2008 में जब वैश्विक वित्तीय संकट ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया था तो 20 देशों का एक समूह एकजुट होकर इसका जवाब देने के लिए सामने आया. इन देशों के वित्तीय संस्थानों के बीच मज़बूत संबंध, सर्वसम्मति बनाने का दृष्टिकोण और प्रतिनिधित्व पर आधारित सदस्यता ने जी20 को काफ़ी हद तक कामयाबी के साथ अपना मक़सद हासिल करने में मदद की. अब इस समूह को अंतर्राष्ट्रीय वित्त पर नियम बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ मंच के तौर पर मान्यता हासिल है. 2016 से जी20 ने अपने एजेंडे के आधार स्तंभ के तौर पर डिजिटल तकनीक को भी शामिल कर लिया है. कुछ हद तक ये सामान्य घटनाक्रम है. अंतर्राष्ट्रीय वित्त की तरह ये भी जटिल, असीम है और कुछ देशों की संरक्षणवादी प्रवृत्ति से इसको ख़तरा है. ऐसे में ये आश्चर्यजनक नहीं है कि जी20 को डिजिटल तकनीक के लिए रूप-रेखा बनाने में भी आगे आना चाहिए.
2023 में भारत को जी20 की अध्यक्षता का मौक़ा मिलेगा और उसे डिजिटल तकनीक पर एक ऐसी रूप-रेखा बनानी होगी जिसकी स्वीकार्यता घरेलू के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हो. ख़ास तौर पर उसे अपनी अध्यक्षता का इस्तेमाल डिजिटल तकनीक के इर्द-गिर्द बढ़ते संरक्षणवाद का समाधान करने में ज़रूर करना चाहिए. ऐसा करने के लिए उसे दो महत्वपूर्ण कमियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो अभी तक इंटरनेट के अनियंत्रित विकास का नतीजा है: इस बात का अविश्वास कि विदेशी संस्थान नागरिकों के निजी डाटा की पर्याप्त सुरक्षा नहीं करेंगे और बड़े पैमाने पर डिजिटल बंटवारा जिसने डिजिटलाइज़ेशन के फ़ायदों को कुछ देशों की तरफ़ मोड़ दिया है.
दिल्ली स्थित थिंक टैंक एस्या सेंटर की एक रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है “डिजिटल दुनिया में भरोसे और समावेशन को बढ़ावा”, में इन कमियों को दूर करने का एक एजेंडा सामने रखा गया है. शुरुआत करने के लिए, भारत को डिजिटल कॉरिडोर की स्थापना को ज़रूर बढ़ावा देना चाहिए जिससे कि हेल्थकेयर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में डाटा के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित किया जा सके. एक साल से भी कम समय में कई कोविड-19 वैक्सीन का बनना इस बात का सबूत है कि तकनीक और हेल्थकेयर के मेल-मिलाप से बड़ा बदलाव हो सकता है. अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत को स्वास्थ्य डाटा के एक देश से दूसरे देश तक जाने और टेलीमेडिसिन के लिए ज़रूरी ढांचे पर चर्चा के लिए एक कार्यकारी समूह का प्रस्ताव देना चाहिए. भारत इन चर्चाओं की शुरुआत के लिए सही देश है क्योंकि राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन और ई-संजीवनी ओपीडी जैसी टेलीमेडिसिन की पहल से उसे इन मामलों में अच्छा तजुर्बा हासिल है.
भारत ‘डिजिटल जुड़वां’ जैसी पहल का मार्गदर्शन कर सकता है जिसके ज़रिए सदस्य देशों के शहरों का जोड़ा बनाकर उन्हें डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं को लागू करने में सहयोग किया जाएगा.
आगे भारत ‘डिजिटल जुड़वां’ जैसी पहल का मार्गदर्शन कर सकता है जिसके ज़रिए सदस्य देशों के शहरों का जोड़ा बनाकर उन्हें डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं को लागू करने में सहयोग किया जाएगा. पिछले दो वर्षों के दौरान जी20 ने इंफ्राटेक को अपने एजेंडे के प्रमुख हिस्से के तौर पर शामिल किया है. ‘डिजिटल जुड़वां’ जैसी पहल सदस्य देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों को दूर करेगी और किसी भी तरह की तैयारी से जुड़ी रुकावट को ख़त्म करेगी.
