Author : John C. Hulsman

Published on Jan 02, 2021 Updated 0 Hours ago

2020 के चुनावों से नए राष्ट्रपति पर किस तरह की बुनियादी और संरचनात्मक पाबंदियां लग गई हैं? यहां से नया प्रशासन किस दिशा में आगे बढ़ेगा?

अमेरिका के चौंकाने वाले चुनावों से टीम बाइडेन के सामने क्या चुनौतियां खड़ी हुई हैं?

जैसा कि डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता कीथ एलिसन ने बड़े ही अर्थपूर्ण तरीक़े से बयां किया है, ‘मतदान न करना विरोध नहीं है. ये आत्मसमर्पण करना है.’ यहां ये कहना पर्याप्त होगा कि 2020 के चुनावों में अमेरिका के दोनों ही राजनीतिक ध्रुवों ने जता दिया है कि वो अभी अपनी आवाज़ गंवाने को तैयार नहीं हैं. नवंबर के चुनावों में अमेरिका में 67 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया. ये पिछले 120 वर्षों के दौरान हुए सभी चुनावों में सबसे अधिक मतदान है.

अब सवाल ये है कि इन चुनावों के नतीजों का हम क्या निष्कर्ष निकालें? इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि इन नतीजों के नए बाइडेन प्रशासन के लिए क्या संकेत हैं? 2020 के चुनावों से नए राष्ट्रपति पर किस तरह की बुनियादी और संरचनात्मक पाबंदियां लग गई हैं? यहां से नया प्रशासन किस दिशा में आगे बढ़ेगा? यहां हम उन कुछ बातों का ज़िक्र कर रहे हैं, जिनका इशारा इस अमेरिकी चुनाव के नतीजों से मिलता है. इनकी मदद से हम राजनीतिक जोखिम के बुनियादी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे.

  1. कोरोना वायरस की महामारी डॉनल्ड ट्रंप के लिए निर्णायक साबित हुई: इस बुनियादी मसले पर अमेरिकी नागरिकों के बीच ये राय आम है कि नागरिकों के प्रति संवेदना की कमी, और प्रशासनिक बारीक़ियों को लेकर धैर्य न रखने वाले राष्ट्रपति ट्रंप- इस चुनौती से निपटने के लिए तैयार नहीं थे. सितंबर में हुए NBC के सर्वे में पाया गया था कि 61 प्रतिशत अमेरिकी नागरिक ये मानते थे कि ट्रंप प्रशासन कोविड-19 से निपटने की बुनियादी ज़रूरतों पूरी कर पाने में भी असफल रहा था. अगर जनता की नज़र में कोई उम्मीदवार किसी मौलिक विषय पर असफल रहता है, तो उसके लिए चुनाव जीत पाना बेहद मुश्किल काम हो जाता है.
  2. इन कमियों के बावजूद, ट्रंप चुनाव में जीत के बेहद क़रीब पहुंचने में सफल रहे: चुनाव से पहले के सभी सर्वे और ख़ास तौर से वामपंथी झुकाव रखने वाले मतदान पर्यवेक्षकों की नज़र में ट्रंप का राजनीतिक रूप से ख़ात्मा हो चुका था. लेकिन, जब नतीजे आए तो पता चला कि ट्रंप इस चुनाव को जीतने के बेहद क़रीब जा पहुंचे थे. ट्रंप ने उन राज्यों में जीत हासिल की, जहां के बारे में ये माना जा रहा था कि वो किसी भी पाले में जा सकते हैं. उन्होंने फ्लोरिडा, नॉर्थ कैरोलाइना, ओहायो और आयोवा में जीत कर चुनावी पंडितों को चौंका दिया. इसके अलावा ट्रंप ने पेंसिल्वेनिया, एरिज़ोना, जॉर्जिया, विस्कॉन्सिन और मिशिगन में जो बाइडेन को कड़ी टक्कर दी. कुल मिलाकर कहें तो रियल क्लियर पॉलिटिक्स के अनुसार, बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट में जो बाइडेन ने अगर 49.4 प्रतिशत वोट हासिल किए, तो ट्रंप भी 49.3 फ़ीसद वोट पाकर उनसे कोई ख़ास पीछे नहीं रहे थे. अब चूंकि अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव हर राज्य के इलेक्टोरल कॉलेज के ज़रिए होता है, तो 2020 के वास्तविक चुनावी नतीजे इससे ज़्यादा नज़दीकी नहीं हो सकते थे.
  3. कुल मिलाकर, रिपब्लिकन पार्टी के लिए चुनाव नतीजे काफ़ी अच्छे रहे: मोटे तौर कहें तो चुनाव के नतीजे, रिपब्लिकन पार्टी के लिए और भी अच्छे रहे. सीनेट, हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स और राष्ट्रपति पद के चुनाव की होड़ में, ऊपरी तौर पर तो डेमोक्रेटिक पार्टी ने हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स में अपनी बढ़त बनाए रखी. लेकिन ये बेहद मामूली है. नए सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी के पास 220 सीटें हैं, तो रिपब्लिकन पार्टी के पास 210 सांसद हैं. इन चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी को असल में 10 सीटों का फ़ायदा हुआ. पर्यवेक्षकों की नज़र में ये नतीजा एकदम चौंकाने वाला था, क्योंकि उन्हें उम्मीद ये थी कि चुनावों के ज़रिए डेमोक्रेटिक पार्टी, अमेरिकी संसद के निचले सदन में अपना बहुमत और बढ़ा लेगी.
  4. शांति की तमाम अपीलों के बावजूद, जो बाइडेन का सामना राजनीतिक गतिरोध से होगा: सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत बचा रहने के कारण, सीनेट में पार्टी के नेता मिच मैक्कॉनेल ऐसी स्थिति में हैं कि वो डेमोक्रेटिक पार्टी के तरक़्क़ीपसंद वामपंथी झुकाव वाले एजेंडे पर ब्रेक लगा सकें.

