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AI और AR जैसे उभरते तकनीकी टूल भारत में कौशल से जुड़ी खामियों को दूर कर सकते हैं. लेकिन ये तभी संभव है जब तकनीकी टूल तक पहुंच एक समान हो, बुनियादी ढांचा मज़बूत हो और नीति बरकरार रहे.
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) तेज़ी से दुनिया भर में लोगों के सीखने और काम करने के तौर-तरीकों में बदलाव कर रहे हैं. एडेप्टिव लर्निंग सॉफ्टवेयर से लेकर इमर्सिव ट्रेनिंग सिमुलेशन तक ये तकनीकें शिक्षा को लोगों तक पहुंचाने और बड़े पैमाने पर कामगारों का हुनर बढ़ाने का वादा करती हैं. इसके साथ-साथ ये तकनीकें बढ़ते बंटवारे- आधुनिक टूल तक पहुंच और बिना पहुंच वाले लोगों के बीच, विकसित अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच और यहां तक कि क्लासरूम और कंपनियों के भीतर भी- को लेकर चिंता भी पैदा करती हैं. भारत, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे युवा वर्क फोर्स का देश है, के लिए इन तकनीकों के द्वारा लाए गए अवसरों और चुनौतियों को समझना ज़रूरी है.
AI संचालित टूल सीखने को अधिक व्यक्तिगत, लचीला और सुलभ बना रहे हैं. इंटेलिजेंस ट्यूटरिंग सिस्टम किसी छात्र की व्यक्तिगत आवश्यकता के मुताबिक निर्देश दे सकती हैं, इस बात की पहचान कर सकती हैं कि कहां सीखने वाले को जूझना पड़ रहा है और इसी के मुताबिक समर्थन प्रदान कर सकती हैं. उदाहरण के लिए, ड्यूओलिंगो जैसे प्लैटफॉर्म बताते हैं कि यूज़र AI से प्रेरित पढ़ाई के ज़रिए 30 प्रतिशत तेज़ी से कोई भाषा सीखते हैं. जिन क्षेत्रों में शिक्षकों और संसाधनों की कमी है, वहां इस तरह के इनोवेशन विशेष रूप से असरदार हो सकते हैं. ये चौबीसों घंटे डिजिटल कोच के रूप में काम करते हैं. AI भाषा या भौतिक कठिनाई का सामना कर रहे छात्रों के लिए वास्तविक समय में अनुवाद, स्पीच-टू-टेक्स्ट और दूसरे मददगार काम की पेशकश करके पहुंच भी बढ़ाता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) तेज़ी से दुनिया भर में लोगों के सीखने और काम करने के तौर-तरीकों में बदलाव कर रहे हैं. एडेप्टिव लर्निंग सॉफ्टवेयर से लेकर इमर्सिव ट्रेनिंग सिमुलेशन तक ये तकनीकें शिक्षा को लोगों तक पहुंचाने और बड़े पैमाने पर कामगारों का हुनर बढ़ाने का वादा करती हैं.
दूसरी तरफ AR प्रायोगिक, व्यावहारिक पढ़ाई को सुलभ बनाकर AI की मदद करता है. AR उपयोग करने वालों को सुरक्षित ढंग से मुश्किल हुनर का अभ्यास करने की अनुमति देता है, चाहे वो वर्चुअल सर्किट बोर्ड पर काम करने वाले ट्रेनी इलेक्ट्रिशियन हों या हर कदम पर AR से निर्देशित मशीन मेंटिनेंस का पालन करने वाले फैक्ट्री के कामगार हों. AR वास्तविक दुनिया के ख़तरों को कम करके और ट्रेनिंग को अधिक व्यापक और किफायती बनाकर अलग-अलग उद्योगों में कौशल विकास को फिर से परिभाषित कर रहा है.
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस तरह की प्रगति लोगों को एक समान बनाने का काम करेगी या आर्थिक असमानता में और बढ़ोतरी करेगी. ये तकनीकें हाशिए पर मौजूद लोगों तक अच्छी क्वालिटी की पढ़ाई लाकर हुनर की कमियों को भर सकती हैं. उदाहरण के लिए, AI सक्षम पढ़ाई के टूल विकासशील क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी से निपटने में मदद कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में 5.80 करोड़ अतिरिक्त शिक्षकों की आवश्यकता है. ये ऐसी कमी है जिसे भरने में तकनीक मदद कर सकती है.
लेकिन AI और AR जैसी उभरती तकनीकें जहां विकासशील देशों को शिक्षा से जुड़ी बाधाओं को दूर करने- दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को आधुनिक पढ़ाई के टूल तक पहुंचने और किसी ख़ास कौशल में विकसित देशों की बराबरी करने या उनसे आगे निकलने में सक्षम- की क्षमता प्रदान करती हैं, वहीं पहुंच असमान बनी रहने पर वो असमानता भी बढ़ा सकती हैं. अमीर संस्थानों और व्यक्तियों को जहां बेहतर AI ट्यूटर और हाई-स्पीड कनेक्टिविटी से लाभ मिल सकता है, वहीं कम आमदनी वाले लोगों के सामने न्यूनतम मानवीय समर्थन के साथ ख़राब क्वालिटी, तकनीक आधारित शिक्षा हासिल करने का ख़तरा है. कई लोग किफायती इंटरनेट, बिजली और डिवाइस के बिना पीछे छूट जाते हैं जिससे मौजूदा असमानता कम होने के बदले और बढ़ जाती है.
