Author : Sushant Sareen

Published on Jun 24, 2019 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान इस मामले में अभी भी पुरानी चाल चल रहा है. राहत पैकेज के लिए अभी जो भी शर्तें रखी जा रही हैं, वह उन पर हामी भर रहा है. उसे उम्मीद है कि जैसे ही हालात बेहतर होंगे, उसे इन शर्तों को पूरा करने की जरूरत नहीं होगी.

क्या पाकिस्तान तबाह हो जाएगा? आंकड़ों का इशारा तो यही है

आज का पाकिस्तान क्या अपना आर्थिक वजूद बनाए रख सकता है? क्या विदेश से भारी-भरकम वित्तीय मदद के बगैर उसका गुजारा हो सकता है? या यह कहें कि क्या वह अपने पैसों से गुजर-बसर कर सकता है या उसे हमेशा दूसरों की मदद के भरोसे रहना पड़ेगा.

पाकिस्तान हर कुछ साल पर आर्थिक संकट में फंसता रहता है, लेकिन जब भी वहां इसका नया साइकल (चक्र) शुरू होता है, वह आर्थिक तबाही के कगार पर पहुंच जाता है. पाकिस्तान का मौजूदा आर्थिक संकट कई मायनों में पिछले संकटों से ख़तरनाक है. यह सिर्फ़ वित्तीय नहीं बल्कि सिस्टेमिक और स्ट्रक्चरल संकट है यानी इससे उसके अस्थिर होने का ख़तरा पैदा हो गया है. फ़ौरी उपायों से भले यह जोख़िम कुछ समय के लिए टल जाए, लेकिन इनसे पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की बुनियादी समस्याएं खत्म नहीं होंगी. राहत पैकेज भले ही उसे अभी संकट से उबार लें, लेकिन इससे आने वाले संकट की जमीन तैयार होगी, जिसे संभालना और मुश्किल होगा.

असल में राहत पैकेज के साथ जिन रिफॉर्म्स (आर्थिक सुधारों) की जरूरत है, वे बेमन से किए जाएंगे या हिचक के साथ उनमें से कुछ पर अमल होगा. इनका मक़सद तात्कालिक संकट को टालना होगा, न कि आर्थिक सुधारों के साथ अर्थव्यवस्था में जान फूंकना. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की तरफ़ से कथित तौर पर थोपे और ‘आयात’ किए गए वित्त मंत्री और पाकिस्तानी ‘डीप स्टेट’ (सेना और आईएसआई जैसी ताकतें) के उस बयान को हमें इसी संदर्भ में देखना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि अगर अर्थव्यवस्था के असंतुलन को दूर नहीं किया गया तो पाकिस्तान डिफॉल्ट (कर्ज न चुका पाना) कर जाएगा और उसके सामने बचने का कोई रास्ता नहीं होगा. इससे लगता है कि पाकिस्तान की हालत जैसी दिख रही है, उससे कहीं ज्यादा ख़राब है.

पड़ोसी देश के हालिया बजट को देखकर लगता है कि उसकी अर्थव्यवस्था एक लंबी अंधी सुरंग की तरफ बढ़ रही है, जिसके दूसरी तरफ रोशनी नहीं है. बजट में आंकड़ों को इस कदर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है कि कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहा है.

पड़ोसी देश के हालिया बजट को देखकर लगता है कि उसकी अर्थव्यवस्था एक लंबी अंधी सुरंग की तरफ बढ़ रही है, जिसके दूसरी तरफ रोशनी नहीं है. बजट में आंकड़ों को इस कदर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है कि कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहा है. इससे भी बुरी बात यह है कि 2019-20 बजट के लक्ष्य को वह किसी तरह हासिल कर भी लेता है, तब भी वह आर्थिक दलदल से बाहर नहीं निकल पाएगा.

इसकी वजह बिल्कुल साफ़ है: पाकिस्तान की वित्तीय स्थिति इकोनॉमिक मैनेजमेंट की बुनियादी चीज़ो के खिलाफ़ है. उन्हें जोड़ने पर जो आंकड़ा मिलता है, वह मैच नहीं करता. पाकिस्तान का बजट ‘जादुई अर्थशास्त्र’ का नायाब नमूना है और कुछ नहीं.

