ण संकेतकों में सुधार हुआ है जिनमें मातृत्व स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं. इसका कारण प्रसव से पहले देखभाल, डॉक्टर की देखरेख में डिलीवरी और गर्भवती महिलाओं के लिए स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में बढ़ोतरी है. इसके अलावा बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े संकेतकों में भी बेहतरी आई है और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को बेहतर पोषण मिल रहा है एवं उनके टीकाकरण की दर में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन NFHS-5 में सभी श्रेणियों के लोगों के लिए एनीमिया की व्यापकता में फिर से बढ़ोतरी हुई. 2015-16 और 2019-21 के बीच महिलाओं में एनीमिया होने की दर 53 से बढ़कर 57 प्रतिशत हो गई. महिलाओं के सभी समूहों में एनीमिया की कुल व्यापकता लगातार अधिक है और ये 50 प्रतिशत के पार है. शहरी क्षेत्रों (64.2 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (68.3 प्रतिशत) में रहने वाले बच्चों में एनीमिया की व्यापकता ज़्यादा थी जो कि मां के कम शैक्षणिक स्तर और कम आय वाले परिवार से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. एनीमिया से पीड़ित मां के बच्चों में एक स्वस्थ मां के बच्चों की तुलना में एनीमिया होने की आशंका अधिक है और ये आशंका पैदा होने वाले बच्चे की संख्या के साथ बढ़ती है. किशोर लड़कियों, जो भारत की कुल महिलाओं में लगभग 17 प्रतिशत हैं, को एनीमिया होने की आशंका विशेष रूप से अधिक है. इसका कारण उम्र के इस चरण में होने वाले विशिष्ट शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ कम आयरन का सेवन और मासिक धर्म के दौरान नुकसान हैं. वो आहार से जुड़ी दूसरी कमियों जैसे कि फोलेट और विटामिन बी12 की कमी के ख़तरे से भी जूझती हैं जो कि लाल रक्त कोशिकाओं के संश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण हैं. 

कोविड के बाद

कोविड-19 के परिणामस्वरूप बच्चों और प्रजनन की उम्र की महिलाओं में एनीमिया में बढ़ोतरी हुई है. इसका कारण लॉकडाउन के दौरान पोषण के कार्यक्रमों और स्वास्थ्य सेवाओं में आई रुकावट है जिससे ज़रूरी चिकित्सा उपचार और आहार से जुड़े सप्लीमेंट हासिल करना अधिक मुश्किल हो गया था. पूर्वी भारत के एक बड़े अस्पताल में हुई एक व्यापक रिसर्च में पता चला कि कोविड-19 की वजह से अस्पताल में भर्ती 80 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं. अध्ययन में पता चला कि हीमोग्लोबिन के कम स्तर का संबंध अधिक मृत्यु दर और ज़्यादा गंभीर कोविड-19 से था. इससे पता चलता है कि पहले से एनीमिया होने का महामारी के दौरान मरीज़ों के इलाज के मामले में बड़ा संबंध था. हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम के आंकड़ों के अनुसार सभी लाभकारी समूहों ने 2017-18 और 2019-20 के बीच आयरन और फोलिक एसिड (IFA) सप्लीमेंट के सेवन में सुधार का अनुभव किया. इसके बावजूद कोविड-19 महामारी के बाद की समीक्षा से पता चला कि भले ही कुछ हद तक प्रगति हासिल हुई लेकिन इस अवधि के दौरान एनीमिया की व्यापकता में महत्वपूर्ण कमी नहीं आई.

गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद की अवधि में खान-पान पर प्रतिबंध के पीछे सांस्कृतिक मान्यताएं और व्यवहार हैं जो आहार से जुड़ी कमी का कारण बन सकते हैं जिससे महिलाओं को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है और वो एनीमिया से पीड़ित हो जाती हैं. 

भारत में ज़्यादातर लोग ऐसे आहार का सेवन करते हैं जो आयरन, फोलेट और विटामिन बी12 की रोज़ की ज़रूरतों को पूरा करने के मामले में “मुश्किल से पर्याप्त” या “पूरी तरह से अपर्याप्त” हैं. गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद की अवधि में खान-पान पर प्रतिबंध के पीछे सांस्कृतिक मान्यताएं और व्यवहार हैं जो आहार से जुड़ी कमी का कारण बन सकते हैं जिससे महिलाओं को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है और वो एनीमिया से पीड़ित हो जाती हैं. एनीमिया की व्यापकता अक्सर सामाजिक-आर्थिक कारणों जैसे कि हाशिए पर होने, कम आय, स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच, वित्तीय स्वायत्तता की कमी, निर्णय लेने के सीमित अधिकार और अशिक्षा से प्रभावित होती है. HIV (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस), मलेरिया, टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) और परजीवी संक्रमण जैसी पुरानी बीमारियां इस ख़तरे को और बढ़ाती हैं. झारखंड और बिहार जैसे राज्यों, जहां ग़रीबी बहुत अधिक है और पोषण एवं चिकित्सा तक सीमित पहुंच है, में एनीमिया की अधिक व्यापकता देखी गई है. बच्चों और किशोरों में एनीमिया का नतीजा बौद्धिक गिरावट, ख़राब अकादमिक प्रदर्शन और कम विकास के रूप में निकलता है. इन सभी स्थितियों का शिक्षा हासिल करने और आर्थिक उत्पादकता पर दीर्घकालीन नतीजा हो सकता है. एनीमिया को कम करने की कई सरकारी कोशिशों के बावजूद प्रगति धीमी रही है और मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि एनीमिया को लेकर संवेदनशील जनसंख्या में इसकी व्यापकता बढ़ रही है. 

