Author : Sejal Patel

Expert Speak Urban Futures
Published on Oct 18, 2024 Updated 0 Hours ago

सरकार द्वारा देश में किफ़ायती आवास की कमी को दूर करने के लिए जिस प्रकार से गंभीर कोशिशें की जा रही हैं और योजनाएं बनाई गई हैं, उसने सभी आय वर्ग के लोगों में उम्मीद जागाई है. इन प्रयासों की सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि सरकार द्वारा इस दिशा में न केवल पूरी प्रतिबद्धता दिखाई जाए, बल्कि इसके बीच में आने वाली हर बाधा को भी दूर किया जाए.

केंद्र और राज्य मिलकर बनाएंगे किफायती आवास की नई रणनीति

Image Source: Getty

पूरी दुनिया के शहरों में मकान ख़रीदना बहुत महंगा हो गया है, ख़ास तौर पर ग्लोबल साउथ के शहरों में तो आवास की बढ़ती लागत एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है. मकानों की बढ़ती लागत ने ग़रीबों के सामने रहन-सहन की दिक़्क़तें पेश की हैं और मज़बूरन उन्हें शहरों में फैली झुग्गी बस्तियों में रहना पड़ता है, जहां बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं होती हैं. जहां तक भारत के शहरों की बात है, तो इनमें मकानों के लिए ज़मीन की कमी है, भवन निर्माण से जुड़े नियम-क़ानूनों में कोई एकरूपता नहीं है, साथ ही घर बनाने के लिए कर्ज़ मिलने में कई तरह के झंझट हैं. इसके अलावा मकानों की लागत के मुताबिक़ किराया नहीं मिलने जैसी तमाम समस्याएं भी हैं. इन सारी वजहों से ग़रीब तबके के लोगों को शहरों में आवास नहीं मिल पाता है. इसी कारण से भारतीय शहरों में जहां महंगे आवासों की उपलब्धता बहुत अधिक है, वहीं कम क़ीमत वाले किफ़ायती मकानों की आपूर्ति बहुत कम है, साथ ही निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए किराए के घरों की संख्या भी कम है.

 

किफ़ायती आवासों की उपलब्धता बढ़ाने और उन्हें निम्न आय वर्ग के लोगों की पहुंच में लाने के लिए एक बहुआयामी नज़रिए को अपनाए जाने की ज़रूरत है. यानी ऐसे दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें किफ़ायती मकानों के लिए सरकार को उत्तरदायी बनाए जाए और सक्षम भी बनाए जाए. ज़ाहिर है कि ऐसा नज़रिया अपनाने से ही जहां हाउसिंग मार्केट यानी रिहायशी संपत्ति की ख़रीद-फरोख़्त से जुड़े बाज़ार के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध होगी, वहीं अविकसित आवासीय मार्केट्स में आने वाली रुकावटों को दूर करने के तरीक़ों का भी पता चलेगा. केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U) ऐसी ही एक पहल है, जिसके अतंर्गत वर्ष 2024 के आख़िर तक भारत के शहरी इलाक़ों में 11.8 मिलियन मकानों का निर्माण करने लक्ष्य निर्धारित किया गया है. यह एक वैसा ही बहुआयामी दृष्टिकोण है, जिसका जिक्र किया गया है. यानी इस क़दम से न केवल किफ़ायती आवासों की कमी दूर की जा सकता है, बल्कि भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी मकान तैयार किए जा सकते हैं.

 इस क़दम से न केवल किफ़ायती आवासों की कमी दूर की जा सकता है, बल्कि भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी मकान तैयार किए जा सकते हैं.

PMAY-U और दूसरी आवासीय उप-योजनाओं के साथ इसका तालमेल

PMAY-U योजना का मकसद भारत के शहरी क्षेत्रों में मकानों की कमी को दूर करना है. ज़ाहिर है कि आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2012 में शहरों में रहने वाले लोगों के लिए 18.78 मिलियन मकानों की कमी थी. शहरों में रहने वाले ऐसे परिवार, जिनके पास रहने की उचित जगह नहीं थी, उनमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) और निम्न आय वर्ग (LIG) के 96 प्रतिशत लोग शामिल थे. PMAY-U में निम्नलिखित चार मुख्य खंड शामिल हैं:

 

  • प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत, 'इन-सीटू' स्लम पुनर्विकास (ISSR) के ज़रिए पात्र झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों के लिए घर बनाए जाते हैं. इस योजना के तहत, निजी डेवलपर की मदद से भूमि का इस्तेमाल किया जाता है और मकान बनाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से अनुदान दिया जाता है.

