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Published on Jan 07, 2023 Updated 1 Days ago

साल 2022 को सरकार की अथक ऊर्जा, गतिशीलता, इनोवेशन और तेजी से आत्म-सुधार द्वारा आगे बढ़ाया गया.

भारत: वर्ष 2022 के बीतने के बाद नये साल 2023 में देश के प्रारुप का संक्षिप्त वर्णन!

2020 भयभीत करने वाला वर्ष था क्योंकि कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया और अमीर और गरीब दोनों लोग इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा रहे थे. 2021 उम्मीद और आशाओं से भरा साल था. बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रम, आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि और 800 मिलियन नागरिकों के लिए मुफ्त अनाज जैसे विशेष सामाजिक सुरक्षा उपायों के कारण महामारी का कहर कम हो गया. 2022 अहसास और समायोजन का वर्ष था: अहसास यह कि भारत बाहरी खतरों के प्रति संवेदनशील बना हुआ है और संस्थागत लचीलेपन के लिए पिछले लाभ के समायोजन के लिए जिस तरह से राजनीति चलती है, उसमें संरचनात्मक बदलावों की ज़रूरत होती है और जिस तरीके से पूंजी का आवंटन और इस्तेमाल होता है. वैसे ही स्वास्थ्य के साथ-साथ शैक्षणिक सेवाओं, रक्षा तैयारियों और ऊर्जा सुरक्षा के दायरे को बढ़ाने के लिए भी ऐसे बदलाव अपेक्षित होते हैं. 

घरेलू राजनीति - कमोबेश एक जैसी 

केंद्र में नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार के पास अगले चुनावों की तैयारी के लिए अप्रैल 2024 तक का समय है - यह एक ऐसा सियासी मुक़ाबला है जिसे हारना मुश्किल होगा.  लेकिन बीजेपी की बतौर पार्टी के रूप में धमाकेदार विस्तार गहराई और पहुंच दोनों में अब स्थिर हो गई है. ऐसे में मौजूदा लाभ के समायोजन का विस्तार भविष्य में होने की संभावना है. एक कारण यह है कि शुरू में  इसने उन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया, जिनमें प्रतिस्पर्द्धी वैकल्पिक नेतृत्व की कमी थी - हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और उत्तराखंड- जिन राज्यों में आज पार्टी का शासन है. पार्टी को अपने विकास के अगले चरण में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, दिल्ली और पंजाब में गहरी जड़ें जमा चुके क्षेत्रीय दलों का सामना करना पड़ रहा है.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) द्वारा शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होने वाले हैं,  वहीं बीजेपी शासित कर्नाटक में भी चुनाव होने हैं. हम इन तीनों राज्यों के लिए केंद्र सरकार से कुछ बेहतर देखभाल की उम्मीद कर सकते हैं. यह जानते हुए कि लोकसभा की 452 में से 303 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है - दो तिहाई से अधिक वोट भी पार्टी के पक्ष में है. पार्टी के पास एक मजबूत वर्किंग बहुमत भी है, जिसमें इसके सहयोगी शामिल नहीं हैं और जो पार्टी के अधिकारियों को कहीं और ध्यान केंद्रित करने के लिए राजनीतिक स्थान मुहैया कराते हैं. लेकिन ऐसा होगा? इसकी बहुत संभावना नहीं है. बीजेपी का रथ भी कार की मशहूर कंपनी रॉल्स रॉयस की तरह फेल सेफ फिलॉसफी से प्रेरित है. एक "काफी अच्छा" जोखिम मार्ज़िन पर्याप्त नहीं है. पार्टी के लिए राजनीतिक जोखिम का स्तर शून्य ही होना चाहिए.

राहुल गांधी आश्चर्य से भरे, सितारों की चमक से प्रभावित समर्थकों के एक समूह के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए, जब यात्रा में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी उनके साथ शामिल थे.