लेकिन डिजिटल कॉरिडोर और बढ़े हुए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का फ़ायदा तभी मिलेगा जब उन्हें व्यापक तौर पर अपनाया जाएगा. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) इन साधनों का उपयोग करने वाला पहला क्षेत्र हो सकता है और वो इसका पूरा फ़ायदा उठा सकता है. डिजिटल तकनीक को इस्तेमाल में लाने की क्षमता में कमी की वजह से एमएसएमई वैश्विक वैल्यू चेन का हिस्सा नहीं बन पाता है. जी20 एक ऐसा मंच हो सकता है जहां एमएसएमई के लिए डिजिटल क्षमता निर्माण में निवेश को बढ़ावा देने पर चर्चा को आगे बढ़ाया जा सकता है. इसके साथ-साथ जी20 नीतिगत और नियामक उपायों को बढ़ावा भी दे सकता है जिससे सीमा पार भी बिना किसी परेशानी के एमएसएमई के काम-काज की क्षमता को बढ़ावा मिल सकेगा. ये हासिल करने के लिए अनुपालन के जिन बोझों का सामना एमएसएमई कर रहे हैं, उन्हें घटाना पड़ेगा और इस काम में व्यापार को सरल बनाने के उचित उपाय करने होंगे और एमएसएमई को सामानों और सेवा के आयात और निर्यात में तकनीकी मदद मुहैया करानी होगी.
इसके अलावा भारत ने भले ही 2019 में ओसाका घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिसमें सीमा पार “भरोसे के साथ डाटा के मुक्त प्रवाह” के सिद्धांत की रूप-रेखा तय की गई, लेकिन खुले सरकारी डाटा को लेकर भारत का दृष्टिकोण आगे बढ़कर है. जी20 की अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत खुले सरकारी डाटा सिद्धांत की सीमा का विस्तार भ्रष्टाचार निरोधी क्षेत्र से आगे करने का प्रस्ताव कर सकता है. इस बात पर ज़ोर दिया जा सकता है कि एक मानक, सर्वमान्य, एकीकृत क्लाउड रूप-रेखा का निर्माण हो जो सरकार के अलग-अलग स्तर पर मौजूद डाटा को बिना किसी परेशानी के साझा कर सके. ये एकीकृत रूप-रेखा प्रशासकों को साक्ष्य और सत्यापन योग्य डाटा के आधार पर नीतिगत फ़ैसले लेने में मदद कर सकती है. भारत सरकार की एकीकृत क्लाउड रूप-रेखा जीआई क्लाउड या मेघराज एक उदाहरण है कि किस तरह ऐसी पहल का इस्तेमाल लोगों तक सेवा पहुंचाने की गति को बढ़ावा देने में किया जा सकता है.
भारत को इंडो-पैसिफिक देशों की कम्प्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम (सीईआरटी) के लिए साझा ट्रेनिंग की पहल का प्रस्ताव करना चाहिए. ये पहल इस क्षेत्र के सीईआरटी अधिकारियों को सहयोगपूर्ण शिक्षा, कौशल विकास और सर्वश्रेष्ठ तौर-तरीक़े साझा करने में एक साथ लाएगी.
अगर भारत ऊपर बताए गए मुद्दों के मामले में कोई महत्वपूर्ण प्रगति हासिल करना चाहता है तो उसे क्षेत्रीय सहयोग के लिए सक्रिय होकर निश्चित रूप से काम करना चाहिए. 2020 में जी20 ने पहले साइबर सुरक्षा संवाद की मेज़बानी की जिसमें बाल्टीमोर प्रांत पर रैंसमवेयर अटैक जैसे कमज़ोर करने वाले साइबर हमलों की नई और उभरती चुनौती पर रोशनी डाली गई. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र ख़ास तौर पर साइबर हमलों के ख़तरे का सामना कर रहा है. अध्ययनों से पता चला है कि इस इलाक़े में रहने वाले लोगों में डिजिटल कौशल कम है और उनके कमज़ोर साइबर सुरक्षा सिस्टम की वजह से इन देशों को हर साल 300 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का नुक़सान उठाना पड़ता है. भारत को इंडो-पैसिफिक देशों की कम्प्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम (सीईआरटी) के लिए साझा ट्रेनिंग की पहल का प्रस्ताव करना चाहिए. ये पहल इस क्षेत्र के सीईआरटी अधिकारियों को सहयोगपूर्ण शिक्षा, कौशल विकास और सर्वश्रेष्ठ तौर-तरीक़े साझा करने में एक साथ लाएगी. इस तरह जी20 द्वारा फोरम फॉर सिक्युरिटी इन्सिडेंट रेस्पॉन्स टीम के लिए विकसित सूचना आदान-प्रदान नीति के तहत समय पर और सुरक्षित सूचना साझा की जा सकेगी.
2023 में जी20 की अध्यक्षता भारत के लिए समावेशी और विश्वास आधारित नई डिजिटल शासन व्यवस्था की रूप-रेखा तैयार करने का सबसे अच्छा मौक़ा है. भारत के कार्यकाल की व्यापक रूप-रेखा तैयार है लेकिन उसकी सफलता पूरी तरह भारत की इस योग्यता पर निर्भर करती है कि वो एक समावेशी, ज़िम्मेदार और परिपक्व डिजिटल शक्ति की अपनी हैसियत का किस तरह प्रदर्शन करता है.
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