आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)को विकसित करने और इसके इस्तेमाल में सबसे अहम भूमिका डेटा की होती है. एआई का एल्गोरिदम, पैटर्न, इसकी भविष्यवाणी और इसके द्वारा उपलब्ध कराया जाने वाला कंटेन्ट सब कुछ डेटा पर निर्भर करता है. इसलिए ये ज़रूरी है कि अगर एआई को सटीक और प्रभावी बनाना है तो उसके प्रशिक्षण में उच्च गुणवत्ता और विविधता वाले डेटा का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाए. एआई की ट्रेनिंग में जितने विविधतापूर्ण डेटा का इस्तेमाल होगा, ये उतने ही बेहतर तरीके से काम करेगा. डेटा के दम पर ही एआई अलग-अलग चीजों के बीच पारस्परिक संबंध की पहचान कर सकता है. निष्कर्ष निकाल सकता है और फैसला लेने की अपनी क्षमता में सुधार कर सकता है. लेकिन दिक्कत ये है कि एआई की ट्रेनिंग में जो डेटा इस्तेमाल किया जाता है, वो कई बार विवादास्पद होता है. खासकर अगर डेटा सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के क्षेत्र से जुड़ा हो.
एआई के सामाजिक प्रभाव हमारे सामने कई चुनौतियां पेश करते हैं. ऐसे में एआई पर भरोसा पैदा करने के लिए ये ज़रूरी है कि इससे जुड़ी चिंताओं को लेकर हम एक रूपरेखा बनाएं.
एआई के सामाजिक प्रभाव हमारे सामने कई चुनौतियां पेश करते हैं. ऐसे में एआई पर भरोसा पैदा करने के लिए ये ज़रूरी है कि इससे जुड़ी चिंताओं को लेकर हम एक रूपरेखा बनाएं. दिशा निर्देश तय करें. सबसे ज़रूरी बात ये है कि हम डेटा के दुरुपयोग को रोकें. चीन जैसे देशों ने एआई को सरकारी कामकाज से जोड़ दिया है. भविष्य में बाकी देश भी ऐसा ही करेंगे. एआई जिस तेज़ी से हर क्षेत्र में इस्तेमाल होने लगा है, उसे देखते हुए ये ज़रूरी है कि इसे लेकर स्पष्ट नीतियां बनाई जाएं. एआई ने चीन की सामाजिक व्यवस्था में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है. ज़ाहिर है एआई के ज़रिए ये विशाल डेटा अब निजी कंपनियों की पहुंच में आ जाएगा. इसलिए ये समय की मांग है कि डेटा की प्राइवेसी और शुद्धता बनाए रखने के लिए वैश्विक स्तर पर स्पष्ट और एक जैसी नीति बनाई जाए.
वैश्विक रुझान क्या हैं?
ये बात सही है कि इस वक्त दुनिया का ध्यान फासिस्ट प्रवृति वाले देशों में एआई के बढ़ते इस्तेमाल पर है लेकिन हाल ही में आई एक रिपोर्ट से ये बात सामने आई है कि दुनिया के बाकी देश भी अपने यहां एआई तकनीकी का प्रयोग करने लगे हैं. जिन देशों में एक ही पार्टी का शासन है, वहां निगरानी के काम में एआई का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है. खाड़ी देशों, पूर्वी एशिया, दक्षिणी एशिया के देश एडवांस एनालिटिकल सिस्टम, चेहरे की पहचान करने वाले कैमरे और निगरानी करने के लिए उन्नत एआई टूल्स खरीद रही हैं. लेकिन खास बात ये है कि उदार लोकतंत्र माने जाने वाले यूरोपीय देश भी ऑटोमेटिक बॉर्डर कंट्रोल, पूर्वानुमान पर आधारित निगरानी और चेहरे की पहचान करने वाले कैमरों का इस्तेमाल करने लगे हैं. एआई के ज़रिए सर्विलांस का तो इतना प्रसार हो गया है कि विकसित लोकतंत्र माने जाने वाले देशों में भी 51 प्रतिशत निगरानी एआई के ज़रिए हो रही है. इसकी तुलना में एक पार्टी या एक परिवार के शासन वाले देशों (ऑटोक्रेटिक)में निगरानी के लिए एआई का इस्तेमाल 37 प्रतिशत, इलेक्टोरल ऑटोक्रेटिक देशों में 41 फीसदी और चुनावी लोकतंत्र वाले देशों में निगरानी के लिए 41 फीसदी एआई टूल्स का इस्तेमाल हो रहा है.