जनता का समर्थन जुटाने के लिए सार्वजनिक संसाधनों का निरंतर उपयोग, मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने के लिए सीधे तौर पर लक्षित कल्याणकारी उपायों को लागू करके ही संभव है. ना केवल केंद्र सरकार में बल्कि सबसे बड़े 20 राज्यों में से नौ राज्यों में सत्ता में होने के कारण पार्टी के पास राजकोषीय संसाधन हैं लेकिन सत्ता अपने साथ राजनीतिक अहंकार को भी जन्म देती है, जैसा कि पंजाब में आम आदमी पार्टी के तेजी से विस्तार और सत्ता पर काबिज होने और दिल्ली में बीजेपी शासन के 15 वर्षों के बाद नए तरीके से दिल्ली नगर निगम के विलय के बाद भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी द्वारा अपनी जड़ों को मजबूत करने के उदाहरण से स्पष्ट है.

इस बीच, भारत जोड़ो यात्रा (लिंक भारत मार्च) ने दर्शकों को हैरान कर दिया. राहुल गांधी आश्चर्य से भरे, सितारों की चमक से प्रभावित समर्थकों के एक समूह के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए, जब यात्रा में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी उनके साथ शामिल थे.

कूटनीति – समझदार पहल

इस साल के स्टार राजनयिक भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर रहे, जिन्होंने "वेस्टर्न एलायंस" के नए मित्रों को नाराज करने का खतरा उठाते हुए रूस को एक अछूत के रूप में मानने के उनके "मूल्य-आधारित" अपील के आगे नहीं झुक कर बड़ा जोख़िम मोल लिया और कम मूल्य पर रूस से तेल और गैस की आपूर्ति को उचित ठहराया. रूसी तेल की बिक्री पर प्रतिबंध और यूरोप को गैस की आपूर्ति बाधित होने से बाजार की कीमतों में उछाल आया. ऐसे में विदेश मंत्री जयशंकर ने दशकों तक सस्ते रूसी तेल और गैस का उपभोग करने वाले यूरोप की असमानता को मुद्दा बनाया और पेट्रोलियम आयात पर निर्भर भारत और अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को राष्ट्रपति पुतिन को पश्चिमी देशों द्वारा घुटनों पर लाने की साज़िश से बचाने के लिए रूसी तेल की स्वीकृत कटौती का बहिष्कार करने के लिए मजबूर किया. भारत के लिए, रूस से हथियारों की आपूर्ति तक पहुंच बनाए रखना मूल्यवान है, भले ही यह पश्चिमी गठबंधन के स्रोतों के लिए भविष्य की प्रतिबद्धताओं में विविधता पैदा करता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक कमजोर रूस चीन के अलावा किसी के भी हित में नहीं है.

भले यह पूरी तरह आश्वस्त ना करे लेकिन भारत अस्थायी रूप से विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करने की ज़िम्मेदारी उठा रहा है, जबकि यह 2023 तक जी 20 की रोटेटिंग प्रेसीडेंसी पर काबिज रहेगा. इसे इंडोनेशिया से अध्यक्षता प्राप्त हुआ है और अगले साल के अंत में इसे ब्राजील को सौंप दिया जाना है. यह नेहरूवादी युग की एक जानी पहचानी परंपरा है लेकिन एक वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में इसकी प्रमुखता संदिग्ध है जब सफलता "अमीर होना शानदार है" मंत्र को अपनाने के बाद मिलती है. इसी तरह इसकी भी संभावना नहीं है कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौते पर बातचीत कर सकता है - क्योंकि चीन यूरोपीय मामलों में भारतीय उपस्थिति को कम महत्वपूर्ण बनाए रखने के लिए ऐसे किसी भी प्रयास को नाकाम कर देगा.