2019-20 के बजट में इमरान खान सरकार ने 5.55 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये के टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य रखा है, जो वित्त वर्ष 2018-19 के 4.150 लाख करोड़ के संशोधित अनुमान से 1.450 लाख करोड़ रुपये यानी 35 पर्सेंट अधिक है. संशोधित टैक्स कलेक्शन के आंकड़े भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए हैं. असल में 30 जून को खत्म होने जा रहे वित्त वर्ष में उसका टैक्स कलेक्शन 3.95 लाख करोड़ रुपये को पार नहीं कर पाएगा. वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में टैक्स से जितनी आमदनी का दावा किया गया था, संशोधित टैक्स कलेक्शन उससे 285 अरब रुपये कम है. टैक्स से असल में जितनी आमदनी की उम्मीद है, वह तो बजट में दिए गए आंकड़े से 485 अरब रुपये कम है. दिलचस्प बात यह है कि वित्त वर्ष 2018-19 का संशोधित टैक्स कलेक्शन इससे पिछले वित्त वर्ष की संशोधित टैक्स इनकम के बराबर है (पेज 3). इसका मतलब यह है कि वित्त वर्ष 2018-19 में इससे पिछले साल की तुलना में सरकार की टैक्स से आमदनी बिल्कुल नहीं बढ़ी है. इसके बावजूद वित्त वर्ष 2019-20 में इसमें 35 पर्सेंट बढ़ोतरी का अनुमान (अगर आप 3.95 लाख करोड़ के वास्तविक अनुमान के हिसाब से कैलकुलेशन करें तो यह 40 पर्सेंट हो जाती है) लगाया गया है!

2018-19 में पाकिस्तान के ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट (जीडीपी यानी देश में बनने वाले सारे सामान और दी जाने वाली सेवाओं की कीमत) के 3.3 पर्सेंट बढ़ने का अनुमान है. वैसे इंडिपेंडेंट इकनॉमिस्टों का कहना है कि यह भी 1 पर्सेंट अधिक है. इसके लिए बिजली उत्पादन-वितरण और गैस डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर में हैरतंगेज 40 पर्सेंट का इजाफा दिखाया गया है. खैर, 3.3 पर्सेंट जीडीपी ग्रोथ और 7 पर्सेंट की महंगाई दर को देखते हुए टैक्स कलेक्शन में कम से कम 10-11 पर्सेंट की बढ़ोतरी होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अगले वित्त वर्ष में ग्रोथ के घटकर 2.4 पर्सेंट और महंगाई दर के 11-13 पर्सेंट रहने का अनुमान है. इसलिए टैक्स कलेक्शन में स्वाभाविक तौर पर 15 पर्सेंट की बढ़ोतरी होनी चाहिए, लेकिन इसके 35 पर्सेंट ( या वास्तविक आंकड़ों के हिसाब से 40 पर्सेंट) बढ़ने की उम्मीद नादानी है. फिर पाकिस्तान ने ऐसा क्यों किया?

शायद इसकी वजह विश्व बैंक की एक रिपोर्ट है, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान टैक्स चोरी रोककर, रियायतों को खत्म करके और टैक्स के दायरे में अधिक लोगों को लाकर आमदनी में अच्छी-खासी बढ़ोतरी कर सकता है. विश्व बैंक पाकिस्तान की आमदनी बढ़ाने के प्रोजेक्ट की फंडिंग के लिए मान गया है, लेकिन पिछली बार के ऐसे प्रोजेक्ट का कोई नतीजा नहीं निकला था.

पाकिस्तान की आबादी हर साल 2.4 पर्सेंट बढ़ रही है. ऐसे में अगर पिछले वित्त वर्ष और आने वाले वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ कमोबेश बराबर रहती है तो वहां के लोगों की आमदनी में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी. अगर इसमें बढ़ती महंगाई दर के असर को जोड़ें तो वहां गरीबी और बेरोजगारी बढ़ेगी. पाकिस्तान के इंडिपेंडेंट इकनॉमिस्टों का कहना है कि टैक्स दरों में बढ़ोतरी, पाकिस्तान की मुद्रा में कमजोरी और यूटिलिटी प्राइसेज में तेज बढ़ोतरी से महंगाई दर पाकिस्तान सरकार के 11-13 पर्सेंट के अनुमान से कुछ अधिक रह सकती है. यह हाल तो तब का है, जब पाकिस्तान बजट में दिए गए लक्ष्य हासिल करे.

