Author : Samridhi Diwan

Published on Aug 21, 2023 Updated 0 Hours ago

एग्रीकल्चर एक्सेलरेटर फंड के ज़रिए समावेशीकरण, डेटा माइनिंग, आदान-प्रदान और इनोवेशन की पहल को रफ़्तार देने से भारत के लिए एग्री-टेक यानी कृषि तकनीक की पूरी संभावना का इस्तेमाल किया जा सकेगा.

कृषि 2.0: 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के लिए कृषि तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाना ज़रूरी

भारत में खेती-बाड़ी, लंबे समय से रोज़ी-रोटी का ज़रिया रही है. देश की लगभग आधी कामकाजी आबादी इसमें काम करती है और कृषि देश की GDP में 18 प्रतिशत का योगदान देनी है. लेकिन, अब कृषि क्षेत्र में तकनीक के इस्तेमाल की तमाम कोशिशों में डिजिटल तकनीक के बढ़ते प्रयोग से भारत में खेती इन दिनों परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है. मिसाल के तौर पर भारत के साल 2023-24 के बजट में कृषि क्षेत्र में तकनीक का लाभ उठाने और शहरी खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने के अनूठे अवसरों का ज़िक्र किया गया है.

बजट में एग्रीकल्चर एक्सलेरेटर  फंड का एलान किया गया था. इसमें शुरुआती तौर पर 2200 करोड़ रुपए का निवेश, एग्री-टेक स्टार्टअप  कंपनियों की मदद को लेकर भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिससे 2025-26 तक भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके. इसमें सिर्फ़ स्टार्टअप  कंपनियों के लिए 500 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. इस फंड का मक़सद युवा आविष्कारकों को कृषि क्षेत्र के साथ सहयोग के लिए प्रोत्साहित करना है.

जलवायु परिवर्तन, बढ़ती हुई आबादी और सीमित संसाधनों ने देश में टिकाऊ खेती को अपनाने की राह में चुनौतियां खड़ी की हैं.

हालांकि, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती हुई आबादी और सीमित संसाधनों ने देश में टिकाऊ खेती को अपनाने की राह में चुनौतियां खड़ी की हैं. इनमें से कई समस्याओं जैसे कि खेती की उपज का अंदाज़ा लगाना, मिट्टी की सेहत की निगरानी, कीड़े-मकोड़ों से निपटने और प्रीसिज़न फार्मिंग की तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ाने में डिजिटल तकनीकें कारगर साबित हो सकती हैं. लेकिन, सवाल ये है कि भारत के कृषि क्षेत्र की अहम चुनौतियों से निपटने के लिए एग्री-टेक को किस तरह संवेदनशील बनाया जा सकता है? आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किस तरह किया जा सकता है कि कृषि क्षेत्र को और समावेशी बनाया जा सके?

एग्रीटेक और इसकी संभावनाओं को समझना

कृषि क्षेत्र में डिजिटल तकनीकों के इस्तेमाल की संभावनाएं बहुत व्यापक हैं. इनके साथ पारंपरिक ज्ञान को जोड़कर किसान सोच-समझकर फ़ैसले ले सकते हैं. संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं और उत्पादकता बढ़ा सकते हैं. मिसाल के तौर AI की मदद से बोई जाने वाली फ़सल का चुनाव और पूर्वानुमान के औज़ारों का इस्तेमाल करके, किसान अपनी मिट्टी की बनावट, मौसम के हालात और बाज़ार की मांग के मुताबिक़, उसके लिए सबसे ज़्यादा मुफ़ीद फ़सल बोने का फ़ैसला ले सकते हैं. इसके अलावा डिजिटल तकनीकें किसानों को जानवरों की सेहत और पोषण संबंधी जानकारी हासिल करने में मदद दे सकती हैं और उन्हें पालतू जानवरों के प्रबंधन और स्मार्ट ब्रीडिंग जैसी सेवाएं भी दे सकती हैं. इससे किसानों को उत्पादकता और मुनाफ़ा बढ़ाने में मदद मिलेगी. बहुत से देशों ने लचीली खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने के लिए एग्री-टेक का इस्तेमाल किया है. ख़ास तौर से शहरी खेती-बाड़ी के मामले में. मिसाल के तौर पर सीमित ज़मीन होने की वजह से सिंगापुर अपनी ज़रूरत का केवल 10 प्रतिशत खाना पैदा करता है. हालांकि, उन्नत कृषि तकनीक का इस्तेमाल करके सिंगापुर ने हाई-टेक एग फार्म स्थापित किए हैं, जिससे मुर्गियों को दाना चुगाया जा सके और अंडों को इकट्ठा करके उनकी ग्रेडिंग और पैकेजिंग की जा सके. इन हाई टेक एग फार्मों में मछलियों को सीमित इलाक़ों में नियंत्रित करने का काम भी लिया जा सकता है, ताकि मछलियों को समंदर के बढ़ते तापमान, काही में बढ़ोतरी  और समुद्र  में तेल गिरने जैसी मुसीबतों से बचाया जा सके. अमेरिका की ब्लू रिवर टेक्नोलॉजी जैसी कंपनियों ने ज़रूरी फ़सलों के प्रबंधन जैसे कि खरपतवार निकालने, खाद डालने और मज़दूरी की लागत कम करने के लिए फसलों को काटने वग़ैरह की तकनीक उपलब्ध कराई है, जिससे कम पैसे में अधिक कुशलता से खेती की जा सके.

