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हाल ही में भारत में संपन्न CII-एग्ज़िम बैंक कॉन्क्लेव से व्यापार और उद्यमिता से जुड़ी पहलों के ज़रिए भारत-अफ़्रीका संबंधों को मज़बूत बनाने के इरादे ज़ाहिर हुए हैं.
2005 में विदेश मंत्रालय (MEA) और वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (MCI) के सहयोग से भारत-अफ़्रीका परियोजना भागीदारी पर CII-एग्ज़िम बैंक कॉन्क्लेव का आग़ाज़ हुआ था. आगे चलकर इसे भारत-अफ़्रीका विकास भागीदारी का नाम दे दिया गया. 19 और 20 जुलाई 2022 को नई दिल्ली में भारत अफ्रीका विकास भागीदारी पर 17वें CII-एग्ज़िम बैंक कॉन्क्लेव का आयोजन हुआ. इसमें गाम्बिया, ज़ाम्बिया और मॉरिशस के उपराष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया. भारत की ओर से उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और व्यापार मंत्री पीयूष गोयल बैठकों में शामिल हुए. इस जमावड़े में अफ़्रीका के 17 देशों के 40 मंत्रियों ने हिस्सा लिया. कॉन्क्लेव से नीति-निर्माताओं, नौकरशाहों और कारोबार और उद्योग जगत के प्रमुखों को तमाम नज़रियों से भारत-अफ़्रीका विकास भागीदारी की समीक्षा करने का अवसर मिला.
19 और 20 जुलाई 2022 को नई दिल्ली में भारत अफ्रीका विकास भागीदारी पर 17वें CII-एग्ज़िम बैंक कॉन्क्लेव का आयोजन हुआ. इसमें गाम्बिया, ज़ाम्बिया और मॉरिशस के उपराष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया.
कोविड-19 के प्रकोप में नरमी और फ़रवरी 2022 से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच इस सम्मेलन का आयोजन हुआ. विश्व भर में कोविड-19 द्वारा मचाए आतंक ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में स्वास्थ्य के लचर बुनियादी ढांचे को लेकर प्रतिभागियों को सचेत किया है. दूसरी ओर रूस-यूक्रेन जंग ने खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं को सबके सामने लाकर खड़ा कर दिया. जंग से इस बात का भी इज़हार हुआ कि किसी एक भौगोलिक दायरे में पैदा हुआ तनाव तक़रीबन पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में लेकर सबको संकट की कगार पर ले जा सकता है.
जनवरी 2021 से महादेशीय कारोबारी क्षेत्र के रूप में AfCFTA वजूद में है. ऐसे में ज़ाहिर तौर पर इस पूरी परियोजना को एक नए संदर्भ में देखे जाने की दरकार है. ऐसे तमाम अहम क्षेत्र हैं जिनमें भारत-अफ़्रीकी विकास सहयोग के आगे बढ़ने की संभावनाएं हैं. इनमें कृषि, दवाइयां, स्वास्थ्य, डिजिटल और भौतिक बुनियादी ढांचा, शिक्षा, कौशल और क्षमता निर्माण, स्टार्ट-अप्स, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), सूचना-प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, तेल और गैस, खनन, कपड़े आदि शामिल हैं. सहयोग और समन्वय की इन क़वायदों में भारत की सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं. इन परिस्थितियों में भारत-अफ़्रीका व्यापारिक संबंधों में गहराई आने से भारत और अफ़्रीका में विकास, निवेश और रोज़गार के अवसरों में निश्चित रूप से बढ़ोतरी हो सकती है.
जनवरी 2021 से महादेशीय कारोबारी क्षेत्र के रूप में AfCFTA वजूद में है. ऐसे में ज़ाहिर तौर पर इस पूरी परियोजना को एक नए संदर्भ में देखे जाने की दरकार है. ऐसे तमाम अहम क्षेत्र हैं जिनमें भारत-अफ़्रीकी विकास सहयोग के आगे बढ़ने की संभावनाएं हैं.
