Author : Anirban Sarma

Published on Dec 10, 2021 Updated 0 Hours ago

राजीव चंद्रशेखर ने भरोसा जताया कि भारतनेट 'ग्रामीण इलाक़ों के घरों को रोशन करने' में कारगर साबित होगा और आख़िरकार '1.5 अरब भारतीयों को अगले दो सालों में इंटरनेट से जोड़ने' में कामयाबी पा लेगा. 

‘गांवों में घरों को रोशन करना’: क्या भारतनेट भरोसे पर खरा उतर सकेगा?

Source Image: Triloks — Getty

अक्टूबर में एसोसिएटेड चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ़ इंडिया (एसोचैम) के सम्मेलन में शिरकत करते हुए भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एक बड़ा बयान दिया. उन्होंने पूरे जोशोख़रोश से बताया कि देश में इंटरनेट यूज़र बेस में तेज़ गति से बढ़ोतरी हो रही है और जल्दी ही भारत दुनिया के ‘सबसे ज़्यादा कनेक्टेड  देशों में से एक’ बन जाएगा. इस सिलसिले में राजीव चंद्रशेखर ने सरकार की भारतनेट परियोजना की अहमियत को ख़ासतौर से रेखांकित किया. ग़ौरतलब है कि ग्रामीण इलाक़ों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी से जोड़ने के लिए भारत सरकार भारतनेट परियोजना पर काम कर रही है. राजीव चंद्रशेखर ने भरोसा जताया कि भारतनेट ‘ग्रामीण इलाक़ों के घरों को रोशन करने’ में कारगर साबित होगा और आख़िरकार ‘1.5 अरब भारतीयों को अगले दो सालों में इंटरनेट से जोड़ने’ में कामयाबी पा लेगा. 

साल 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने नेशनल ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क के नाम से मुहिम शुरू की थी. सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में इसी मुहिम को नए सिरे से ‘भारतनेट’ के नाम से चालू किया. मोदी सरकार ने इस योजना के ढांचे और उन पर अमल के तौर-तरीक़ों में कई बदलाव किए. भारतनेट परियोजना को डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाकर उसमें नई जान फूंकी गई. 

भारतनेट का लक्ष्य भारत के 640 ज़िलों के 6600 प्रखंडों में फैले ढाई लाख से ज़्यादा ग्राम पंचायतों को हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मुहैया कराना है. इस परियोजना के तहत प्रखंडों से पंचायतों तक नेटवर्क कनेक्टिविटी की सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.

भारतनेट का लक्ष्य भारत के 640 ज़िलों के 6600 प्रखंडों में फैले ढाई लाख से ज़्यादा ग्राम पंचायतों को हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मुहैया कराना है. इस परियोजना के तहत प्रखंडों से पंचायतों तक नेटवर्क कनेक्टिविटी की सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. इस पर अमल हो जाने से इंटरनेट सर्विस प्रदाता (ISPs), स्थानीय केबल ऑपरटर्स और दूसरी एजेंसियां इसकी बैंडविड्थ और फ़ाइबर का इस्तेमाल कर सकेंगे. इस प्रक्रिया में ग्रामीण प्रशासन के बेहद प्राथमिक स्तर पर ई-गवर्नेंस, टेलीमेडिसिन, ई-एजुकेशन और दूसरी तमाम डिजिटल सेवाएं मुहैया करवाई जा सकेंगी. 2017 के बाद इस परियोजना के ज़रिए गांवों में अनेक वाई-फ़ाई हॉटस्पॉट्स स्थापित किए गए हैं. इससे ग्रामीण स्तर पर कोने-कोने तक इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने में मदद मिली है. 

भारतनेट को दुनिया में फाइबर आधारित सबसे बड़ी ग्रामीण ब्रॉडबैंड परियोजना के तौर पर ज़ोर शोर से प्रचारित किया गया है. इस परियोजना को लेकर महत्वाकांक्षी समयसीमाएं तय की जाती रही हैं. हालांकि ये समयसीमा लगातार बदलती रही है. नेशनल डिजिटल कम्युनिकेशंस पॉलिसी (NDCP) में 2020 तक हर पंचायत तक 1 Gbps की कनेक्टिविटी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था. साथ ही 2022 तक इसे 10 Gbps तक बढ़ाने की बात कही गई थी. अब 2022 आने में बस कुछ हफ़्तों की देर है, ऐसे में इस रास्ते पर हासिल की गई कामयाबियों पर एक नज़र डालना ज़रूरी हो जाता है. 