अंदाज़ा लगाया गया है कि भारत का कृषि तकनीक उद्योग सालाना 25 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर से बढ़कर 2025 तक 24.1 अरब डॉलर का हो जाएगा. हाल के वर्षों में इस सेक्टर ने काफ़ी विदेशी निवेश भी आकर्षित किया है. इनमें जॉन डीर, मोनसेंटो  और सिन्जेंटा जैसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी शामिल हैं. भारत के कृषि क्षेत्र में तीन हज़ार स्टार्ट-अप कंपनियां सक्रिय हैं. डेहाट, एब्सॉल्यूट, रेशामंडी और एगनेक्स्ट जैसी कंपनियां, प्रीसिज़न फार्मिंग और वर्चुअल फार्म जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करती हैं. इनमें मिट्टी और पानी की जांच के लिए सेंसर का इस्तेमाल, आपूर्ति और मांग की श्रृंखला की निगरानी, स्मार्ट क्रॉप सेलेक्शन, मौसम का पता लगाना, सैटेलाइट इमेजिंग, परवेज़िव ऑटोमेशन, मिनीक्रोमोसोमल टेक्नोलॉजी और वर्टिकल फार्मिंग जैसी तकनीकों के ज़रिए कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने में जुटी हैं.

उन्नत कृषि तकनीक का इस्तेमाल करके सिंगापुर ने हाई-टेक एग फार्म स्थापित किए हैं, जिससे मुर्गियों को दाना चुगाया जा सके और अंडों को इकट्ठा करके उनकी ग्रेडिंग और पैकेजिंग की जा सके.

भारत में प्रचुर मात्रा में मोटे अनाज के उत्पादन और पोषक सुपर फूड  की वैश्विक मांग एक मूल्यवान अवसर प्रदान करती हैं. इन दिनों भारत सरकार पोषण, खाद्य सुरक्षा और किसानों के कल्याण के लिए मोटे अनाज को बढ़ावा देने पर ज़ोर दे रही है. इसलिए भारत अलग अलग तरह के मोटे अनाजों का दुनिया में अग्रणी उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बनने की स्थिति में है. भारत की इस बढ़त के साथ, मुनाफ़ा और कुशलता बढ़ाने के लिए एग्री-टेक का लाभकारी उपयोग भारत की उत्पादकता बढ़ा सकता है. फिर इसकी मदद से भारत ऑर्गेनिक और क्षेत्रीय खाद्य बाज़ार में एक अगुवा के तौर पर उभर सकता है और बढ़ती हुई मांग को पूरा कर सकता है.

कमियां और चुनौतियां

दुनिया की बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खाद्य उत्पादन 70 प्रतिशत बढ़ाना ही होगा. क्योंकि एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ 2050 तक दुनिया की आबादी 9.7 अरब पहुंच जाएगी. एग्री-फूड सेक्टर में तकनीकी आविष्कारों से जो लाभ हुए हैं, वो मोटे तौर पर विकसित देशों तक सीमित रह गए हैं. इन कोशिशों में आम तौर पर उपज बढ़ाने से ज़्यादा ज़ोर पर्यावरण के संरक्षण पर दिया जाता रहा है. मिसाल के तौर पर, यूरोपीय संघ की कॉमन एग्रीकल्चर पॉलिसी मुख्य रूप से पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर देती है, क्योंकि यूरोप के लोग ‘प्रकृति’ को सर्वप्रमुख मानते हैं. हालांकि, विकासशील देशों में मौजूदा सामाजिक आर्थिक हालात, टुकड़ों में बंटे खेत, बड़ी आबादी और विकास के अलग अलग चरणों को देखते हुए, इस मामले में अलग नज़रिया अपनाने की ज़रूरत है.

