Published on Nov 23, 2020 Updated 0 Hours ago

यह कुछ राज्यों में प्रदर्शनों के साथ-साथ, कांग्रेस के हलकों में होने वाली व्यापक बहस का परिणाम था, जिसमें राष्ट्रपति से अपने कार्यकाल के बीच में ही पद छोड़ने की मांग की गई थी

साइबर क्षेत्र के नियमन की विफलता से किसका होगा फ़ायदा?

लंदन में बिताए कम समय के दौरान, मुझे एक विशेष संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के चलते, कुछ पश्चिमी देशों की राजधानियों (वाशिंगटन, पेरिस और लंदन) में काम करने वाले पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों और ब्लॉगर्स सहित, राय गढ़ने वालों (opinion makers) से मिलने का अवसर मिला. इनमें से एक बैठक पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की संभावित बर्ख़ास्तगी या इस्तीफ़े के बारे में प्रसारित होने वाली खबरों के समानांतर हुई. यह कुछ राज्यों में प्रदर्शनों के साथ-साथ, कांग्रेस के हलकों में होने वाली व्यापक बहस का परिणाम था, जिसमें राष्ट्रपति से अपने कार्यकाल के बीच में ही पद छोड़ने की मांग की गई थी.

उपस्थित लोगों में से अधिकांश यह अनुमान लगा रहे थे कि ट्रंप अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेंगे, मेरा विचार था कि वह अपने जनादेश के अंत तक अमेरिका का नेतृत्व करते रहेंगे, और यहां तक कि दूसरे राष्ट्रपति का कार्यकाल जीतने की उनकी संभावना बहुत मज़बूत होगी. 

यद्यपि उपस्थित लोगों में से अधिकांश यह अनुमान लगा रहे थे कि ट्रंप अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेंगे, मेरा विचार था कि वह अपने जनादेश के अंत तक अमेरिका का नेतृत्व करते रहेंगे, और यहां तक कि दूसरे राष्ट्रपति का कार्यकाल जीतने की उनकी संभावना बहुत मज़बूत होगी. यह अवलोकन कम से कम तीन विवेचनाओं या विचारणीय पक्षों के आधार पर किया जा सकता है, जिन्हें मैं निम्नानुसार संक्षेप में प्रस्तुत करूंगा:

  • पहली विवेचना: ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अपने चुनावी घोषणापत्र और कार्यक्रमों में मौजूद लगभग सभी आर्थिक और सामाजिक वादों को पूरा किया
  • दूसरी विवेचना: ट्रंप ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल बेहद नए तरीके से किया.
  • तीसरी विवेचना: यह इसराइल-फिलिस्तीन संघर्ष से जुड़ी है. अमेरिका के भीतरी हलकों में उस वक्त इस मुद्दे को हल करने को लेकर, एक नई अमेरिकी योजना की चर्चा थी, जो अमेरिकी दूतावास को यरुशलम स्थानांतरित किए जाने से शुरु हुई, जो एक ऐसे समझौती की बानगी था जिसे बाद में “सदी का समझौता” (Deal of the Century) कहा गया.

यद्यपि अमेरिका के बाहर अधिकांश जनमत, मीडिया में छाए ट्रंप के विरोधियों के विचारों के ज़रिए प्रभावित था, और कई लोग संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में उनकी रवानगी की बात कर रहे थे, लेकिन सोशल मीडिया पर जो हो रहा था, उससे यह संकेत मिल रहे थे कि, यह शख़्स अपने लाभ के लिए लगातार सोशल मीडिया का उपयोग और उसे नियंत्रित कर रहा था.

सोशल मीडिया से मिले संकेत

बहुत मुमकिन है कि साल 2016 में ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने में सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर हुई व्यापक बहस के चलते, वर्चुअल नेटवर्क के इस उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया. यह सही है कि डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हिलेरी क्लिंटन के ख़िलाफ़ ट्रंप की उम्मीदवारी को बढ़ावा देने के लिए, सोशल मीडिया को हथियार बनाने को लेकर रूस पर इन चुनावों में हस्तक्षेप का आरोप लगाया गया था. इसके चलते, कई अमेरिकी संस्थान और संगठन, जैसे कांग्रेस और राष्ट्रीय सुरक्षा निकाय, मामले की जांच करने को प्रेरित हुए.

