Published on Jan 30, 2017 Updated 0 Hours ago

दूसरे रायसीना डायलॉग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्घाटन भाषण का हिंदी संस्करण सुधी पाठकों के लिए दिया जा रहा है।

दूसरे रायसीना डायलॉग में प्रधानमंत्री मोदी के उद्घाटन भाषण का पाठ

सभी महामहिम जन

सम्मानित अतिथि,

देवियों और सज्जनों,

लग रहा है आज का दिन भाषणों का दिन है। अभी-अभी हमने राष्ट्रपति शी और प्रधानमंत्री मे को सुना है। अब मैं अपनी बातें ले कर हाजिर हूं। लगता है कुछ लोगों के लिए भाषण का ओवरडोज होने वाला है। 24/7 चलने वाले न्यूज चैनलों के पास भी आज बहुत कुछ होगा।

रायसीना डायलॉग के दूसरे संस्करण के उद्घाटन के मौके पर आप लोगों के सामने बोलना मेरे लिए एक बड़े सम्मान की बात है। महामहिम करजई, प्रधानमंत्री हार्पर, प्रधानमंत्री केविन रुड, आप सब को दिल्ली में देखना सुखद है। सभी अतिथियों का भी मैं गर्मजोशी से स्वागत करता हूं। आने वाले कुछ दिनों के दौरान आप हमारे आस-पास की दुनिया की स्थिति को ले कर संवाद करेंगे। आप इसके स्थायी मुद्दों और मौजूदा प्रवाह पर, इसके संघर्षों और खतरों पर, इसकी कामयाबी और मौकों पर, इसके पिछले व्यवहार और आने वाले लक्षणों पर चर्चा करेंगे और साथ ही यह भी दखेंगे कि भविष्य में चौंकाने वाली कौन सी बड़ी घटनाएं हो सकती हैं और क्या चीजें भविष्य में आम होने वाली हैं।

मित्रों,

मई, 2014 में, भारत के लोगों ने भी अपने लिए नया भविष्य लिखा। मेरे साथी भारतवासियों ने एक आवाज में अपनी बात रखी और मेरी सरकार को ऐसा जनादेश दिया कि मैं बदलाव ला सकूं। सिर्फ व्यवहार में ही नहीं, बल्कि सोच में भी। हवा के साथ बहे जाने की अवस्था से उद्देश्यपूर्ण कार्यों की ओर जाने का बदलाव। सख्त फैसले लेने का बदलाव। ऐसा जनादेश जहां सुधार तब तक पर्याप्त नहीं माने जाएंगे, जब तक कि वे हमारी अर्थव्यवस्था और समाज को परिवर्तित नहीं करते हों। ऐसा बदलाव जो भारत के युवाओं के सपनों और उम्मीदों में बसा हो और जो इसके करोड़ों लोगों की असीमित ऊर्जा से जुड़ा हो। हर दिन काम के दौरान मैं इस पवित्र ऊर्जा से प्रेरणा लेता हूं। हर कार्यदिवस के दौरान मेरी कार्यसूची हर भारतीय को समृद्धि और सुरक्षा की ओर ले जाने की मुहिम से संचालित होती है।

मित्रों,

मैं जानता हूं कि भारत के परिवर्तन को इसके बाहरी संदर्भों से अलग नहीं किया जा सकता। हमारा आर्थिक विकास; हमारे किसानों का हित; हमारे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर; पूंजी, तकनीक, बाजार और संसाधनों तक हमारी पहुंच; हमारे देश की सुरक्षा; ये सभी विश्व में होने वाले घटनाक्रम से बहुत गहरे प्रभावित होते हैं। लेकिन यह भी सच है कि इसका उल्टा भी होता है।

दुनिया को भारत के सतत विकास की भी उतनी ही जरूरत है, जितनी भारत को दुनिया की। अपने देश के बदलाव की हमारी इच्छा बाहरी दुनिया के साथ एक अदृष्य कड़ी से बंधी है। इसलिए, यह स्वभाविक है कि भारत की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकताएं एक सतत निरंतरता का हिस्सा बनी रहें। साथ ही इसका आधार पूरी तरह से भारत के बदलाव के लक्ष्यों से बंधा हो।

