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पिछले दशक के दौरान भारत-रूस संबंधों के मूल प्रेरकों में बदलाव आना शुरू हो गया है. पारंपरिक रूप से दबदबा रखने वाली सैन्य-तकनीकी साझेदारी में गिरावट आई है और अब भारत कम मात्रा में रूसी हथियार, तकनीक एवं सैन्य प्लैटफॉर्म ख़रीद रहा है. आर्थिक स्तंभ स्थिर हो गया क्योंकि सैन्य समझौतों की गति धीमी हुई है. द्विपक्षीय व्यापार 10-11 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास मंडरा रहा है. हालांकि 24 फरवरी 2022 से आर्थिक संबंधों में नाटकीय बढ़ोतरी हुई है और भारत रूस के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में उभरा है. 2022 में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 49 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया और 2023 के अंत तक 65 अरब अमेरिकी डॉलर. व्यापार में इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण भारतीय रिफाइनरी को तेल ख़रीदने पर दी जाने वाली बढ़ती छूट है क्योंकि भारत ने रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध की व्यवस्था में शामिल होने से इनकार कर दिया. ट्रेड बास्केट में तेल के बढ़ते व्यापार के साथ गैर-तेल व्यापार में भी मामूली बढ़ोतरी हुई है. द्विपक्षीय व्यापार में इन नए रुझानों के साथ भारत-रूस आर्थिक सहयोग का बढ़ा-चढ़ाकर अनुमान लगाया जाता है. इसकी वजह से G7 (ग्रुप ऑफ सेवन) देशों, जिनमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल हैं, की तरफ से निंदा की गई है.
द्विपक्षीय व्यापार में इन नए रुझानों के साथ भारत-रूस आर्थिक सहयोग का बढ़ा-चढ़ाकर अनुमान लगाया जाता है. इसकी वजह से G7 (ग्रुप ऑफ सेवन) देशों, जिनमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल हैं, की तरफ से निंदा की गई है.
ट्रेड बास्केट में रुझान
वैसे तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि 2023 में ट्रेड बास्केट में हाइड्रोकार्बन के आयात का दबदबा है. 65 अरब अमेरिकी डॉलर के कुल व्यापार में 54 अरब अमेरिकी डॉलर रूस से आयात किया गया तेल था. इसी तरह के रुझान पिछले साल भी देखे गए जब 49 अरब अमेरिकी डॉलर के कुल व्यापार में 38 अरब अमेरिकी डॉलर का तेल आयात शामिल था. रूस से तेल और खनिज के बढ़ते आयात के साथ कुल व्यापार में बढ़ोतरी हुई है. उदाहरण के लिए, 2021 में द्विपक्षीय व्यापार 12 अरब अमेरिकी डॉलर था जिसमें तेल और खनिज ईंधन का हिस्सा केवल 5.2 अरब अमेरिकी डॉलर था. इस तरह गैर-तेल व्यापार 6.8 अरब अमेरिकी डॉलर का था. 2022 और 2023 में गैर-तेल व्यापार बढ़कर 11 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. ये एक महत्वपूर्ण वृद्धि थी जो बढ़ते द्विपक्षीय व्यापार का सूचक था.
2022 से रूस के उर्वरक निर्यात में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है. भारत के द्वारा औसतन लगभग 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रूसी उर्वरक आयात किया जाता था लेकिन 2022-23 में उर्वरक का आयात बढ़कर 3 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. अगले साल इसमें कमी आई जिसका मुख्य कारण ये था कि रूस ने डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) की बिक्री पर पहले दी जाने वाली छूट को ख़त्म कर दिया. इसके अलावा कीमती पत्थरों, धातुओं और गहनों के आयात में 2021 से बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह रूस के द्वारा खाद्य तेल और पशु एवं वनस्पति वसा के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है.
