Author : Rishi Agrawal

Published on Mar 25, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत में श्रम क़ानूनों के आधुनिकीकरण की ज़रूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. हालांकि, प्रस्तावित लेबर कोड में गिग, असंगठित और अनौपचारिक श्रमिकों को मान्यता दी गई है.

वर्क फ्रॉम होम: संभावनाओं के साथ कुछ दिक्कतें और कुछ चुनौतियां

हर आर्थिक झटका अपने पीछे एक विरासत छोड़ जाता है. कोरोना वायरस का प्रकोप भी इससे अलग नहीं होगा. अबकी बार ये सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपातकाल है, जो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोर रहा है. कोरोना वायरस के संक्रमण ने कुछ ही हफ़्तों में लोगों से अभिवादन के हमारे तौर-तरीक़े को बदल डाला है. इसके कारण हमारे काम करने का ढंग भी बदल गया है और बच्चों की शिक्षा का तरीक़ा भी. दुनिया भर में दफ़्तर ख़ाली पड़े हैं. इस कारण से पूरी दुनिया में ग़ैर इरादतन लोग घर से काम करने के विश्व स्तरीय प्रयोग के लिए बाध्य हो गए हैं. हमारे काम करने के माहौल को अचानक से नए सिरे से तय किया जा रहा है. जो काम नोटबंदी ने डिजिटलीकरण के लिए किया था, वही काम कोरोना वायरस के प्रकोप से कामकाज के भविष्य का तरीक़ा तय करने में करेगा. दूर बैठकर काम करने विचार ऐसा है, जिसका अब समय आ गया है.

जब कोरोना वायरस के प्रकोप का ये संकट समाप्त हो जाएगा, तो बहुत सी कंपनियां अपने कामकाज के पुराने ढर्रे पर लौट जाएंगी. हालांकि, बहुत सी कंपनियों के लिए घर से काम करने का ये भरोसेमंद विकल्प आगे भी जारी रहने वाला है. कामकाज की दुनिया इस कदर बदल रही है, जैसा हमने पहले कभी नहीं देखा. और बहुत से लोगों के लिए अब डाइनिंग टेबल ही अपने ऑफ़िस की टेबल बन रही है. दुनियाभर की कंपनियों के मुख्य वित्तीय अधिकारी चौबीसों घंटे लगातार काम कर रहे हैं. ताकि, वो तकनीकी रूप से दूर बैठकर काम करना अभूतपूर्व स्तर तक संभव बना सकें. ये सीएफओ नए लैपटॉप ख़रीदने या किराए पर लेने के लिए लगातार प्रयत्नशील हैं. उन्हें आख़िरी छोर तक सुरक्षित बनाने के लिए प्रयासरत हैं. और सुरक्षित वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) से जोड़ रहे हैं, ताकि काम करने के लिए ज़रूरी ऐप्लिकेशन की घर तक उपलब्धता सुनिश्चित कर सकें. साथ ही साथ उनका ये भी प्रयास है कि वो आईटी एक्ट के अंतर्गत ही काम करें. उसकी हर शर्त को पूरा करें. और जनरल डेटा प्रोटेक्शन व अन्य डेटा प्राइवेसी के क़ानून के दायरे में रह कर काम कर सकें.

अब जबकि एक नई सच्चाई हमारे सामने खड़ी है और वो निरंतर साकार हो रही है. जिससे आगे चल कर दूरस्थ कामकाज के नए मॉडल विकसित होंगे. तो, ऐसे में भारत के पुराने श्रम क़ानून और प्रस्तावित श्रम अधिनियम इस विषय पर पूरी तरह ख़ामोश हैं

