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प्रतिबंधित किए गए चीनी ऐप्स की कुल संख्या अब 267 तक पहुंच गई है, जिनमें से 43 ऐप्स पर 24 नवंबर को प्रतिबंध लगाया गया.
भारत के साइबर क्षेत्र में चीन की बढ़ती घुसपैठ को रोकने के लिए भारत द्वारा प्रतिबंधित किए गए चीनी ऐप्स की कुल संख्या अब 267 तक पहुंच गई है, जिनमें से 43 ऐप्स पर 24 नवंबर को प्रतिबंध लगाया गया. सभी चीनी ऐप्स पर लगाए जा रहे प्रतिबंध का कारण एक समान है: ये ऐप “भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक हैं.” ये ऐप अलीबाबा वर्कबेंच और कैशियर वॉलेट से लेकर सोल- फॉलो द सोल टू फाइंड यू और रेला- लेस्बियन सोशल नेटवर्क तक कई तरह की सेवाएं देते हैं. चीनी ऐप्स पर लगाए गए प्रतिबंध का यह चौथा चरण है:
पहला 29 जून 2020 को था जब भारत ने 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया
दूसरा 28 जुलाई 2020 को था जब भारत ने 47 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया
तीसरा 2 सितंबर 2020 को था जब भारत ने 118 ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया
चौथा 24 नवंबर 2020 को था जब 43 चीनी ऐप्स भारत में प्रतिबंधित कर दिए गए
शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षाएं तकनीकी घुसपैठ, नागरिकों की गोपनीयता को भेदने और डेटा सुरक्षा के लिए ख़तरे पैदा करने से जुड़ी हैं. यह सीमा पर किए जाने वाले शत्रुतापूर्ण प्रयासों के समान ही नुकसानदायक हैं.
निराशावादी लोगों का यह तर्क हो सकता है कि डिजिटल ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) द्वारा की जा रही वास्तविक घुसपैठ पर कोई भी असर नहीं पड़ता है. वे इस तथ्य को नज़रअंदाज करते हैं कि शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षाएं तकनीकी घुसपैठ, नागरिकों की गोपनीयता को भेदने और डेटा सुरक्षा के लिए ख़तरे पैदा करने से जुड़ी हैं. यह सीमा पर किए जाने वाले शत्रुतापूर्ण प्रयासों के समान ही नुकसानदायक हैं. छोटे स्तर पर ही सही लेकिन यह बीजिंग की क्षेत्रीय स्तर पर आक्रामकता और ग़लत मंशा का डिजिटल कॉपी-पेस्ट यानी विस्तार है. इस मायने में भारत ने जिस चीज़ की शुरुआत की और अमेरिका ने उसे संगठित रूप में लागू किया उसका अनुसरण अब पूरी दुनिया में होना चाहिए. चीन के राष्ट्रीय ख़ुफ़िया क़ानून (2017) के अनुच्छेद 7, 9, 12 और 14 को केवल पढ़ कर ही इस बात का अंदाज़ा हो जाता है कि राष्ट्रीय ख़ुफ़िया क़ानून किस तरह कंपनियों से लेकर नागरिकों तक, हर किसी को जासूसों में बदल रहा है.
भारत और चीन के बीच लद्दाख सीमा पर, दो बातें स्पष्ट हैं. पहली की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को शी जिनपिंग ने जिस तरह अपने कब्ज़े में कर लिया है और उसे आक्रामकता के विस्तार का एक ज़रिया बना लिया है, वह शांति के माहौल में वापस लौटने में असमर्थ है और इस की अनिच्छुक भी. असमर्थ क्योंकि भारत उसे अपना चेहरा बचाने का कोई मौका नहीं दे रहा और अनिच्छुक क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की महत्वाकांक्षाएं उसी आक्रामकता के सहारे चलती हैं, जिन्हें शी जिनपिंग ने पूरी तरह से जीत का सौदा साबित कर दिया है. दूसरी बात यह है कि संभवतः हाल के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को भारत में अपनी टक्कर का कोई मिला है. यह उन राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक दबावों के अलावा है, जो भारत ने चीन पर बनाए हैं, और वो नई साझेदारियां जो वो अब खुले तौर पर क्वाड के माध्यम से कर रहा है, या नए गठबंधन जो वह मालाबार अभ्यास के माध्यम से करने की कोशिश में जुटा है.
हाल के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को भारत में अपनी टक्कर का कोई मिला है. यह उन राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक दबावों के अलावा है, जो भारत ने चीन पर बनाए हैं
बीजिंग की आक्रामकता के प्रति भारत का मज़बूत जवाब, उसकी प्रतिरक्षा की कोशिशें, बीजिंग के झूठे प्रचार पर उसका नियंत्रण और चीनी ख़तरों के जवाब में भारत के सम्मानजनक रुख ने दुनिया को बता दिया है कि चीन का उदय न तो शांतिपूर्ण है और न ही भविष्य में होगा. जो लोग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी नामक अधिनायकवादी मशीन की पूजा करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि बीजिंग जो चाहता था, उसके ठीक विपरीत लद्दाख ने किया है यानी, एक ऐसे भारत को पेश करना जो अमेरिका के समान ही रणनीतिक स्वायत्तता चाहता है.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की आक्रामकता केवल भारत तक ही सीमित नहीं है. यही वजह है कि आक्रामकता के जवाब में दुनिया भर में कई देशों ने चीनी ऐप्स को बैन कर दिया है. इस में यूरोपीय संघ और यूरोप के 13 देश और ब्रिटेन, इटली, स्वीडन और चेक गणराज्य शामिल हैं जो अपने 5 जी रोलआउट में हुआवेई (Huawei) और जेडटीई (ZTE) के ज़रिए बीजिंग की तकनीकी घुसपैठ को रोक रहे हैं. ये प्रतिबंध चीनी ऐप्स के साथ-साथ दुनिया भर में चीनी उपकरणों पर भी जारी रहेगा.
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Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...
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