Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 16, 2024 Updated 0 Hours ago

क्यूबा एक बार फिर बड़ी महाशक्तियों के लिए रणनीतिक केंद्र बिंदु में आ गया है. शीत युद्ध के युग वाला तनाव दोबारा दिख रहा है. ये द्वीप एक बार फिर वैश्विक शक्ति संघर्ष का केंद्र बन रहा है.

क्यूबा को लेकर महाशक्तियों के बीच तनाव फिर क्यों बढ़ रहा है?

मध्य और दक्षिण अमेरिकी के ज़्यादातर देशों के साथ अमेरिका के संबंध आम तौर पर अच्छे नहीं रहे हैं. अपने सबसे बेहतर दिनों में भी अमेरिका और इन देशों के रिश्ते जटिल ही रहे हैं. भौगोलिक निकटता के बावजूद वैचारिक मतभेदों, इमिग्रेशन, ड्रग्स और बंदूक नियंत्रण जैसे मुद्दों से प्रेरित राजनीतिक विभाजन की वज़ह से इन देशों के बीच दूरी बनी हुई है. इतना ही नहीं इनकी अर्थव्यवस्थाओं और शासन की संरचना में भी काफी असमानताएं हैं, जो इन्हें करीब आने से रोकती हैं. क्यूबा हमेशा से इस विभाजन के केंद्र में रहा है. अप्रैल 1961 में पिग्स की खाड़ी पर हमले और अक्टूबर 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट ने क्यूबा और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को तनावपूर्ण और अनसुलझा बना दिया है. इसके अलावा इन दोनों देशों के बीच पूंजीवाद और समाजवादी विचारधारा की खाई भी है. यही वजह है कि लंबे समय से चल रहा ये तनाव कभी-कभी और भड़क जाता है. हालात और बिगड़ने का ख़तरा पैदा हो जाता है.

रूस और चीन के ख़िलाफ पश्चिमी देशों का मुकाबला अब दूसरी जगह भी असर दिखा रहा है. ये एक व्यापक भू-राजनीतिक विभाजन का संकेत है.

रूस-यूक्रेन और इज़रायल-हमास के बीच चल रहे युद्धों ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में फैली दरार को और गहरा कर दिया है. रूस और चीन के ख़िलाफ पश्चिमी देशों का मुकाबला अब दूसरी जगह भी असर दिखा रहा है. ये एक व्यापक भू-राजनीतिक विभाजन का संकेत है. दोनों धुरियों के बीच उभरती प्रतिस्पर्धी भू-राजनीति अफ्रीका और लैटिन अमेरिका समेत कई दूसरे क्षेत्रों में दिखने लगी है.

शीत युद्ध की यादों को ताज़ा करने वाला एक कदम पिछले महीने दिखा. रूसी बाल्टिक बेड़े के जहाजों का एक समूह तीन दिनों के लिए हवाना के बंदरगाह में डॉक किया गया था. इस बेड़े में एक ट्रेनिंग शिप, स्मोल्नी; एक गश्ती जहाज, नेउस्ट्राशिमी; और एक टैंकर शिप, येलन्या शामिल थे. हाल के दिनों में क्यूबा में रूसी जहाजों के डॉकिंग का यह दूसरा उदाहरण था. पिछले महीने रूसी उत्तरी बेड़े के स्ट्राइक ग्रुप में परमाणु पनडुब्बी कज़ान, फ्रिगेट एडमिरल गोर्शकोव, आपूर्ति टैंकर अकादमिक पाशिन और एक बचाव टगबोट शामिल थे. इस बेड़े के जहाजों ने पहले उच्च समुद्रों में सटीक हथियारों के उपयोग का अभ्यास किया, इसके बाद इन्हें हवाना बंदरगाह में डॉक किया गया. यूक्रेन के ख़िलाफ युद्ध की वजह से लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस बढ़ते वैश्विक अलगाव का सामना कर रहा है. इसी बीच क्यूबा के साथ मास्को के संबंधों को पिछले कुछ वर्षों में ज़्यादा अहमियत मिली है. 2022 में इनका द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 450 मिलियन डॉलर हो गया. रूस और अमेरिका में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, मौजूदा अमेरिका-क्यूबा तनाव और एक उभरती हवाना-बीजिंग धुरी ने पूरे अमेरिकी क्षेत्र में भू-राजनीति में नए सुधार के लिए आधार तैयार किया है.