आज कंपनियों के मुख्य मानव संसाधन अधिकारियों के समक्ष कई अभूतपूर्व चुनौतियां खड़ी हैं. अधिकतर संगठनों के पास अच्छे से दस्तावेज़ों के तौर पर दर्ज नीतियां और दिशा निर्देश नहीं हैं, ताकि लंबे समय के लिए, व्यापक तौर पर घर से काम करने की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाया जा सके. अधिकतर प्रबंधकों के पास ये क्षमता नहीं है कि वो दूर बैठी टीमों को मैनेज कर सकें. भारत की अधिकतर युवा कामकाजी आबादी अन्य शहरों से आ कर कामकाज वाले शहरों में बसी है. और ऐसे युवा अक्सर एक ही घर में मिल कर रहते हैं. आम तौर पर इनके पास शांति से बैठकर काम करने का कोई ठिकाना नहीं होता. न ही उनके घर में पावर बैक अप होता है और न ही तेज़ गति से चलने वाले इंटरनेट की अबाध आपूर्ति व्यवस्था होती है. इनमें से अधिकतर को ये लगता है कि घर में बैठकर काम करने का अर्थ है कि दिन भर घर में बैठे हुए नेटफ्लिक्स देखना है. अभी इस बात के उपकरण नहीं हैं कि घर में उनकी उपलब्धता का आकलन किया जा सके. घर से काम करने पर उनकी उत्पादकता को मापा जा सके. और दूर बैठकर काम कर रहे लोगों से निरंतर संवाद बनाए रखा जा सके.

अब जबकि एक नई सच्चाई हमारे सामने खड़ी है और वो निरंतर साकार हो रही है. जिससे आगे चल कर दूरस्थ कामकाज के नए मॉडल विकसित होंगे. तो, ऐसे में भारत के पुराने श्रम क़ानून और प्रस्तावित श्रम अधिनियम इस विषय पर पूरी तरह ख़ामोश हैं. इन क़ानूनों में घर पर बैठकर काम करने के विकल्प को व्यवहारिक नहीं माना गया है. ऐसे में जो कुछ प्रमुख मुद्दे अनसुलझे हैं, वो इस प्रकार हैं:

भारत में केंद्र सरकार, राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को कुल मिला कर 416 श्रम क़ानून और नियम हैं. जिनके कारण 278 अलग अलग रिकॉर्ड रखे जाते हैं और श्रम से जुड़े रजिस्टर रखने के एक हज़ार से अधिक अलग-अलग फॉरमैट हैं. किसी भी संगठन के लिए अलग अलग क़ानूनों के अंतर्गत अपने यहां काम करने वालों का रिकॉर्ड रखना ज़रूरी होता है

वैधानिक रिकॉर्ड का रख रखाव

भारत में केंद्र सरकार, राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को कुल मिला कर 416 श्रम क़ानून और नियम हैं. जिनके कारण 278 अलग अलग रिकॉर्ड रखे जाते हैं और श्रम से जुड़े रजिस्टर रखने के एक हज़ार से अधिक अलग-अलग फॉरमैट हैं. किसी भी संगठन के लिए अलग अलग क़ानूनों के अंतर्गत अपने यहां काम करने वालों का रिकॉर्ड रखना ज़रूरी होता है. जैसे कि शॉप्स ऐंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, मिनिमन वेजेस एक्ट, पेमेंट ऑफ़ वेजेस एक्ट, इक्वल रेम्यूनरेशन एक्ट, पेमेंट ऑफ़ बोनस एक्ट, फैक्टरीज़ एक्ट और कॉन्ट्रैक्ट लेबर रेगुलेशन ऐंड एबॉलिशन एक्ट. इन क़ानूनों के अंतर्गत, काम के घंटे, वेतन का भुगतान, छुट्टियां और अवकाश, सेवा की शर्तें और काम करने वालों से जुड़े अन्य नियम तय होते हैं. इन सभी क़ानूनों को लागू करने का अर्थ होता है कि किसी कंपनी में काम करने वालों के हाज़िरी रजिस्टर, वेतन रजिस्टर, छुट्टी और उपस्थिति रजिस्टर, ओवरटाइम रजिस्टर वग़ैरह का रिकॉर्ड बनाए रखना होता है. ये रजिस्टर काग़ज़ी भी हो सकते हैं और इनका इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड भी रखा जा सकता है.

लेकिन, इन क़ानूनों के अंतर्गत ये मान कर चला जाता है कि किसी कर्मचारी के काम करने की जगह एक तय भौगोलिक ठिकाना होती है. और इसमें दूर से बैठकर काम करने वालों गिनती की व्यवस्था नहीं है. हमारे श्रम क़ानूनों में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि छुट्टियां और उपस्थिति दर्ज करने के, काम के घंटों के और अन्य ज़रूरी रिकॉर्ड को दर्ज करने का नया तरीक़ा अपनाया जा सके.