 

  • भागीदारी में किफ़ायती आवास (AHP) के अंतर्गत सरकार किफ़ायती आवास निर्माण को प्रोत्साहित करती है. इसके अंतर्गत निजी सेक्टर के साथ साझेदारी में राज्यों द्वारा EWS आवासों के निर्माण के लिए केंद्र की तरफ से मदद की जाती है.

 

  • लाभार्थी द्वारा संचालित आवास निर्माण (BLC) के अंतर्गत ईडब्ल्यूएस श्रेणी के उन लोगों की सीधे आर्थिक मदद की जाती है, जो नया मकान निर्मित करना चाहते हैं, या जिनके पास पहले से ही घर है और वे उसे अपग्रेड करना चाहते. 

 

  • क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS) के अंतर्गत शहरों में रहने वाले EWS/LIG/मध्यम आय वर्ग (MIG) के लाभार्थियों को नया घर ख़रीदने या फिर मौज़ूदा मकान की मरम्मत या उसे बढ़ाने के लिए आवास ऋण के ब्याज़ में सब्सिडी दी जाती है.

 

देखा जाए तो PMAY-U के अंतर्गत विभिन्न कार्य क्षेत्रों के ज़रिए अलग-अलग श्रेणी एवं आय वर्गों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मकानों के निर्माण में मदद करने की कोशिश की जाती है. PMAY-U के तहत शहरी स्थानीय निकाय (ULB) के स्तर पर किए गए सर्वेक्षणों के ज़रिए शहरों में किस प्रकार के मकानों की ज़रूरत है, इसका पता लगाया जाता है, साथ ही विभिन्न आय वर्गों के लाभार्थियों की संख्या और आवश्यकता के आधार पर अलग-अलग श्रेणी के आवासों के निर्माण का लक्ष्य तय किया जाता है. इसके अलावा PMAY-U के तहत शहरी ज़रूरतमंदों को आवास की उपलब्धता के लिए एवं उनकी आर्थिक सहायता के लिए तमाम दूसरी उप-योजनाओं, जैसे कि अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT) यानी अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन, स्वच्छ भारत मिशन (SBM) और दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) के साथ तालमेल बैठाकर आगे बढ़ा जाता है. ज़ाहिर है कि पहले बेसिक सर्विसेज फॉर अर्बन पुअर (BSUP) यानी शहरी ग़रीबों के लिए आधारभूत सेवाएं एवं राजीव आवास योजना (RAY) जैसे जो भी शहरी आवास कार्यक्रम चलाए जाते थे, उनका मकसद शहरों को झुग्गी बस्तियों से मुक्त करना था, लेकिन PMAY-U का पूरा फोकस EWS/LIG श्रेणी के आवास निर्मित करने के साथ ही सभी के लिए आवास की सुविधा उपलब्ध कराने पर है.

 

PMAY-U के तहत शहरों में मकानों की मांग को पूरा करने के लिए योजनाबद्ध तरीक़े से काम किया जाता है. इसके साथ ही इस योजना का उद्देश्य देश में केंद्र एवं राज्यों को मिलाकर सहकारी संघवाद को मज़बूती देते हुए लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिए कारगर ढांचे को बनाना है. यानी एक ऐसा ढांचा तैयार करना है, जो केंद्र एवं राज्य सरकारों को शहरी स्थानीय निकायों एवं लाभार्थियों द्वारा स्व-निवेश को बढ़ावा देने की सुविधा देता हो. इतना ही नहीं, PMAY-U के अंतर्गत लाभार्थियों तक सब्सिडी या फिर आर्थिक सहायता पहुंचाने के लिए डिजिटल तकनीक़ का उपयोग किया जाता है, ताकि किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश न रहे.

 एक ऐसा ढांचा तैयार करना है, जो केंद्र एवं राज्य सरकारों को शहरी स्थानीय निकायों एवं लाभार्थियों द्वारा स्व-निवेश को बढ़ावा देने की सुविधा देता हो.