कोविड-19 के प्रकोप से पहले भारत-अफ़्रीका व्यापार काफ़ी फल-फूल रहा था. भारत अफ़्रीका के चौथे सबसे बड़े व्यापार सहयोगी के तौर पर उभरकर सामने आया था. वित्त वर्ष 2018-19 में दोनों के बीच 69 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ. भारत अफ़्रीका में 18 नए राजनयिक मिशन खोलने की क़वायदों में लगा था. इससे वहां दूतावासों की कुल तादाद 47 तक पहुंच जाती. फ़िलहाल अफ़्रीका के 43 देशों में भारत का राजनयिक तंत्र मौजूद है. हैरानी की बात है कि 2020-21 तक अफ़्रीका के साथ भारत का व्यापार 2019-20 के 56 अरब अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 89.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. पीयूष गोयल के मुताबिक अफ़्रीका के साथ भारत का व्यापार काफ़ी हद तक संतुलित है. भारत की ओर से अफ़्रीका को व्यापारिक वस्तुओं और सेवाओं के रूप में 40 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया जाता है. जबकि अफ़्रीका से भारत व्यापारिक वस्तुओं और सेवाओं के रूप में 49 अरब अमेरिकी डॉलर का आयात करता है. एस. जयशंकर के मुताबिक 1996-2021 के बीच अफ़्रीका में भारत का सकल निवेश 73 अरब अमेरिकी डॉलर रहा है. इस तरह भारत अफ़्रीका में निवेश करने वाले पांच शीर्षस्थ देशों में शुमार है. भारत ने अफ़्रीका में अपनी ड्यूटी-फ़्री टैरिफ़ प्रीफ़रेंस (DFTP) स्कीम का भी विस्तार कर दिया है. इससे कुल टैरिफ़ लाइंस के 98.2 फ़ीसदी हिस्से तक शुल्क-मुक्त पहुंच की छूट मिल गई है. लिहाज़ा अफ़्रीका के 33 देशों के लिए और अधिक लाभ हासिल करने का रास्ता साफ़ हो गया है. भारत ने अपने स्तर से अफ़्रीका के लिए बाज़ार खोल दिए हैं. शीर्ष स्तर के अधिकारियों के दौरों से भारत-अफ़्रीका संबंध और मज़बूत होते रहे हैं. पिछले 8 वर्षों में भारतीय पक्ष की ओर से ऐसे 36 दौरे हुए जबकि अफ़्रीकी पक्ष की ओर से 100 यात्राएं की गईं. इसके साथ ही 2008, 2011 और 2015 में भारत-अफ़्रीका मंच सम्मेलनों (IAFS) के माध्यम से भारत-अफ़्रीकी विकास सहयोग को बढ़ावा मिला है. भारत ने रियायती कर्ज़ के तौर पर अफ़्रीका को 12.3 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम मुहैया कराई है. साथ ही भारतीय पक्ष अफ़्रीका में विकास से जुड़ी परियोजनाओं से भी जुड़ा हुआ है.
अब तक भारत ने 197 परियोजनाएं पूरी कर ली हैं, जबकि 65 परियोजनाएं क्रियान्वयन के दौर में हैं. 81 योजनाएं पर अभी अमल की प्रक्रिया शुरू होना बाक़ी है. इसके अलावा भारत ने अफ़्रीका को 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता भी उपलब्ध कराई है. इन तमाम परियोजनाओं का दायरा व्यापक है. इनमें पानी से जुड़ी परियोजनाएं, ग्रामीण सौर विद्युतीकरण, सिंचाई, ट्रांसमिशन लाइंस, बिजली संयंत्र, सीमेंट, चीनी और कपड़ा कारखाने, रेलवे से जुड़ा बुनियादी ढांचा, टेक्नोलॉजी पार्क आदि शामिल हैं. जुलाई 2018 में कंपाला में यूगांडा की संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अफ़्रीका के संदर्भ में 10 सिद्धांतों की रूपरेखा सामने रखी. सहयोग के व्यापक दायरों में अफ़्रीका को लेकर भारत की नीतियां इन्हीं सिद्धांतों से प्रेरित रही हैं. यहां इस बात को रेखांकित करना ज़रूरी है कि कोविड-19 से जुड़ी आपातकालीन परिस्थितियों में भारत ने 32 अफ़्रीकी देशों की मदद के तौर पर 150 टन मेडिकल सहायता मुहैया कराई थी.
