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हर साल 24 जनवरी को मनाया जाने वाला ‘अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ यह स्वीकार करना है कि शांति, प्रगति और मानव की समृद्धि को विस्तार देने में शिक्षा की भूमिका काफ़ी अहम है. इस साल की थीम थी— ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता और शिक्षा : स्वचालन की दुनिया में मानव एजेंसी का संरक्षण’. यहां मानव एजेंसी का मतलब है, जीवन को आकार देने वाली इंसानी क्षमताएं. इस थीम के तहत दुनिया भर के संस्थान कृत्रिम बुद्धिमत्ता की विसंगतियों पर विचार कर रहे हैं, क्योंकि AI एक तरफ मानव जीवन को बेहतर बनाने का वायदा करती है, तो दूसरी तरफ इसमें इंसानी नियंत्रण से बाहर चले जाने की क्षमता भी निहित है. इन दोनों छोरों के बीच संतुलन बनाने के उपायों की खोज जैसे-जैसे नीति-निर्माता, प्रौद्योगिकीविद और शिक्षक कर रहे हैं, मानव क्षमताओं और विकल्पों को आकार देने में शिक्षा की भूमिका प्रासंगिक बनती जा रही है.
एजेंसी के कई आयाम
एजेंसी का अर्थ सोचने, चयन करने और काम करने की क्षमता है. इनको पारंपरिक रूप से एक विशिष्ट मानवीय गुण के रूप में परिभाषित किया जाता है. एजेंसी में चेतना, नैतिकता संबंधी तर्क, तर्क शक्ति और जटिल सामाजिक स्थितियों को पहचानने की क्षमता आदि तमाम पहलू शामिल हैं. इन क्षमताओं को बढ़ावा देना ही शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य रहा है. जैसे-जैसे छात्र अपने माहौल के अनुरूप ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण अपनाने लगता है, गर्ट बिएस्टा के शब्दों में कहें, तो ‘निजी इच्छाएं’ ‘सामूहिक महत्वाकांक्षाएं’ में बदलने लगती हैं.
अब तक, यही माना जाता था कि मानव एजेंसी तय उपकरणों और मशीनों में अंतर्निहित हैं. वे न केवल पूर्व योजनानुसार काम करती थीं, बल्कि पहले से तय तर्क के साथ संचालित होती थीं. हालांकि, मौजूदा AI उपकरण पूरी तरह से ज्ञान-संबंधी क्षमताओं के साथ बनाए गए हैं, जिनका मक़सद मानव के समान या उससे भी बेहतर प्रदर्शन करना है.
अब तक, यही माना जाता था कि मानव एजेंसी तय उपकरणों और मशीनों में अंतर्निहित हैं. वे न केवल पूर्व योजनानुसार काम करती थीं, बल्कि पहले से तय तर्क के साथ संचालित होती थीं. हालांकि, मौजूदा AI उपकरण पूरी तरह से ज्ञान-संबंधी क्षमताओं के साथ बनाए गए हैं, जिनका मक़सद मानव के समान या उससे भी बेहतर प्रदर्शन करना है. जेनरेटिव एआई, यानी नया डाटा बनाने वाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता विशेष रूप से मानव-प्रभाव की सीमाओं को चुनौती देते हुए, अपने शुरुआती प्रोग्रामिंग से बाहर जाकर सीखती है, अनुकूलित होती है और विकसित होती है. इन उपकरणों की तेजी से स्वीकृति असल में, एजेंसी की पारंपरिक अवधारणाओं को चुनौती देती है, क्योंकि ऐसा करने से मशीनों का दख़ल उन क्षेत्रों में बढ़ जाता है, जहां पारंपरिक रूप से इंसान ही फ़ैसले लेते रहे हैं.
प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन में 56 प्रतिशत विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि अगले 10-15 वर्षों में तकनीकी-सहायता से लिए जाने वाले फ़ैसलों में इंसानों की निगरानी काफी कम हो जाएगी. वे चेतावनी देते हैं कि तकनीक से समृद्ध कुलीन वर्ग के हाथों में, जो कि एक छोटा-सा समूह ही होगा, एजेंसी केंद्रित हो सकती है. इसमें बहुसंख्यक अपने पास विकल्प होने और स्वायत्त होने का महज़ भ्रम ही पाल सकेंगे. अध्ययन के शेष 44 फीसदी विशेषज्ञ, जो अधिक आशावादी हैं, यह महसूस करते हैं कि तकनीक से संचालित फ़ैसलों की निगरानी इंसान ही करते रहेंगे और उन मामलों पर अपना नियंत्रण बनाए रखेंगे, जो उनके लिए महत्वपूर्ण होंगे.
