Author : Sohini Bose

Published on Dec 21, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का हालिया बांग्लादेश दौरा इस बात की मिसाल है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान कुछ मामूली बाधाओं के बावजूद, दोनों देशों के संबंध मज़बूत बने हुए हैं.

राष्ट्रपति कोविंद के बांग्लादेश दौरे के मायने

2021 के आख़िर में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, ने बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हामिद के निमंत्रण पर उनके देश का दौरा किया. रामनाथ कोविंद, ढाका में 50वें विजय दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे. इस मौक़े पर राष्ट्रपति कोविंद की मौजूदगी इस बात की स्वीकारोक्ति है कि भारत ने 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान से आज़ाद होने के संघर्ष में बांग्लादेश (जो पहले पूर्वी पाकिस्तान था) की बहुत मदद की थी. इस साल, बांग्लादेश और भारत के बीच कूटनीतिक रिश्ते स्थापित होने के पचास वर्ष भी पूरे हुए हैं. एक स्वतंत्र और अलग देश के रूप में बांग्लादेश को सबसे पहले भारत ने ही मान्यता दी थी. उसके बाद से पैदा हुए सामरिक हालात के चलते दोनों देश, एक दूसरे की विदेश नीति की प्राथमिकताओं के रूप में उभरे हैं. बांग्लादेश के उदय के वक़्त भारत की मदद के चलते दोनों देशों के बीच जो सौहार्द बना उसने द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत बनाया है. इसलिए, राष्ट्रपति कोविंद ने इस ऐतिहासिक अवसर पर बांग्लादेश का दौरा करके, भारत के लिए उसकी अहमियत को दोहराया ही है. ख़ास तौर से तब और जब हम ये देखते हैं कि महामारी की शुरुआत के बाद, अपने पहले विदेशी दौरे के रूप में राष्ट्रपति ने बांग्लादेश का चुनाव किया. सीमा के उस पार भी भारत के राष्ट्रपति के इस क़दम का उचित जवाब दिया गया. इस ऐतिहासिक अवसर पर बांग्लादेश ने विदेशी मेहमानों के रूप में सिर्फ़ भारत के राष्ट्रपति, उनके परिवार और एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल को ही आमंत्रित किया था.

नेशनल परेड ग्राउंड पर समारोह के मुख्य अतिथि के अलावा, 15 से 17 दिसंबर के अपने दौरे के दौरान, राष्ट्रपति कोविंद ने धानमंडी रोड पर स्थित बंगबंधु स्मारक संग्रहालय पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

इस दौरे की अहमियत

इस अवसर की अहमियत को देखते हुए, राष्ट्रपति के दौरे की योजना इस तरह से बनाई गई थी कि उन्होंने सबसे पहले 1971 के युद्ध के स्मारक पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए. इसीलिए, नेशनल परेड ग्राउंड पर समारोह के मुख्य अतिथि के अलावा, 15 से 17 दिसंबर के अपने दौरे के दौरान, राष्ट्रपति कोविंद ने धानमंडी रोड पर स्थित बंगबंधु स्मारक संग्रहालय पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए. इसके अलावा वो राष्ट्रीय संसद के साउथ प्लाज़ा में एक अन्य समारोह में भी शामिल हुए. बांग्लादेश को भारत द्वारा दिए गए समर्थन को याद करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने बांग्लादेश के राष्ट्रपति को एक T-55 टैंक और एक मिग-29 लड़ाकू जहाज़ भी दिया, जिनका इस्तेमाल बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान किया गया था. इन दोनों को राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा जाएगा. इसके अलावा उस युद्ध में शामिल भारत के पूर्व सैनिकों ने भी ढाका का दौरा किया. निश्चित रूप से पुराने रिश्तों को याद करने वाले इस कूटनीतिक दौरे की व्याख्या हम इस तरह से कर सकते हैं कि इससे भविष्य में सहयोग को और मज़बूत बनाने का रास्ता खुलेगा.

क़रीबी सामरिक सहयोगी

भारत लगातार ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति पर अमल कर रहा है. बांग्लादेश भारत का सबसे क़रीबी पूर्वी पड़ोसी देश है. भारत की पूर्वी समुद्री सीमा के लिहाज़ से भी बांग्लादेश काफ़ी महत्वपूर्ण है. इस वक़्त दक्षिण एशिया में बांग्लादेश ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. आज जब भारत, हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी आकांक्षाएं पूरी करने और इस क्षेत्र में चीन की घुसपैठ का मुक़ाबला करने के लिए दक्षिण एशिया के साथ सहयोग को और बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है, तो बांग्लादेश के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना, भारत के लिए बहुत ज़रूरी है. वहीं, बांग्लादेश के लिए भी भारत से अच्छे रिश्ते काफ़ी अहम हैं. क्योंकि, भारत के साथ अपने रिश्तों का लाभ उठाकर वो अपना सामाजिक आर्थिक विकास कर सकता है. इसके अलावा, एक छोटा देश और चीन और भारत जैसे दो बड़े एशियाई देशों के बीच होने के चलते, बांग्लादेश के हित में भी यही है कि वो दोनों देशों के साथ आपसी सहयोग का रिश्ता बनाए रखे, ताकि वो अपनी निष्पक्षता और स्वायत्तता को क़ायम रख सके. ऐसे में ये उचित ही है कि भारत और बांग्लादेश दोनों ही ने पिछली आधी सदी के दौरान आपसी संबंधों को मज़बूत बनाने पर काफ़ी ज़ोर दिया है. आज दक्षिण एशियाई क्षेत्र में दोनों देशों को एक दूसरे का बेहद क़रीबी सामरिक सहयोगी माना जाता है. मार्च 2021 में जारी साझा बयान में दोनों देशों ने अपनी साझेदारी को पूरे क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों के मॉडल के रूप में पेश किया था.