PMAY-U के तहत परिवारों के पास यह विकल्प होता है कि वे अपने मन-मुताबिक़ मकान का निर्माण कर सकें. इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी और उसके बाद से जितने आवासों के निर्माण को मंजूरी मिली है, उनमें BLC यानी लाभार्थी द्वारा संचालित आवास निर्माण के विकल्प को चुनकर बनाए गए आवासों का हिस्सा 63 प्रतिशत है. (चित्र 1) आंकड़ों पर नज़र डालें, तो 15 अप्रैल 2024 तक PMAY-U के अंतर्गत 8.302 मिलियन आवास का निर्माण किया जा चुका है, जो कि कुल स्वीकृत आवासों यानी 11.864 मिलियन मकानों का 69 प्रतिशत है. इसके साथ ही बाक़ी बचे 3.498 मिलियन आवासों का निर्माण चल रहा है.

 

चित्र 1: PMAY-U के ताज़ा आंकड़े (15 अप्रैल 2024 तक के आंकड़े)

Aligning The Centre With States And Cities For Affordable Housing In India

Source: Ministry of Housing and Urban Affairs (2021)

 

आवासहीन परिवारों के लिए तात्कालिक सहायता

राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) के अंतर्गत राज्य सरकारों के साथ मिलकर आवासहीन लोगों को अस्थायी आवास या आश्रय की सुविधा दी जाती है. ज़ाहिर है कि इस योजना के ज़रिए ग़रीबों का कौशल विकास किया जाता है, उनकी आजीविका कमाने के साधनों को बढ़ाया जाता है, शहरी बेघरों को आश्रय दिया जाता है, ताकि शहरों में रहने वाले ग़रीब तबके के लोग भी प्रगति कर सकें.

 

झुग्गी पुनर्विकास

इन-सीटू स्लम पुनर्विकास यानी ISSR योजना का मकसद झुग्गी-झोपड़ियों की ज़मीन पर निजी भागीदारी के साथ पक्के मकानों का निर्माण करना है. यानी इसके तहत निजी डेवलपर की मदद से भूमि का इस्तेमाल करके झुग्गियों का पुनर्विकास किया जाता है. इस योजना के तहत डेवलपर को हर पात्र झुग्गीवासी का मकान बनाने के लिए एक लाख रुपये की केंद्रीय सहायता दी जाती है. इसके तहत राज्य सरकार अतिरिक्त फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI), हस्तांतरणीय विकास अधिकार (TDR) और ज़ोनिंग वैरियेंस जैसे प्रोत्साहन देकर हाउसिंग मार्केट तो मज़बूती प्रदान करती है. इस योजना के तहत बनाए जाने वाले घरों के प्रोजेक्ट में दो घटक होते हैं, यानी झुग्गी पुनर्वास घटक और मुफ़्त बिक्री घटक. झुग्गी पुनर्वास घटक में झुग्गी निवासियों को बुनियादी सुविधाओं के साथ एक घर मिलता है, जबकि मुफ़्त बिक्री घटक में झुग्गी डेवलपर खुले बाज़ार में घर बेच सकते हैं. इसमें शहरी स्थानीय निकाय बिडिंग यानी बोली प्रक्रियाओं और मंजूरी जैसे कार्यों को देखते हैं. अगर झुग्गियां ऐसी ज़मीन पर हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं नहीं है और मार्केट के लिहाज़ से आकर्षक नहीं है, यानी कोई निजी डेवलपर वहां हाथ नहीं डालना चाहता है, तो ऐसी बस्तियों में AMRUT और SBM जैसी योजनाओं के ज़रिए आधारभूत सुविधाएं विकसित की जाती हैं.

 

PMAY-U के अंतर्गत ISSR परियोजनाओं के ज़रिए जोख़िम वाली जगहों पर मौज़ूद झुग्गियों और आरक्षित या निजी ज़मीन पर बनी झुग्गियों को भी अतिरिक्त ज़मीन के साथ पुनर्स्थापित करके विकसित करने का भी प्रावधान किया गया है. लेकिन इसे कैसे अमल में लाया जाएगा, इसको लेकर स्पष्ट तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है. इसी वजह से ISSR के नतीज़े मिले जुले रहे हैं, क्योंकि इसमें शहरी स्थानीय निकाय, निजी डेवलपर्स, झुग्गियों में रहने वाले लोग, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और मध्यस्थ जैसे कई किरदार शामिल होते हैं. ज़ाहिर है कि इन सभी के बीच भरोसे और सहयोग का माहौल बनाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण होता है.

