Published on Dec 24, 2021 Updated 0 Hours ago
क्या मछुआरों के द्विपक्षीय मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण भारत-श्रीलंका के रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा?

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ऐसी ख़बरें हैं कि श्रीलंका के मत्स्यपालन मंत्री डगलस देवानंद (Douglas Devananda, Sri Lanka) ने पड़ोसी देश भारत के साथ लंबे समय से बरक़रार मछुआरों के मुद्दे को कोलंबो में अमेरिकी राजदूत मार्टिन के. केली के समक्ष उठाया है, जिसके नतीजे समझ से बिल्कुल परे हैं. इसका तार्किक या अतार्किक निष्कर्ष यही हो सकता है कि श्रीलंका, या कम-से-कम मंत्री देवानंद एक ऐसे मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण (Internationalization) करना चाह रहे हैं, जो हर लिहाज़ से द्विपक्षीय है.

मंत्री देवानंद एक तमिल नेता (Tamil Leader Douglas Devananda) हैं, जो तमिल-बहुल उत्तरी प्रांत से आते हैं. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षा (Gotabaya Rajapaksa) ने 2019 के आख़िर में जब पद संभाला, तो नज़ीर को न मानते हुए उन्होंने एक तमिल को इस पद के लिए नामित किया. उसके अगले साल संसदीय चुनाव के बाद उन्होंने देवानंद को इसी ज़िम्मेदारी (पोर्टफोलियो) में बनाये रखा. यह देखते हुए कि मछुआरों से जुड़ा द्विपक्षीय मुद्दा दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य और केंद्रशासित क्षेत्र (UT) पुडुचेरी के केवल तमिलभाषी मछुआरों से ताल्लुक रखता है, राष्ट्रपति गोटबाया ने शायद यह निष्कर्ष निकाला कि एक स्थायी हल निकालने में जातीय (ethnic) और भाषीय लगाव काम आ सकते हैं. या, कम-से-कम लग तो ऐसा ही रहा है.

यहां कुछ नये कूटनीतिक मुद्दे हैं, जो भारत-श्रीलंका के संदर्भ में अभूतपूर्व क़िस्म के हैं और इनसे बचा जाना चाहिए. ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि देवानंद की पहल को राष्ट्रपति गोटबाया और/या प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षा का वरदहस्त प्राप्त था या नहीं. 

बिगड़ सकता है राजनीतिक संतुलन

अमेरिकी राजदूत के साथ बैठक में, देवानंद ने भारतीय मछुआरों द्वारा लगातार जारी ‘अवैध शिकार’ [श्रीलंकाई क्षेत्र में मछली पकड़ने] पर चिंता जताते हुए कहा कि यह श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांत के उन ग़रीब तमिल मछुआरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जो दशकों तक चले ‘सी टाइगर्स’ समेत एलटीटीई के युद्ध और हिंसा के दौरान हुए रोजी-रोटी के नुक़सान से अब भी उबरने का प्रयास कर रहे हैं. मंत्री के आरोपों में सच्चाई है, जिसे भारत ने भी पूरी तरह अस्वीकृत नहीं किया है,  इसके बावजूद इस मामले में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को खींचने की उनकी नयी कोशिश उस द्विपक्षीय राजनीतिक संतुलन को बिगाड़ सकती है जिससे दोनों देशों के सरकारी और गैर-सरकारी हितधारकों (stakeholders) के आचरण अब तक नियंत्रित होते आये हैं.

बैठक के बाद एक बयान में, श्रीलंका के मत्स्यपालन मंत्रालय ने कहा, केली ने पूछा कि क्या यह मुद्दा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के सामने उठाया जा चुका है. देवानंद ने कहा कि वह इसे मुख्यमंत्री स्टालिन और तमिलनाडु के मत्स्यपालन मंत्री अनीता आर. राधाकृष्णन के समक्ष उठा चुके हैं. उन्होंने कथित तौर पर यह दावा किया कि उनकी चिंताओं पर जवाब तो दिया गया, लेकिन तमिलनाडु और भारत सरकार अवैध शिकार को रोकने के लिए कोई ठोस क़दम उठाने के इच्छुक नहीं हैं.