मित्रों,

एक बदलते वक्त के दौरान भारत अपने बदलाव में प्रयासरत है जो मानवीय प्रगति और हिंसक घटनाक्रम, दोनों का नतीजा है। बहुत से कारणों और बहुत से स्तरों पर, विश्व व्यापक बदलावों से गुजर रहा है। अंतरराष्ट्रीय रूप से जुड़ा समाज, डिजिटल अवसर, तकनीकी बदलाव, ज्ञान का बढ़ता जोर और खोजें इंसानियत की यात्रा को दिशा दे रही हैं। लेकिन विकास की धीमी रफ्तार और आर्थिक उथल-पुथल ऐसे तथ्य हैं जो सोचने को मजबूर करते हैं। आज के बिट्स और बाइट्स के दौर में भौतिक सीमाएं जरूर अप्रासंगिक हो रही हैं, लेकिन राष्ट्रों के अंदर की सीमाएं, व्यापार और पलायन के विरुद्ध एक मानसिकता और दुनिया भर में मौजूद संकीर्ण व संरक्षणवादी नजरिए की भी कमी नहीं। नतीजा यह है कि ग्लोबलाइजेशन का लाभ खतरे में है और आर्थिक लाभ हासिल करना अब बहुत आसान नहीं रहा। अस्थायित्व, हिंसा, अतिवाद, अलगाववाद और पारंपरिक खतरे खतरनाक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। राज्य के समर्थन के बिना चलने वाली ताकतें ऐसी चुनौतियों के प्रसार में अहम योगदान देती हैं। किसी दूसरी दुनिया के लिए किसी दूसरी दुनिया की ओर से बनाए गए संस्थान और ढांचे पुराने पड़ रहे हैं। प्रभावी बहुलतावाद के लिए ये बाधक साबित हो रहे हैं। शीत युद्ध के चौथाई सदी बाद जब दुनिया अपने आप को नए सिरे से संगठित कर रही है तो इसका आकार अभी ठीक से स्पष्ट नहीं हुआ है। लेकिन कई चीजें स्पष्ट हैं। राजनीतिक और सैन्य शक्ति बंटी हुई है। बहुकोणीय दुनिया और तेजी से बढ़ता बहु ध्रुवीय एशिया आज का एक अहम तथ्य है और हम इसका स्वागत करते हैं।

क्योंकि यह बहुत से देशों की प्रगति की सच्चाई को प्रदर्शित करता है। यह स्वीकार करता है कि वैश्विक एजेंडा बहुतों की आवाज से तय होना चाहिए ना की चंद दिमागों से। इसलिए हमें अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले किसी भाव या झुकाव से सतर्क रहने की जरूरत है। खास तौर पर एशिया में। बहुपक्षवाद से युक्त बहुध्रुवीय व्यवस्था पर केंद्रित यह सम्मेलन इसलिए बेहद प्रासंगिक है।

मित्रों,

हम रणनीतिक रूप से एक बेहद जटिल माहौल में रह रहे हैं। व्यापक इतिहास के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बदलती दुनिया कोई नई स्थिति नहीं है। अहम प्रश्न है कि जब व्यवहार का ढांचा ही तेजी से बदल रहा है तो ऐसे में विभिन्न देश किस तरह से पेश आएं। हमारे विकल्प और हमारे कदम राष्ट्रीय शक्ति पर आधारित हैं।

हमारी रणनीतिक मंशा हमारी नागरिकता के मूल सिद्धांतों पर आधारित है:

  • यथार्थवाद,
  • सह-अस्तित्व,
  • सहयोग तथा
  • सहभागिता।

इन मूल्यो को राष्ट्रीय हितों के स्पष्ट और जिम्मेवार रूप से पेश करने में भी देखा जा सकता है। घरेलू स्तर पर और विदेशों में भारतीयों की समृद्धि और हमारे नागरिकों की सुरक्षा हमारे लिए बहुत अहम हैं। लेकिन सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए काम करना ना तो हमारी संस्कृति में है और ना ही व्यवहार में। हमारे कार्य, इच्छाएं, क्षमताएं और मानवीय पूंजी, लोकतंत्र और आबादी तथा मजबूती और सफलता क्षेत्रीय और वैश्विक प्रगति का आधार बने रहेंगे। हमारी आर्थिक और राजनीतिक प्रगति बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और वैश्विक संभावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह शांति कायम करने वाली शक्ति है, स्थायित्व वाले वाला कारक है और साथ ही क्षेत्रीय व वैश्विक समृद्धि का इंजन है।

मेरी सरकार के लिए इसका मतलब ऐसे अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं जो केंद्रित हैं:

