देश: महिला श्रमशक्ति और ई-श्रम पोर्टल – एक अचानक सी उभरती प्रवृत्ति का उदय!
गाँव की अन्य महिलाओं की तरह, मंजु गामेटी भी अपने घर की मुखिया हैं, जबकि उसके पति करने के लिए शहर जा चुके हैं. वो दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर ज़िले के सुथार मदरा, नामक आदिवासी बहुल गाँव की रहने वाली हैं. पति के बाहर रहने की वजह से, उसने अपने काम बाँट रखे हैं, वो आधे महीने अपनी फसल का ध्यान रखती है और उसके बाद वो आधे महीने के लिए वो MGNREGS (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना) में काम करती है. पिछले कई महीनों से वो अपने गाँव के सौ से भी ज़्यादा महिलाओं को ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत करने के लिए प्रेरित कर रही है. वो उन्हें नज़दीक के आम सेवा सेंटर (सीएससी) यानी की डिजिटल सहायता के लिए कीऑस्क पर ले जाती है, जहां वे निःशुल्क पंजीकरण करा सके. उसे ये नहीं मालूम है कि पंजीकरण के क्या फायदे हैं, परंतु वो ऐसा समझती है की सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का फ़ायदा लेना महिलाओं के लिए ज़रूरी है, और अगर उनके पति के साथ कुछ दुर्घटना होती है. तो ये ई-श्रमकार्ड अपने 12 संख्या के अद्भुत नंबरों की मदद से उसकी सुरक्षा की टिकट साबित हो सकती है.
ई-श्रम पोर्टल, देश में असंगठित श्रमिकों का सबसे पहला राष्ट्रीय डेटाबेस संग्रह हैं, जो की श्रमशक्ति का कुल 92 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता हैं. ये 2020 में उत्पन्न हुई प्रवास संकट के प्रतिक्रिया में, पिछले साल के अगस्त माह में शुरू हुआ था, जब दसियों-हज़ारों की संख्या में श्रमिक अपने घर लौट आए थे.
क्या है ई-श्रम पोर्टल
ई-श्रम पोर्टल, देश में असंगठित श्रमिकों का सबसे पहला राष्ट्रीय डेटाबेस संग्रह हैं, जो की श्रमशक्ति का कुल 92 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता हैं. ये 2020 में उत्पन्न हुई प्रवास संकट के प्रतिक्रिया में, पिछले साल के अगस्त माह में शुरू हुआ था, जब दसियों-हज़ारों की संख्या में श्रमिक अपने घर लौट आए थे. इस संकट नें सामाजिक सुरक्षा की कमी और अव्यवस्थित श्रमिकों की सही डेटा की कमी को उजागर किया, जिसके आधार पर फिर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ऐसे श्रमिकों का डेटाबेस तैयार करने का निर्देश दिया था.
ये पोर्टल 380 मिलियन पंजीकरण करने का ध्येय रखता है, जो कि इकोनॉमिक सर्वे (2019-20) के अनुसार, देश में असंगठित श्रमिकों की अनुमानित संख्या है. हालांकि, भारत में असंगठित श्रमिकों की संख्या सरकार के अनुमान से काफी ज़्यादा होने की उम्मीद है. अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 से अव्यावहारिक श्रमशक्ति 415 मिलियन के करीब है. कोई भी श्रमिक, जो 16 से 59 वर्ष का है और असंगठित सेक्टर में काम कर रहा है, वो पंजीकरण करवाने का पात्र है, जिसमें कि अन्य लोगों के साथ-साथ, प्रवासी श्रमिक, कंस्ट्रक्शन मज़दूर, मनरेगा श्रमिक, कृषि क्षेत्र में कार्यरत मजदूर, स्ट्रीट वेंडर, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक, आशा और आंगनवाड़ी कर्मी भी शेष अन्य के साथ शामिल हैं. सरकार ने इन्हें भारत के “राष्ट्र निर्माता” के तौर पर चिन्हित किया है.
महिलाएं भारत में, घरेलू मजदूरों का एक महत्वपूर्ण बहुमत बनाती हैं, जो लगभग 75 प्रतिशत हैं. श्रम अधिनियम में, एक श्रमिक के तौर पर उनको कोई वैद्यानिक सुरक्षा नहीं मिली है और वे पूर्णतयाः रोज़गार देने वाले पर ही आश्रित रहती हैं.