भारत चुनावी लोकतंत्र वाला देश है. यहां भी सर्विलांस के लिए एआई टूल्स की मदद ली जा रही है. चेहरे की पहचान करने वाले कैमरे और स्मार्ट शहरों में एआई का इस्तेमाल हो रहा है. अमेरिका और चीन की एआई तकनीकी प्रयोग में लाई जा रही है. अहमदाबाद भारत का पहला ऐसा शहर है जहां पुलिस और नगर निगम ने देखरेख और निगरानी के लिए एआई का इस्तेमाल शुरू किया है. एआई के बारे में कोई भी विश्लेषण करने के लिए ये जरूरी है कि हम इस क्षेत्र में चीन की भूमिका का अध्ययन करें.
एआई के विकास में चीन का रोल
एआई के विकास में इस वक्त चीन अगुआ देश बना हुआ है. चीन में ना सिर्फ एआई का विकास हो रहा है बल्कि हर क्षेत्र में इसका इस्तेमाल भी हो रहा है. चीन की कंपनियों ने एआई पर शोध और उसके बाज़ारीकरण में काफी उन्नति की है. पिछले दो दशक में चीन में जो नया उद्यमी वर्ग पैदा हुआ है, वो एआई के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है. इसके अलावा इस वक्त चीन का बाज़ार बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धी है. अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी, बड़े पैमाने पर निवेश और उच्च गुणवत्ता वाले शोध ने भी चीन को एआई क्षेत्र का अगुआ बनाने में अहम भूमिका निभाई है. एआई के क्षेत्र में काम कर रही चीन की कंपनियों को सरकार से भी मदद मिल रही है. हालांकि चीन की सरकार कई बार अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर देती है लेकिन उसकी ये खासियत भी है कि किसी खास क्षेत्र के उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए वो बहुत तेज़ी से संसाधनों का इंतजाम भी कर देती है. आजकल चीन की सरकार एआई सेक्टर में ज़बरदस्त निवेश कर रही है.
अहमदाबाद भारत का पहला ऐसा शहर है जहां पुलिस और नगर निगम ने देखरेख और निगरानी के लिए एआई का इस्तेमाल शुरू किया है. एआई के बारे में कोई भी विश्लेषण करने के लिए ये जरूरी है कि हम इस क्षेत्र में चीन की भूमिका का अध्ययन करें.
लेकिन चीन में एआई के इस व्यापक प्रसार के कुछ ख़तरे भी हैं. सर्विलांस कैमरा और स्मार्ट सिटी सिस्टम के तहत जिस तरह चीन की विशाल आबादी की एआई के ज़रिए निगरानी की जा रही है, उसकी वजह से चीन की कंपनियों के पास ये सारा डेटा पहुंच रहा है. चीन की जैसी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था है, उसमें डेटा के इस विशाल संकलन का दुरुपयोग भी हो सकता है. शुरुआत में इसका फोकस सिर्फ वित्तीय क्षेत्र तक सीमित रखा गया था लेकिन अब नियमों के पालन और कानून के उल्लंघन के मामलों में इसका इस्तेमाल हो रहा है. अब इसका अंतिम लक्ष्य व्यक्तियों और कारोबार की रियल टाइम मॉनिटरिंग करना हो गया है.
एआई के विकास में डेटा की अहमियत से किसी को इनकार नहीं है लेकिन अब इसे लेकर नैतिक प्रश्न भी खड़े होने लगे हैं. चीन जैसे देशों में डेटा का इस्तेमाल कैसे हो, इस पर नागरिकों का नियंत्रण नहीं रहेगा. इतना ही नहीं एआई के ज़रिए सार्वजनिक सेवाओं में सुधार को लेकर भी राय बंटी हुई है. ऐसे में ये ज़रूरी है कि इस मुद्दे पर निष्पक्षता से विचार किया जाए. एआई टूल्स का आलोचनात्मक मूल्यांकन होना चाहिए, फिर चाहे उन्हें किसी भी देश ने बनाया हो.
