-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
श्वेत अमेरिकी पुरुषों ने ट्रम्प को इसलिए वोट नहीं दिया कि उनके पास रोज़गार नहीं था या वो कम वेतन पर काम कर रहे थे, या इसलिए कि ट्रम्प ने उन्हें कोई आर्थिक लालच दिया। उनके ट्रम्प को वोट करने के पीछे वजह है उनकी श्वेत पहचान के दबदबे को बचाए रखने की चाह।
Times Square, भाग 2 — नौकरियों, स्वचालन और दुनिया के प्रबुद्ध लोगों की ओर से व्यक्त की जा रही चिंताओं पर एक नई श्रृंखला।
भाग 1 पढ़ें ► फर्म के अंदर कहां फिट बैठता है गिग वर्कर?
अमेरिकी श्वेत पुरुषों के डोनल्ड ट्रम्प को वोट देने के पीछे गरीबी नहीं उनके श्वेत पहचान के दबदबे को बनाए रखने कि चाह थी। एक नई स्टडी ये बताती है कि श्वेत वर्चस्व बनाए रखना ही इसकी मुख्य वजह रही और ये स्टडी अमेरिकी चुनाव के उन तमाम विश्लेषण को ग़लत ठहराती है जिसके मुताबिक बेरोज़गारी या गरीबी की वजह से अमेरिकी पुरुषों ने ट्रम्प को वोट दिया।
और इसके अलावा धर्म, नस्ल और बाहर से आकर बसने वाले लोगों के बारे में ट्रम्प के वोटरों की राय ओबामा प्रशासन से ट्रम्प के उभार तक के दौर में बिलकुल नहीं बदली है। ऐसा नहीं कि वो और ज्यादा दक्षिण पंथी हो गए हों, वो अपनी राय में वहीँ के वहीँ हैं। ये बातें Diana Mutz की स्टडी में सामने आई हैं जो पेनसिलवेनिया विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाती हैं।
अमेरिका में मध्यवर्ती चुनाव ६ महीने के बाद हैं। ये सोच हमें बताती है कि क्यूँ अप्रवासी मुद्दे पर एक बंटी हुई कांग्रेस में गतिरोध और इसके लिए समर्थन नहीं होने के बावजूद भी ट्रम्प इसे वोट के लिए इस्तेमाल करेंगे।
अमेरिका के सबसे लोकप्रिय लेखकों में रहे टोनी मोरिसन का कहना है कि यूरोप के किसी भी देश के मुकाबले अमेरिका में उसकी श्वेत पहचान ज्यादा हावी है, श्वेत रंग अमेरिकियों की एकता की एक बड़ी वजह है। यूरोप के किसी देश में श्वेत पहचान पर इतना जोर नहीं है लेकिन अमेरिका में श्वेत होना ही अमेरिकियों को एक दुसरे से जोड़ता है। उन्हें एक समुदाय के तौर पर पहचान देता है। श्वेत अश्वेत के आधार पर वोट डाले जाते हैं, जिसके लिए लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं।
अमेरिका में मध्यवर्ती चुनाव ६ महीने बाद हैं, ये सोंच बताती है कि अप्रवासी नीति पर अमेरिकी कांग्रेस में गतिरोध और कोई दिलचस्पी नहीं होने के बावजूद ट्रम्प इस मुद्दे को चुनाव में भुनाने कि कोशिश करेंगे। सड़कों पर और ऑनलाइन अलग अलग गुटों का जिस तरह का बर्ताव सामने आ रहा है वो दिखा रहा है कि समाज में किस तरह की सोंच बन रही है। सोशल मीडिया पर ट्रम्प को फॉलो करने वालों कि संख्या असाधारण है। सोशल मीडिया फ्री है, उस पर फ़ौरन किसी की सोंच आंकी जा सकती। इन्टरनेट समाज में अलग अलग गुटों के बर्ताव का एक बेहतरीन आइना भी है। ये सोंच बहुत तेज़ी से फैलती है।
Mutz की स्टडी के मुताबिक श्वेत अमेरिकी पुरुषों ने ट्रम्प को इसलिए वोट नहीं दिया कि उनके पास रोज़गार नहीं था या वो कम वेतन पर काम कर रहे थे, या इसलिए कि ट्रम्प ने उन्हें कोई आर्थिक लालच दिया। उनके ट्रम्प को वोट करने के पीछे वजह है उनकी श्वेत पहचान के दबदबे को बचाए रखने की चाह। समाज में एक असरदार और शक्तिशाली समुदाय बने रहने की चाह क्यूंकि उन्हें डर है की उनकी इस श्वेत पह्हान को ख़त्म करने के लिए बहुनस्लीय प्रवासियों की बाढ़ आ रही है।
Mutz का शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस जो कि दुनिया कि सबसे अधिक उल्लेखनीय वैज्ञानिक पत्रिका है, में छपा है। Mutz का पेपर २०१६ के राष्ट्रपति चुनाव के लिए दिए गए कारणों को पूरी तरह से ख़ारिज करता। चुनाव में ट्रम्प की जीत के मुख्य कारणों में बताया गया था कि कामकाजी वर्ग विकास में पीछे छूट जाने के खिलाफ खड़ा था। जिनकी नौकरियां चली गईं थी या जिनके वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही थी और वो आर्थिक तौर पर पीछे रह गए थे उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ वोट किया।
श्वेत अमेरिकी पुरुष जो नौकरी से बाहर थे या फिर जिन्हें कम वेतन मिल रहा था, उन्होंने इसलिए ट्रम्प के लिए वोट नहीं किया कि ट्रम्प उन्हें इस परेशानी से निकलने के लिए कोई आर्थिक मदद दे रहे थे। उन्हों ने ट्रम्प के लिए उस श्वेत पहचान और दबदबे को बचाए रखने के लिए वोट किया जिसे बहुनस्लीय प्रवासियों कि अश्वेत बाढ़ से खतरा है।
Mutz हमें ओबामा प्रशासन के दुसरे कार्यकाल के आंकड़े दिखाती है ताकि इसका आंकलन किया जा सके कि क्या बदला है। २०११ से २०१६ के बीच वोटरों कि राय नहीं बदली। फिर क्या बदला ? नस्ल, धर्म और बाहर देशों से आ कर बसने वाले लोगों के मुद्दे में दुसरे मुद्दों के मुकाबले बदलाव आया। लोगों कि राय वही रही, किसी मुद्दे पर लोग क्या सोंचते हैं वो भी नहीं बदला लेकिन किस मुद्दे को लोग कितनी अहमियत दे रहे हैं इसमें बदलाव आया है। इस से ही संतुलन बदला है।
वैसे अमेरिका में सिर्फ श्वेत आबादी ही नहीं है जिसे अपने अस्तित्व को लेकर डर या असुरक्षा हो रही है। येल लॉ स्कूल कि प्रोफेसर Amy Chua अपनी किताब, Political Tribes: Group Instinct and the Fate of Nations। में लिखती हैं कि आजकल अमेरिका में ज़्यादातर सामाजिक गुट असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। Amy Chua के मुताबिक जब तक श्वेत अमेरिकी नागरिकों को ये लगेगा कि अल्पसंख्यक गुट या समुदाय उनके बारे में ये सोंचते हैं कि श्वेत आबादी एक लालची बहुसंख्यक गुट है तब तक श्वेतों का राष्ट्रवाद उन्हें मजबूर करता रहेगा कि वो देश की राजनीती, संस्कृति और पहचान पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखें।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Nikhila Natarajan is Senior Programme Manager for Media and Digital Content with ORF America. Her work focuses on the future of jobs current research in ...
Read More +