भारत लगातार ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति पर अमल कर रहा है. बांग्लादेश भारत का सबसे क़रीबी पूर्वी पड़ोसी देश है. भारत की पूर्वी समुद्री सीमा के लिहाज़ से भी बांग्लादेश काफ़ी महत्वपूर्ण है. इस वक़्त दक्षिण एशिया में बांग्लादेश ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.

भारत और बांग्लादेश की ये दोस्ती पिछले एक साल के दौरान और भी उभरकर सामने आई है. जिस वक़्त, दुनिया कोविड संकट से जूझ रही थी, तब भारत के वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत, बांग्लादेश को सबसे पहले कोरोना के टीके की पहली खेप मिली थी. उस वक़्त बांग्लादेश को 2.26 करोड़ टीके (मदद और कोवैक्स के कारोबारी समझौते के तहत) भेजे गए थे. इसी तरह, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत की ज़रूरत के वक़्त बांग्लादेश ने भी मदद की थी. तब बांग्लादेश ने भारत को रेमडेसिवीर की 10 हज़ार ख़ुराक, 30 हज़ार पीपीई किट और कोविड से जुड़े अन्य सामान और उपकरण भिजवाए थे. इसलिए, कोरोना की महामारी ने भारत और बांग्लादेश के रिश्तों को और मज़बूत किया है. आपसी निर्भरता को बढ़ाया है. राष्ट्रपति के दौरे से भी यही बात उभरकर सामने आई है.

हालांकि, राष्ट्रपति कोविंद का बांग्लादेश दौरा सिर्फ़ मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती को दोहराने तक सीमित नहीं था. इस दौरे का मक़सद, हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच उठे कुछ ऐसे विवादित मसलों को दूर करना भी था, जिन्होंने संबंधों में कड़वाहट आ गई है. जब अक्टूबर महीने में बंगाली समुदाय अपना सबसे बड़ा त्यौहार दुर्गा पूजा मना रहे थे, तब बांग्लादेश के स्थानीय मीडिया में दुर्गा पूजा पंडालों और मूर्तियों पर हमले की कई ख़बरें आई थीं. सोशल मीडिया पर ऐसी ख़बर आई कि कोमिला क़स्बे में नानौर दिघी झील के पास एक दुर्गा पूजा पंडाल में पवित्र क़ुरान का अपमान किया गया. इसके बाद, चांदपुर के हाजीगंज, चटग्राम के बंशखाली और कॉक्स बाज़ार के पेकुआ में हिंसा भड़क उठी, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई. पुलिस ने हालात पर क़ाबू पाने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया. दंगाइयों को खदेड़ने के लिए, पुलिस को आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां चलाने पड़ीं. इन घटनाओं को मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले के तौर पर देखा गया. सीमा के इस पार, पश्चिम बंगाल के लोगों के बीच यही जज़्बात दिखे. इससे दोनों देशों के बीच कड़वाहट आ गई.

तनाव के इस माहौल में राष्ट्रपति के बांग्लादेश दौरे ने निश्चित रूप से धार्मिक सौहार्द का संदेश दिया है और हिंदू समुदाय के प्रति बांग्लादेश की सरकार के प्रयासों को स्थापित किया है.

हालांकि, दोनों देशों की सरकारों ने मज़बूत आपसी रिश्तों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता जताई. भारत के विदेश मंत्रालय ने तुरंत बयान जारी किया कि, ‘बांग्लादेश की सरकार ने हालात पर क़ाबू पाने के लिए तुरंत कड़े क़दम उठाए हैं. क़ानून व्यवस्था की मशीनरी को तैनात किया गया है.’ बांग्लादेश में भारतीय उच्चायोग भी इस मसले पर लगातार स्थानीय अधिकारियों के संपर्क में रहा था. राष्ट्रपति कोविंद के दौरे के माध्यम से प्रतीकात्मक रूप से इस तनाव को दूर करने की कोशिश की गई. राष्ट्रपति ने ढाका के रमना में हिंदू देवी काली के उस मंदिर का उद्घाटन किया, जिसकी हाल ही में मरम्मत की गई है. ये मंदिर मुग़लों के शासनकाल में बनाया गया था. 1971 के युद्ध के दौरान, पाकिस्तान की सेना ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था. उस घटना के दौरान एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे. तनाव के इस माहौल में राष्ट्रपति के बांग्लादेश दौरे ने निश्चित रूप से धार्मिक सौहार्द का संदेश दिया है और हिंदू समुदाय के प्रति बांग्लादेश की सरकार के प्रयासों को स्थापित किया है.

हो सकता है कि राष्ट्रपति का बांग्लादेश दौरा प्रतीकात्मक रहा हो. लेकिन, इसकी अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता है. जब भारत और बांग्लादेश ने अपने अपने यहां और पूरी दुनिया में स्थित अपने दूतावासों में आपसी संबंधों के पचास साल पूरे होने का जश्न मनाया. ऐसे मौक़े पर भारत के राष्ट्रपति का बांग्लादेश दौरा, इस ऐतिहासिक साल का सटीक समापन करने वाला था.

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