Published on Feb 18, 2021 Updated 1 Hours ago

सांस्कृतिक लचीलापन अक्सर अनिश्चितता के गर्भ से पैदा होता है. बड़ी-बड़ी त्रासदियों के समय भी ऐसा ही देखा गया है

सांस्कृतिक लचीलापन अपनाकर भविष्य के शहर कर सकते हैं बड़े नुकसानों की क्षतिपूर्ति

पिछली गर्मियों में हर हफ़्ते शनिवार की दोपहर को इज़रायल के शहर तेलअवीव की सड़कों पर घूमते हुए कोई भी हवा में तैरती संगीत की धुनों को महसूस कर सकता था. ये हालात तब थे जब कोविड-19 को फैलने से रोकने और मौतों की बढ़ती संख्य़ा पर काबू पाने के लिए इज़रायल ने कड़ा लॉकडाउन लगाया हुआ था.

संगीत की ये धुन एक पुराने, परित्यक्त कारख़ाने के नज़दीक निकल रही थी. कारख़ाने के अंदर कतारबद्ध ढंग से खड़ी की गई कारों में बैठे लोग म्यूज़िकल बैंड द्वारा तैयार की गई संगीत का आनंद ले रहे थे. हरेक समूह एक-दूसरे से अलग-थलग और दूर-दूर बैठकर भी इस अस्थायी जमावड़े में हिस्सा ले रहा था. ये और इसी तरह के दूसरे उदाहरणों को कोविड-19 के बाद सांस्कृतिक लचीलेपन की बढ़ती ज़रूरतों की क्षतिपूर्ति के तौर पर देखा जा सकता है. इसके साथ ही भौतिक और मनोवैज्ञानिक जुड़ावों के हिसाब से शहरी कल्पनाओं से उसके घालमेल का प्रश्न भी खड़ा होता है.

सांस्कृतिक लचीलापन अक्सर अनिश्चितता के गर्भ से पैदा होता है. बड़ी-बड़ी त्रासदियों के समय भी ऐसा ही देखा गया है. ये व्यक्तियों और समुदायों को न सिर्फ़ व्यक्तिगत चेतना के मामले में बल्कि व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक हलकों के संदर्भ में भी तबाही से निपटने और उससे पार पाने की ताक़त देता है. ये इस बात पर ध्यान देता है कि संस्कृति, उसके मूल्य, भाषा, रीति-रिवाज़ और सामाजिक अवस्थाएं लोगों को विपरीत परिस्थितियों से निपटने में कैसे मदद करती हैं. क्लॉस-एह्लेर्स ने संस्कृति-केंद्रित लचीलेपन को अपनाए जाने को परिभाषित करते हुए बताया है कि इसका ”संस्कृति और सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों के लचीलेपन से जुड़े नतीजों पर असर पड़ता है.” इसके पास बर्दाश्त करने, खुद को ढालने और एक बार फिर नए सिरे से ऊर्जावान होने की ताक़त होती है.

ये इस बात पर ध्यान देता है कि संस्कृति, उसके मूल्य, भाषा, रीति-रिवाज़ और सामाजिक अवस्थाएं लोगों को विपरीत परिस्थितियों से निपटने में कैसे मदद करती हैं.

एक ऐसे समय में जब शहर-दर-शहर इस महामारी के अलग-अलग रूपों से जूझ रहे हैं, ‘सांस्कृतिक लचीलेपन’ के अपेक्षाकृत आसान लक्ष्य की पड़ताल करना ज़रूरी हो जाता है. इसको शहरी रूपरेखा की सामान्य परिकल्पना के साथ जोड़ा जा सकता है. ये समग्र रूप वाले ‘शहरी लचीलेपन’ में एक सर्वथा नया आयाम जोड़ सकता है और इसके ज़रिए हाशिए पर रहने वाले और कमज़ोर अल्पसंख्यक समूहों और समुदायों को पहचान की सुरक्षा और संरक्षण के मामलों में सशक्त रूप से आगे लेकर जा सकता है.