इन उपेक्षित श्रेणियों में असंगठित श्रमिकों का समावेश, और इन्हें सामाजिक और डिजिटल वेलफ़ेयर के दायरे में लाना, इस अति आवश्यक उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में, डाटाबेस तैयार करना सबसे पहला कदम है. ये पोर्टल असंगठित मजदूरों के लिए सभी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा के फायदे प्रदान करने का दावा करता है, और ये डेटाबेस आपातकाल स्थिति और राष्ट्रीय आपदा जैसी स्थिति में, इन असंगठित मजदूरों को ज़रूरी सहायता भी प्रदान कर सकता है. इसके बावजूद कि इन हाशिये पर रहने वाले श्रमिकों तक सामाजिक सुरक्षा कवरेज को पहुंचाने का वादा किया जा रहा है, ये किस तरह से पूरा होगा ये भविष्य में देखने वाली बात होगी.
पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं का पंजीकरण
पोर्टल को लॉन्च किये जाने के बाद से, एक ट्रेंड शुरू से बना हुआ है और वो ये कि इस पर पुरुषों की तुलना में ज़्यादातर महिलाएं ही अपना पंजीकरण करा रही हैं. श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा साझा किये गए ताज़ा आँकड़ों के अनुसार, मार्च 2022 तक, 270 मिलियन से भी ज़्यादा श्रमिकों का इस पोर्टल पर पंजीकरण हो चुका है, जिनमें से 53 प्रतिशत महिलाएं और 47 प्रतिशत पुरुष हैं. ई-श्रम के डैशबोर्ड पर हर टॉप पाँच राज्यों जिनमें उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, और ओडिशा शामिल हैं, वहां महिलाओं का पंजीकरण सर्वाधिक है. तमिलनाडु (61.88), मेघालय (66.04) और केरल (59.58) की महिला श्रमिकों ने भी सबसे ज़्यादा पंजीकरण किया है.
उत्तरप्रदेश और बिहार दोनों ही में, कृषि क्षेत्र से सबसे ज़्यादा पंजीकरण हुए हैं, उसके बाद गृहस्थ और घरेलू मज़दूर, निर्माण और कपड़ा मैन्यूफैक्चरिंग के – सेक्टर में महिला श्रमशक्ति की संख्या बहुतायत में है. ये पोर्टल श्रमशक्ति की उम्र-सीमा पर काफी रौशनी देती है, जो की मुख्य रूप से युवा हैं और वित्तीय अनिश्चितताओं से घिरे होते हैं – लगभग 62% श्रमिक 18 – 40 वर्ष की उम्र के बीच में होते हैं, और 270 मिलियन में से 250 मिलियन लोग जिन्होंने इस पोर्टल में पंजीकरण कराया हैं, वो प्रतिमाह मात्र 10,000 रुपए या उससे कम ही कमाते हैं.
यह देखना शिक्षाप्रद होगा कि आखिर क्यों इस पोर्टल पर, महिलाएं अधिक संख्या में हैं. परंतु आने वाले कुछेक महीनों तक, इसकी वजह स्थिर रह सकते हैं. उनमें से एक तो ज़मीनी तौर पर जुड़े संस्थाओं का दख़ल है जो कि ग्रामीण और शहरी तौर पर महिलाओं के समूह के साथ काफ़ी नज़दीकी तौर पर काम करते हैं.
हर सेक्टर में, महिलाओं का काम बिल्कुल नगण्य/अदृश्य ही रहा है. नेशनल काउन्सिल ऑफ़ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2018 में दिए गए रिपोर्ट के अनुसार, देश के कृषि श्रम शक्ति की कुल 42 प्रतिशत महिलाएं हैं, कृषि क्षेत्र में महिलाओं के बढ़ते दखल के बावजूद, वे कृषियोग्य ज़मीन के 2 प्रतिशत से कम का मालिकाना हक़ रखती हैं. उसी तरह से, महिलाएं भारत में, घरेलू मजदूरों का एक महत्वपूर्ण बहुमत बनाती हैं, जो लगभग 75 प्रतिशत हैं. श्रम अधिनियम में, एक श्रमिक के तौर पर उनको कोई वैद्यानिक सुरक्षा नहीं मिली है और वे पूर्णतयाः रोज़गार देने वाले पर ही आश्रित रहती हैं. ये पोर्टल बेहतर तरीके से इन जैसे लोगों को घरेलू मज़दूर की श्रेणी में एक पहचान देने में सक्षम है.
महिलाएं के कारण पंजीकरण में उछाल कैसे?
पोर्टल को लॉन्च किये जाने के वक्त़ इस बात का भय था कि पुरुष और महिलाओं के बीच की तीक्ष्ण डिजिटल भेद की वजह से महिलाएं पीछे छूट जाएंगी. पाँचवी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार, ग्रामीण भारत में हर 10 मे से 3 महिलाएं और शहरी भारत में हर 10 में से 4 महिलाओं ने शायद ही कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया हो. हालांकि, स्वः पंजीकरण की संख्या अनुमानतः कम ही हैं, फिर भी ये कोई मुद्दा नहीं हैं, ज़्यादातर पंजीकरण सुविधा जन सेवा सेंटर द्वारा संचालित हुआ है, जो कि ज़मीनी स्तर पर डिजिटल सेवा प्रदान करती है.