पाकिस्तान की आबादी हर साल 2.4 पर्सेंट बढ़ रही है. ऐसे में अगर पिछले वित्त वर्ष और आने वाले वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ कमोबेश बराबर रहती है तो वहां के लोगों की आमदनी में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी.

अगर मान लें कि पाकिस्तान यह करिश्मा दिखाते हुए 5.55 लाख करोड़ की आमदनी का लक्ष्य हासिल कर लेता है, तब भी वह संकट से बाहर नहीं निकलेगा क्योंकि उसकी आमदनी और खर्च के बीच कोई मेल नहीं है. पाकिस्तान की केंद्र सरकार ने 3.46 लाख करोड़ रुपये की आमदनी का अनुमान लगाया है, लेकिन पिछला उधार (2.89 लाख करोड़) और रक्षा पर खर्च (1.15 लाख करोड़) ही उसकी बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई अनुमानित आमदनी से 500 अरब डॉलर अधिक होगा यानी इसके अलावा हर काम के लिए उसे कर्ज लेना होगा. पाकिस्तान ने वित्त वर्ष 2019-20 में 7.02 लाख करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया है, जबकि उसकी कुल आमदनी इससे आधी रहने वाली है.

पाकिस्तान सरकार के अपने अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019-20 में उसका राजकोषीय घाटा (आमदनी से अधिक खर्च) जीडीपी का 7.2 पर्सेंट हो जाएगा. यह वित्त वर्ष 2018-19 के बराबर है. हालांकि आगामी वित्त वर्ष में आमदनी के अनुमान को बढ़ाकर दिखाने की वजह से यह घाटा जीडीपी के 8 पर्सेंट के करीब पहुंच जाएगा. अगले साल तो यह 9 पर्सेंट या उससे भी अधिक हो सकता है. पाकिस्तान सरकार अपने सूबों से 423 अरब डॉलर के सरप्लस की उम्मीद कर रही है, लेकिन अर्थशास्त्री इसे ख्याली पुलाव बता रहे हैं. इसका मतलब यह है कि उसका राजकोषीय घाटा 8 पर्सेंट के ऊपर निकल जाएगा. ऐसे में अगर रक्षा पर खर्च बढ़ता है या सरकारी कर्ज की ब्याज दर बढ़ती है या पाकिस्तानी रुपये में कमजोरी आती है तो उसे अधिक ब्याज देना पड़ेगा, जिससे बजट में कहीं बड़ा गड्ढा बन सकता है. कुछ अनुमानों में कहा गया है कि इस साल दिसंबर तक एक डॉलर के बदले 180 पाकिस्तानी रुपये मिलेंगे. कुछ तो इसके 200 तक जाने की बात कह रहे हैं.

अगर ये अनुमान गलत साबित हों और सब कुछ योजना के मुताबिक चले, तब भी पाकिस्तान पर बढ़ता कर्ज बेकाबू हो जाएगा. तानाशाह परवेज मुशर्रफ को सत्ता से हटाए जाने के बाद हर पांच साल पर पाकिस्तान का कर्ज दोगुना हुआ है. पिछले 10 महीनों में इमरान खान सरकार ने जिस तरह से कर्ज लिया है, उसे देखते हुए लगता है कि उनका कार्यकाल खत्म होने तक यह फिर से डबल हो जाएगा. ऐसा लंबे समय तक नहीं चल सकता. इसलिए पाकिस्तान का डिफॉल्ट करना तय है. अर्थशास्त्री कुछ सालों से पाकिस्तान के इस कर्ज संकट को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन अब स्थिति काफी गंभीर हो गई है.

झूठी दिलेरी दिखाना पाकिस्तान की आदत रही है. इमरान ने भी सत्ता में आने के बाद यही किया. उन्होंने पहले तो सब कुछ ठीक होने का वादा किया, लेकिन आखिरकार उन्हें आईएमएफ से राहत पैकेज मांगने को मजबूर होना पड़ा.