हैरानी की बात है कि 2020-21 तक अफ़्रीका के साथ भारत का व्यापार 2019-20 के 56 अरब अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 89.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. पीयूष गोयल के मुताबिक अफ़्रीका के साथ भारत का व्यापार काफ़ी हद तक संतुलित है.
दूसरे देशों के लिए विकास पैकेज के तौर पर भारत हर साल एक अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर अनुदान और 4 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर लाइन ऑफ़ क्रेडिट देता है. पिछले कुछ सालों में भारत ने कई परियोजनाओं के लिए रकम उपलब्ध कराकर अफ़्रीका में अहम सांकेतिक मौजूदगी दर्ज कराई है. मिसाल के तौर पर गाम्बिया में भारत ने ना सिर्फ़ नेशनल असेंबली की इमारत तैयार करवाई है, बल्कि पानी की आपूर्ति, कृषि और फ़ूड प्रॉसेसिंग से जुड़ी परियोजनाओं को भी मुकाम तक पहुंचाया है. भारत की ओर से घाना में राष्ट्रपति भवन भी तैयार करवाया जा रहा है. जिबूती में पहली दूध फ़ैक्ट्री और सूडान और रवांडा में बिजली परियोजनाओं के विकास में भी भारत अपनी भूमिका निभा रहा है.
हाल ही में संपन्न हुए 17वें शिखर सम्मेलन के कुछ सत्र कुछ ख़ास देशों पर आधारित थे. इनमें नामिबिया, मॉरिशस और गेबॉन शामिल हैं. नामिबिया यूरेनियम, तांबा, हीरा और फॉस्फेट्स जैसे संसाधनों से संपन्न है. नामिबिया में भारत IT सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंस तैयार कर रहा है. हालिया शिखर सम्मेलन के दौरान नामिबिया के साथ भारत तीन समझौता पत्रों पर दस्तख़त कर चुका है. इनमें वन्य जीव संरक्षण और टिकाऊ जैव-विविधता उपयोग, दूतावास कर्मियों के पति-पत्नियों और उनपर निर्भर लोगों के लिए फ़ायदेमंद रोज़गार से जुड़े क़रार शामिल हैं. साथ ही भारत की राष्ट्रीय फ़ॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) और नामिबिया की पुलिस फ़ॉरेंसिक साइंस इंस्टीट्यूट (NPFSI) के बीच भी MOU पर हस्ताक्षर किए गए हैं. जहां तक मॉरिशस का सवाल है तो भारत उसे अफ़्रीका का प्रवेश द्वार समझता है. मॉरिशस इस क्षेत्र का इकलौता ऐसा देश है जिसके साथ भारत का व्यापक आर्थिक सहयोग भागीदारी समझौता (CECPA) है. मॉरिशस में भारत की कुछ अहम परियोजनाओं में मेट्रो एक्सप्रेस, सुप्रीम कोर्ट की नई इमारत और सामाजिक आवासीय सुविधाएं शामिल हैं. इसी तरह तेल संपदा से समृद्ध देश गेबॉन भी भारत के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने की जुगत में लगा है. भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू मई 2022 में यहां का दौरा भी कर चुके हैं.
भारत हमेशा से अफ़्रीका में कौशल विकास और क्षमता निर्माण की क़वायदों को बढ़ावा देता रहा है. यहां तक कि 2015 में IAFS की तीसरी बैठक के दौरान भारत ने अपने यहां अध्ययन की इच्छा रखने वाले अफ़्रीकी छात्रों के लिए 50 हज़ार छात्रवृतियों का ऐलान किया था. इनमें से 32 हज़ार छात्रवृतियों का उपयोग भी हो चुका है. हालांकि वैश्विक महामारी के चलते इस कार्यक्रम पर अमल की क़वायद थोड़ी ढीली रही है. बहरहाल इन मुसीबतों के बावजूद भारतीय प्रौद्योगिकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के तहत भारत निरंतर अफ़्रीकी छात्रों और अधिकारियों को प्रशिक्षित करता आ रहा है. 1964 में इस कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से ही ये क़वायद लगातार जारी है. अफ़्रीका के साथ डिजिटल माध्यमों से संवादों को बढ़ावा देने के लिए भारत ने पैन अफ़्रीकन ई-नेटवर्क के दूसरे चरण का आग़ाज़ किया है. 2019 में ई-आरोग्य भारती और ई-विद्या भारती नेटवर्कों के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया गया है. पहले कार्यक्रम के तहत एक हज़ार डॉक्टरों/नर्सों/पारामेडिक्स को मुफ़्त मेडिकल शिक्षा और अफ़्रीकी देशों को टेलीमेडिसिन के ज़रिए मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जाती हैं. जबकि दूसरे कार्यक्रम के तहत 4,000 छात्रों को पांच वर्षों तक मुफ़्त टेली-एजुकेशन मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया है. इस पहल के तहत अफ़्रीका के 19 देशों के युवाओं को अलग-अलग डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रमों में दाखिल किया गया है. अफ़्रीका में डिजिटल क्रांति लाने में भी भारत मदद कर रहा है. इसके लिए IT केंद्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पार्क और उद्यमिता विकास केंद्रों का सहारा लिया जा रहा है.