  • तारतम्य को पुनर्निर्मित करने, पुलों को पुनर्स्थापित करने और भारत को अपने निकट और दूर के भूगोल से फिर से जोड़ने
  • भारत की आर्थिक प्राथमिकता के आधार पर संबंधों को आकार देने
  • हमारे प्रतिभाशाली युवाओं को वैश्विक जरूरतों के साथ जोड़ कर भारत को मानव संसाधन के लिहाज से ऐसी शक्ति बनाने, जिस पर भरोसा किया जा सके।
  • हिंद महासागर के द्वीपों से ले कर पैसिफिक और कैरीबियन द्वीपों तक और अफ्रीका और अमेरिका तक विकास की साझेदारी कायम करने।
  • वैश्विक चुनौतियों पर भारतीय समाधान पेश करने।
  • वैश्विक संस्थानों और संगठनों को नए सिरे से तैयार करने और मजबूत करने में मदद करने।
  • आयुर्वेद और योग जैसी भारतीय सभ्यता की परंपराओं के लाभ के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाने।

इस तरह बदलाव हमारे लिए सिर्फ घरेलू एजेंडा नहीं है, बल्कि हमारे वैश्विक एजेंडा का हिस्सा है।

मेरे लिए सब का साथ; सब का विकास का दृष्टिकोण सिर्फ भारत के संदर्भ में नहीं है। यह पूरी दुनिया के लिए मेरी सोच है। यह अपने आप को विभिन्न आयाम और विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शित करता है।

अब मैं उनकी चर्चा करता हूं जो भौगोलिक रूप से हमसे सबसे करीब हैं और जो हमारे हितों के भी बेहद करीब हैं। हमने अपने पड़ोस के लिहाज से अपनी नीति में व्यापक बदलाव लाते हुए “पड़ोस-प्रथम” का रास्ता अपनाया है। दक्षिण एशिया के लोगों के बीच खून का रिश्ता है, इनका साझा इतिहास, संस्कृति और इच्छाएं हैं। इसके युवाओं की सकारात्मकता बदलाव, अवसर, विकास और समृद्धि तलाश रही है। पड़ोस के सभी देश अच्छे से फल-फूल रहे हों, आपस में अच्छे से जुड़े हों और एकजुट हों, यह मेरा सपना है। पिछले ढाई साल के दौरान हमने अपने सभी पड़ोसियों के साथ साझेदारी की है ताकि क्षेत्र को एकजुट किया जा सके। जब-जब जरूरत हुई है हमने अपने इतिहास के बोझ को हटा कर क्षेत्र के प्रगतिशील भविष्य को साकार करने की कोशिश की है। हमारे प्रयासों का नतीजा देखा जा सकता है।

अफगानिस्तान में दूरी और आवाजाही की समस्या के बावजूद संस्थान और क्षमता विकसित कर इसके पुनर्निर्माण के अभियान में हमारी साझेदारी बढ़ी है। इस पृष्ठभूमि में हमारे रक्षा संबंध भी मजबूत हुए हैं। अफगानिस्तान के संसद भवन का काम पूरा करना और भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध ये दो ऐसे चमकते उदाहरण हैं विकासपरक साझेदारी को हमारे समर्पण के।

बांग्लादेश के साथ आपसी संपर्क की और ढांचागत परियोजनाओं के परियोजनाओं के जरिए हमारा मेल-जोल और राजनीतिक तालमेल काफी बढ़ा है और हमने अपने जमीनी और समुद्री सीमा से जुड़े विवाद को भी निपटा लिया है।

नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव्स की ढांचागत सुविधाओं, संपर्क, ऊर्जा और विकास संबंधी परियोजनाओं में हमारी साझेदारी क्षेत्र में प्रगति और शांति का एक अहम स्रोत बन रही है।

अपने पड़ोस को ले कर मेरे विजन में पूरे दक्षिण एशिया के साथ शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण रिश्तों पर खास जोर है। इसी विजन की वजह से मैंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के सभी नेताओं को आमंत्रित किया था, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल था। इसी विजन के लिए मैंने लाहौर का सफर किया। लेकिन शांति के इस मार्ग पर भारत अकेला नहीं चल सकता। पाकिस्तान को भी इस सफर के लिए कदम उठाने होंगे। पाकिस्तान को अगर भारत के साथ बातचीत के रास्ते पर बढ़ना है तो इसे आतंकवाद का रास्ता हर हाल में छोड़ना होगा।