ओवरटाइम के वेतन की गणना

किसी भी कंपनी को किसी कर्मचारी के वेतन की गणना, उसके द्वारा किए गए काम के घंटों और दिनों के आधार पर करनी होती है. इसका हिसाब रखने के लिए कंपनियां वैधानिक रूप से उपस्थिति और काम का रजिस्टर बनाती हैं. ओवरटाइम काम के घंटों के वेतन का भुगतान करने की गणना अलग से आधारित होती है और उनके वेतन के मानक भी अलग होते हैं. किसी दूरस्थ कामकाजी स्थल की व्यवस्था में संगठनों को इस रिकॉर्ड के प्रबंधन में नई प्रक्रिया का पालन करना पड़ेगा, ताकि श्रम विभाग इसे मान्यता दे.

गणना और मानक लागू करने की चुनौतियां

जिन मामलों में कोई कर्मचारी दूर बैठकर काम करता है और दूसरे राज्य में रहता है, वहां पर लागू होने वाले श्रम क़ानून बदल जाएंगे. जिससे उन्हें लागू करना सुनिश्चित कराने का तरीक़ा भी बदल जाएगा. अलग अलग राज्यों ने श्रम क़ानूनों का पालन कराने के मानक अलग अलग रखे हैं. हर राज्य में रजिस्ट्रेशन और इनके दस्तावेज़ों का संरक्षण करने के अलग पैमाने हैं. ये अपने आप में ज़ाहिर हो जाता है, जब आप हर राज्य में इस दस्तावेज़ों को जमा करने, वैधानिक रिकॉर्ड रखने के फॉरमैट और उस पर जुर्माने की संरचना को देखते हैं. इसके कुछ उदाहरण लेते हैं.

अब जबकि घर से काम करना वास्तविक और व्यापक होने जा रहा है. तो, तमाम संगठनों में काम करने वालों का भौगोलिक विस्तार भी व्यापक होगा.

न्यूनतम वेतन अधिनियम

अलग अलग राज्यों में न्यूनतम वेतन की सीमा अलग-अलग है. जो काम के घंटों, कार्यकुशलता और क्षेत्र के हिसाब से तय होता है. उदाहरण के लिए केवल कर्नाटक राज्य में ही आठ सौ प्रकार के न्यूनतम वेतन के मानक लागू हैं. अगर किसी कंपनी में अलग अलग राज्यों के कई कर्मचारी घर बैठकर काम करेंगे, तो उनके वेतन की गणना करने में कई तरह की पेचीदगियों में वृद्धि हो जाएगी. हर राज्य में बैठे कर्मचारी के वेतन की गणना में उस राज्य के न्यूनतम वेतन के क़ानून के मानक का पालन करना कंपनियों के लिए आवश्यक हो जाएगा.

पेशेवर कर

हर राज्य के हिसाब से प्रोफ़ेशनल टैक्स की गणना, उनके लागू होने और उनका हिसाब किताब सरकार को देने के नियम बदल जाते हैं. हालांकि, इसके लिए चालान का मासिक अनुपालन यानी एमटीआर-6 का पालन करना होता है. अगर कोई कर्मचारी किसी अन्य राज्य में बैठकर काम कर रहा होता है, तो उससे संबंधित रिकॉर्ड को दर्ज करने और उसे सरकार के पास जमा करने की राह में कई अन्य मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं. जैसे कि रजिस्ट्रेशन और फाइलिंग. कई राज्यों में प्रोफ़ेशनल टैक्स की फ़ाइलिंग स्थानीय निकाय के स्तर पर होती है और ये रिकॉर्ड पूरी तरह से डिजिटलीकृत नहीं हैं. इसका नतीजा ये होता है कि मासिक रिकॉर्ड को दर्ज करने और उसको जमा करने की लागत कई गुना बढ़ जाती है.