महिलाओं द्वारा किये गए ज़्यादातर पंजीकरण एक सकारात्मक सूचना हो सकती है. भारत में, पुरुषों की तुलना में, महिलायें ज्य़ादा बड़ी संख्या और उच्च प्रतिशत में इनफॉर्मल अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं – 94 प्रतिशत महिलाएं इस अनौपचारिक सेक्टर में हैं. आमतौर पर महिलाओं की श्रमशक्ति और देश की अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका को लेकर जो धारणा बनी हुई है, उसकी तुलना में ये आंकड़े कई हद तक विरोधाभास पैदा करते हैं. क्योंकि Periodic Labour Force Survey द्वारा जो पिछला सर्वे किया गया था, उसके आखिरी दौर की पुष्टि के अनुसार, इस समय देश की श्रमशक्ति में महिलाओं की सहभागिता अपने ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर है.
ई-श्रम के संबंध में एक सवाल जो लगातार पूछा जा रहा हैं वो ये की, एक बार डेटा संकलन हो जाने के बाद फिर क्या होगा. पंजीकृत मजदूरों को दिए जाने वाले मामूली दुर्घटना बीमा (200,000 रुपए) दिए जाने के अलावा, किसी भी बात की स्पष्टता नहीं है कि ये कैसे श्रमिकों के लिए, सामाजिक और सुरक्षा से जुड़े फ़ायदे मुहैय्या करा सकने में समर्थ होगी
ये समझे जाने की आवश्यकता है कि इस प्रवृत्ति का कारक क्या है. एक बार जब 380 मिलियन लोगों का पंजीकरण टारगेट (अगर ये अनुमान सही रहा तो) को प्राप्त कर लिए जाएगा तो, यह देखना शिक्षाप्रद होगा कि आखिर क्यों इस पोर्टल पर, महिलाएं अधिक संख्या में हैं. परंतु आने वाले कुछेक महीनों तक, इसकी वजह स्थिर रह सकते हैं. उनमें से एक तो ज़मीनी तौर पर जुड़े संस्थाओं का दख़ल है जो कि ग्रामीण और शहरी तौर पर महिलाओं के समूह के साथ काफ़ी नज़दीकी तौर पर काम करते हैं. पुरुषों की तुलना में, जिनमें से ज़्यादातर प्रवासी श्रमिक के तौर पर शहरों में काम करते हैं, महिलाओं को संस्थानों एवं समूहों की मदद से प्रेरित करना आसान होता है.
अस्पष्ट सामाजिक लाभ
इस पोर्टल में डाटा संकलन के तौर पर लोगों के नाम, व्यवसाय, पता, शैक्षणिक योग्यता, योग्यता के प्रकार और पारिवारिक विवरण मांगे जाते हैं. हालांकि, ये प्रवासी मजदूरों से संबंधित विवरण प्राप्त करने में सफल नहीं रह सका है, जो कि प्रथमदृष्ट्या इनका प्रमुख उद्देश्य था. बहुसंख्या में पंजीकृत मजदूरों में से ज़्यादातर ने सूचित किया कि वे प्रवासी नहीं हैं. चूंकि, इस पोर्टल को स्वःपंजीकरण हेतु आधार द्वारा लिंक किये गए मोबाइल नंबर और बैंक अकाउंट की ज़रूरत पड़ती हैं, इसलिये ऐसी सूचना है कि आख़िर कैसे ये श्रमशक्ति में जो सबसे ज्य़ादा हाशिये पर खड़ा है उसे छोड़ने को बाध्य हो सकता है.
ई-श्रम के संबंध में एक सवाल जो लगातार पूछा जा रहा हैं वो ये की, एक बार डेटा संकलन हो जाने के बाद फिर क्या होगा. पंजीकृत मजदूरों को दिए जाने वाले मामूली दुर्घटना बीमा (200,000 रुपए) दिए जाने के अलावा, किसी भी बात की स्पष्टता नहीं है कि ये कैसे श्रमिकों के लिए, सामाजिक और सुरक्षा से जुड़े फ़ायदे मुहैय्या करा सकने में समर्थ होगी. फिर भी, भारत के ऐसे कई अदृश्य मज़दूरों के लिए, ख़ासकर मंजु गामेटी जैसी महिलाओं के लिए, ये आशा की एक किरण है.
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