 

क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (CLSS)

क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS) के अंतर्गत आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS), निम्न आय समूह (LIG) और मध्यम आय समूह (MIG) के परिवारों को घर बनाने या विस्तार के लिए आवास ऋण पर ब्याज़ सब्सिडी दी जाती है. राष्ट्रीय आवास बैंक, हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन और भारतीय स्टेट बैंक CLSS की केंद्रीय नोडल एजेंसियां हैं. यानी सब्सिडी के वितरण का कार्य इन एजेंसियों को दिया गया है और इनका काम सब्सिडी देने वाली संस्थाओं तक उसे पहुंचाना है, साथ ही योजना की प्रगति पर भी नज़र रखना है. इस योजना के लाभार्थी SMS अलर्ट और रियल-टाइम CLSS AWAs पोर्टल (CLAP) निगरानी प्रणाली के ज़रिए अपने आवेदनों की प्रगति की बारे में पता लगा सकते हैं. इस पूरी प्रक्रिया के डिजिटलीकरण की वजह से जहां आवेदनों पर तेज़ी से कार्रवाई की जाती है, वहीं उनके सत्यापन, समय पर सब्सिडी देने में सहूलियत मिलती है, साथ ही पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता आती है और शिकायतों की गुंजाइश भी कम होती है.

 

लाभार्थी द्वारा संचालित आवास निर्माण (BLC)

लाभार्थी द्वारा स्वयं आवास निर्माण (BLC) योजना की बहुत मांग है. इसके अंतर्गत उन पात्र ईडब्ल्यूएस श्रेणी के परिवारों को सीधे 1,50,000 रुपये की आर्थिक मदद की जाती है, जो नया मकान निर्मित करना चाहते हैं, या जिनके पास पहले से घर है और जिसे वे बढ़ाना चाहते हैं. मझोले और छोटे शहरों में ख़ास तौर पर बीएलसी योजना की बहुत अधिक मांग है. इसके तहत लाभार्थी अपनी ज़रूरतों और इच्छा के अनुसार अपनी ज़मीन पर आवास निर्मित कर सकता है और यही इसका सबसे बड़ा आकर्षण है. इसमें मकान के निर्माण की प्रगति रिपोर्ट एवं दी गई धनराशि के उपयोग का प्रमाणपत्र दिए जाने के बाद विभिन्न चरणों में केंद्रीय सहायता राशि जारी की जाती है. आंकड़ों के अनुसार बीएलसी के तहत अप्रैल 2024 तक कुल 7.49 मिलियन आवासों की स्वीकृत दी गई है और इसमें से 58 प्रतिशत यानी 4.38 मिलियन आवास बनकर तैयार हो चुके हैं.

 

साझेदारी में किफ़ायती आवास (AHP)

PMAY-U की AHP योजना के अंतर्गत राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा अलग-अलग साझेदारी में निर्मित किए गए EWS श्रेणी के हर आवास के लिए 1,50,000 रुपये की वित्तीय मदद दी जाती है. इसके तहत बनने वाली किसी भी आवासीय परियोजना में कम से कम 250 मकान होने चाहिए और उनमें EWS श्रेणी के लिए न्यूनतम 35 प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए. राज्यों द्वारा एएचपी योजना के लिए सरकारी ज़मीन उपलब्ध कराई जाती है, ज़रूरी डीसीआर बदलाव किए जाते हैं, स्टाम्प ड्यूटी में छूट दी जाती है और मैचिंग सहायता उपलब्ध कराई जाती है. AHP योजना के अंतर्गत वर्ष 2021 तक कुल स्वीकृत आवासों का आंकड़ा 1.57 था और इनमें से 53 प्रतिशत या 0.83 मिलियन मकानों का निर्माण पूर्ण हो चुका है.

 

किराए का आवास

भारत में किराए के घरों से जुड़े मामलों को राज्यों के अपने किराया नियंत्रण क़ानूनों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. हालांकि, ये किराया नियंत्रण अधिनियम देखा जाए तो काफ़ी पुराने हो चुके हैं. देश में रेंटल हाउसिंग मार्केट कम उपलब्धता (3 से 4.5 प्रतिशत) और उच्च जोख़िम से भरा हुआ है, यानी किराए के मकानों की कमी है और इनमें जोख़िम बहुत ज़्यादा है. इसके साथ ही देश में किरायेदार एवं मकान मालिक के बीच विवाद भी बहुत ज़्यादा हैं, इनमें के कुछ विवाद मुक़दमेबाज़ी में उलझ जाते हैं. देश में वर्ष 2012 में 18.78 मिलियन आवासों की कमी थी, इसके बावज़ूद देश के विभिन्न शहरों में 11 मिलियन मकान खाली पड़े थे, क्योंकि किराये के मकानों को लेकर कोई मुकम्मल क़ानून नहीं था और किराया भी कम था.