देवियों और सज्जनों,

और पश्चिम की तरफ बढ़ें तो हमने बहुत कम समय में ही और अनिश्चितताओं और गतिरोधों के बावजूद खाड़ी और पश्चिम एशिया के साथ अपने रिश्तों को नई परिभाषा दी है। इसमें सऊदी अरब, यूएई, कतर और ईरान सभी शामिल हैं। अगले हफ्ते मुझे अबू धाबी के महामहिम उत्तराधिकारी राजकुमार (क्राउन प्रिंस) का भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर स्वागत करने का सौभाग्य हासिल होगा। हमने ना सिर्फ धारणाओं को बदलने पर ध्यान दिया है, बल्कि हमारे रिश्तों की हकीकत को बदल दिखाया है।

इससे हमें आठ मिलियन हिंदुस्तानियों के भौतिक और सामाजिक कल्याण को आगे बढ़ाने के साथ ही हमारे सुरक्षा से जुड़े हितों को बढ़ावा देने व मजबूत आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को आगे बढ़ाने में सहायता मिली है। मध्य एशिया में भी, हमने समृद्ध साझेदारी के नए आयाम हासिल करने के लिए साझा इतिहास और संस्कृति की आधारशिला पर अपने संबंधों को खड़ा किया है। शंघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन में हमारी सदस्यता ने मध्य एशिया के देशों के साथ हमारे संबंधों को मजबूत सांस्थानिक आधार प्रदान किया है। हमने अपने मध्य एशियाई भाइयों और बहनों के चहुंमुखी समृद्धि के लिए निवेश किया है।

हमने उस क्षेत्र में लंबे समय से लंबित रिश्तों को नए सिरे से ऊंचाई देने में कामयाबी हासिल की है। अपने पूर्व में दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ हमारे संबंध एक्ट ईस्ट नीति के केंद्र में हैं। हमने इस क्षेत्र में गहरे तालमेल के लिए ईस्ट एशिया समिट जैसे सांस्थानिक ढांचे तैयार किए हैं। आशियान और इसके सदस्य देशों के साथ हमारी साझेदारी ने क्षेत्र में वाणिज्य, तकनीक, निवेश, विकास और सुरक्षा साझेदारी को बढ़ावा दिया है। इसने क्षेत्र में व्यापक रणनीतिक हितों और स्थायित्व को बढ़ावा दिया है। जैसा कि राष्ट्रपति शी और मेरे बीच सहमति बनी है, हमारे चीन के साथ संबंध में हमने व्यापक वाणिज्य और व्यापार के अवसरों का लाभ उठाने का फैसला किया है। मैं भारत और चीन के विकास को दोनों देशों के लिए और साथ ही पूरे विश्व के लिए एक अभूतपूर्व अवसर के तौर पर देख रहा हूं। लेकिन दो बड़ी पड़ोसी शक्तियों के बीच कुछ मतभेद मौजूद रहना कोई बहुत हैरानी की बात नहीं है। हमारे रिश्तों के प्रबंधन के लिए और क्षेत्र में शांति व विकास के लिए जरूरी है कि दोनों ही देश एक-दूसरे की मुख्य चिंताओं और हितों के प्रति संवेदनशील रहें और इनका सम्मान करें।

मित्रों,

सभी मानने लगे हैं कि मौजूदा सदी एशिया की है। सबसे तेजी से बदलाव एशिया में ही हो रहे हैं। प्रगति और समृद्दि का बड़ा खजाना इस क्षेत्र में और इसके परिदृष्य में समाहित हैं। लेकिन बढ़ती महत्वाकांक्षा और प्रतिद्वंदिता की वजह से तनाव के बिंदु भी दिखाई दे रहे हैं। एशिया-प्रशांत में लगातार बढ़ती सैन्य शक्ति, संसाधन और धन की वजह से सुरक्षा को ले कर भी खतरे बढ़े हैं। इसलिए क्षेत्र में सुरक्षा ढांचा खुला, पारदर्शी, संतुलित और सबको साथ ले कर चलने वाला होना चाहिए। यह संवाद को बढ़ावा देने वाला और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित व संप्रभुता का सम्मान करने वाला होना चाहिए।

मित्रों,

पिछले ढाई साल के दौरान हमने अमेरिका, रूस, जापान और दूसरी प्रमुख शक्तियों के साथ अपने रिश्तों को नई मजबूती दी है। उनके साथ हम सिर्फ सहयोग की भावना ही साझा नहीं करते, बल्कि हमारे सामने मौजूद अवसरों और चुनौतियों पर भी हमारे विचार एक हैं। ये साझेदारियां भारत की आर्थिक समृद्धि और रक्षा व सुरक्षा के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं। अमेरिका के साथ हमारे तालमेल के पूरे परिदृष्य में तेजी और मजबूती आई है। राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप के साथ मेरी बातचीत में हमने अपने सामरिक रिश्तों में आई मजबूती को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई है।