यहां कुछ नये कूटनीतिक मुद्दे हैं, जो भारत-श्रीलंका के संदर्भ में अभूतपूर्व क़िस्म के हैं और इनसे बचा जाना चाहिए. ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि देवानंद की पहल को राष्ट्रपति गोटबाया और/या प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षा का वरदहस्त प्राप्त था या नहीं. यह भी पता नहीं कि बैठक की पहल किसकी ओर से की गयी. यहां गौरतलब है कि भारत स्थित अमेरिकी दूतावास गहरी दिलचस्पी के साथ भारत और श्रीलंका के बीच सभी द्विपक्षीय मुद्दों पर क़रीबी नज़र रखते रहे हैं.

तकनीकी तौर पर, जयललिता और करुणानिधि द्वारा निजी हैसियत से दाख़िल दोनों याचिकाएं बीते वर्षों में उनकी मौत के बाद हो सकता है कि व्यर्थ क़रार दे दी गयी हों. 

तीसरा, श्रीलंका से जुड़े सभी मामलों पर- ख़ासकर जो इस द्वीपीय राष्ट्र में नस्ली (ethnic) विवाद, शरणार्थियों के पुनर्वास और/या वापसी, और मछुआरों के मुद्दे से भी ताल्लुक रखते हैं- तमिलनाडु की एक के बाद एक सरकारों, राजनीति (polity) और सिविल सोसाइटी ने भारतीय संविधान के तहत मिले अधिकार के मुताबिक, अपनी चिंताओं को हमेशा केवल नयी दिल्ली के सामने उठाया है. राज्य सरकार ने जब भी मछुआरों की द्विपक्षीय वार्ताओं की राह आसान बनाने के लिए काम किया, चाहे वार्ता कोलंबो में रही हो या चेन्नई में, तो इसमें मंजूरी व पहल हमेशा विदेश मंत्रालय की रही.

इस मामले में भारतीय संवैधानिक योजना लगभग श्रीलंका जैसी ही है, पर शायद श्रीलंकाई प्रांतों को भारतीय राज्यों या कम-सशक्त केंद्रशासित क्षेत्रों जितने अधिकार प्राप्त नहीं हैं. द्विपक्षीय मछलीमारी (bilateral fishing), अवैध शिकार और भारतीय मछुआरों पर श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गोलीबारी से जुड़े सभी मामले सिर्फ़ और सिर्फ़ श्रीलंकाई विदेश मंत्रालय द्वारा संभाले जाते हैं. वह इसे या तो कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग के जरिये करता है या फिर नयी दिल्ली में श्रीलंकाई समकक्ष के जरिये.

श्रीलंकाई नौसेना द्वारा तमिलनाडु के मछुआरों और उनकी नौकाओं को पकड़े जाने के कुछ ख़ास मामलों में, राज्य सरकार और चेन्नई स्थित श्रीलंकाई उप उच्चायोग ने सूचनाओं और अपडेट का आदान-प्रदान किया है. अतीत में चेन्नई में जब-जब मछुआरों की द्विपक्षीय वार्ताएं हुईं, इन दोनों ने आपसी तालमेल से, कोलंबो और नयी दिल्ली के प्राथमिक निर्णयों व निर्देशों को लागू करते हुए, सभी व्यावहारिक इंतज़ाम किये हैं.

कच्चतीवु द्वीप का मामला

कोलंबो में हालिया मंत्रीय पहल को तमिलनाडु के दो दिवंगत मुख्यमंत्रियों जयललिता (एआईडीएमके) और एम करुणानिधि (डीएमके) के भारत के सुप्रीम कोर्ट का रुख करने के संदर्भ में देखे जाने की ज़रूरत है. उन्होंने अदालत में दोनों देश के बीच 1974 के उस ‘आईएमबीएल समझौते’ को चुनौती दी, जिसने पहली बार दोनों के बीच ‘अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा’ (IMBL) का निर्धारण किया. दो साल बाद, 1976 में अपडेटेड समझौते में सुधार किये गये.