रूस से प्रमुख भारतीय आयात
उत्पाद
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वित्त वर्ष 2021-2022 (बिलियन अमेरिकी डॉलर में)
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वित्त वर्ष 2022-2023
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वित्त वर्ष 2023-2024
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खनिज ईंधन, तेल एवं रिफाइंड उत्पाद
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5.2
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38
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54
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उर्वरक
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0.77
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3
|
2
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कीमती पत्थर, धातु और गहने
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1.25
|
1.35
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1.18
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पशु या वनस्पति वसा और तेल
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0.5
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1
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1.3
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प्रोजेक्ट के सामान
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0.5
|
0.56
|
0.78
|
स्रोत: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय: ट्रेडस्टैट
दिलचस्प बात ये है कि जो सामान पारंपरिक रूप से रूस को भारत के निर्यात में दबदबा रखते थे वो कम हो गए हैं. दवाइयों के निर्यात में लगातार गिरावट आ रही है. 2024 तक भारत से दवाइयों का निर्यात गिरकर 386 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था (रेखाचित्र 1.2 देखें). इसके अलावा चाय, कॉफी और मसाला जैसे सामानों के साथ-साथ कपड़ों में व्यापार ऊपर-नीचे हुआ है. हालांकि युद्ध के बाद से कुछ सामानों के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है जैसे कि लोहा एवं इस्पात, इलेक्ट्रिकल मशीनरी एवं कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, कार्बनिक एवं अकार्बनिक रसायन, बहुमूल्य धातुओं के यौगिक, दुर्लभ पृथ्वी धातु, साबुन एवं सहायक उत्पाद, सिरेमिक उत्पाद, ऑटोमोबाइल एवं स्पेयर पार्ट्स और मेडिकल एवं सर्जिकल उपकरण. लेकिन युद्ध के बाद से 2023-2024 में जिस भारतीय निर्यात में तेज़ी आई है वो है मशीनरी एवं मैकेनिकल उपकरण. ये 320 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 650 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. इसके अलावा 2024 में अप्रैल से अगस्त के बीच रूस की तरफ से मशीनरी का आयात बढ़कर 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.
अगले साल इसमें कमी आई जिसका मुख्य कारण ये था कि रूस ने डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) की बिक्री पर पहले दी जाने वाली छूट को ख़त्म कर दिया. इसके अलावा कीमती पत्थरों, धातुओं और गहनों के आयात में 2021 से बढ़ोतरी हुई है.
इन सामानों के निर्यात की मात्रा में बढ़ोतरी एक महत्वपूर्ण कारण है जिससे भारत का कुल निर्यात 3.1 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2024 में 4.2 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. 2024-2025 के शुरुआती अनुमानों के आधार पर ये लगता है कि कंज्यूमर गुड्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और स्पेयर पार्ट्स में व्यापार बढ़ेगा. व्यापार में सुधार और आर्थिक सहयोग के लिए बढ़ते रास्ते इसलिए उभरे हैं क्योंकि पश्चिमी देशों की कंपनियों ने रूस की अर्थव्यवस्था में एक खालीपन छोड़ दिया है. इससे रूस को फरवरी 2022 से अपने खातों में जमा रुपये खर्च करने की अनुमति मिली.
रेखाचित्र 1.2: रूस में प्रमुख आयात
उत्पाद
|
वित्त वर्ष 2021-2022 (मिलियन अमेरिकी डॉलर में)
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वित्त वर्ष 2022-2023
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वित्त वर्ष 2023-2024
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फार्मास्यूटिकल्स
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480
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430
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386
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इलेक्ट्रिकल मशीनरी, पुर्जे, कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स
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518
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121
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347
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मशीनरी एवं मैकेनिकल उपकरण