 

मकानों की आवश्यकता और उपलब्धता के इस अंतर को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट (2016) की तरह ही मॉडल किरायेदारी अधिनियम (2021) लेकर आई थी. इसके तहत किरायेदारों और मकान मालिकों के हितों की रक्षा के साथ-साथ किरायेदारी से जुड़े विवादों को ज़ल्दी सुलझाने का प्रावधान किया गया है. इस अधिनियम में राज्यों को अपने स्थानीय संदर्भों के अनुरूप किरायेदारी से जुड़े मामलों के लिए किराया प्राधिकरण, किराया न्यायालय, और किराया न्यायाधिकरण की स्थापना करने का प्रावधान है. हालांकि, मॉडल टेनेंसी एक्ट में अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स (ARHC) के साथ ही मकानों के कम किराये से जुड़ी समस्या के बारे में कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा गया है. लेकिन उम्मीद है कि इस अधिनियम से आने वाले समय में खाली पड़े मकानों और डेवलपर्स द्वारा बनाए गए बिना बिके घरों को किराये पर उठाने में मदद मिलेगी. ARHC का उद्देश्य दो मॉडलों के ज़रिए आवासहीन लोगों एवं झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के लिए किफ़ायती किराये के आवासों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है:

 उम्मीद है कि इस अधिनियम से आने वाले समय में खाली पड़े मकानों और डेवलपर्स द्वारा बनाए गए बिना बिके घरों को किराये पर उठाने में मदद मिलेगी.

  • पहले मॉडल के तहत पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPPs) या सरकारी एजेंसियों के ज़रिए सरकार द्वारा वित्तपोषित मौज़ूदा खाली पड़े घरों को ARHCs यानी किफ़ायती किराये के आवासीय परिसरों में परिवर्तित किया जाता है. इसके साथ ही ARHC के संचालन से होने वाली आय पर इनकम टैक्स एवं जीएसटी की छूट दी जाती है. इसके अलावा, इन परियोजना के निर्माण के लिए कम ब्याज़ पर कर्ज़ दिया जाता है और तेज़ एवं उच्च गुणवत्ता वाले निर्माण के लिए तकनीक़ी नवाचार अनुदान (TIG) दिया जाता है.
  • दूसरे मॉडल के अंतर्गत सरकारी या निजी संस्थाओं द्वारा अपनी खाली भूमि पर नए अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण, संचालन और रखरखाव किया जाता है.

 

राज्य सरकार और शहरी स्थानीय निकाय डेवलपमेंट कंट्रोल रेगुलेशन (DCRs) में परिवर्तन करके ARHC के निर्माण में मदद करते हैं. इनमें ARHC के भीतर वाणिज्यिक विकास के लिए 50 प्रतिशत अतिरिक्त FSI और ज़ोनिंग वैरिएंस शामिल हैं, साथ ही सेवाओं को ऑन-साइट उपलब्ध कराना एवं आवेदन के 30 दिनों के भीतर निर्माण के लिए सिंगल-विंडो मंजूरी देना भी शामिल है.

 

ARHC को वर्ष 2020 में शुरू किया गया था और दो सालों में ही इस योजना में काफ़ी प्रगति देखी गई है. इन दौरान 13 राज्यों में 83,534 सरकारी वित्तपोषित खाली आवासों को किफ़ायती किराए के मकानों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में थी.

 

घरों की मांग पूरी करने के लिए मार्केट्स को सक्षम बनाना

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने ऊपर जिक्र की गई अस्थायी पहलों की सहायता के लिए एवं हाउसिंग मार्केट को सक्षम बनाने के लिए रणनीतिक रूप से भी कई क़दम उठाए हैं.