नई परियोजनाएं, पुरानी चिंताएं
चीन में पिछले दिनों दो नए कानून लागू किए गए, जिसके बाद लागू प्राइवेसी को लेकर लोगों की चिंता बढ़ गई है. ये दो नए कानून हैं पर्सनल इन्फॉर्मेशन प्रोटेक्शन लॉ और डेटा सिक्योरिटी लॉ. इनकी गिनती दुनिया के सबसे सख्त डेटा कानूनों में होती है. एआई के आने से पहले भी चीन में संदिग्ध अपराधियों और सत्ता के आलोचकों को पहचानने की तकनीकी काफी उन्नत थी. अब चेहरा पहचानने की तकनीकी ने इसे और बढ़ा दिया है. इस बात के काफी सबूत मिले हैं कि चीन ने इस तकनीकी का इस्तेमाल शिनजियांग प्रांत में उइगर मूल के नागरिकों को निशाना बनाने के लिए किया. इसके जवाब में अमेरिका ने फेशियल रिकोगनिशन टूल्स बनाने वाली चीन की कुछ कंपनियों को प्रतिबंधित किया और उन एआई टूल्स को सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था में इस्तेमाल करने पर रोक लगाई. इतना ही नहीं अमेरिका ने चीन की कुछ एआई कंपनियों को डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स की इंडस्ट्री और सिक्योरिटी इन्टिटी लिस्ट में भी शामिल किया. इस लिस्ट में उन कंपनियों को शामिल किया जाता है, जिनके बारे में अमेरिका ये मानता है कि वो नागरिकों को नुकसान पहुंचाने वाली चीजें बनाती हैं.
लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि एआई के ज़रिए सर्विलांस करने वाला चीन अकेला देश नहीं है. ब्रिटेन में इस पर काम हो रहा है. लंदन की अंडरग्राउंड मेट्रो में यात्रियों की संदिग्ध गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए सीसीटीवी की लाइव फुटेज का विश्लेषण किया गया. ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन ने अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच विल्सडेन ग्रीन ट्यूब स्टेशन में ग्यारह एल्गोरिदम्स का परीक्षण किया. एआई को लाइव वीडियो फुटेज से जोड़ा गया जो रियल टाइम में स्टाफ को सूचना देते हैं. इस पूरे ट्रायल के दौरान 44,000 अलर्ट उत्पन्न हुए, जिसमें से 19,000 अलर्ट सफलतापूर्वक स्टेशन स्टाफ तक पहुंचे.
कोरोना से पहले विल्सडेन पर रोज़ाना 25,000 यात्री आते थे. ट्रायल का लक्ष्य ज़रूरतमंदों को सुरक्षा मुहैया कराना था. ट्रायल के दौरान व्हीलचेयर, बच्चों को घुमाने वाली गाड़ी और वैपिंग का इस्तेमाल करने वाले ऐसे अपराधिक और असामाजिक प्रवृति वाले लोगों की पहचान भी की गई, जो प्लेटफार्म के पास खुद को भी ख़तरे में डालते हैं.
एआई पर नियंत्रण कैसे रखें?
चीन और ब्रिटेन समेत कई देश एआई को अलग-अलग क्षेत्रों में इस्तेमाल करने लगे हैं. फिर चाहे वो सरकारी कामकाज हो, सेना से जुड़ा मामला हो या फार्मास्युटिकल सेक्टर. लेकिन ये ज़रूरी है एआई का इस्तेमाल करने वाली सरकारी संस्थाएं और प्राइवेट कंपनियां इसे लेकर स्पष्ट नीतियां और नियामक संस्थाएं बनाएं. ये ना सिर्फ डेटा की प्राइवेसी बनाए रखने के लिए ज़रूरी है बल्कि 'डिजिटल एकाधिकारवाद' को लेकर जो चिंताएं जताई जा रही हैं, उन्हें भी इससे दूर किया जा सकेगा. हालांकि इस पर काम हो रहा है. यूरोपियन यूनियन के जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR)को इस दिशा में एक महत्वपूर्ण नीति माना जाता है. डेटा को कौन इस्तेमाल करेगा. कैसे इस्तेमाल करेगा. उसे किन-किन नियमों को पालन करना होगा. इन सब चीजों के लिए जीडीपीआर में तहत काफी सख्त नियम और कानून बनाए गए हैं.
अमेरिका ने चीन की कुछ एआई कंपनियों को डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स की इंडस्ट्री और सिक्योरिटी इन्टिटी लिस्ट में भी शामिल किया. इस लिस्ट में उन कंपनियों को शामिल किया जाता है, जिनके बारे में अमेरिका ये मानता है कि वो नागरिकों को नुकसान पहुंचाने वाली चीजें बनाती हैं.