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302
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321
|
650
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लोहा एवं इस्पात
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240
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160
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287
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कार्बनिक, अकार्बनिक रसायन और कीमती धातुओं के यौगिक एवं दुर्लभ पृथ्वी खनिज+
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257
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452
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547
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स्रोत: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय: ट्रेडस्टैट
प्रतिबंध और भारत की प्रतिक्रिया
2014 में रूस पर प्रतिबंध लगने के बाद से भारत-रूस व्यापार में काफी हद तक बदलाव नहीं आया है. इसमें शायद ही सप्लाई के झटकों की वजह से रुकावट आई है. रूस के साथ भारत का व्यापार विविध होते हुए भी दूसरे G20 देशों (रूस के अलावा) की तुलना में बहुत बड़े पैमाने पर नहीं है. साथ ही भारत के कारोबारियों के लिए तेल और दवाई को छोड़कर रूस में कोई बहुत बड़ा व्यावसायिक हित भी नहीं है. यही वजह है कि व्यापार के आंकड़े उपभोक्ता सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स को छोड़कर व्यापार के नए रास्ते नहीं दिखाते हैं. नवंबर 2022 में रूस ने डिलीवरी के लिए सामानों की सूची भारत को भेजी जिनमें कार, ट्रेन और एयरक्राफ्ट के लिए पुर्जे शामिल हैं. सूची में 500 से ज़्यादा सामान शामिल थे. ये साफ है कि भारत ने रूस को कोई प्रमुख सामान जैसे कि एयरक्राफ्ट इंजन या अधिक दोहरे इस्तेमाल की क्षमताओं के साथ उपकरण (स्पेयर पार्ट्स से परे) नहीं भेजा है क्योंकि द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़े दिखाते हैं कि रूस की तरफ से जिन पुर्जों के लिए व्यापार का अनुरोध किया गया था, वो न्यूनतम रहा है. इसके अलावा, रूस से भारत का रक्षा आयात द्विपक्षीय सैन्य-तकनीकी साझेदारी और संयुक्त उपक्रम स्थापित करने का सहायक उत्पाद है.
साफ है कि भारत ने रूस को कोई प्रमुख सामान जैसे कि एयरक्राफ्ट इंजन या अधिक दोहरे इस्तेमाल की क्षमताओं के साथ उपकरण (स्पेयर पार्ट्स से परे) नहीं भेजा है क्योंकि द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़े दिखाते हैं कि रूस की तरफ से जिन पुर्जों के लिए व्यापार का अनुरोध किया गया था, वो न्यूनतम रहा है.
इसके अलावा, व्यापार के आंकड़े रूस को किसी प्रतिबंधित महत्वपूर्ण तकनीक की बिक्री नहीं दिखाते हैं जिसका दावा कुछ सूत्रों के द्वारा किया गया था. सूत्रों ने जिक़्र किया था कि 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ड्रोन और 6,00,000 अमेरिकी डॉलर के सामान किर्गिस्तान के रास्ते फिर से निर्यात किए गए थे. पिछले दिनों अमेरिका के वित्त विभाग ने रूस को दोहरे इस्तेमाल के सामानों की सप्लाई में कथित भागीदारी के आरोप में 19 भारतीय कंपनियों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाए थे. इन कंपनियों में मुंबई की कुछ दवा कंपनियां भी थीं जो रूस को डेल टेक्नोलॉजी के सबसे आधुनिक सर्वर डेल पावरएज XE9680 का फिर से निर्यात कर रही थीं. इस सर्वर की कीमत 434 मिलियन अमेरिकी डॉलर है. इन दावों के बावजूद कोई भी सबूत साफ तौर पर इन आरोपों की पुष्टि नहीं करता है. उदाहरण के लिए, किर्गिस्तान के रास्ते भारत के द्वारा ड्रोन के फिर से निर्यात के पहले दावे की बात करें तो आंकड़ों से इसका पता नहीं चलता है. 2022 से किर्गिस्तान के साथ इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का व्यापार 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के पार नहीं गया है. इसी तरह हथियार और गोला-बारूद एवं पुर्जों के मामले में व्यापार 4,80,000 अमेरिकी डॉलर के पार नहीं गया है. इसके अलावा, व्यापार को प्राथमिकता देने वाली वैश्वीकृत दुनिया में रूस के नज़दीकी देशों की व्यापार कंपनियां इस तरह का व्यापार करती हैं. मिसाल के तौर पर, अमेरिका और यूरोप की कई कंपनियों ने 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर की कीमत के माइक्रोचिप्स का निर्यात किया जिन्हें बाद में तुर्किए और कज़ाकिस्तान के रास्ते भेजा गया. इसलिए आरोपों के बावजूद व्यापार के आंकड़े इन्हें सही नहीं ठहराते हैं. भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने आलोचना के जवाब में कहा कि व्यापार में शामिल कंपनियों ने किसी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं किया क्योंकि भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) की मंज़ूरी के बिना प्रतिबंधों को मान्यता नहीं देता है.