 

शहरों के भीतर और आस-पास के क्षेत्रों में निर्माण योग्य भूमि की आपूर्ति

परंपरागत शहरी विकास नीतियों ने शहरों के भीतर प्रमुख जगहों पर दबाव बढ़ा दिया है, क्योंकि इनमें आवासीय योजनाएं शहरों के भीतर ही बनाए जाने को प्राथमिकता दी जाती है. इस दौरान शहरों से सटे इलाक़ों में आवास निर्माण के लिए उपयुक्त भूमि को नज़रंदाज कर दिया गया है. इसके अलावा राज्यों और शहरों की भी आवासीय विकास से जुड़ी अपनी सीमाएं हैं, इससे भी नगर नियोजन योजनाओं (TPS) एवं लोकल एरिया पर आधारित नियोजन (LAP) जैसी गतिविधियों में रुकावटें पैदा होती हैं. इन बाधाओं को दूर करने और राज्यों व शहरी स्थानीय निकायों को सक्षम करने के लिए MoHUA ने AMRUT के अंतर्गत वित्तीय व तकनीक़ी सहायता के साथ एक पायलट TPS एवं LAP प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया है. 25 राज्यों के नियोजन प्राधिकरणों ने शहर के आसपास के इलाक़ों में मकान बनाने के लिए सभी बुनियादी सुविधाओं वाली निर्माण योग्य भूमि का विस्तार करने के लिए इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का लाभ उठाया है.

 

निर्माण की मंजूरी देने एवं लेनदेन की प्रक्रिया का सरलीकरण

आम तौर पर भूमि अधिग्रहण के बाद आवास निर्माण की मंजूरी मिलने में औसतन 43 महीने का समय लगता है. स्वीकृति में इस देरी की वजह से परियोजना को पूरा करने में दिक़्क़तें आती हैं, जिससे आवास के निर्माण की लागत में 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है. विश्व बैंक के डूइंग बिजनेस इंडेक्स की प्रतिक्रिया में भारत सरकार ने अपनी वैश्विक रैंकिंग में सुधार करने के लिए सुधार शुरू किए हैं. सरकार द्वारा ख़ास तौर पर ‘निर्माण की मंजूरी’ देने में होने वाली देरी को दूर करने के लिए कई क़दम उठाए गए हैं. ‘निर्माण की मंजूरी’ से जुड़े इंडेक्स में वर्ष 2014 में भारत की रैंकिंग 182 थी, जो 2020 में सुधरकर 27 हो गई.

 

मुंबई और दिल्ली ने आवासीय परियोजनाओं के निर्माण की स्वीकृति को आसान बनाने के लिए कई क़दम उठाए हैं. जैसे कि इन शहरों में ऑनलाइन बिल्डिंग परमिशन सिस्टम (OBPS) को शुरू किया गया है, जिससे निर्माण की मंजूरी से जुड़ी औपचारिकाताएं पूरी होने में कम समय लगता है. पहले इस पूरी प्रक्रिया में औसतन 168 दिन लगते थे, लेकिन अब यह अवधि घटकर 106 दिन रह गई है. इसके साथ ही इस प्रक्रिया में पहले परियोजना लागत का 28 प्रतिशत ख़र्च हो जाता था, जो अब घटकर 4 प्रतिशत रह गई है. इतना ही नहीं, MoHUA ने AMRUT के अंतर्गत अनुदान हासिल करने के लिए राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों के लिए OBPS को अनिवार्य बना दिया है. अगर अप्रैल 2021 तक के आंकड़ों पर नज़र डालें, तो देश के 439 AMRUT शहरों समेत 1,705 शहरों ने OBPS शुरू कर दिया था.

 

मध्यम श्रेणी के किफ़ायती आवास के लिए वित्तीय प्रोत्साहन

मध्यम दर्ज़े के किफ़ायती हाउसिंग सेगमेंट की बात की जाए, तो इसमें आम तौर पर मकानों की क़ीमत 10 लाख रुपये से 45 लाख रुपये के बीच होती है और इसमें कम लाभ और उच्च जोख़िम होता है. इससे निपटने के लिए वित्त मंत्रालय एवं रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के कई क़दम उठाए हैं. इनके तहत किफ़ायती आवासीय परियोजनाओं को इनकम टैक्स एवं जीएसटी में छूट दी जाती है, साथ ही इन परियोजनाओं को कर्ज़ के प्राथमिकता वाले सेक्टरों के अंतर्गत आसान शर्तों पर निर्माण के लिए वित्तपोषण एवं होम लोन उपलब्ध कराया जाता है. इसके अलावा किफ़ायती आवासों के निर्माण को इंफ्रास्ट्रक्चर के अंतर्गत लाया गया है, जिससे इन परियोजनाओं का निर्माण करने वाले डेवलपर्स को देश के बाहर से कमर्शियल कर्ज़ लेने की सुविधा मिलती है, यानी डेवलपर्स नॉन-रेजिडेंट ऋणदाता से विदेशी मुद्रा में कर्ज़ ले सकते हैं.

