Published on Jul 29, 2019 Updated 0 Hours ago

आने वाले समय में माइग्रेटेड लोगों, शरणार्थियों आदि के सवाल राजनीति के प्रमुख सवाल बनने जा रहे हैं. भारत में भी इसका गहरा असर पड़ेगा, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के नाम पर वैध-अवैध नागरिक का मुद्दा राजनीति का प्रमुख चुनौतीपूर्ण सवाल बनने जा रहा है

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक विदेश नीति

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हाल ही में ईरान पर जिस तरह से साइबर हमला किया और चीन के खिलाफ़ व्यापारिक प्रतिबधों की घोषणा की, उस वजह से सारी दुनिया में तनाव पैदा हो गया है. ट्रंप की विदेश नीति आरंभ से ही आक्रामक रही है उसके समानांतर ही उनकी गृहनीति के निशाने पर इमीग्रेंट यानी कि अप्रवासी नागरिक और विपक्ष रहा है. अमेरिका में अवैध लोगों के प्रवेश को रोकने, जो अवैध रूप में रह रहे हैं उनको गिरफ़्तार कर के यातना शिविरों में बंद करके रखने की नीति का समूचे अमेरिका में ज़बर्दस्त विरोध हो रहा है. हाल ही में अमेरिका के तकरीबन सभी शहरों में ट्रंप के खिलाफ़ प्रदर्शन हुए हैं, उल्लेख़नीय है ट्रंप प्रशासन ने बड़े पैमाने पर समूचे देश में अवैध ढ़ंग से रह रहे लोगों के खिलाफ़ जांच अभियान शुरू किया है और एक साथ सारे देश में छापे मारे गए हैं, अमेरिका में यह पहली बार हुआ है, इससे समूचे अमेरिका में तनाव है. ट्रंप प्रशासन का मानना है कि अवैध ढ़ंग से जो लोग रह रहे हैं उनको गिरफ्तार करके यातना शिविरों में भेजा जाएगा, साथ ही अमेरिका की पड़ोसी देशों से लगी सीमाओं पर कड़ी निगरानी भी चल रही है. जिन शहरों में पुलिस ने छापेमारी की है वे हैं लॉस एंजिल्स, शिकागो, न्यूयॉर्क, ह्यूस्टन, बालटीमोर, मियामी, सन-फ्रांसिस्को, अटलांटा आदि. माइग्रेशन की राजनीति को केन्द्र में लाकर ट्रंप ने अपने खिलाफ़ लगाए आरोपों पर से ध्यान हटाने में सफ़लता हासिल कर ली है. ट्रंप के खिलाफ़ विपक्ष का यह आरोप रहा है कि ट्रंप ने रूस की मदद से चुनाव जीता, तकरीबन 230 से अधिक भ्रष्ट और बदनाम लोगों को अपने प्रशासन में विभिन्न ज़िम्मेदार पदों पर लाकर बिठाया है.

माइग्रेशन के मुद्दे के राजनीति के केंद्र में आने के कारण ‘राष्ट्र-राज्य’ यानि ‘नेशन स्टेट’ को उन्होंने एकबार फिर से राजनीति का प्रमुख़ एजेंडा बना दिया. भूमंडलीकरण की नीतियों के कारण राष्ट्र-राज्य बिखरा, उसकी अवधारणा बहस के केंद्र से खिसककर हाशिए पर चली गयी, लेकिन माइग्रेशन, देशी-विदेशी, शरणार्थी आदि के सवालों ने अब नए सिरे से बहस को जन्म दे दिया. अमेरिकी सीमाएं मजबूत और सुरक्षित रहें, अमेरिकी क़ानूनों में राष्ट्र हितों को सबसे ऊपर रखा जाए, अमेरिकी नागरिकों को नौकरियों में प्राथमिकता मिले, देश में वैध नागरिक रहें, इन सब बातों को एक सिरे से उठाकर ट्रंप ने राष्ट्र-राज्य के ‘पूर्व-भूमंडलीकरण’ युग के फ्रेमवर्क को नए सिरे से ज़िंदा कर दिया है. उनके इस प्रचार अभियान से जहां घरेलू स्तर पर श्वेत- रंगभेदी राजनीति और उससे जुड़े आक्रामक-हिंसक संगठनों को मदद मिली वहीं दूसरी ओर घृणा अभियान को नया विषय मिला और अप्रवासी नागरिकों और अश्वेतों के खिलाफ घृणा अभियान के नए चरण की शुरूआत हुई है. माइग्रेटेड और अवैध लोगों के खिलाफ घृणा अभियान को आतंकवाद के नाम पर पूरी दुनिया में चल रहे मुसलमान और इस्लाम विरोधी घृणा अभियान की कड़ी में ही रखकर देखने जरूरत है. यह इस बात का संकेत भी है कि आने वाले समय में माइग्रेटेड लोगों, शरणार्थियों आदि के सवाल राजनीति के प्रमुख सवाल बनने जा रहे हैं. भारत में भी इसका गहरा असर पड़ेगा, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के नाम पर वैध-अवैध नागरिक का मुद्दा राजनीति का प्रमुख चुनौतीपूर्ण सवाल बनने जा रहा है.

अमेरिकी नागरिकों को नौकरियों में प्राथमिकता मिले, देश में वैध नागरिक रहें, इन सब बातों को एक सिरे से उठाकर ट्रंप ने राष्ट्र-राज्य के ‘पूर्व-भूमंडलीकरण’ युग के फ्रेमवर्क को नए सिरे से ज़िंदा कर दिया है.

डॉनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी राजनीति के घरेलू और विदेश नीति के मोर्चे पर नए अंतर्विरोध उभरकर सामने आए हैं. नए किस्म के आर्थिक संरक्षणवाद और आक्रामक शीत युद्ध के लिए नए देश और नए मुद्दों की तलाश कर ली गयी है. असल में यह नीति ओबामा प्रशासन की विदेश नीति की परंपरा को बरकरार रखते हुए आगे बढ़ रही है. ट्रंप की विदेश नीति में जहां एक ओर उत्तर कोरिया के साथ संबंधों को सामान्य बनाने पर जोर है, वहीं दूसरी ओर चीन और ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों पर जोर है. दूसरी ओर वे इमिग्रेशन की तीख़ी आलोचना कर रहे हैं. इस आलोचना का सबसे बुरा पहलू तब सामने आया जब राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के अल्पसंख्यक अश्वेत समुदाय के चुने गए सदस्यों से सीधे कहा कि- वे अमेरिका को सरकार चलाने की सलाह देने की बजाय वापस अपने देश लौट जाएं, अमेरिका उनका देश नहीं है. ट्रंप ने यह बात ट्रविटर के ज़रिए कही.

ये साफ तौर पर नज़र आ रहा है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका में नस्लवादी प्रचार अभियान और दक्षिणपंथी नस्लवादी संगठनों के हमले तेज हुए है. विपक्ष और मीडिया ने मिलकर ट्रंप के खिलाफ़ जितने भी आरोप लगाए थे वे सब फिलहाल ग़ैरप्रभावी नजर आ रहे हैं. विदेश नीति के क्षेत्र में ओबामा प्रशासन के समय सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, यमन आदि में नाटो और अमेरिका के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप की ख़बरें आती रही हैं लेकिन ट्रंप ने इस कड़ी में ईरान को शामिल करके नए अंतर्विरोध को जन्म दिया है. पहली बार ईरान के खिलाफ साइबर हमले किए गए, इस तरह के साइबर हमले पहले कभी किसी देश पर नहीं किए गए, यह एक तरह से शीतयुद्ध की राजनीति के नए पैराडाइम की शुरूआत है. साइबर युद्ध सबसे खतरनाक माना जाता है, यह जनता को प्रत्यक्ष शारीरिक क्षति पहुँचाए बगैर समूचे राष्ट्र को अपाहिज बना देने की रणनीति है.

ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका में नस्लवादी प्रचार अभियान और दक्षिणपंथी नस्लवादी संगठनों के हमले तेज हुए है. विपक्ष और मीडिया ने मिलकर ट्रंप के खिलाफ़ जितने भी आरोप लगाए थे वे सब फिलहाल ग़ैरप्रभावी नजर आ रहे हैं.

वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन की नौसेना ने ईरान के सुपरटैंकर ‘ग्रेस-1’ पर हमला करके उसका समुद्र में अपहरण कर लिया है. इस टैंकर में बीस लाख़ बैरल तेल है. फ्रांस के दखल के बाद टेंकर के चालक और अन्य कर्मियों को ब्रिटिश नौसेना ने रिहा करके ईरान को सौंप दिया है, इसके साथ ही बदले में ईरान ने आश्वासन दिया है वह ब्रिटिश नौसेना के जहाज़ों पर हमले नहीं करेगा, लेकिन ईरान परेशान है कि ब्रिटिश नौसेना ने ‘ग्रेस-1’ को अभी तक अपने कब्ज़े से मुक्त नहीं किया है. असल में ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों के बहाने शुरू की गई मुहिम का लक्ष्य है ईरान के तेल स्रोतों पर कब्ज़ा करना, अमेरिका लंबे समय से यमन से लेकर वोलिविया तक तेल के कुँओं पर कब्ज़ा जमाने के लिए हिंसा, जनसंहार, राजनीतिक तख़्ता पलट, तथाकथित जनविद्रोह आदि के हथकंडों का इस्तेमाल करता रहा है.

वहीं दूसरी ओर अमेरिका में रह रहे ईरानियों के संगठन ‘ईरान मुजाहिद्दीन ए खल्क’ जैसे मृतप्रायः संगठन जिंदा हो उठे हैं और अमेरिका में प्रदर्शन कर रहे हैं, जनता और सांसदों में समर्थन जुटा रहे हैं. 21जून 2019 को वॉशिंगटन में इस संगठन ने जुलूस निकाला और उस जुलूस को अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन और राष्ट्रपति के वकील रूडी गुईलानी ने संबोधित किया, इन दोनों का विगत कई वर्षों से इस संगठन के साथ संपर्क-संबंध बना हुआ है और ये दोनों अपने भाषणों की इस संगठन से फीस भी लेते रहे हैं. दिलचस्प है अमेरिकी प्रशासन ने सन् 1997 में इस संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर दिया था लेकिन अब वही संगठन ईरान सरकार के खिलाफ़ अमेरिका के उपकरण का काम कर रहा है. इससे एक बात यह भी प्रमाणित होती है कि अमेरिका में अनेक आतंकी संगठन हैं जिन-को वहां का प्रशासन मदद करता रहा है. जून की रैली में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों ही दलों के नेताओं ने भाषण दिए. अमेरिका के कुछ नेता तो इस संगठन को विदेश में ईरान की सरकार तक कहते हैं.

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