एग्री-टेक की कोशिश, विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करना है. जैसे कि कम क़ीमत का दुष्चक्र, मजबूरी में उपज बेचना और जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से स्मार्ट फ़सलों की कम जानकारी होना. वैसे तो, कृषि तकनीक टिकाऊ समाधान उपलब्ध कराती है. लेकिन, इसकी अपनी जटिलताएं हैं. जैसे कि मूलभूत ढांचा स्थापित करने की लागत, ग्राहक द्वारा उपकरणों के अधिग्रहण का ख़र्च, डिजिटल साक्षरता का अभाव और खेतों और किसान स्तर के आंकड़ों की कमी. ये मौजूदा चुनौतियां एग्री-टेक समाधानों बड़े स्तर पर लागू करने की राह में चुनौतियां खड़ी करती हैं. फिर इनकी वजह से छोटे किसान नई तकनीकों को अपनाते नहीं हैं, जिससे ये तकनीकें बड़े पैमाने पर लागू नहीं हो पाती हैं.

भारत में खेती के तौर तरीक़ों को सहजता से बदलने के लिए उन्नत ट्रेनिंग और सरकार की तरफ़ से सबको साथ लेकर चलने की कोशिशें करनी होगी. मिसाल के तौर पर भारत की 54.6 प्रतिशत आबादी खेती और उससे जुड़े हुए सेक्टर में लगी हुई है.

भारत में खेती के तौर तरीक़ों को सहजता से बदलने के लिए उन्नत ट्रेनिंग और सरकार की तरफ़ से सबको साथ लेकर चलने की कोशिशें करनी होगी. मिसाल के तौर पर भारत की 54.6 प्रतिशत आबादी खेती और उससे जुड़े हुए सेक्टर में लगी हुई है. मगर, देश के बड़े कृषि शिक्षा के संस्थानों में केवल 1.65 लाख छात्र ही अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी की पढ़ाई कर रह हैं. इससे भी बड़ी बात ये है कि किसान प्रभावी ढंग से डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल कर सकें इसके लिए पर्याप्त मात्रा में कर्ज की उपलब्धता का भी अभाव है. किसानों को बुनियादी डिजिटल औज़ार और जानकारी उपलब्ध कराने के लिए हाई स्पीड इंटरनेट की कनेक्टिविटी स्थापित करना एक बुनियादी शर्त है. किसानों के लिए स्मार्टफोन जैसे उपकरणों तक पहुंच के लिए जानकारी का अभाव और कृषि क्षेत्र में ऐसे उच्च तकनीकी समाधान लागू करने की राह में भी चुनौतियां आती हैं.

भविष्य का रोडमैप

समावेशीकरण को बढ़ावा दिया जाए: डिजिटल समावेशीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र ने तीन बुनियादी स्तंभों को रेखांकित किया है. डिजिटल समावेशीकरण के लिए डिजिटल इंडिया की पहल ग्रामीण इलाक़ों में बड़े स्तर पर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को बढ़ाकर कृषि क्षेत्र के लिए फ़ायदेमंद बनाने की धुरी है. डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ साथ ट्रेनिंग और क्षमता निर्माण पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए. इसके लिए नेशनल एग्रीकल्चरल हायर एजुकेशन प्रोजेक्ट के तहत किसानों को सशक्त बनाने के लिए डिजिटल साक्षरता की कक्षाएं आयोजित की जानी चाहिए. इस काम में बड़े कृषि शिक्षा संस्थानों से भी सहयोग लिया जाना चाहिए. ट्रेनिंग और डिजिटल पहुंच को प्राथमिकता देने के साथ साथ, ऐसी नई कोशिशें तकनीक अपनाने और विकास के लिए किसानों को शिक्षित बनाने में मददगार साबित होंगी. बेरोक-टोक संचालन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए स्थानीय सरकारी संस्थाओं से प्रशिक्षित पेशेवर लोगों और AI के जानकारों की एक समर्पित टीम बनानी चाहिए, जो ज़मीनी स्तर पर सहायता, मार्गदर्शन और विशेषज्ञता उपलब्ध करा सके.