 

निष्कर्ष

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा किफ़ायती आवासों की कमी को दूर करने के लिए उठाए गए तमाम क़दमों ने एवं इस दिशा में अपनाए गए व्यापक नज़रिए ने देखा जाए तो सभी आय वर्ग के लोगों में अपने घर की उम्मीद जगाने का काम किया है. लेकिन MoHUA की ओर से किए गए प्रयासों को धरातल पर सफल बनाने के लिए राज्य सरकारों एवं शहरी स्थानीय निकायों की बराबर भागीदारी बेहद अहम है. हालांकि, इस सबके बीच इस पर भी गौर किया जाना आवश्यक है कि सरकार द्वारा जो भी नीतिगत क़दम उठाए गए हैं, वे शहरों में किफ़ायती आवासों की ज़रूरत को लेकर वर्ष 2012 के आंकड़ों पर आधारित हैं. ज़ाहिर है कि इस दौरान शहरों का आकार और परिस्थितियां बदल चुकी हैं. ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि केंद्र व राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों की तरफ से की जा रही कोशिशें नाकाफ़ी साबित हों और ‘एक कदम आगे, दो कदम पीछे’ वाले हालात न पैदा हो जाएं. उदाहरण के तौर पर, शहरों में आवासों की कमी को लेकर किए गए अध्ययनों में जहां वर्ष 2012 में 18.78 मिलियन (कुल परिवारों का एक चौथाई) घरों की कमी की बात कही गई थी, वहीं वर्ष 2018 में 47.3 मिलियन तक घरों (कुल परिवारों का 41 प्रतिशत) की कमी होने का अनुमान जताया गया था. ऐसे में वर्तमान समय की शहरी हक़ीक़त के मद्देनजर और बढ़ती शहरी आबादी के देखते हुए केंद्र सरकार को PMAY-U 2.0 में इन ज़रूरतों को शामिल करने के बारे में विचार करना चाहिए.

 MoHUA की ओर से किए गए प्रयासों को धरातल पर सफल बनाने के लिए राज्य सरकारों एवं शहरी स्थानीय निकायों की बराबर भागीदारी बेहद अहम है. 

इसके अलावा, MoHUA को वर्तमान में सरकार द्वारा चलाई जा रही किफ़ायती आवास निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं पर पैनी नज़र रखनी चाहिए और समय-समय पर उनकी प्रगति की समीक्षा करनी चाहिए. इसके साथ ही, शहरों में ज़रूरतमंदों को किफ़ायती आवास उपलब्ध कराने में राज्यों एवं शहरी स्थानीय निकायों की भूमिका बेहद अहम होती है. राज्यों एवं स्थानीय निकायों को शहरों में रहने वाले परिवारों से जुड़े विभिन्न मापदंड़ों, जैसे कि उनकी इनकम क्या है, उपभोग का तौर-तरीक़ा क्या है, वे किस तरह के मकानों में रहते हैं, उनकी घरों की क़ीमत क्या है और वे कितने महंगे मकानों को ले सकते हैं, स्थानीय स्तर पर ज़मीन की क्या क़ीमत है, श्रम बाज़ार की क्या स्थिति है आदि को लेकर सर्वेक्षण करते रहना चाहिए, साथ ही किफ़ायती आवास उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों के साथ तालमेल स्थापित करना चाहिए. ऐसा करने के बाद जो भी निष्कर्ष निकलता है, उसके मुताबिक़ इस दिशा में चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का आकलन करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘सभी के लिए आवास’ का सपना कभी हक़ीक़त नहीं बन पाएगा.


सेजल पटेल सीईपीटी विश्वविद्यालय, अहमदाबाद में प्रोफेसर एवं हाउसिंग कार्यक्रम की अध्यक्ष हैं, साथ ही गुजरात की शहरी नियोजन पर उच्च स्तरीय समिति की सदस्य हैं.


यह लेख “भारत के शहरी पुनर्जागरण के लिए नीतिगत एवं संस्थागत आवश्यकताएं” नाम के व्यापक संग्रह का हिस्सा है.

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