दोनों देशों ने अपने समझौते को तुरंत ही ‘समुद्र के क़ानूनों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र समझौते’ (UNCLOS-I) के तहत अधिसूचित कर दिया. इस समझौते में UNCLOS के उस प्रावधान का हवाला दिया गया, जो IMBL के निर्धारण के लिए मध्य रेखा (median line) के इस्तेमाल से छूट देता है, और हितधारक देशों की सहमति वाले विचलनों (deviations) को स्वीकार करता है. इसने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय तट के ज्यादा क़रीब स्थित कच्चतीवु लघु-द्वीप (Katchchativu islet), IMBL के श्रीलंका वाली तरफ़ पड़े. तमिलनाडु के मछुआरों और वहां की राजनीति की ओर से समय-समय पर इस तरह के समझौते का विरोध होता रहा है. ऐसा इसलिए भी है कि इसकी वजह से श्रीलंकाई नौसेना की गश्ती नौकाएं उस जलक्षेत्र, जिसे नयी दिल्ली श्रीलंका का मानती है, में घुस रहे तमिलनाडु के मछुआरों को निशाना बनाने के लिए भारतीय मुख्यभूमि के ज्यादा क़रीब आ रही हैं. अन्यथा, उनका इतना क़रीब आ पाना संभव नहीं था.

नयी दिल्ली ने लगातार UNCLOS अधिसूचना में भरोसा जताया है और बेहिचक एलान किया कि सत्तर के दशक के दोनों समझौतों की समीक्षा का कोई सवाल ही नहीं. 

तकनीकी तौर पर, जयललिता और करुणानिधि द्वारा निजी हैसियत से दाख़िल दोनों याचिकाएं बीते वर्षों में उनकी मौत के बाद हो सकता है कि व्यर्थ क़रार दे दी गयी हों. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है जो मुख्यमंत्री स्टालिन के अधीन डीएमके की राज्य सरकार या पार्टी को, या फिर विपक्षी एआईडीएमके को एक संगठन के रूप में उसी लाइन पर नयी याचिकाएं दाख़िल करने से रोकता हो- दोनों में से कोई ऐसा कुछ सोच रहा है, यह मालूम नहीं. इस तरह का कोई क़दम उन याचिकाओं को स्थायित्व प्रदान कर सकता है और उन्हें किसी व्यक्ति के जीवित रहने या न रहने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.

राजनीतिक लिहाज़ से बात करें तो, जयललिता ने मुख्यमंत्री के रूप में कम-से-कम दो मौक़ों पर कच्चतीवु को वापस लेनी की मांग नयी दिल्ली से खुले तौर पर की थी. भारत में 2019 के संसदीय चुनाव से पहले, सत्तारूढ़ भाजपा के केंद्रीय परिवहन मंत्री, पूर्व सेनाध्यक्ष, जनरल वी. के. सिंह ने तमिलनाडु में एलान किया कि नयी दिल्ली इस लघु-द्वीप को वापस लेने के लिए ‘गंभीर प्रयास’ कर रही है. बतौर मुख्यमंत्री जयललिता के बयानों को लेकर जहां नयी दिल्ली में कुछ बेचैनी थी, वहीं तमिलनाडु ने जनरल सिंह की घोषणा को चुनावी वादा मानकर ख़ारिज कर दिया, जो शायद पूरा किया जाने के लिए नहीं था.

नयी दिल्ली में एक के बाद एक सरकारों के दौरान अगर कुछ हुआ है, तो यह कि नयी दिल्ली ने लगातार UNCLOS अधिसूचना में भरोसा जताया है और बेहिचक एलान किया कि सत्तर के दशक के दोनों समझौतों की समीक्षा का कोई सवाल ही नहीं. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदा सरकार के सत्तासीन होने के बाद, अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट की एक सुनवाई के दौरान बिना युद्ध के कच्चतीवु को ‘दोबारा हासिल’ करना असंभव बताया.