इस तरह के इनोवेशन नौकरी की भूमिका, कामगारों की उत्पादकता और मज़दूरी वितरण को आकार देकर श्रम बाज़ार का भी कायापलट करते हैं. उद्योगों के द्वारा AI को अपनाने से अक्सर उत्पादकता और उत्पादन में बढ़ोतरी होती है क्योंकि मशीनें नियमित काम-काज को ऑटोमैटिक कर सकती हैं और जटिल प्रक्रियाओं को आसान बना सकती हैं. इसके बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के द्वारा हाल के विश्लेषण से पता चला है कि तकनीकी इनोवेशन ने जहां श्रम उत्पादकता को लगातार बढ़ाया है, वहीं इसकी वजह से कामगारों को मिलने वाली आमदनी का हिस्सा भी कम हुआ है.
अगर AI का इस्तेमाल मुख्य रूप से लागत कम करने यानी कामगारों की जगह एल्गोरिदम या रोबोट का उपयोग करने के लिए किया जाता है तो लाभ कंपनी के मालिक या तकनीक मुहैया कराने वाले के पास जा सकता है जिससे पूंजी और श्रम के बीच आय असमानता बढ़ेगी.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान दुनिया में श्रमिकों की आमदनी के हिस्से में गिरावट आई है. ये ऐसा रुझान है जो महामारी और चुनिंदा कंपनियों के बीच तकनीकी क्षमताओं के शुरुआती केंद्रीकरण के कारण बढ़ा है. अगर AI का इस्तेमाल मुख्य रूप से लागत कम करने यानी कामगारों की जगह एल्गोरिदम या रोबोट का उपयोग करने के लिए किया जाता है तो लाभ कंपनी के मालिक या तकनीक मुहैया कराने वाले के पास जा सकता है जिससे पूंजी और श्रम के बीच आय असमानता बढ़ेगी. इस बदलाव पर निगरानी रखने के लिए नीतियों की कमी से कामगारों की आय और सौदेबाज़ी की ताकत में और कमी आ सकती है जो आय की असमानता बढ़ाएगी.
इसका ख़तरा ये है कि श्रम बाज़ार दो भागों में बंट जाएगा. AI और ऑटोमेशन की प्रवृत्ति है काम ख़त्म करने की जगह कौशल के लिए मांग को फिर से परिभाषित करना. वो अक्सर जटिल संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) और तकनीकी कौशल के लिए आवश्यकता बढ़ाते हुए नियमित और बार-बार होने वाले काम को अपने हाथ में ले लेते हैं. इससे नौकरी के बाज़ार में ध्रुवीकरण हो सकता है: डिज़ाइन, प्रोग्राम या AI का लाभ उठाने वाली उच्च कौशल की भूमिका अधिक कीमती (और बेहतर वेतन वाली) बन जाती है जबकि कुछ बीच की और कम कौशल वाली नौकरियां घट जाती हैं अगर उन्हें काफी हद तक ऑटोमेटेड बनाया जा सकता है.
AI की वजह से कौशल को अधिक भुगतान के पहले से सबूत हैं. AI से संबंधित या डिजिटल कौशल में विशेषज्ञता रखने वाले कामगारों को अधिक वेतन मिल रहा है. भारत में एक अध्ययन में पता चला कि AI कौशल रखने वाली कर्मचारियों का वेतन 50 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ सकता है, विशेष रूप से सूचना तकनीक (IT) और अनुसंधान एवं विकास (R&D) जैसे उद्योगों में. हाल ही में आई रोज़गार से जुड़ी एक रिपोर्ट में पता चला कि भारत के 46 प्रतिशत ग्रैजुएट्स को अब AI और मशीन-लर्निंग (ML) की भूमिका में रोज़गार के योग्य माना जाता है जो कम समय में एक महत्वपूर्ण उछाल है. लेकिन इसके बावजूद कुल मिलाकर 42.6 प्रतिशत भारतीय ग्रैजुएट्स को ही रोज़गार के योग्य माना जाता है जबकि दो वर्ष पहले ये आंकड़ा 44.3 प्रतिशत था. इससे पता चलता है कि कई छात्र अभी भी AI संचालित अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक समग्र कौशल के बिना ही ग्रैजुएट हो रहे हैं. रोज़गार देने वालों को तकनीकी जानकारी और सॉफ्ट स्किल के सही ताल-मेल यानी समस्या हल करने और संचार में दक्ष उम्मीदवारों की तलाश करने में जूझना पड़ता है.