रूस हमेशा साथ खड़ा रहने वाला मित्र है। मौजूदा विश्व के समक्ष मौजूद चुनौतियों को लेकर राष्ट्रपति पुतिन और मेरे बीच लंबी बातचीत हुई है। हमारी विश्वस्त और सामरिक साझेदारी खास तौर पर रक्षा क्षेत्र में और मजबूत हुई है।

हमारे रिश्तों को आगे बढ़ाने वाले नए क्षेत्रों में हमारा निवेश और ऊर्जा, व्यापार, विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में जुड़ने की कोशिशों के नतीजे दिखाई दे रहे हैं। जापान के साथ भी हमारे पूरी तरह से सामरिक संबंध कायम हो गए हैं जिसके आयाम आर्थिक गतिविधियों के सभी पहलुओं तक फैले हैं। प्रधानमंत्री अबे और मैंने सहयोग को बढ़ाने के दृढ़ संकल्प को बयान किया है। यूरोप के साथ भारत के विकास और खास तौर पर नॉलेज इंडस्ट्री और स्मार्ट शहरीकरण को ले कर हमारा मजबूत साझेदारी का विजन तैयार हुआ है।

मित्रों,

भारत दशकों से अपनी क्षमताओं और शक्तियों को दूसरे विकासशील देशों के साथ साझा करने में आगे रहा है। अफ्रीका के अपने भाइयों और बहनों के साथ हमने पिछले कुछ वर्षों में अपने रिश्ते और मजबूत किए हैं और दशकों की परंपरागत मित्रता और ऐतिहासिक संबंधों के मजबूत आधार पर विकासपरक साझेदारी खड़ी की है। आज, हमारी विकासपरक साझेदारी के निशान पूरी दुनिया में देखे जा सकते हैं।

देवियों और सज्जनों,

भारत का समुद्री देश के तौर पर एक लंबा इतिहास रहा है। सभी दिशाओं में हमारे समुद्री हित सामरिक और अहम हैं। हिंद महासागर का प्रभाव इसके तटीय प्रभाव से काफी आगे तक जाता है। सागर (सेक्यूरिटी एंड ग्रोथ फोर ऑल इन द रीजन) के रूप में हमारा प्रयास सिर्फ हमारी मुख्य भूमि और द्वीपों की रक्षा तक सीमित नहीं है। यह समुद्री संबंधों में आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के हमारे प्रयासों को परिभाषित करता है। हमें पता है कि एकीकरण, सहयोग और साझा कदम से हमारे क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों और शांति में बढ़ोतरी होगी। हमारा यह भी मानना है कि हिंद महासागर क्षेत्र की शांति, समृद्धि और सुरक्षा का मुख्य जिम्मा इस क्षेत्र के लोगों का ही है। हम देशों को अलग रखने की धारणा पर नहीं चलते। साथ ही हमारा लक्ष्य है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का आदर करने के आधार पर हम देशों को साथ ला सकें। हमारा मानना है कि समुद्री आवाजाही की स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय नियमों का सम्मान इंडो-पैसिफिक इलाके के समुद्री इलाके के आपसी संबंध और इलाके में शांति व आर्थिक विकास के लिए बेहद जरूरी है।

मित्रों,

हम शांति, विकास और समृद्धि के लिए क्षेत्रीय आवाजाही की सुविधा को जरूरी मानने के तर्क से सहमत हैं। हमने अपनी पसंद और अपने कदमों के जरिए पश्चिम और मध्य एशिया व पूर्व की ओर एशिया-प्रशांत में आवाजाही के बंधनों को दूर करने की कोशिश की है। इसके दो सफल उदाहरण हैं- ईरान और अफगानिस्तान के साथ चाबहार पर किया गया त्रिपक्षीय समझौता और इंटरनेशनल नोर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को पूरा करने के प्रति हमारा समर्पण। हालांकि, सामान रूप से यह भी जरूरी है कि सिर्फ कनेक्टिविटी के लिए किसी देश की संप्रभुता को कम कर के नहीं आंका जा सकता।

संबंधित देशों की संप्रभुता सम्मान करते हुए ही क्षेत्रीय कनेक्टिविटी कॉरिडोर अपने वादों को पूरा कर सकती हैं और मतभेद व असंतोष को दूर कर सकती हैं।