श्रमिक कल्याण कोष

श्रमिक कल्याण कोष की स्थापना एक राज्य स्तरीय क़ानून है और ये हर राज्य में अलग अलग तरह से लागू होता है. अलग तरह से इसकी गणना होती है. और इसका रिकॉर्ड फाइल करने की समयावधि भी अलग अलग ही होती है. ऐसे में अगर कोई कर्मचारी किसी अन्य राज्य में बैठकर काम कर रहा होता है, तो इसके लिए किसी कंपनी को अतिरिक्त रजिस्ट्रेशन कराना होगा. और उसका हिसाब किताब भी अलग से सरकार को देना होगा. इससे, इस क़ानून के पालन की राह में भी कई पेचीदगियां उत्पन्न होंगी. और, कंपनी को इसका रिकॉर्ड रखने की लागत भी अधिक चुकानी होगी.

नियत कालिक नियामक अपडेट

भारत में नियामक व्यवस्था सतत परिवर्तनशील है. 2019 में क़ानूनों में तीन हज़ार 29 अपडेट किए गए थे. इनमें से 694 संशोधन केंद्र और तमाम राज्यों के श्रम क़ानूनों से जुड़े हुए थे. अब जबकि घर से काम करना वास्तविक और व्यापक होने जा रहा है. तो, तमाम संगठनों में काम करने वालों का भौगोलिक विस्तार भी व्यापक होगा. इसका नतीजा ये होगा कि अलग-अलग राज्यों में बैठे किसी कंपनी के कर्मचारी अलग अलग श्रम क़ानूनों के दायरे में आएंगे. जिनका पालन करना किसी कंपनी के लिए बाध्यता होगी. उनसे जुड़े रिकॉर्ड रखने, कर्मचारियों का हिसाब किताब सरकार को देने का व्यय बढ़ेगा. और, कंपनी को सदैव प्रासंगिक नियामक संशोधनों पर भी नज़र रखनी पड़ेगी.

दफ़्तरों में उत्पादकता बढ़ाने के औज़ारों, आपसी सहयोग बढ़ाने, डिजिटल दस्तावेज़ रखने, काम करने के तरीक़े में अधिक लचीलापन, सस्ती ब्रॉडबैंड संयोजकता में तकनीकी तरक़्क़ी से दफ़्तर के बजाय घरों में काम करना भविष्य में और अधिक आसान होता जाएगा

निष्कर्ष

भूमंडलीकरण एक शक्तिशाली ताक़त है, जिसने आधुनिक काल की संरचना की है. दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे से लगातार क़रीब आती जा रही हैं. और, अपने संचालन के लिए एक दूसरे पर उनकी निर्भरता भी बढ़ गई है. नई पीढ़ी के कामकाजियों के लिए अधिक लचीलापन, ख़ुद को ढालने की अधिक क्षमता और दबाव को सहन करने की अधिक शक्ति की ज़रूरत होगी. दफ़्तरों में उत्पादकता बढ़ाने के औज़ारों, आपसी सहयोग बढ़ाने, डिजिटल दस्तावेज़ रखने, काम करने के तरीक़े में अधिक लचीलापन, सस्ती ब्रॉडबैंड संयोजकता में तकनीकी तरक़्क़ी से दफ़्तर के बजाय घरों में काम करना भविष्य में और अधिक आसान होता जाएगा.

भारत के श्रम क़ानून अभी भी 19वीं सदी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले हैं. जबकि बाक़ी की दुनिया पहले ही इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुकी है. भारत में श्रम क़ानूनों के आधुनिकीकरण की ज़रूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. हालांकि, प्रस्तावित लेबर कोड में गिग, असंगठित और अनौपचारिक श्रमिकों को मान्यता दी गई है. लेकिन, इस प्रस्तावित लेबर कोड में घर से काम करने को वैधानिक मान्यता देने को लेकर पूरी तरह से ख़ामोशी बरती गई है. सरकार को चाहिए कि वो दूर से काम करने को वैधानिकता और नियामक जामा पहनाने के लिए गंभीरता से सोचना आरंभ कर दे. संगठनों को भी ये समझना होगा कि मौजूदा संकट के दौरान घर से काम करने के निहितार्थ क्या होंगे. तमाम कंपनियों को ये सुनिश्चित करना होगा कि बेहद महत्वपूर्ण क़ानूनों का पालन करने में उनसे कोई चूक न हो जाए.

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