शिक्षा के सभी स्तरों पर कॉग्निटिव एडेप्टिबिलिटी, डिजिटल योग्यता और सामाजिक-भावनात्मक कौशल के तीन पहलुओं को जोड़कर भारत जैसे विकासशील देश आर्थिक असमानता को बढ़ाने के बदले उसे दूर करने के लिए तकनीक का लाभ उठा सकते हैं.
वैसे तो श्रम बाज़ार में व्यवधान किसी भी नई उत्पादकता बढ़ाने वाली तकनीक की विशेषता होती है लेकिन AI और AR में परिवर्तन की अभूतपूर्व गति उनके प्रभावों को कहीं अधिक तेज़ और व्यापक बनाती है. इसकी वजह से नौकरी में बदलाव, फिर से प्रशिक्षण और वेतन असमानता को संभालने के लिए तुरंत नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है. जो देश व्यापक कौशल विकास, बुनियादी ढांचे और समावेशी तकनीक तक पहुंच में सक्रिय रूप से निवेश कर रहे हैं वो आर्थिक विकास और सबकी समृद्धि के लिए इन तकनीकों का लाभ उठाने की बेहतर स्थिति में होंगे.
AI संचालित अर्थव्यवस्थाओं की गतिशील मांग पारंपरिक, शिक्षक केंद्रित शिक्षा प्रणाली- जो सैद्धांतिक ज्ञान और स्मरण पर आधारित है- को अपर्याप्त बना रही है. इंडस्ट्री 4.0 के साथ शिक्षा को जोड़ने के लिए कौशल आधारित शिक्षा- जो एडेप्टिव, तकनीक से जुड़ी, समस्या सुलझाने वाली क्षमता को विकसित करती है- की पुनर्संरचना आवश्यक है.
इसके लिए तीन प्रमुख क्षमताएं आवश्यक हैं: संज्ञानात्मक अनुकूलनशीलता (कॉग्निटिव एडेप्टिबिलिटी), डिजिटल योग्यता और सामाजिक-भावनात्मक कौशल.
सबसे पहले, जैसे-जैसे AI और AR प्रणाली विकसित होती जा रही है, वैसे-वैसे कामगारों को कॉग्निटिव एडेप्टिबिलिटी यानी सीखने और नई जानकारी तेज़ी से इस्तेमाल करने की क्षमता ज़रूर विकसित करनी चाहिए. ये पूरे जीवन के लिए विकास केंद्रित मानसिकता के साथ छोटी-छोटी विशेष जानकारी (स्टैकेबल माइक्रो-क्रेडेंशियल) हासिल करके लगातार पढ़ाई और नया हुनर सीखने को आवश्यक बनाती है. दूसरा, डिजिटल योग्यता ये सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि कामगार AI टूल का कुशलता से उपयोग कर रहा है, अपनी योग्यता बढ़ा रहा है और ऑटोमेशन से बदले जाने के ख़तरे को कम कर रहा है. गैर-तकनीकी काम-काज समेत ज़्यादा से ज़्यादा भूमिकाओं में अब AI संचालित निर्णय लेने के बेहतर इस्तेमाल और समझ की आवश्यकता होती जा रही है. इसलिए कौशल आधारित शिक्षा में AI लिटरेसी, कोडिंग, डेटा प्रोसेसिंग और डिजिटल प्रॉब्लम-सॉल्विंग को सभी विषयों में बुनियादी योग्यता के रूप में जोड़ना चाहिए. तीसरा, पैटर्न रिकॉग्निशन और ऑटोमेशन में जहां तकनीक के अपने लाभ हैं, वहीं दया, रचनात्मकता, अंतर्ज्ञान (सिक्स्थ सेंस) और नैतिक निर्णय जैसे आवश्यक मानवीय गुणों की उनमें कमी होती है. इन सभी को बढ़ाने के लिए कौशल आधारित शिक्षा को सामाजिक-भावनात्मक हुनर को विकसित करने पर ज़ोर देना चाहिए, विशेष रूप से सीखने वालों में आलोचनात्मक सोच, टीम भावना, AI के नैतिक उपयोग और समस्या सुलझाने को विकसित करना चाहिए. शिक्षा के सभी स्तरों पर कॉग्निटिव एडेप्टिबिलिटी, डिजिटल योग्यता और सामाजिक-भावनात्मक कौशल के तीन पहलुओं को जोड़कर भारत जैसे विकासशील देश आर्थिक असमानता को बढ़ाने के बदले उसे दूर करने के लिए तकनीक का लाभ उठा सकते हैं.
सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) के वर्ल्ड इकोनॉमिक्स एंड सस्टेनेबिलिटी में फेलो और लीड हैं.
अर्पण तुलस्यान ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में सीनियर फेलो हैं.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
Read More +Arpan Tulsyan is a Senior Fellow at ORF’s Centre for New Economic Diplomacy (CNED). With 16 years of experience in development research and policy advocacy, Arpan ...
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