द्विपक्षीय जलाशय

इससे कहीं ज्यादा गंभीर एक द्विपक्षीय चिंता है, जिससे श्रीलंकाई मत्स्यपालन मंत्रालय को अवगत रहना चाहिए था. भले ही बहुत से लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है और किसी ने यह स्वीकार नहीं किया है, पर 1974-76 के समझौतों ने UNCLOS के संबंधित नियमों के तहत, भारत और श्रीलंका के जलक्षेत्र को जोड़नेवाले पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) को एक ‘द्विराष्ट्र जलाशय’ बना दिया है, जो सभी तीसरे-देशों को बाहर रखता है.

सीधे-सीधे कहें तो, यह द्विपक्षीय व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय मछलीमारी और जहाज़रानी (shipping) पर रोक लगाती है. नयी दिल्ली भारतीय मछुआरों द्वारा IMBL के उल्लंघन को स्वीकार कर चुकी है और इसे ठीक करने के लिए तमिलनाडु सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है. साथ ही साथ, यह सुनिश्चित कर रही है कि तमिलनाडु के मछुआरों की रोज़ी-रोटी भी अप्रभावित रहे.

राम सेतु का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, और एक दशक या और उससे अधिक समय से काम सिर्फ़ बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाओं को सम्मान देने के लिए रुका हुआ है.

इस पृष्ठभूमि में, अब श्रीलंका का IMBL समझौतों से उपजी कुछ ख़ास चिंताओं का ‘अंतरराष्ट्रीयकरण’ करना, चाहे यह इरादतन हो या न हो, कच्चतीवु मामला दोबारा खुलने की दिशा में ले जा सकता है, हालांकि इस बार भारत के बजाय उल्टे श्रीलंका द्वारा ऐसा होगा. इसके अलावा, दोनों देश पाक जलडमरूमध्य पर जिस विशिष्ट अधिकार (exclusivity) का उपभोग करते आये हैं, उसमें भी हस्तक्षेप हो सकता है. जयललिता-करुणानिधि की याचिकाएं भारतीय संविधान के तहत प्रक्रियागत मुद्दों पर केंद्रित थीं. उनमें तर्क दिया गया था कि संसद को इन समझौतों  की पुष्टि करनी चाहिए थी, भारतीय पक्ष से कार्यपालिकीय मंज़ूरी पर्याप्त नहीं थी.

दो दशक पहले, नयी दिल्ली में सत्तासीन तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने श्रीलंका, ख़ासकर जहां अब चीन केंद्रित हंबनटोटा है, का चक्कर काटने वाले पूर्व-पश्चिम-पूर्व गलियारे में भारतीय घरेलू जहाज़रानी के लिए समय और खर्च में कटौती में मदद के वास्ते रामसेतु परियोजना शुरू की थी. ख़ास तौर पर अमेरिका ने दावा किया कि अगर नयी परियोजना ने पाक जलडमरूमध्य और उससे जुड़ी मन्नार की खाड़ी को वाणिज्यिक जहाज़रानी के लिए खोल दिया, तो वे UNCLOS के तहत ‘नौवहन की स्वतंत्रता’ का दावा करेंगे, जैसाकि वे दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में कर रहे हैं. राम सेतु का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, और एक दशक या और उससे अधिक समय से काम सिर्फ़ बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाओं को सम्मान देने के लिए रुका हुआ है. इस प्रसंग में भी, श्रीलंकाई मत्स्यपालन मंत्री का कोलंबो में एक तीसरे-देश के दूतावास का दरवाज़ा खटखटाना मछुआरों और सरकारों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है, तथा भारत में और साथ ही अंतरराष्ट्रीय फोरमों में अनावश्यक क़ानूनी विवादों के द्वार खोल सकता है. लंबे समय से, तमिलनाडु की राजनीति और सिविल सोसाइटी का एक हिस्सा राज्य के मछुआरों की ज़िंदगी और रोज़ी-रोटी के नुकसान का हवाला देते हुए, मछुआरों के मुद्दे को अंतराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और ऐसे दूसरे फोरम में ले जाने की अक्लमंदी और ज़रूरत पर रह-रह कर बात करता रहा है.

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