2016 में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद, अमेरिकी लोगों के साथ दैनिक संवाद के लिए, ट्रंप ने सोशल मीडिया, ख़ासकर ट्विटर पर भरोसा करना जारी रखा. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग अपने विरोधियों और दोस्तों को स्पष्ट या एन्क्रिप्टेड (encrypted) संदेश भेजने के लिए किया, चाहे वह घरेलू स्तर पर हो या विदेश स्तर पर. इस प्रकार, ट्रंप दुनिया के बड़े से बड़े नेताओं के साथ बात करते हुए भी सोशल नेटवर्क के माध्यम से संवाद करने के इच्छुक रहे हैं.

उन्होंने वास्तव में राज्यों के प्रमुखों के बीच मौजूद उस सामान्य नियम को तोड़ा, जिसके तहत व्यक्तिगत संदेशों, खुद को व्यक्त करने, या उपलब्धियों को प्रचारित करने के लिए ये दिग्गज नेता, शायद ही कभी, अनौपचारिक माने जाने वाले, सोशल नेटवर्क का उपयोग करते हैं.

संक्षेप में कहें तो, उन्होंने वास्तव में राज्यों के प्रमुखों के बीच मौजूद उस सामान्य नियम को तोड़ा, जिसके तहत व्यक्तिगत संदेशों, खुद को व्यक्त करने, या उपलब्धियों को प्रचारित करने के लिए ये दिग्गज नेता, शायद ही कभी, अनौपचारिक माने जाने वाले, सोशल नेटवर्क का उपयोग करते हैं.

परंपरागत रूप से, संचार का यह काम, कर्मचारियों और विशेष संस्थानों को सौंपा जाता है. फिर भी, ट्रंप ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, इन तेज़ ऑनलाइन नेटवर्क के ज़रिए संवाद के प्रत्यक्ष और व्यक्तिगत माध्यम को चुना, विशेष रूप से ट्विटर. यह काम इस हद तक किया गया कि डिजिटल संचार से जुड़े कई पर्यवेक्षकों और विशेषज्ञों की राय है कि इस रणनीति ने ट्रंप को जितना फ़ायदा पहुंचाया उससे अधिक उनका नुकसान किया.

मेरे व्यक्तिगत दृष्टिकोण में, यह बिल्कुल विपरीत है, क्योंकि ट्रंप की अमेरिकी लोगों के साथ संवाद करने की विधि और बाकी दुनिया के साथ उन्हें जिस तरह संपर्क साधा उसने, अमेरिका और विदेश दोनों में उन्हें पहचान और ताक़त दिलाई- इसके चलते मेरा यह मानना है कि ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति पद की मज़बूत दावेदारी कर पाए. इसका पूरा श्रेय उनके द्वारा, सोशल नेटवर्क के उचित, प्रभावी और बुद्धिमान उपयोग को जाता है. इसके अलावा ऊपर उल्लिखित अन्य दो विवेचनाओं तो लागू हैं ही.

यह सभी बातें हमें एक महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर ले जाती हैं, जो मैंने अपने पिछले लेखों और नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में उठाया है. मैंने कहा कि पिछले दशक के दौरान, राजनेताओं ने प्रमुख व्यावसायिक ब्रांडों के साथ प्रतिस्पर्धा की है, और निर्णय लेने वाले केंद्रों पर नियंत्रण के लिए, सोशल नेटवर्क के सबसे प्रमुख उपयोगकर्ता बनकर उभरे हैं. दुनियाभर में विभिन्न आतंकवादी संगठन, बारीक़ी से उन्हें फॉलो करते हैं और जिन्होंने अपनी विनाशकारी योजनाओं को अंजाम देने के लिए इंटरनेट का उपयोग करने में उत्कृष्टता दिखाई है.