विकास और मुद्रास्फीति - दोनों में थोड़ी सफलता

संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के नेतृत्व में विश्व  मुद्रास्फीति को कम करने के साथ-साथ विकास की उम्मीदों को जीवित रखने के बीच एक दोधारी तलवार पर चलने पर मजबूर है. पूरी तरह से आर्थिक सुधार की संभावनाएं बाधित हैं क्योंकि चीन से कोरोना महामारी के कम-टीकाकरण वाली अफ्रीका जैसी आबादी के बीच फैलने की आशंका ज्यादा है, जहां चीनी कंपनियां सक्रिय हैं. फिर भी, चीन द्वारा कोविड को खत्म करने की विफल रणनीति को छोड़ने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला फिर से शुरू हो जाएगी, जिससे ऊर्जा सहित वस्तुओं की मांग और विनिर्मित उत्पादों की आपूर्ति में वृद्धि होगी. यूरोप में थमा हुआ संघर्ष और फिर से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आना भारत के लिए अनुकूल हैं लेकिन वैश्विक मुद्रास्फीति सबसे बड़ी समस्या की जड़ है और तेज तर्रार फेडरल रिजर्व मुद्रास्फीति को कम करने के लिए "स्टेयिंग द कोर्स" पर चलने को तुला हुआ है, इस बात से बेपरवाह होकर कि दुनिया इस तरह मंदी की चपेट में आ जाएगी.

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास फेडरल रिजर्व द्वारा निर्धारित उच्च ब्याज दरों के लिए निर्देशात्मक नेतृत्व का पालन करने थे, हालांकि घरेलू "ग्रोथ-इनफ्लेशन डायनेमिक्स" के साथ कम गति पर. भारतीय रुपया जोखिम में है, जब ऊर्जा की कीमतें बढ़ती हैं और पूंजी का प्रवाह नियंत्रित तरीके से किसी सुरक्षित देश में होता है. आयातित वस्तुओं और ऊर्जा की घरेलू कीमतों में वृद्धि हुई है लेकिन आरबीआई और वित्त मंत्रालय के बीच प्रभावी टीम वर्क ने घरेलू क़ीमतों को कम करते हुए आयातित वस्तुओं पर प्रभावी कर दरों को युक्तिसंगत बनाया है, जबकि ऊर्जा निर्यात से होने वाले अप्रत्याशित लाभ पर कर लगाया गया है.

लक्षित घरेलू मुद्रास्फीति से अधिक होने से कर राजस्व में वृद्धि हुई जिसका उपयोग आर्थिक मंदी से प्रभावित लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के खर्च को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है - भले ही ऐसा एक अलक्षित तरीके से किया जा रहा हो. केंद्र सरकार जीडीपी के लगभग 0.6 प्रतिशत की लागत से 800 मिलियन नागरिकों को हर महीने पांच किलोग्राम मुफ्त अनाज वितरित करती है - सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन के बाद भारत का सबसे बड़ा यह कल्याणकारी कार्यक्रम है. यह एक महंगा मामला है लेकिन यह आबादी के निचले तीन वर्गों में अतिरिक्त आय इंजेक्ट करता है, जिससे उपभोक्ता वस्तुओं की मांग पैदा होती है.

भले यह पूरी तरह आश्वस्त ना करे लेकिन भारत अस्थायी रूप से विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करने की ज़िम्मेदारी उठा रहा है, जबकि यह 2023 तक जी 20 की रोटेटिंग प्रेसीडेंसी पर काबिज रहेगा.

विश्लेषकों ने भारत में नॉन मेरिट सब्सिडी को सकल घरेलू उत्पाद के 12 प्रतिशत से ज़्यादा होना बताया है - असंख्य परिवार-केंद्रित कल्याण योजनाओं को प्रत्यक्ष आय सब्सिडी के साथ बदलने के लिए इसे पर्याप्त बताया गया है. ऐसा करने का मतलब उत्तर भारत में किसानों से लाभकारी प्रशासित दरों पर अनाज खरीदने की राज्य की क्षमता को कम करना भी है, जिससे 1966-67 में हरित क्रांति के बाद से ही इस सब्सिडी का लाभ उठाने वाले ज्यादातर बेहतर किसानों के पास ऐतिहासिक वित्तीय बैसाखी को दूर किया जा सके. कृषि बाजारों के उदारीकरण - मोदी सरकार द्वारा 2020 में विविध उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास - ने एक गंभीर, नकारात्मकता पैदा किया है. इसे अगले वर्ष ही छोड़ दिया गया था. लेकिन इसे लेकर कुछ समय तक गतिरोध जारी रहने की संभावना है. खाद्य, ईंधन और उर्वरकों पर कृषि सब्सिडी की लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2 प्रतिशत है. यह एक ऐसी लागत है जिसका भुगतान हम विनिर्माण क्षेत्र में पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं करने और कृषि में कम रोजगार वाले परिवारों को छोड़ने के लिए करते हैं.