पिछले कुछ सालों में भारत ने कई परियोजनाओं के लिए रकम उपलब्ध कराकर अफ़्रीका में अहम सांकेतिक मौजूदगी दर्ज कराई है. मिसाल के तौर पर गाम्बिया में भारत ने ना सिर्फ़ नेशनल असेंबली की इमारत तैयार करवाई है, बल्कि पानी की आपूर्ति, कृषि और फ़ूड प्रॉसेसिंग से जुड़ी परियोजनाओं को भी मुकाम तक पहुंचाया है.
इसके अलावा भारत ने 2019 में सहायता के ज़रिए चक्रवात की मार झेल चुके मोज़ाम्बिक को मदद और राहत सहायता उपलब्ध करवाई थी. 2020 में ऑपरेशन वनीला के ज़रिए मेडागास्कर के बाढ़ पीड़ितों को राहत उपलब्ध करवाई गई. साथ ही जापानी जहाज़ वाकाशियो के तट से टकराने की वजह से हुए तेल रिसाव की रोकथाम के लिए मॉरिशस को तकनीकी सहायता भी पहुंचाई गई.
संक्षेप में कहें तो अलग-अलग दायरों में भारत-अफ़्रीका विकास सहयोग में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है. अब तक भारत से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के अनेक उद्यम अफ़्रीका में अपने नेटवर्क का विस्तार कर चुके हैं. ONGC विदेश, गुजरात राज्य पेट्रोलियम निगम, ऑयल इंडिया और भारतीय रेल जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ-साथ रिलायंस, टाटा अफ़्रीका होल्डिंग्स, एयरटेल, गोदरेज, आर्सेलर मित्तल जैसी निजी कंपनियां भागीदारियों के ज़रिए अफ़्रीका में कामकाज कर रही हैं. फ़िलहाल जारी सभी कार्यक्रमों के कार्यकुशल और समयबद्ध क्रियान्वयन से भारत-अफ़्रीका विकास भागीदारी को और आगे बढ़ाने की ज़बरदस्त संभावना हैं. मिसाल के तौर पर CII-एग्ज़िम बैंक के ज़रिए MEA और MCA के बीच स्थायी समन्वय से और भी बेहतर नतीजे हासिल हो सकते हैं. इसी तरह एग्ज़िम बैंक के मुंबई स्थित मुख्यालय और जोहानसबर्ग (दक्षिण अफ़्रीका), अदीस अबाबा (इथियोपिया) और आबिदजान (आइवरी कोस्ट) स्थित स्थानीय कार्यालयों के बीच लाइंस ऑफ़ क्रेडिट से जड़ी प्रक्रियाओं और मसलों पर और ज़्यादा तालमेल से भारत-अफ़्रीकी भागीदारी और मज़बूत हो सकती है. इसके साथ ही नस्ल और नस्ली भेदभाव से जुड़े मसलों पर भारतीयों को और संवेदनशील होना होगा, ख़ासतौर से जब अफ़्रीकी छात्र और अधिकारी भारत में प्रशिक्षण के लिए आते हैं और जब भारतीय नियोक्ता अफ़्रीका में अफ़्रीकी कर्मचारियों का संचालन करते हैं.
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Rajen Harshé is a founder and former Vice Chancellor of the Central University of Allahabad Prayagraj and former President of the G.B. Pant Social Science ...
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