एआई को बनाने के लिए डेटा तक पहुंच होनी ज़रूरी है. मशीन लर्निंग सिस्टम के लिए डेटा और एआई द्वारा दिए गए सही नतीजों को बनाए रखना आवश्यक है. लेकिन अगर सरकार बदल जाती है, या नियम बदल दिए जाते हैं कि तो फिर डेटा तक पहुंच बंद हो सकती है. इससे एआई की सटीकता तो प्रभावित होगी ही साथ ही इस पर से लोगों को भरोसा भी कम हो सकता है. यही वजह है कि डेटा को लेकर एकसमान मानदंड और नियामक कानून बनाए जाने चाहिए, जिससे एआई को कभी डेटा सम्बंधी मुश्किलों का सामना ना करना पड़े.
एआई सेक्टर में सिद्धांतों पर आधारित खोज हों.
डेटा के विश्लेषण के लिए, खुद फैसले लेने के लिए और नई तकनीकी के मुताबिक खुद को ढालने के लिए एआई मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का सहारा लेती है. स्वास्थ्य, वित्त, कृषि और फैशन के क्षेत्र में जिस तरह एआई का इस्तेमाल बढ़ रहा है, उसने प्राइवेसी से जुड़ी चुनौतियां पैदा की हैं. प्राइवेसी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. ब्रिटेन में इसे लेकर जो ट्रायल किया गया उसमें विशेषज्ञों ने ऑब्जेक्ट डिटेक्शन एल्गोरिदम के नतीजों पर चिंता जताई. उन्होंने इस बात को लेकर भी चेतावनी दी कि भविष्य में सर्विलांस के लिए और चेहरे की पहचान के लिए इस्तेमाल होने वाले एआई टूल्स का और व्यापक इस्तेमाल हो सकता है. एआई पर रिसर्च करने वाले एडा लोवलेस इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने भी कहा कि ब्रिटेन में हुए ट्रायल में भले ही फेशियल रिकोगनिशन को शामिल नहीं किया गया, लेकिन अगर लोगों के व्यवहार का विश्लेषण करने के लिए सार्वजनिक जगहों पर इस तरह के एआई टूल्स लगाए जाते हैं तो इससे कई नैतिक, कानूनी और सामाजिक सवाल खड़े होंगे.
एआई के विकास के लिए डेटा की ज़रूरत और लोगों के निजता के अधिकार के बीच संतुलन बनाए. ऐसी तकनीकी का इस्तेमाल करें, जिससे लोगों से जुड़े डेटा की गोपनीयता बनी रहे.
इस बात का ध्यान रखा जाना भी ज़रूरी है कि एआई से भी कुछ गलतियां हो सकती हैं. इसके काम में गड़बड़ी हो सकती है. ब्रिटेन में जो ट्रायल हुआ, उसमें ये देखा गया कि जिन छोटे बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ टिकट बैरियर को पार किया, उन बच्चों को किराया ना देने वालों के रूप में चिन्हित किया गया. फोल्डिंग बाइक को नॉन फोल्डिंग बाइक बताया गया. हथियारों को पहचानने के एआई के सिस्टम को सुधारने के लिए इस ट्रायल के दौरान पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों के सामने बड़ी चाकू और बंदूक भी दिखाई.
एआई के प्रसार ने लोगों के मन में कई तरह की आशंकाएं पैदा की है. खासकर जिस तरह डेटा को इकट्ठा किया जाता है और उसका इस्तेमाल किया जाता है, उसे लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं. आज के दौर में डेटा को एक बुनियादी संपत्ति माना जाता है. ऐसे में लोगों में इस बात को लेकर डर है कि कहीं उनसे जुड़ा डेटा बेच ना दिया जाए. उनकी प्राइवेसी का उल्लंघन ना हो जाए. इसमें कोई शक नहीं एआई को और उन्नत बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा डेटा चाहिए लेकिन इससे प्राइवेसी के खत्म होने का ख़तरा भी बढ़ गया है. ऐसे में सरकारों को चाहिए कि वो एआई के विकास के लिए डेटा की ज़रूरत और लोगों के निजता के अधिकार के बीच संतुलन बनाए. ऐसी तकनीकी का इस्तेमाल करें, जिससे लोगों से जुड़े डेटा की गोपनीयता बनी रहे. इन चुनौतियों से निपटने के लिए ये ज़रूरी है कि एआई को लेकर एक व्यापक और ईमानदार नीति बनाई जाए. ऐसी नीति जो नैतिक तौर पर भी सही हो. लोगों की प्राइवेसी भी बरकरार रहे और एआई के विकास के लिए डेटा भी मुहैया होता रहे.
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