मित्रों,

अपनी परंपरा के अनुकूल, हमने अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान रखते हुए अपने अंतरराष्ट्रीय कर्तव्यों का निर्वहन किया है। आपदा के समय हमने सहायता और राहत के प्रयासों का नेतृत्व किया है। नेपाल में आए भूकंप के दौरान, यमन से लोगों को निकालने के प्रयास में और मालदीव तथा फीजी के मानवीय गतिरोध के दौरान, हम विश्वसनीय और सबसे पहले पहुंचने वालों में थे। अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को कायम रखने की जिम्मेवारी को पूरा करने में भी हम पीछे नहीं रहे हैं। तटीय निगरानी, शिपिंग सूचना और समुद्री डाकुओं, तस्करी और संगठित अपराध जैसे गैर-पारंपरिक खतरों से निपटने के लिए हमने अपनी साझेदारी को बढ़ाया है।

लंबे समय से चली आ रही अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों को ले कर हमने नए विमर्श दिए हैं। आतंकवाद को धर्म से अलग करने और अच्छे व बुरे आतंकवाद के बीच के बनावटी फर्क को ठुकराने की हमारी मजबूत मान्यता पर अब दुनिया भर में चर्चा हो रही है। और हमारे पड़ोस में जो लोग हिंसा को समर्थन करते हैं, घृणा को बढ़ावा देते हैं और आंतकवाद का निर्यात करते हैं वे पूरी तरह से अलग-थलग व उपेक्षित हो गए हैं। ग्लोबल वार्मिंग की ऐसी ही एक अहम चुनौती को ले कर हम अहम भूमिका में आ गए हैं। हमने एक महत्वाकांक्षी एजेंडा तय किया है और साथ ही रिन्यूएबल एनर्जी से 175 गीगा वॉट बिजली पैदा करने का मुखर लक्ष्य भी रखा है। इस लिहाज से हमने एक अच्छी शुरुआत कर भी दी है। हमारी सभ्यता में प्रकृति के साथ मिल-जुल कर रहने की जो परंपरा रही है, उसे हमने साझा किया है। हमने इंटरनेशनल सोलर अलायंस तैयार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साथ लाया है। इसका लक्ष्य सूर्य की ऊर्जा का उपयोग मानवीय विकास को बढ़ावा देने में करना है। हमारे प्रयासों का एक प्रमुख उदाहरण भारतीय सभ्यता की महान सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी को फिर से जिंदा करना शामिल है। आज बौद्ध धर्म, योग और आयुर्वेद को पूरी मानवता की अमूल्य परंपरा के तौर पर देखा जा रहा है। भारत इस साझा परंपरा का उत्सव हर कदम पर मनाता रहेगा। क्योंकि यह देशों और क्षेत्रों के बीच सेतु का काम करते हैं और सर्वांगीण हित को बढ़ावा देते हैं।

देवियों और सज्जनों,

निष्कर्ष के तौर पर मैं यह कहने की इजाजत चाहूंगा कि विश्व के साथ संबंधों के बारे में हम अपने पुरातन ग्रंथों से मार्गदर्शन लेते हैं।

ऋग वेद कहता है-

आ नो भद्रो: क्रत्वो यन्तु विश्वतः यानी, “अच्छे विचार सभी ओर से आने दो।”

एक समाज के तौर पर हमने किसी एक की इच्छाओं पर बहुतों की आवश्यकता को तरजीह दी है। और ध्रुवीकरण पर साझेदारी को प्राथमिकता दी है। हमारा मानना है कि एक की कामयाबी बहुतों के विकास को गति दे। हमारा सबक तय है और दृष्टि स्पष्ट। बदलाव का हमारा सफर घर से शुरू होता है। और दुनिया भर में फैली रचनात्मक साझेदारी से इसे बहुत मजबूती मिलती है। घरेलू मोर्चों पर ऐसे ठोस कदम और विदेशों में विश्वसनीय मित्रता के नेटवर्क को बढ़ाने के साथ हम उस भविष्य की ओर बढ़ेंगे जो एक अरब से ज्यादा हिंदुस्तानियों से जुड़ा है। दोस्तों, इस प्रयास में आप भारत में शांति और विकास, स्थायित्व और कामयाबी, पहुंच और प्रश्रय की एक मशाल  पाएंगे।


धन्यवाद,

बहुत-बहुत धन्यवाद।

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