फिर भी, दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि हम इतिहास के ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां मानव-नियंत्रण, स्वायत्तता और एजेंसी से संबंधित महत्वपूर्ण मसलों पर गंभीर विचार-विमर्श की ज़रूरत है. सवाल है कि महत्वपूर्ण मसले आखिर हैं क्या? जवाब है- हमें तकनीक को नियंत्रण का कितना अधिकार देना चाहिए? मनुष्यों और एआई के सकारात्मक सह-विकास के लिए किन-किन जगहों पर नियंत्रण और कहां-कहां संतुलन की आवश्यकता है? और, किन क्षेत्रों पर पूरी तरह से इंसानों का अधिकार रहना चाहिए?
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के ‘छात्रों के लिए AI योग्यता ढांचे’ में दूरदर्शी दृष्टिकोण की वकालत की गई है, ताकि छात्र संजीदा नीति-निर्माता बनें.
बेशक इन सवालों पर चिंतन जारी है, लेकिन एक बदलाव तय है. मानवीय और गैर-मानवीय, दोनों कारकों को शामिल करने के लिए एजेंसी की अवधारणा में बदलाव की ज़रूरत है. खुद-ब-खुद सीखने और फ़ैसले लेने की क्षमता को देखते हुए AI सिस्टम को महज़ मशीन के बजाय सह-एजेंट के रूप में रखा जाता है, जो मनुष्यों के साथ एक प्रकार से सहजीवी रिश्ता बनाता है. सहजीवी रिश्ता का मतलब है, मनुष्य और तकनीक एक-दूसरे पर निर्भर व सहयोगी हैं और फ़ैसले लेने व काम करने में एक-दूसरे की भूमिकाएं अपना रहे हैं. इस सहजीवी रिश्ते में छद्म एजेंसी भी शामिल होती है, जिसमें लोग सुविधा और दक्षता के साथ-साथ रिवर्स एजेंसी (जिसमें इंसानी फ़ैसलों, व्यवहारों व भावनाओं का हिस्सा तकनीक बनती है) के आधार पर तकनीक को काम करने का दायित्व सौंपते हैं.
इंसानी क्षमताओं को संरक्षित करने में शिक्षा की भूमिका
मानव और मशीनों की एक-दूसरे पर निर्भरता को समझने में शिक्षा काफी अहम भूमिका निभाती है. यह लोगों को एआई की क्षमता का अपने हित में इस्तेमाल करने के लिए तैयार करती है, जबकि इस क्रम में उनकी रचनात्मकता, निर्णय और नैतिकता की रक्षा भी की जाती है. इसके लिए तीन प्रमुख रणनीतियां बनाई जानी चाहिए.
पहली, AI का उपयोग एक प्रभावी शिक्षण उपकरण के रूप में किया जा सकता है, जो शिक्षकों पर बोझ को कम करते हुए छात्रों को समझने में अधिक मददगार होगा. पढ़ाने के समझदार उपकरण जैसे व्यक्तिगत और शिक्षण उपकरण, गेमिफिकेशन जैसी सहभागी रणनीतियां, और व्यावहारिक समझ को बढ़ावा देने वाले मंच शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाते हैं. एआई सिस्टम ने दिव्यांग छात्रों के लिए समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने, भाषायी विभाजन को पाटने और गुणवत्तापूर्ण संसाधनों तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करने में काफी मदद की है. मैकिंसे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, AI तैयारी करने, व्यवस्थागत काम करने और जवाबी रणनीति बनाने जैसे कामों में मदद करती है. इससे शिक्षकों का 20-30 प्रतिशत समय बचता है और वे इस समय का सदुपयोग छात्रों का मार्गदर्शन करने व उन्हें सही राह दिखाने में कर सकते हैं. इससे बेहतर शैक्षणिक नतीजा पाने में मदद मिलेगी और शिक्षक-छात्र संबंध मजबूत बनेगा.
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस यह याद करने का मौका माना जाना चाहिए कि स्वचालन के इस युग में काफी जरूरी बन जाता है कि शिक्षा का मक़सद सिर्फ़ ज्ञान का प्रसार नहीं, बल्कि इससे कहीं अधिक व्यापक हो.
दूसरी, छात्रों को एआई के साथ गंभीरता से जुड़ने के लिए तैयार करना महत्वपूर्ण है. AI साक्षरता का अर्थ सिर्फ तकनीकी कौशल से समृद्ध होना नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें प्रभावी सहयोग और एआई तकनीकों का गंभीरता से मूल्यांकन करने के लिए जरूरी योग्यताओं का विकास करना भी शामिल होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के ‘छात्रों के लिए AI योग्यता ढांचे’ में दूरदर्शी दृष्टिकोण की वकालत की गई है, ताकि छात्र संजीदा नीति-निर्माता बनें. एक ऐसा नीति-निर्माता, जो मानव एजेंसी, सामाजिक समानता, डिजिटल सुरक्षा और भाषायी विविधताओं के साथ ही पर्यावरण और उसके पारिस्थितिकी तंत्र जैसी तमाम अहम अवधारणों पर एआई के प्रभाव की जांच करे और अपनी समझ विकसित करे.
