Published on Mar 05, 2021 Updated 0 Hours ago

जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं का दक्षिण एशिया में मौजूद संघर्ष के परिदृश्यों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है और इस तरह यह आतंकवादी समूहों को खुद को मज़बूत करने के लिए नए सिरे से प्रेरित कर सकता है.

भारत-पाकिस्तान के बीच समुद्री तट और अंतरराज्यीय संघर्ष का नया दौर - केंद्र में हो सकता है जलवायु परिवर्तन का भंडार!

साल 2020 कोविड-19 की महामारी के लिए जाना जाएगा, जो एक ऐसी चिकित्सीय आपदा है, जिस ने दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया और दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में सुरक्षा परिदृश्य को और जटिल बना दिया है. आने वाले सालों में संभवतः अन्य प्राकृतिक घटनाओं भी सामने आएंगी, ख़ासतौर से दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में जहां अंतरराज्यीय संघर्षों की प्रकृति में बदलाव होगा. एक प्रमुख घटना जो दक्षिण एशिया में मौजूद तनाव को बहुत हद तक बढ़ा सकती है वह है जलवायु परिवर्तन. दक्षिण एशिया में कुछ देशों के जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है. इन देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव व्यापक होंगे और यह अंतरराज्यीय संघर्ष की गतिशीलता को भी प्रभावित करेगा.

जैसा कि जेफ़री नेसबिट और चैतन्य रवि ने तर्क दिया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने और झेलम और सिंधु जैसी नदियों के पानी के घटने की संभावना दोनें देशों के बीच तनाव के परिभाषित मुद्दों में से एक के रूप में सामने आएगी. यह ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जो दोनों देशों द्वारा साझा किए जाते हैं. इससे दक्षिण एशिया में शांति के लिए समस्याएं पैदा होंगी और समूचे क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. 2016 में, जब भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर झगड़ा हुआ था तब भारत ने शांति संधि को तोड़ने की धमकी दी थी, जो अगर हुआ होता तो भारत और पाकिस्तान के बीच तत्काल युद्ध की स्थिति पैदा हो जाती. (जैसा कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने चेतावनी भी दी थी) क्योंकि यह जल संसाधन पाकिस्तान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. तब से अब तक, पानी का यह भंडार और घटा है और आगे भी ऐसा होता रहेगा. इस प्रकार, यह संभावना है कि जलवायु परिवर्तन का यह पहलू भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष को बढ़ावा दे सकता है, या ये भी कि इस संदर्भ में पाकिस्तान आधारित आतंकवादी समूह भारत के ख़िलाफ़ कार्रवाई का निर्णय ले सकते हैं.

2016 में, जब भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर झगड़ा हुआ था तब भारत ने शांति संधि को तोड़ने की धमकी दी थी, जो अगर हुआ होता तो भारत और पाकिस्तान के बीच तत्काल युद्ध की स्थिति पैदा हो जाती. 

यह देखते हुए कि पाकिस्तान ने कई बार लश्कर ए-तैयबा, एलईटी (Lashkar e-Taiba, LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed) जैसे आतंकवादी समूहों को भारत के साथ संघर्ष में इस्तेमाल किया है, यह संभावित है कि जल से संबंधित मामले में भी ऐसा ही होगा. इसके अलावा, यह तथ्य कि लश्कर के नेता हाफिज़ सईद ने पानी के बंटवारे से संबंधित किसी भी तरह की आक्रामकता के लिए भारत में खून की नदियां बहाने की धमकी दी थी, इस विचार को बढ़ावा देता है कि आतंकवादी समूह किसी भी क्षेत्रीय संघर्ष को भुनाने का प्रयास कर सकते हैं.

एक और परिणाम यह भी हो सकता है कि ऐसे आतंकी समूह जिन्हें अपने मज़बूत चैरिटी आर्म्स यानी उनकी धर्मार्थ दानी-संस्था के लिए जाना जाता है, संघर्ष या पानी की कमी से प्रभावित सीमाओं के किनारे रहने वाले किसानों और ग्रामीणों को आर्थिक सहायता प्रदान करके अपने लिए विश्वसनीयता हासिल करने की कोशिश करेंगे. जमात उद दावा (Jamaat ud Dawah) और लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) की संगठनात्मक और दानी संस्थाओं और इकाइयों ने इससे पहले प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहायता प्रदान की है जो जलवायु परिवर्तन से प्रेरित थीं.

जलवायु प्रेरित प्राकृतिक आपदा

इस का एक तीसरा परिणाम बांग्लादेश जैसे देशों से पर्यावरण शरणार्थियों के बढ़ते उत्थान के रूप में होगा, जो निचले तटीय इलाक़ों से बांग्लादेश में और यहां तक कि भारत में स्थानांतरित हो सकते हैं. यह इन देशों के बीच तनाव पैदा कर सकता है, क्योंकि भारतीय दक्षिणपंथी समूह अक्सर बांग्लादेश जैसे देशों के प्रवासियों के ख़िलाफ़ वक़ालत करते हैं, जैसा कि बंगाल और असम के कई हिस्सों में देखा गया है. यह भी आशंका है कि इस स्थिति में शिविरों में स्थानांतरित होने वाले लोग और यह शिविर चरमपंथी विचारधारा का गढ़ बन सकते हैं, जहां कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल सकता है, (हालांकि, इस तरह का कोई प्रमाण अभी तक दर्ज नहीं किया गया है).

इस के साथ ही जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं का दक्षिण एशिया में संघर्ष परिदृश्यों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है और इस से आतंकवादी समूहों को खुद को मज़बूत करने के लिए नई प्रेरणा मिल सकती है.

भारत और पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों के लिए आदर्श रूप से सिंधु जल संधि की शर्तों को नए सिरे से परिभाषित करना चाहिए.

इस पृष्ठभूमि में यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारत और पाकिस्तान अपनी विदेशी और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों में जलवायु परिवर्तन जैसे नए और उभरते मुद्दों को शामिल करें. उदाहरण के लिए, भारत और पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों के लिए आदर्श रूप से सिंधु जल संधि की शर्तों को नए सिरे से परिभाषित करना चाहिए. यह देखते हुए कि इस पर 1960 में हस्ताक्षर किया गया था और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों की उस समय कल्पना नहीं की गई थी, इन शर्तों में किए जाने वाले संशोधन किसी भी संभावित संघर्ष को कम करने में मदद कर सकते हैं. इसी तरह, भारत और बांग्लादेश को जलवायु शरणार्थियों की अपरिहार्यता का सामना करना पड़ सकता है और इस मुद्दे को कैसे संबोधित किया जाए यह दोनों देशों को मिल कर तय करना होगा क्योंकि यह भविष्य में हमारे सामने आ सकता है.

इस के अलावा ख़ासतौर पर भारत को जलवायु परिवर्तन से संबंधित आतंकवाद के ख़तरों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति तैयार करनी चाहिए. जब कि जलवायु परिवर्तन को आम तौर पर एक गैर-पारंपरिक सुरक्षा ख़तरे के रूप में देखा जाता है, इस बात के पर्याप्त उदाहरण मौजूद हैं कि यह वास्तव में पारंपरिक सुरक्षा स्थानों में भी तनाव की स्थितियां पैदा कर सकता है.

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