2024 की शुरुआत से रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों की पाबंदियों में तेज़ी आई है. इसकी वजह से भारत को एक रुख अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उदाहरण के लिए, इस साल की शुरुआत में टोटल एनर्जी ने रूस की आर्कटिक LNG-2 परियोजना के ख़िलाफ़ अपरिहार्य घटना (फोर्स मेज्यूर) का सहारा लिया. इसकी वजह से उत्पादन को रोकना पड़ा. अतीत में भारतीय कंपनियों ने रूसी आर्कटिक तक भारत की पहुंच के हिस्से के रूप में नोवाटेक (रूस की एक बड़ी गैस कंपनी) के आर्कटिक LNG-2 प्रोजेक्ट में हिस्सा ख़रीदने में दिलचस्पी दिखाई थी. लेकिन बाद में यूरोपियन यूनियन (EU) की तरफ से रूस की लिक्विफाइड नैचुरल गैस (LNG) को निशाना बनाते हुए प्रतिबंध लगाने के दौर के कारण भारत को ये घोषणा करनी पड़ी कि वो आर्कटिक LNG 2 परियोजना से LNG नहीं ख़रीदेगा. दिलचस्प बात ये है कि रूसी ऊर्जा के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों के बावजूद EU रूस से LNG का आयात अभी भी कर रहा है. इस साल आयात में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. प्रतिबंध लगाने और उसका पालन करने को लेकर EU का चयनात्मक दृष्टिकोण है. एक तरफ तो वो रूस का ख़ज़ाना भरने का आरोप लगाकर भारत की आलोचना करता है जिसके आधार पर वो कहता है कि यूक्रेन पर रूस के हमले को बढ़ावा मिलता है. दूसरी तरफ EU ने रूस से ऊर्जा की ख़रीद जारी रखी है.
जिस समय दुनिया की मुश्किल परिस्थिति में भारत अपने सामरिक हितों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है, उस समय इन चुनौतियों का सामना करना भारत के लिए ज़रूरी होगा.
भुगतान का मुद्दा
अंत में, भले ही रूसी व्यवसायों के लिए विशेष रुपया-वोस्ट्रो खाते की सुविधा का विस्तार करके भुगतान के मुद्दों का समाधान करने में भारत सक्षम रहा लेकिन कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं. नियामक संस्थाओं जैसे कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने रूस के सबसे बड़े बैंक सर्बैंक AG के विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को केवल हाइड्रोकार्बन तक सीमित कर दिया है. इसके अलावा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के द्वारा रूस को “अधिक जोखिम” वाले देश की श्रेणी में डालने के कारण वाणिज्य मंत्रालय के निर्यात ऋण गारंटी निगम (EGGC) ने भी रूस को उसी श्रेणी में डाल रखा है. ये स्थिति तब है जब विदेश मंत्रालय और मॉस्को में भारतीय दूतावास ने इसकी फिर से समीक्षा करने का अनुरोध किया है.
निष्कर्ष
रूस के साथ भारत के व्यापार को आपूर्ति और मांग के फैक्टर से प्रेरित दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक तंत्र के हस्तक्षेप के माध्यम से. रूस के साथ द्विपक्षीय व्यापार के जारी रहने और उसमें तेज़ी आने की संभावना के साथ प्रतिबंधों का एक और दौर रूस के साथ भारत की आर्थिक भागीदारी को प्रभावित कर सकता है. भारत के सामने कई चुनौतियां हैं. उसे पश्चिमी देशों के साथ अपने सहयोग में बढ़ोतरी को जारी रखते हुए रूस के साथ अपनी भागीदारी बनाए रखनी चाहिए. ये सब करते हुए भारत को सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पकालिक और मध्यम अवधि की उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं का समाधान हो. जिस समय दुनिया की मुश्किल परिस्थिति में भारत अपने सामरिक हितों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है, उस समय इन चुनौतियों का सामना करना भारत के लिए ज़रूरी होगा.
राजोली सिद्धार्थ जयप्रकाश ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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