डेटा के आदानप्रदान को सुविधाजनक बनाना: सरकार किसानों, रिसर्चरों और निजी क्षेत्र की संस्थाओं के बीच डेटा के आदान-प्रदान को बढ़ावा दे सकती है, जिससे कृषि क्षेत्र में रिसर्च और आविष्कार को प्रोत्साहन दिया जा सके. समर्पित मंचों के ज़रिए डेटा के लेन-देन का एक सहयोगात्मक ढांचा बेहद ज़रूरी है, ताकि इनोवेशन की अगुवाई करने वाली डेटा पर आधारित तकनीकों के असर को लेकर राय साझा की जा सके और आपसी तालमेल से सबका फ़ायदा हो. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को डेटा फ्री फ्लो विद ट्रस्ट (DFFT) की संभावनाओं का पूरा लाभ उठाना चाहिए. इसके लिए सरकार अमेरिका, जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के साथ सहयोग के समझौते कर सकती है. इस सामरिक सहयोग से भारत को अपनी डेटा की क्षमता बढ़ाने और इन देशों में उपलब्ध AI की उन्नत तकनीकों का लाभ उठा पाने में मदद मिलेगी. डेटा के लेन-देन की एक मज़बूत योजना तैयार करने से भारत अपनी मौजूदा क्षमताओं को मज़बूत बना सकता है और भविष्य के रिसर्च के लिए एक व्यापक डेटाबेस भी तैयार कर सकता है. हालांकि, इसके लिए डेटा के संरक्षण के सख़्त प्रोटोकॉल बनाने और डेटा के सटीक होने की निगरानी की सख़्त व्यवस्था भी बनानी होगी.

अप्रैल 2023 में नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन और कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने अटल टिंकरिंग लैब्स को KVK और एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी से जोड़ा था.

इनोवेशन को प्रोत्साहन देना: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने Cultiv@te के नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है, जो विकासशील देशों के बीच त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) पर केंद्रित है, और जिसकी मदद से तकनीकी आविष्कारों की पड़ताल करके उनका विस्तार किया जा सके. इसका प्राथमिक लक्ष्य भारत समेत विकासशील देशों को स्थानीय स्तर पर इनोवेशन को बढ़ावा देने में मदद करना है. सरकार के 100 प्रतिशत सहयोग से चलने वाली कृषि विज्ञान केंद्र नॉलेज सेंटर (KVKs) योजना कृषि क्षेत्र के ज्ञान के संसाधनों और क्षमता विकास को कृषि क्षेत्र और उससे जुड़े क्षेत्रों में ‘स्थानीय स्तर के हिसाब से मूल्यांकन करके तकनीकी मॉड्यूल तैयार करने’ का सिंगल विंडो मंच है. जिसमें तकनीकी मूल्यांकन और प्रदर्शन के ज़रिए नई तकनीकों को प्रोत्साहन दिया जाता है. इके लिए सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक संस्थानों से मदद की ज़रूरत है, ताकि ज़िला स्तर की कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके और नेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च सिस्टम को किसानों से जोड़ा जा सके. अप्रैल 2023 में नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन और कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने अटल टिंकरिंग लैब्स को KVK और एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी से जोड़ा था. जिससे कृषि से जुड़े इनोवेशन को मदद दी जा सके, ख़ास तौर से स्कूल जाने वाले युवाओं को. इसी तरह सरकार कृषि क्षेत्र की स्टार्टअप  कंपनियों को मदद और सहयोग दे सकती है. इसके लिए कृषि मंत्रालय की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के कामयाब मॉडल को अपनाया जा सकता है.

इस फंड ने इनोवेशन और कृषि उद्यम विकास कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया है, जो अब तक 1138 स्टार्टअप  कंपनियों को खेती बाड़ी के तौर तरीक़े सुधारने के लिए वित्तीय मदद दे चुका है. जैसे कि प्रीसिज़न एग्रीकल्चर , फार्म मैकेनाइज़ेशन , एग्री लॉजिस्टिक्स, आपूर्ति श्रृंखलाएं, कचरे से संपत्ति बनाने, ऑर्गेनिक फार्मिंग, पशुपालन उद्योग और डेयरी व मत्स्य पालन उद्योग. अगर सरकार का इरादा असली क़दम उठाने में बदला जा सके, तो एग्रीकल्चर एक्सेलरेटर फंड, डेटा माइनिंग, समावेशीकरण और आदान-प्रदान और इनोवेशन की पहल को बढ़ावा देते हुए भारत के कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला सकता है और भारत के कृषि उत्पादन की क्षमता में बढ़ोत्तरी कर सकता है और भारत के किसानों की आमदनी दोगुनी करने के अधूरे सपने को भी पूरा कर सकता है.

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