साइबर स्पेस में नियमन की मांग

यह वास्तविकता इस सामान्य दृष्टिकोण को चुनौती देती है, जिसके अनुसार लोगों को सोशल नेटवर्क की सेवाओं से लाभ हुआ है, और व्यापक रूप से इन माध्यमों ने अभिव्यक्ति और राय की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हुए आम लोगों तक इनकी पहुंच सुनिश्चित की है. गलत सूचनाओं (misinformation), प्रोपेगेंडा (disinformation), और नकली समाचारों (fake news) का उदय या “ग़लत सूचनाओं की बाढ़” (infodemic) ने हमें यह सवाल उठाने पर मजबूर किया है कि साइबर स्पेस के नियमन की दिशा में संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ लिए नियामक तंत्र की ज़रूरत है, जो सर्वराष्ट्रीय मानव अधिकार घोषणापत्र (Universal Declaration of Human Rights) या नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचक (International Covenant on Civil and Political Rights) के रूप में काम कर, अंतराष्ट्रीय कानूनी ढांचों के अलावा, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के अधिकारों और कर्तव्यों को भी नियमित रूप से नियंत्रित कर सके.

यह वास्तविकता इस सामान्य दृष्टिकोण को चुनौती देती है, जिसके अनुसार लोगों को सोशल नेटवर्क की सेवाओं से लाभ हुआ है, और व्यापक रूप से इन माध्यमों ने अभिव्यक्ति और राय की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हुए आम लोगों तक इनकी पहुंच सुनिश्चित की है. 

वर्चुअल नेटवर्क के उपयोगकर्ताओं का विश्लेषण करते हुए, कुछ सामाजिक सेवाओं को छोड़कर और कुछ मानव अनुभवों को बढ़ावा देने के अलावा, तीन तरह के सामाजिक समूहों का वर्चस्व और उनकी पूर्ण प्रबलता सामने आती है:

  • पहली श्रेणी, आतंकवादी आंदोलनों को संदर्भित करती है, जैसे उनके सभी चरमपंथी संपर्क और योजनाएं, उनकी रक्तरंजित पृष्ठभूमि व विनाशकारी अभियानों का विज्ञापन, या इन अभियानों के संचालन को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट के माध्यम से व्यापक रूप से किया गया प्रचार, जिससे उन्हें सार्वजनिक रूप से लोगों कर अपनी बात पहुंचाने का अवसर मिला, इस हद तक कि आज दुनिया में लगभग हर व्यक्ति ने अल-क़ायदा या आईएसआईएस के बारे में सुना है.
  • दूसरी श्रेणी में सबसे प्रमुख ब्रांड और विशाल विशिष्ट कंपनियां शामिल हैं, जिन्होंने उन नेटवर्क को स्थापित करने में योगदान दिया है, और जो इस तरह के नेटवर्क के प्रमुख लाभार्थी हैं, दोनों वित्तीय और व्यावसायिक रूप से, क्योंकि उन्होंने इंटरनेट अपने माल या सेवाओं को बढ़ावा देने से रिकॉर्ड लाभ अर्जित किया है.
  • तीसरी श्रेणी में राजनेता शामिल हैं, जो पद पर हैं या जो व्यवस्था में अपनी जगह बनाना चाहते हैं. कुछ ऐसे भी राजनेता हैं, जिन्होंने अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए सोशल नेटवर्क का उपयोग किया है, और जो मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन के लिए आरोपित हैं. उन्होंने इन नेटवर्कों पर प्रचारित सामग्री का लाभ उठाया है ताकि वो ऐसे कानून बना सकें, जो उनकी निरपेक्ष शक्ति को समेकित करें.

एक और समूह है, जिसमें ऐसे कार्यकर्ता शामिल हैं जो आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की वकालत करते हैं, लेकिन सामाजिक नेटवर्क पर उनकी संख्या और प्रभाव बहुत सीमितहै.

एक सवाल जो अनिवार्य रूप से दिमाग़ में आता है वह है कि: डिजिटल स्पेस में नियमन की कमी का मुख्य़ लाभार्थी कौन है? कौन हैं वो लोग, जिन्हें इस क्षेत्र में जो हो रहा है, उसे नज़रअंदाज़ करने और अनियंत्रित छोड़ने से लाभ मिलता है, जब सोशल मीडिया नेटवर्क, राजनीति और यहां तक कि अर्थव्यवस्था में भी आमूल-चूल परिवर्तन करने का माध्यम बन रहे हैं, उन लोगों के ज़रिए जिनके पास नियंत्रण है कि वो राज्यों और सरकारों के प्रमुखों को बदल सकें, या उनके ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने का और उनका अंत करने का?

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