तीसरी रणनीति- कक्षाओं में AI उपकरणों के चयन, कार्यान्वयन और मूल्यांकन में हमेशा शिक्षकों को केंद्र में रखना, यानी एसीई (ऑलवेज सेंटर एडुकेटर्स) महत्वपूर्ण है. AI उपकरणों को शिक्षकों का कामकाज आसान बनाना चाहिए, उनकी व्यवस्थागत जिम्मेदारियों को कम करना चाहिए, उनकी शिक्षण-योग्यता को बढ़ाना चाहिए और अध्यापन के तरीके को व्यक्तिगत बनाने में मदद करनी चाहिए. यूनेस्को की ‘शिक्षकों के लिए AI योग्यता ढांचा’ रिपोर्ट प्रौद्योगिकी और छात्रों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में शिक्षकों की भूमिका पर प्रकाश डालती है, और जो शिक्षक इस तरह के तौर-तरीकों को महत्व देते हैं, उनके पेशेवर विकास की निरंतर प्रशंसा करती है.
छात्रों के लिए AI शिक्षा को मज़बूत की पहल
दुनिया भर में ऐसे कई प्रयास हो रहे हैं, जिनमें इसी तरह के दृष्टिकोण अपनाए गए हैं. यूनिसेफ की ‘एआई फॉर चिल्ड्रन प्रोजक्ट’ यानी बच्चों की परियोजनाओं के लिए AI नामक पहल बच्चों पर केंद्रित AI निर्माण में निष्पक्षता और पारदर्शिता की वकालत करती है. इसी तरह, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) की ‘सामाजिक सशक्तिकरण और शिक्षा के लिए जिम्मेदार एआई’ (आरएआईएसई) पहल के-12 छात्रों के लिए AI साक्षरता मुहैया कराती है और इसके सुरक्षित और जिम्मेदाराना उपयोग को महत्व देती है. ‘डेवलपिंग AI लिटरेसी’ (डीएआईएलवाई) जैसा पाठ्यक्रम-कार्यक्रम भी छात्रों को ‘शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (एआईईडी) के नैतिक और सामाजिक निहितार्थ बताने पर जोर देता है, ताकि उन्हें यह समझने में मदद मिल सके कि यह उनके भविष्य और करियर को किस तरह से प्रभावित कर सकती है. ये पाठ्यक्रम नौनिहालों की शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के सभी पाठ्यक्रमों में AI साक्षरता के नैतिक पहलू को शामिल करने पर जोर देता है.
यूनेस्को की ओर से शिक्षकों, नीति-निर्माताओं और प्रौद्योगिकीविदों के बीच सहयोग बढ़ाने में मदद करने की अपील करना दरअसल ऐसी मानव-केंद्रित AI को लागू करने पर जोर देना है, जो कक्षाओं की वास्तविक ज़रूरतों को बताए और छात्रों के मनोबल, मानवीय क्षमता और समग्र विकास को बनाए रखे. इसमें शिक्षकों को प्रशिक्षण देने, AI साक्षरता संबंधी नैतिकता को बढ़ावा देने, समावेशी एआई उपकरण को विकसित करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने और पठन-पाठन से जुड़े तमाम क्षेत्रों से संबंधित शोध व अनुसंधान को आगे बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी ध्यान देने के लिए कहा गया है.
निष्कर्ष
अगले दशक में, AI निश्चित तौर पर कई तरह से मानव जीवन को बदलने वाली है. इस संदर्भ में शिक्षा, जो कि याद रखने के बजाय सोच विकसित करने, सक्रियता दिखाए बिना समझ बढ़ाने के बजाय समस्या के व्यावहारिक समाधान में संजीदगी दिखाने, और निर्भरता के बजाय प्रयास करने पर जोर देती है, इंसानों द्वारा अपने उसूलों पर खुद फ़ैसले लेने की प्रक्रिया में सबसे मूल्यवान सुरक्षा कवच साबित होगी.
इस लिहाज़ से अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस यह याद करने का मौका माना जाना चाहिए कि स्वचालन के इस युग में काफी जरूरी बन जाता है कि शिक्षा का मक़सद सिर्फ़ ज्ञान का प्रसार नहीं, बल्कि इससे कहीं अधिक व्यापक हो. ऐसा करने से, शिक्षा छात्रों को पूरे आत्मविश्वास और मक़सद के साथ एक जटिल भविष्य को समझने के लिए तैयार कर सकती है.
(अर्पण तुलस्यान आब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में सेंटर फ़ॉर न्यू इकोनोमिक डिप्लोमेसी (सीएनईडी) में वरिष्ठ फ़ेलो हैं.)
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