रूस-क्यूबा संबंधों का विकास 


रूस और क्यूबा संबंधों की नींव शीत युद्ध के दौरान पड़ी. तत्कालीन सोवियत संघ ही समाजवादी गणराज्य क्यूबा को आर्थिक सहायता देने वाला मुख्य देश था. क्यूबा को सोवियत संघ ने काफी राजनीतिक और आर्थिक मदद मुहैया कराई. अमेरिका के साथ भौगोलिक निकटता की वजह से क्यूबा भी सोवियत संघ के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश था. जिन दिनों शीत युद्ध चरम पर था, उन्हीं दिनों एक अमेरिकी यू-2 जासूसी विमान ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलों का पता लगाया. इस वज़ह से अक्टूबर 1962 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 13 दिनों का परमाणु गतिरोध हुआ. हालांकि शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद रूस और क्यूबा के बीच बहुत कम बातचीत हुई लेकिन 2014 में क्यूबा फिर रूस के करीब आया. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने क्यूबा का दौरा किया. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ये दोनों देश एक-दूसरे के हितों के बारे में खुलकर आवाज़ उठाते रहे हैं. रूस ने क्यूबा पर अमेरिकी प्रतिबंध की निंदा करने वाले प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया, वहीं क्यूबा ने भी यूक्रेन पर रूस के हमले का समर्थन किया. अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की संरचना के लिए दोनों देशों के उद्देश्य समान हैं. दोनों ही राष्ट्र बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में विश्वास करते हैं.

रूस ने क्यूबा पर अमेरिकी प्रतिबंध की निंदा करने वाले प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया, वहीं क्यूबा ने भी यूक्रेन पर रूस के हमले का समर्थन किया


क्यूबा की आर्थिक स्थिरता के लिए रूस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. क्यूबा पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने वहां की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाला है. क्यूबा में मुद्रास्फीति की दर बहुत उच्च है और उसके 88 प्रतिशत नागरिक गरीबी में रह रहे हैं. पिछले कुछ साल में क्यूबा को रूस से मिलने वाली आर्थिक सहायता बढ़ी है. रूस ने क्यूबा को तेल खरीदने के लिए ऋण दिया. फौरी सहायता के तौर पर क्यूबा को 800 मिलियन रूबल आवंटित किए गए.

2023 में रूस ने एक नई विदेश नीति की अवधारणा शुरू की. इसके तहत क्यूबा और समान विचारधारा वाले कैरेबियाई और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, पर्यटन, खेल और अन्य मानवीय संबंधों के विस्तार पर ज़ोर दिया गया. इतना ही नहीं ये विदेश नीति क्यूबा के साथ दोस्ती को मज़बूत करने और आपसी व्यापार और निवेश बढ़ाने की बात करती है. वेनेजुएला के चुनावों से कुछ दिन पहले इस क्षेत्र में रूस के जहाजों की बढ़ती डॉकिंग, कैरेबियन और लैटिन अमेरिकी देशों में उभरते अमेरिका विरोधी गठबंधन का संकेत हो सकता है. 


बंदरगाहों में रूसी जहाजों के आने के क्या निहितार्थ?

 

रूस के नौसैनिक अभ्यास एक भौगोलिक क्षेत्र से दूसरे थिएटर में युद्धपोतों को तैनात करने की रूस की क्षमता को बढ़ाने पर केंद्रित हैं. रूस ये दिखाने की कोशिश कर रहा है कि भले ही वो यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हो लेकिन यूरेशियन क्षेत्र से परे अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की उसकी क्षमता में कोई कमी नहीं आई है. नॉर्वेजियन इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ के प्रोफेसर कटारजीना जिस्क के मुताबिक रूस ने हवाना के बंदरगाह में उत्तरी बेड़े के जहाजों की जो डॉकिंग की, उसमें व्यावहारिकता का भी एक तत्व था क्योंकि उत्तरी बेड़ा रूसी नौसेना के सबसे मज़बूत बेड़ों में से एक है. इसके अलावा क्यूबा के साथ अपनी सैन्य भागीदारी बढ़ाकर रूस की कोशिश अमेरिका के धैर्य की परीक्षा लेना भी है.

 

हालांकि कुछ रूसी युद्धपोतों की क्यूबा में मौजूदगी से अमेरिका को कोई ख़तरा नहीं है. अमेरिका ने ये बात दोहराई कि रूस और क्यूबा के बीच बंदरगाह डॉकिंग कोई नई घटना नहीं है. 2013 से 2020 तक हर साल ऐसा अभ्यास होता था. हालांकि अमेरिका के तट से महज 90 मील दूर कैरेबियाई द्वीप में रूसी युद्धपोतों की उपस्थिति और रूस का बढ़ता प्रभाव अमेरिका को परेशान कर सकता है. इस बीच क्यूबा ने ज़ोर देकर कहा कि किसी भी जहाज में परमाणु हथियार नहीं थे.


कैरेबियन और लैटिन अमेरिका द्वीपों तक रूस अपनी पहुंच बढ़ाकर यूक्रेन के लिए बढ़ते पश्चिमी समर्थन का मुकाबला करना चाहता है. उन देशों के साथ रूस के संबंध इस बात पर निर्भर करेंगे कि पश्चिमी देश किस हद तक यूक्रेन का समर्थन करते हैं. उदाहरण के लिए जून में क्यूबा के लिए रूस का पहला पोर्ट कॉल तब हुआ, जब कुछ ही हफ्तों पहले नाटो देशों ने यूक्रेन को रूसी क्षेत्र के अंदर हमला करने की मंजूरी दी थी. इसके बाद यूक्रेन ने रूस के अंदर दो पूर्व-चेतावनी रडार स्टेशनों पर हमला किया. इन रडार स्टेशनों का यूक्रेन में चल रहे संघर्ष से ज़्यादा लेना-देना नहीं था. इन्हें अमेरिका के परमाणु हमले का पता लगाने के लिए स्थापित किया गया था. इसके कुछ ही हफ्ते बाद रूस की एक परमाणु पनडुब्बी क्यूबा में डॉक की गई. इसे देखते हुए कुछ रणनीतिक टिप्पणीकारों ने बढ़ा-चढ़ाकर दावे किए. जैसे कि कुछ ने कहा कि इस घटना ने उन्हें क्यूबा के मिसाइल संकट वाले दिनों की यादें ताज़ा करवा दीं.