आज भारतनेट की हालत

भारतनेट के पीछे की सोच व्यापक और क्रांतिकारी है. निश्चित रूप से इसमें ग्रामीण भारत की छवि बदल देने का माद्दा है. हालांकि अफ़सोस की बात ये है कि इस परियोजना की शुरुआत के बाद से ही इसकी प्रगति और लक्ष्यों को धरातल पर उतारने के स्तर पर कई तरह की दिक़्क़तें दिखाई दे रही हैं. इनमें क्रियान्वयन में देरी, अमल के ढीले तौर-तरीक़े और इससे जुड़े तमाम किरदारों के साथ जुड़ाव की नीतियों में समग्रता का अभाव शामिल है. 

हैरान करने वाली बात ये है कि भारतनेट को अमल में लाने के तौर-तरीक़ों को संचालित करने वाले सेवा-स्तर के करारों में कॉमन सर्विस सेंटरों (CSC) को ढंडित किए जाने से जुड़े प्रावधान शामिल ही नहीं हैं. ग़ौरतलब है कि CSC के पास भारतनेट परियाजना के ऑप्टिकल फ़ाइबर केबल नेटवर्क के रखरखाव की ज़िम्मेदारी है.

सेवा की गुणवत्ता

भारतनेट के तहत 2020 तक ढाई लाख गांवों में ब्रॉडबैंड सुविधाएं चालू करने का लक्ष्य था. अब तक इनमें से तक़रीबन 70 प्रतिशत गांवों में ही ऑप्टिकल फ़ाइबर केबल (OFC) कनेक्शन इंस्टाल किया जा सका है. हालांकि केवल 65 फ़ीसदी गावों को ही वास्तविक रूप से OFC के साथ जोड़ा जा सका है. पंचायतों के स्तर पर मुहैया कराई जा रही सेवाओं की पहले से ही काफ़ी आलोचना होती रही है. एक बार पंचायतों को भारतनेट द्वारा कनेक्टिविटी मुहैया करा दिए जाने के बाद निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा बैंडविड्थ के इस्तेमाल के ज़रिए गांव के कोने-कोने तक इंटरनेट की सुविधा पहुंचाए जाने के आसार थे. बहरहाल भारतनेट से जुड़े बुनियादी ढांचे का स्वरूप ग़ैर-भरोसेमंद होने और उसके रखरखाव के ढीले तौर-तरीक़ों की वजह से निजी क्षेत्र के इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISP) ने इस ओर अपेक्षाकृत काफ़ी कम दिलचस्पी दिखाई है. भारतनेट परियोजना द्वारा गांव के कोने-कोने तक वाई-फ़ाई के ज़रिए कनेक्टिविटी की सुविधा मुहैया कराने के प्रयास भी डगमगाने लगे हैं. अब तक उम्मीद के मुक़ाबले बस मुट्ठी भर हॉटस्पॉट ही इंस्टॉल किए जा सके हैं. इनमें से भी ज़्यादातर कारगर नहीं हैं.      

गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना समेत 8 राज्यों को अपने स्तर पर परियोजना पर अमल सुनिश्चित करने के लिए स्पेशल परपस व्हीकल का गठन करने पर मजबूर होना पड़ा है. इससे भारतनेट पर क्रियान्वयन को लेकर ‘राज्यसत्ता की अगुवाई वाले तौर-तरीक़ों’ का खंडित स्वरूप जगज़ाहिर हो गया है. 

भारत के विभिन्न इलाक़ों की पंचायतों से एक लंबे अर्से से इंटरनेट लाइन में गड़बड़ियों, डाउनटाइम की प्रक्रिया में काफ़ी वक़्त लगने और सेवा में सुधार से जुड़े आग्रहों के प्रति आमतौर पर ठंडी प्रतिक्रिया जताए जाने की शिकायतें आती रही हैं. इस साल जुलाई में भारतनेट को लेकर भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में भी इन्हीं मुद्दों का खुलासा किया गया था. हैरान करने वाली बात ये है कि भारतनेट को अमल में लाने के तौर-तरीक़ों को संचालित करने वाले सेवा-स्तर के करारों में कॉमन सर्विस सेंटरों (CSC) को ढंडित किए जाने से जुड़े प्रावधान शामिल ही नहीं हैं. ग़ौरतलब है कि CSC के पास भारतनेट परियाजना के ऑप्टिकल फ़ाइबर केबल नेटवर्क के रखरखाव की ज़िम्मेदारी है. इस काम के लिए इनको अच्छी-ख़ासी रकम भी आवंटित की जाती है. आख़िरकार निगरानी के स्तर पर इन गड़बड़ियों का प्रभाव अंतिम उपयोगकर्ता पर ही पड़ता है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में सक्रिय कर्मचारियों और अधिकारियों को लाचार होकर मोबाइल डेटा का इस्तेमाल करने पर मजबूर होना पड़ता है. इतना ही नहीं ग्रामीण समुदाय के सदस्य फ़ाइबर-टू-द-होम (FTTH) का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं.  