सार्वजनिक स्थानों का मिश्रित उपयोग

वैश्विक शहरी संदर्भ में सांस्कृतिक पहचान धीरे-धीरे प्रचलित सामूहिक क्रियाकलापों के स्वभाव का पर्याय बनता जा रहा है. जैसे-जैसे सार्वजनिक स्थानों के भौतिक रूप का और अधिक वैश्वीकरण होता है, अलग-अलग पृष्ठभूमि और जातीयता वाले विभिन्न व्यक्तियों, समूहों और समुदायों द्वारा उनके प्रयोग से सच में अद्वितीय और अहम स्थानों का प्रकटीकरण होता है. समूचे विश्व में जो एक सामान्य तरीका इस्तेमाल किया जाता है वो है किसी सार्वजनिक या आम स्थान का मिश्रित इस्तेमाल के लिए विकास. इसके तहत ऐसे स्थानों का प्रयोग आमतौर पर यहां उम्मीद की जाने वाली गतिविधियों के अलावा दूसरे कार्यों के लिए होता है. मिसाल के तौर पर, सप्ताह के अंत में सुबह-सुबह खेल के मैदान किसानों के लिए बाज़ार का रूप धर लेते हैं. मॉल की बंदी के घंटों के दौरान पैदल सैर करने वाले और दौड़ लगाने वाले उनका इस्तेमाल करते हैं, या फिर एक बम शेल्टर अस्थायी आर्ट-गैलरी के तौर पर भी इस्तेमाल में आता है. मिश्रित इस्तेमाल से किसी ज़मीन की पूरी उपयोगिता और मोल ली जा सकती है. इसके नतीजे के तौर पर इमारतों के निर्माण स्वरूप को जीवंत बनाया जा सकता है जो सार्वजनिक अनुभवों और सुविधाओं को सांस्कृतिक तौर पर लोचदार बनाता है.

वैश्विक शहरी संदर्भ में सांस्कृतिक पहचान धीरे-धीरे प्रचलित सामूहिक क्रियाकलापों के स्वभाव का पर्याय बनता जा रहा है. 

यूरोपीय संदर्भ से जुड़े शहरी सार्वजनिक तत्व जैसे प्लाज़ा का आदर्श मूलरूप, स्क्वॉयर, पार्क और उद्यान आदि, कोविड-19 के चलते सामाजिक दूरी के उपाय लागू किए जाने के बावजूद विभिन्न सामाजिक गतिविधियों के लिए अहम साझा स्थान बने हुए हैं. हालांकि, कुछ शहरों ने ऐसी जगहों के प्रयोग को भी बढ़ावा दिया है जिनके प्रयोग की पहले काफ़ी कम उम्मीद थी. अप्रैल में जाफ़ा में रमज़ान की छुट्टियों के दौरान पार्किंग वाले स्थान को इबादत के लिए इस्तेमाल में लाया गया.

अगर हम भारतीय संदर्भ में इसकी तुलना करें तो पाते हैं कि यहां शहरी विस्तार की कानूनी सीमाएं हैं. यहां भूमि के प्रयोग के नियमन से जुड़े विकास के कठोर साधन अपनाए गए हैं. अक्सर यही साधन यहां होने वाली गतिविधियों और इन स्थानों के निर्माण स्वरूप को तय करते हैं. हालांकि, हाल ही में बेहद घनी आबादी वाले टियर-1 शहरों में नए और ताज़े दृष्टिकोण अपनाए गए हैं.

अगर हम भारतीय संदर्भ में इसकी तुलना करें तो पाते हैं कि यहां शहरी विस्तार की कानूनी सीमाएं हैं. यहां भूमि के प्रयोग के नियमन से जुड़े विकास के कठोर साधन अपनाए गए हैं. 

तेल अवीव में इस तरह का ड्राइव-इन कॉन्सर्ट कुछ महीनों तक हर हफ़्ते आयोजित किया गया. अभी हाल ही में उस पुराने कारख़ाने को ढहा दिया गया है ताकि वहां एक नई इमारत बनाई जा सके. संभवत: दुनिया जिस तरह के परिवर्तनों से गुज़र रही है ये उसी की एक बानगी है. शायद इस महामारी के बाद के कालखंड में हम बीते सालों पर फिर से ग़ौर कर पाएं. हमें पीछे ले जाने वाले पुराने विचारों और रचनाओं को तोड़कर अब हम नए सांस्कृतिक अनुभवों का निर्माण कर सकते हैं. ऐसा कर हम एक समाज के रूप में अपनी लोचदार बुनियाद को फिर से साबित कर सकते हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.