झूठी दिलेरी दिखाना पाकिस्तान की आदत रही है. इमरान ने भी सत्ता में आने के बाद यही किया. उन्होंने पहले तो सब कुछ ठीक होने का वादा किया, लेकिन आखिरकार उन्हें आईएमएफ से राहत पैकेज मांगने को मजबूर होना पड़ा. आईएमएफ के पास जाने से पहले वह ‘दोस्त देशों’ के पास भीख मांगने भी गए थे. उन्हें उम्मीद थी कि इससे उनकी सरकार राहत पैकेज की एवज में आईएमएफ की सख्त शर्तों से बच जाएगी. हालांकि, कुछ महीनों में ही सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और चीन से मिले 9 अरब डॉलर पाकिस्तान ने खर्च कर दिए. इसके बाद आईएमएफ की चौखट पर जाने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा.

पाकिस्तान के 2019-20 के बजट का खासतौर पर लक्ष्य आईएमएफ से राहत पैकेज हासिल करना रहा है. इससे फंडिंग के साथ उसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों का एक्सेस भी मिलेगा. लेकिन बजट में जो ख्याली आंकड़े दिए गए हैं, उन्हें देखकर लगता है कि पाकिस्तान ‘कटोरा लेकर खड़ा रहने वाली’ अपनी छवि बरकरार रखेगा. पिछले 60 साल में वह 21 बार आईएमएफ के पास जा चुका है. इस बार वह 22वीं बार उसकी देहरी पर गया है. इन सबमें उसने सिर्फ एक बार, 2013 में आईएमएफ के प्रोग्राम को सफलता से पूरा किया है, वह भी तब जब उसे परफॉर्मेंस की दर्जन भर शर्तों से छूट मिली थी. पाकिस्तान ने कभी ‘स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स’ नहीं किए, जो आईएमएफ ने सुझाए थे. इसलिए उसे हर 3-4 साल पर उसके पास भीख मांगने जाना पड़ता है.

पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के मोहब्बत खत्म करने से पाकिस्तान की मुसीबत और बढ़ी है. इसलिए अब उसे आसान शर्तों पर कर्ज, राहत पैकेज और रियायतें नहीं मिल रही हैं, जो पहले आसानी से मिल जाती थीं. दूसरी, आईएमएफ भी पाकिस्तान की चालबाजियों को समझ गया है. इसलिए वह राहत पैकेज की शर्तों को शुरू में पूरा करने की मांग कर रहा है. वह इसके लिए उसे लंबा समय नहीं दे रहा. पाकिस्तान पहले आईएमएफ से पैसा ले लेता था और बाद में शर्तों से मुकर जाता था. इसलिए आईएमएफ ने कहा है कि वह शर्तों के पूरा होने के बाद ही उसे राहत पैकेज देगा.

पाकिस्तान इस मामले में अभी भी पुरानी चाल चल रहा है. राहत पैकेज के लिए अभी जो भी शर्तें रखी जा रही हैं, वह उन पर हामी भर रहा है. उसे उम्मीद है कि जैसे ही हालात बेहतर होंगे, उसे इन शर्तों को पूरा करने की जरूरत नहीं होगी. पाकिस्तानियों को लगता है कि अफगानिस्तान की सीमा से लगे होने और दूसरी वजहों से दुनिया को उसकी जरूरत है और यह रणनीति पहले कभी फेल नहीं हुई है. हमेशा इस क्षेत्र में कुछ होने या किसी और वजह से उसके लिए फंड के रास्ते खुलते रहे हैं. क्या पता, शायद अमेरिका को फिर से पाकिस्तान की ‘किराये के टट्टू’ वाले देश की भूमिका की जरूरत पड़ जाए? शायद चीन भी पाकिस्तान को लेकर दरियादिल हो जाए? इससे भी कौन इनकार कर सकता है कि सऊदी या संयुक्त अरब अमीरात पश्चिम एशिया में अपनी ‘डर्टी वॉर’ के लिए पाकिस्तानी सैनिक मिलने पर उसके लिए खजाना खोल दें? अगर यह सब न हो, तो पाकिस्तान यह दावा कर सकता है कि दुनिया उसका तबाह होना गवारा नहीं कर सकती. इस इमेज को भी वह भुनाने की कोशिश करता रहा है. अगर ऐसा नहीं होता और कोई पाकिस्तान में अपना पैसा डूबाने को आगे नहीं आता तो उसका आर्थिक बर्बादी से बचना मुश्किल है.

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