जीवन चक्र दृष्टिकोण का उपयोग करके माताओं, बच्चों और किशोरों में एनीमिया की व्यापकता को कम करने के लिए 2018 में एनीमिया मुक्त भारत (AMB) की रणनीति शुरू की गई. ये कार्यक्रम 6x6x6 रणनीति का इस्तेमाल करता है जिसमें छह हस्तक्षेप, छह लक्षित लाभार्थी श्रेणियां और छह संस्थागत ढांचे शामिल हैं. इसमें एनीमिया के पोषण एवं गैर-पोषण से संबंधित कारणों का समाधान करने के लिए सप्लाई चेन को बढ़ाने, मांग पैदा करने और मज़बूत निगरानी पर ध्यान दिया गया है. AMB मिशन पोषण 2.0 समेत अधिक व्यापक राष्ट्रीय पोषण योजनाओं के अनुरूप है जो दूसरे पोषण से जुड़े कार्यक्रमों को जोड़ती हैं और अनाज सुदृढ़ीकरण (फूड फोर्टिफिकेशन या प्रसंस्करण के दौरान विटामिन और खनिज जोड़ने की प्रक्रिया), आहार की विविधता और मोटे अनाज के उपयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान देती हैं. आहार से संबंधित कमियों को पूरा करने के लिए पोषण 2.0 के तहत पोषण जागरूकता पहल का उद्देश्य पौष्टिक और क्षेत्रीय खाद्य पदार्थों के माध्यम से दीर्घकालीन स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना है. खाद्य सुदृढ़ीकरण कार्यक्रम का मक़सद मुख्य भोजन में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़कर पोषण से जुड़े नतीजों को बढ़ाना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली एवं एकीकृत बाल विकास सेवाओं के माध्यम से कमज़ोर समूहों तक पहुंचना है. 

निष्कर्ष

पोषण, स्वास्थ्य और सामुदायिक हस्तक्षेपों के ज़रिए प्रभावी ढंग से एनीमिया के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. जिन लोगों पर एनीमिया का ख़तरा ज़्यादा है, उनमें आयरन का सेवन बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए पत्तेदार साग, फलियों, बादाम और फोर्टिफाइड अनाज जैसे आयरन से समृद्ध खाद्य पदार्थों की खपत बढ़ाई जा सकती है और इसके साथ-साथ आहार से जुड़ी विविधता पर शिक्षा के ज़रिए भी ये काम किया जा सकता है. प्रमुख अनाजों को आयरन एवं दूसरे खनिजों से समृद्ध किया जाना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि ये महत्वपूर्ण पोषक तत्व व्यापक रूप से उपलब्ध हैं. स्वास्थ्य शिक्षा और सलाह के ज़रिए आयरन फोलिक एसिड (IFA) के सप्लीमेंट का पालन सुनिश्चित करने के साथ-साथ ख़राब असर से निपटने से एनीमिया की रोकथाम और प्रबंधन में मदद मिल सकती है. सटीक डायग्नोस्टिक उपकरणों जैसे कि नस के खून के नमूनों का उपयोग करके एनीमिया की जांच-परख के तौर-तरीकों में सुधार करने से एनीमिया का पता लगाने और इलाज में सहायता मिलेगी. अध्ययनों ने एनीमिया की रोकथाम और इलाज के उद्देश्य से अभिभावकों को परामर्श प्रदान करने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों को सशक्त बनाने की भूमिका का प्रदर्शन किया है. गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों समेत अधिक ख़तरे वाले समूहों पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से क्षेत्र विशेष में लक्ष्य बनाकर एनीमिया की रोकथाम के लिए हस्तक्षेपों को लागू करना शामिल है.  

अध्ययनों ने एनीमिया की रोकथाम और इलाज के उद्देश्य से अभिभावकों को परामर्श प्रदान करने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों को सशक्त बनाने की भूमिका का प्रदर्शन किया है.

भारत समग्र दृष्टिकोण अपनाकर एनीमिया के अंतर्निहित कारणों का समाधान कर सकता है लेकिन इस दृष्टिकोण को एनीमिया की रोकथाम और प्रबंधन से जुड़ी रणनीतियों के लिए इलाज से जुड़े सभी घटकों के साथ-साथ सभी पहलुओं- सामाजिक, सांस्कृतिक, आहार संबंधी और आर्थिक- पर भी विचार करना होगा. 


माधवी झा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं. 

शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की हेल्थ इनिशिएटिव में सीनियर फेलो हैं. 

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