 

तमाम संबंधित पक्षों का जुड़ाव

अभी हाल तक भारतनेट ने निजी क्षेत्र के साथ गठजोड़ करने को लेकर कोई गंभीर प्रयास नहीं किया था. परंपरागत रूप से इस परियोजना पर अमल के संदर्भ में केंद्र सरकार के स्वामित्व वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का ही चुनाव किया जाता रहा है. इस रुख़ की अक्षमता सालों से सबके सामने ज़ाहिर होती आ रही है. 2016 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने इस परियोजना को ज़मीन पर उतारने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी (PPP) स्थापित करने का सुझाव दिया था. हालांकि इस दिशा में सुधारवादी क़दम जून 2021 में उठाया गया. 2016 में TRAI के सुझावों के बावजूद 5 वर्षों तक बेअसरदार तौर-तरीक़ों पर पैसा ख़र्च करने के बाद भारतनेट ने अपनी ग़लती सुधारने का फ़ैसला किया. फ़िलहाल भारतनेट द्वारा निजी किरदारों के साथ PPP स्थापित करने की प्रक्रिया जारी है. निजी क्षेत्र के ये भागीदार 16 राज्यों में भारतनेट के प्रसार में मदद करेंगे. इसके साथ ही वो राजस्व उगाही के टिकाऊ तौर-तरीक़े तैयार करने और उपभोक्ताओं के लिए नई-नई तकनीक विकसित करने में भी सहायता करेंगे. इन निजी भागीदारों को अगले 30 सालों के लिए भारतनेट के संचालन, उसके स्तर को ऊंचा उठाने और उसके रखरखाव के लिए ज़िम्मेदार बनाया जाएगा. उम्मीद के मुताबिक ही निजी क्षेत्र ने इस दिशा में दिलचस्पी दिखाने में बेहद सतर्कता बरती है. भारत में इतने बड़े पैमाने पर PPP का इससे पहले कोई उदाहरण मौजूद नहीं है. निजी कंपनियां ये बात अच्छे से समझ रही हैं कि तक़रीबन एक दशक की नाकामियों और ठहराव को दूर करने के लिए उन्हें बुलावा भेजा जा रहा है. 

ऐसा नहीं है कि इस दिशा में केवल निजी क्षेत्र को ही अनदेखी का सामना करने पड़ा है. दरअसल राज्य सरकारों और भारतनेट के अपने राज्य-स्तरीय प्रशासकों को भी परियोजना के केंद्रीय कमांड के साथ सहयोग के सिलसिले में हताश करने वाले अनुभवों से दो-चार होना पड़ा है. गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना समेत 8 राज्यों को अपने स्तर पर परियोजना पर अमल सुनिश्चित करने के लिए स्पेशल परपस व्हीकल का गठन करने पर मजबूर होना पड़ा है. इससे भारतनेट पर क्रियान्वयन को लेकर राज्यसत्ता की अगुवाई वाले तौर-तरीक़ोंका खंडित स्वरूप जगज़ाहिर हो गया है. 

लगातार बदलती समयसीमा 

भारतनेट परियोजना को धरातल पर उतारने से जुड़ी समयसीमा लगातार बदलती रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि 2011 से 2014 के बीच ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क परियोजना पर प्रगति की रफ़्तार कतई संतोषजनक नहीं रही थी. 2014 में मोदी सरकार द्वारा सत्ता संभालने के बाद इस दिशा में 2018 तक काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया. हालांकि जल्दी ही ऐसा लगने लगा कि ये मियाद व्यावहारिक नहीं है. इसके बाद 2020 और 2021 के अंतरिम लक्ष्य तय किए गए. हालांकि NDCP के घोषित लक्ष्य के मुताबिक भारतनेट को 2022 तक ज़मीन पर उतारने की बात कही गई थी. बहरहाल तारीख़ पर तारीख़ देने की इस परंपरा की ताज़ा कड़ी में ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी की ओर से नई तारीख़ सामने रखी गई है. इस साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि अगले 1000 दिनों में भारत के हरेक गांव को ऑप्टिकल फ़ाइबर केबल से जोड़ दिया जाएगा. 

भारतनेट को दोबारा पटरी पर लाने के लिए तत्काल ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है.

लगातार बदलती समयसीमाओं के चलते भारतनेट पर लोगों के भरोसे में गिरावट आती जा रही है. साथ ही इसे लेकर निजी क्षेत्र में भी संदेह का वातावरण बन रहा है. इतना ही नहीं देरी की वजह से भारतनेट के बुनियादी ढांचे पर भी भौतिक रूप से असर पड़ रहा है. इस बात को एक परियोजना अधिकारी ने भी रेखांकित किया है- ब्लॉक स्तर पर खड़े मौजूदा ढांचे (जिसे भारतनेट के तहत पंचायतों तक विस्तार दिया गया है) की गुणवत्ता में गिरावट आती जा रही है. भविष्य के लिहाज़ से इसके गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं.   