भारत में वास्तविक विकास, जो कोरोना महामारी से पहले भी कम था, मध्यम रहने की संभावना है - यह प्रति वर्ष 5.5 से 6 प्रतिशत के बीच रह सकता है. समायोजना और स्थिरीकरण आने वाले समय में भारतीय प्राथमिकताएं हैं, जबकि योजनाकार यह पता लगाते हैं कि तेजी से विकास के लिए संरचनात्मक बाधाओं को कैसे कम किया जाए. इसमें शासन की बाधाएं सबसे ऊपर हैं. राजनीतिक प्रतियोगिता की वजह से संस्थाएं खोखली होती जा रही हैं, जो व्यवस्थागत समाधान के लिए बहुत कड़वा अहसास है. चुनावी संरचना सरकारों को सार्वजनिक सेवाओं को स्वीकार्य स्तरों तक तेजी से बढ़ाने के लिए एक साझेदार और प्राथमिकता वाले मार्ग का पालन करने के लिए मज़बूर करने में असमर्थ बनी हुई है. निजी क्षेत्र की भूमिका और आकार को बढ़ाना, सरकारी कार्यों को मुख्य संप्रभू कार्यों तक सीमित करने के साथ-साथ भविष्य के विकास से इन्क्रिमेंटल फिसकल रिसोर्स में सरकार की हिस्सेदारी को सीमित करना अभी तक मुश्किल बना हुआ है और इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.  लक्षित, सुरक्षित, सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा सेवाओं के अभाव में, टेक्नोलॉजी आधारित विकास के साथ असमानता बढ़ना तय है. पहले से ही विषम, बहुभाषी, बहु-धार्मिक, बहुसांस्कृतिक, "हाल के" लोकतंत्र में सामाजिक संरचना को यह और अधिक तोड़ चुका है.

भारत कभी भी एक आधुनिक, निर्यात करने वाला राष्ट्र नहीं रहा है, जो दूसरे देशों को उनके घरेलू रसद या सहायक सरकारी प्रक्रियाएं और नियमों के अनुसार निर्यात करता हो. मोदी सरकार व्यापार की स्थिति में सुधार करने के लिए आगे बढ़ रही है - कानून को गैर-अपराधी बनाना एक ऐसा ही सतत प्रयास है. इन्फ्रास्ट्रक्चर लिंक्स जैसे  - वायु, रेल, सड़क और बंदरगाह - में सुधार की गति बेहद अहम है. नगरपालिका स्तर से ऊपर की ओर सरकारी प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण और नेटवर्किंग एक बड़ा काम है जो धीमी गति से आगे बढ़ाया जा रहा है. गति शक्ति - बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का एक राष्ट्रीय डेटाबेस जिसे सभी बजट लाइन आइटम में क्लोन किया जाना चाहिए ताकि कैपिटल ऑउटले और बजटीय परिणामों पर स्पष्ट निगरानी बढ़ाई जा सके और सार्वजनिक क्षेत्र के राजस्व संग्रह और व्यय की लेखा परीक्षा रिपोर्ट में तेजी लाई जा सके.

सत्ता में अपने दसवें वर्ष के क़रीब, नरेंद्र मोदी की बीजेपी वाली केंद्र सरकार संतोष के साथ पीछे मुड़कर देख सकती है. क्योंकि अथक ऊर्जा, गतिशीलता, इनोवेशन और तेजी से आत्म-सुधार द्वारा विकास की गति को आगे बढ़ाया जा रहा है. भविष्य को देखते हुए संस्थागत उत्कृष्टता के लिए तकनीकी बुनियाद तैयार करना बेहतर योजना हो सकती है.

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