 

उभरती भू-राजनीति

 

मध्य अमेरिकी देशों में रूस के फिर से सक्रिय होने के घटनाक्रम को अलग से देखने की बजाए एक पूरे सामरिक नज़रिए से देखे जाने की ज़रूरत है. इसकी वजह ये है कि दक्षिण और मध्य अमेरिकी देशों का चीन के भी रणनीतिक जुड़ाव बढ़ रहा है. लैटिन अमरीकी देशों के साथ चीन के नए संबंधों से इस महाद्वीप की बड़ी शक्तियों के संबंधों में बदलाव आने वाला है. मेक्सिको के साथ चीन के मुक्त व्यापार समझौते ने अमेरिकी बाज़ार में वैकल्पिक तरीके खोजने के लिए उत्तरी अटलांटिक मुक्त व्यापार समझौते (नाफ्टा) में खामियां पाई हैं. पेरू में चांके बंदरगाह के साथ-साथ इस क्षेत्र में एक मौजूदा मज़बूत नेटवर्क आने वाले लंबे समय तक व्यापार संतुलन को चीन के पक्ष में बदलने के लिए तैयार है. इसके अलावा चीन इस क्षेत्र में अपनी सामरिक क्षमताओं का तेजी से विस्तार कर रहा है. उम्मीदों के मुताबिक क्यूबा ने चीन के साथ रक्षा और खुफिया साझेदारी पर बातचीत भी शुरू कर दी है. इस बातचीत में क्यूबा के तटों में चीन की खुफिया तैनाती भी शामिल है. चीन का इरादा अमेरिका के तटों के करीब जाना, गुप्तचर सुविधाओं और दूरसंचार नेटवर्क के माध्यम से जानकारी एकत्र करना है. 

अमेरिका के तट से महज 90 मील दूर कैरेबियाई द्वीप में रूसी युद्धपोतों की उपस्थिति और रूस का बढ़ता प्रभाव अमेरिका को परेशान कर सकता है. इस बीच क्यूबा ने ज़ोर देकर कहा कि किसी भी जहाज में परमाणु हथियार नहीं थे.


चीन अब व्यापार संबंधों, बंदरगाहों और रक्षा समझौतों के ज़रिए अमेरिकी तट के करीब पहुंच रहा है. वैश्विक व्यवस्था में मौजूदा दरारों और चल रहे संघर्षों की वज़ह से रूस-चीन का गठजोड़ मज़बूत हो रहा है. इसने कैरिबियन और लैटिन अमेरिका समेत इस विशाल भौगोलिक क्षेत्र में महाशक्तियों के उलझाव और तनाव की परिस्थितियां पैदा कर दी हैं. ऐसे में इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अमेरिका ने वार्षिक खतरे के आकलन के लिए जो दस्तावेज़ बनाया है, उसमें क्यूबा का नाम भी शामिल है. इस साल फरवरी में अमेरिकी खुफिया समुदाय के वार्षिक खतरे के आकलन में क्यूबा का नाम ऐसे देश के तौर पर लिया गया, जो सीधे तौर पर चीन को सैन्य सुविधाओं के निर्माण की इजाज़त दे रहा है. ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका ने क्यूबा के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश की थी लेकिन अब क्यूबा तेज़ी से एक महान शक्ति संघर्ष के लिए प्रॉक्सी देश बनता जा रहा है.

हालांकि एक छोटे से कैरेबियाई देश (क्यूबा) द्वारा हाल ही में बंदरगाह में रूसी जहाजों की डॉकिंग की मंजूरी देने और सैन्य अभ्यासों से कोई निश्चित निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा, लेकिन क्यूबा की अमेरिका से निकटता, रूस के बढ़ते प्रभाव और इस साल जून में उत्तर कोरिया के साथ एक नई सुरक्षा संधि चिंता ज़रूर पैदा करती है. फिलहाल तो ऐसा लगता है कि रूस और क्यूबा के बीच संबंध मज़बूत होते रहेंगे. क्यूबा के शक्ति समीकरणों में क्या बदलाव होंगे, ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि यूक्रेन युद्ध किस दिशा में जाता है.


विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.

रजोली सिद्धार्थ जयप्रकाश ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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Authors

Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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Rajoli Siddharth Jayaprakash

Rajoli Siddharth Jayaprakash

Rajoli Siddharth Jayaprakash is a Research Assistant with the ORF Strategic Studies programme, focusing on Russia's domestic politics and economy, Russia's grand strategy, and India-Russia ...

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