आगे की राह 

माइक्रोसॉफ़्ट के प्रेसिडेंट ब्रैड स्मिथ ने 2019 में प्रकाशित अपनी क़िताब टूल्स एंड वेपन्स: द प्रॉमिस एंड द पेरिल ऑफ़ द डिजिटल एजमें ग्रामीण ब्रॉडबैंड को ‘21वीं सदी को रोशन करने वाली बिजलीबताया है. उनकी ये मिसाल केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर के उस बयान से मेल खाती है जिसमें उन्होंने ब्रॉडबैंड को भारतीय गांवों में उजाला फैलाने वाला कारक बताया है. स्मिथ के मुताबिक ब्रॉडबैंड लोगों के कामकाज, रहनसहन और ज्ञान हासिल करने के लिहाज़ से बुनियादी अहमियत रखता है. दवाओं के क्षेत्र में आने वाला समय टेलीमेडिसिन का है. शिक्षा के क्षेत्र में भविष्य ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ा है. यहां तक कि खेतीबाड़ी का भविष्य भी प्रीसिज़न फ़ार्मिंग में ही है. […] और इन सबके लिए ब्रॉडबैंड की ज़रूरत है.

 पंचायतों और गांव में अंतिम उपयोगकर्ता के लिए सेवा की गुणवत्ता में आमूलचूल सुधार लाना बेहद ज़रूरी है. 

बहरहाल, हर गांव में कनेक्टिविटी मुहैया कराने से जुड़े प्रधानमंत्री के लक्ष्य में अब तक़रीबन 900 दिनों का समय शेष है. ऐसे में भारतनेट को दो मोर्चों पर क़दम उठाने की ज़रूरत है. पहला, पंचायतों और गांव में अंतिम उपयोगकर्ता के लिए सेवा की गुणवत्ता में आमूलचूल सुधार लाना बेहद ज़रूरी है. इसके लिए संचालन और रखरखाव के मौजूदा तौर-तरीक़ों में बदलाव की ज़रूरत पड़ सकती है. इसके अलावा सप्लायर्स की ज़िम्मेदारी तय करने और उनपर निगरानी रखने के लिए एक मज़बूत संस्थागत तंत्र खड़ा करने की भी ज़रूरत है. साथ ही सेवा की गुणवत्ता को लेकर स्थानीय समुदायों से नियमित तौर पर जानकारियां हासिल करने का तंत्र खड़ा करना भी ज़रूरी है. दूसरे, PPP का प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए भारतनेट को हरसंभव तरीक़े से निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना होगा. निजी क्षेत्र को आगे बढ़कर OFC नेटवर्क के विस्तार, संचालन, रखरखाव और उपयोग से जुड़े बेहद कठिन काम का भार संभालना होगा. दरअसल निजी क्षेत्र को परियोजना के उभार से जुड़े एक मुश्किल वक़्त पर इससे जुड़ने के लिए बुलाया जा रहा है. इस परियोजना की कामयाबी में निजी क्षेत्र के किरदारों का प्रबंधन कौशल निर्णायक साबित होने वाला है. आख़िर में एक ज़रूरी बात ये है कि भारतनेट को राज्य सरकारों के साथ व्यवस्थित रूप से जुड़ाव सुनिश्चित कर उन्हें बराबर का भागीदार समझना होगा. इन तमाम क़वायदों से भारतनेट विश्व में अपनी तरह की सबसे बड़ी परियोजना बन जाएगी. इतना ही नहीं संघीय व्यवस्था में टेक इंफ़्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के वैश्विक मॉडल के तौर पर भी इसका नाम हो जाएगा.  

बहरहाल इस दिशा में अब भी बहुत बड़ा काम बाक़ी है. भारतनेट को हमेशा से ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए गेमचेंजर बताया जाता रहा है. इस परियोजना में पिछले दिनों आए ठहराव के लिए ज़िम्मेदार तमाम कारकों को दूर करना होगा. भारतनेट को दोबारा पटरी पर लाने के लिए तत्काल ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. इसके लिए मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और परियोजना से जुड़े तमाम किरदारों के बीच हर स्तर पर सहयोग सुनिश्चित करना होगा. साथ ही पूर्व के वर्षों से जमा होती आ रही अक्षमताओं और बेअसरदार तौर-तरीक़ों को तत्काल दूर करना होगा. अगर इस प्रयास में कामयाबी मिल जाती है तो ये परियोजना सचमुच ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल सकती है. भारतनेट परियोजना की कामयाबी डिजिटल इंडिया के वादे को ज़मीन पर उतारकर ग्रामीण क्षेत्र के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है. 

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