सीनेट के चुनाव तो डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए और भी निराशाजनक रहे; अब जॉर्जिया की दो सीटों का फ़ैसला 5 जनवरी को दोबारा होने वाले चुनावों से होगा (जिनमें से कम से कम एक सीट रिपब्लिकन पार्टी के जीतने की उम्मीद है). ऐसे में ये लगभग तय है कि सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी अपना बहुमत बनाए रखने में सफल रहेगी. क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी के 48 सीनेटरों के मुक़ाबले रिपब्लिकन पार्टी के पास पहले ही 50 सीटें हैं. सीनेट के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी इस यक़ीन के साथ उतरी थी कि वो आयोवा, मेन, साउथ कैरोलाइना, नॉर्थ कैरोलाइना और मोंटाना में जीत हासिल कर सकती है. लेकिन, आख़िर में डेमोक्रेटिक पार्टी इन सभी राज्यों में सीनेट का चुनाव हार गई-उसने अलाबामा में एक सीट गंवा दी तो कोलोराडो और एरिज़ोना में जीत हासिल की. रिपब्लिकन पार्टी, बेहद चौंकाने वाले अंदाज़ में इस चुनाव में अपने ख़िलाफ़ बह रही हवा के बावजूद अपना बहुमत बचाने में सफल रही.

  1. शांति की तमाम अपीलों के बावजूद, जो बाइडेन का सामना राजनीतिक गतिरोध से होगा: सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत बचा रहने के कारण, सीनेट में पार्टी के नेता मिच मैक्कॉनेल ऐसी स्थिति में हैं कि वो डेमोक्रेटिक पार्टी के तरक़्क़ीपसंद वामपंथी झुकाव वाले एजेंडे पर ब्रेक लगा सकें. मिच मैक्कॉनेल को अमेरिकी राजनीति में ‘द ग्रिम रीपर’ कहा जाता है, क्योंकि बराक ओबामा के शासन काल में उनके नेतृत्व में रिपब्लिकन पार्टी ने सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी के घरेलू एजेंडा को छह साल तक अटकाए और भटकाए रखा था.

सीनेट पर रिपब्लिकन पार्टी की पकड़ होने के कारण, डेमोक्रेटिक पार्टी की तरक़्क़ीपसंद अपेक्षाओं की पूर्ति होनी संभव नहीं दिखती. जैसे कि, सबके लिए मेडिकल कवर, द ग्रीन न्यू डील, सुप्रीम कोर्ट में अपनी पसंद के जज नियुक्त करना, सीनेट में अटकाने वाली राजनीति का ख़ात्मा और महामारी के कारण बड़े पैमाने पर सरकारी ख़र्च बढ़ाना. हालांकि बुनियादी ढांचे के सुधार (जो क़रीब एक ख़रब डॉलर के बजट वाला है) और कोविड-19 के प्रभाव से निपटने के लिए एक और स्टिमुलस पैकेज (वो भी लगभग एक ख़रब डॉलर का होगा) जैसे कुछ मुद्दों पर दोनों दलों में सहमति है. लेकिन, सीनेट के नतीजों से डेमोक्रेटिक पार्टी के समाजवादी वामपंथी धड़े के कई ख़्वाबों को तगड़ा झटका लगा है.

चुनाव से पहले की उम्मीदों के उलट इन चौंकाने वाले राजनीतिक समीकरणों के चलते अब जो बाइडेन, विदेश नीति पर ध्यान देने को बाध्य होंगे

  1. इस गतिरोध से जो नतीजे निकले वो अच्छे हैं: हालांकि आम तौर पर राजनेताओं को गतिरोध पसंद नहीं है, लेकिन इतिहास का नज़रिया इसके उलट है. पिछले एक सौ वर्षों के दौरान जब भी अमेरिका की सत्ता का इस तरह से बंटवारा हुआ है, तब अमेरिकी GDP की विकास दर सबसे अधिक रही है और शेयर बाज़ार का प्रदर्शन भी सबसे शानदार रहा है. अमेरिका के संस्थापकों की अक़्लमंदी की दाद देनी होगी कि उन्होंने राजनेताओं की महत्वाकांक्षाओं को क़ाबू में रखने की ऐसी शानदार व्यवस्था का निर्माण किया. आप तब से लेकर अब तक का इतिहास देखें, तो अमेरिका में एक ही गणराज्य की व्यवस्था चली आ रही है, जबकि इस बीच फ्रांस ने गणतंत्र के पांच प्रयोगों का सामना किया है.
  1. चुनाव से पहले की उम्मीदों के उलट इन चौंकाने वाले राजनीतिक समीकरणों के चलते अब जो बाइडेन, विदेश नीति पर ध्यान देने को बाध्य होंगे: वॉशिंगटन डी.सी. का लंबा तजुर्बा रखने के कारण मैं आपको यक़ीनी तौर पर बता सकता हूं कि पानी की तरह अमेरिकी व्यवस्था में सत्ता भी सबसे कम गतिरोध वाले रास्ते की ओर ही आगे बढ़ती है. इन चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी को तीन में से किसी भी मोर्चे पर ज़बरदस्त जीत मिलने की उम्मीद पूरी नहीं हुई. इसके अलावा जो बाइडेन के पास घरेलू नीति से ज़्यादा विदेशी मामलों में स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिक अधिकार होगा. इसीलिए आने वाले समय में जो बाइडेन प्रशासन को अपनी प्रभावी छाप छोड़ने के लिए अपना ध्यान विदेश नीति के मामलों पर केंद्रित करना होगा.
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