Author : Renita D'souza

Published on Dec 08, 2021 Updated 0 Hours ago

अगर भारत को हरित संवाद पर खरा उतरना है तो एक राष्ट्रीय वर्गीकरण विज्ञान का मसौदा तैयार करना ज़रूरी है.

भारत में कृषि से जुड़ा हरित संवाद बढ़ाने के उपाय: फसलों और मवेशियों का हो विज्ञान आधारित वर्गीकरण

ये लेख निबंध श्रृंखला हमारे हरित भविष्य को आकार देना: नेट-ज़ीरो बदलाव के लिए रास्ते और नीतियां का हिस्सा है.


परिचय

अगर हम मौजूदा पैटर्न को नहीं पलटते हैं तो तो वैश्विक तापमान 2100 ईस्वी तक औद्योगिक स्तर से पहले के 3 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा बढ़ने की आशंका है- ये पेरिस जलवायु समझौते के द्वारा तय 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा का काफ़ी ज़्यादा उल्लंघन होगा. कॉप26 शिखर सम्मेलन की प्राथमिकता अलग-अलग देशों को अपने 2030 के लक्ष्य को ताज़ा करने में महत्वाकांक्षी होने का अनुरोध करना और जलवायु परिवर्तन की प्रतिबद्धता है.

भारत अपने साथी देशों को जलवायु कार्रवाई बढ़ाने को लेकर प्रेरित कर सकता है और पर्यावरण और विकास के बीच जटिल लेन-देन को दरकिनार कर पथ प्रदर्शक का उदाहरण तय कर सकता है. 

भारत तीसरा सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है और आबादी के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है जिसके 2048 तक 1.6 अरब आबादी के साथ चरम पर पहुंचने का अनुमान है. साथ ही भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थों में से भी है. 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की अपनी कोशिश के बीच 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के साथ विकास के रास्ते को अपनाकर भारत जलवायु परिवर्तन को लेकर राहत के मामले में वैश्विक गणना में निर्णायक होगा. भारत अपने साथी देशों को जलवायु कार्रवाई बढ़ाने को लेकर प्रेरित कर सकता है और पर्यावरण और विकास के बीच जटिल लेन-देन को दरकिनार कर पथ प्रदर्शक का उदाहरण तय कर सकता है.

1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को मानने वाले भारत का 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए ऊर्जा की कुशलता में बढ़ोतरी और संसाधन के इस्तेमाल का सहारा मिलना चाहिए. इस हरित बदलाव के लिए सबसे आधुनिक हरित तकनीकों और बिज़नेस मॉडल के साथ-साथ हरित इंफ्रास्ट्रक्चर में विशाल निवेश की ज़रूरत है. इस बदलाव के लिए सिर्फ़ हरित इंफ्रास्ट्रक्चर पर 200 अरब अमेरिकी डॉलर के सालाना निवेश (या जीडीपी का 7-8%) और जलवायु के मामले में स्मार्ट योजना पर 300 अरब अमेरिकी डॉलर के सालाना निवेश का अनुमान है.

ये ऐसा काम है जिसके बारे में कहना तो आसान है लेकिन करना मुश्किल है. हरित उपक्रमों की निवेश विशेषता उनके जोखिम मुनाफ़े को कर्ज़ देने के उस सिद्धांत के साथ जुड़ने से रोकती है जो कि परंपरागत वित्तीय संस्थानों का मार्गदर्शन करते हैं. इसके अलावा, भारत में इस तरह के संस्थान दबाव में हैं, ये स्थिति लंबे समय तक कोविड-19 महामारी की वजह से और बिगड़ गई है. वो वित्तीय संस्थान जो अनुपयुक्त निवेश की ज़रूरत- आम तौर पर वित्तीय इनोवेशन या ख़ास तौर पर निवेश साधन का फ़ायदा उठाकर- पर आगे बढ़ते हैं वो स्वाभाविक तौर पर हरित परियोजनाओं को कर्ज़ देते हैं. हरित परियोजनाओं के लिए उनके विशिष्ट रूप से निर्मित समाधान में कर्ज़ में बढ़ोतरी, संग्रह एवं प्रतिभूतिकरण, मिश्रित वित्त, पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं के लिए भुगतान (पीईएस), वन कटाई एवं वन दुर्दशा से उत्सर्जन में कमी (आरईडीडी+) और प्रकृति के लिए ऋण अदला-बदली शामिल हैं.

एक हरित वर्गीकरण पर्यावरणीय रूप से जागरूक निवेश निर्णय लेने में निवेशकों द्वारा मांगा गया मार्गदर्शन और विश्वास प्रदान कर सकता है. ये पूंजी की कमी का सामना कर रहे हरित क्षेत्र को दृश्यता प्रदान कर सकता है, उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा से दूर ज़रूरी निवेश आकर्षित करने की स्वीकार्यता देगा 

हरित निवेश के लिए ज़ोरदार मांग, इसके अविकसित वित्तीय बाज़ार और घरेलू संस्थागत निवेश में कमी को देखते हुए भारत को अपने हरित परिवर्तन को हासिल करने के लिए निश्चित रूप से विदेशी निजी पूंजी का इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसी वैश्विक पूंजी बहुत ज़्यादा है: उत्तरदायी निवेश के लिए सिद्धांत, जिसके 1715 हस्ताक्षरकर्ता हैं, के तहत 81.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का सामूहिक एसेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) (अप्रैल 2018 तक); क़रीब 534 संवहनीयता सूचकांक फंड जिनके पास कुल मिलाकर 250 अरब अमेरिकी डॉलर हैं (2020 की दूसरी तिमाही के अंत तक); और 715 अरब अमेरिकी डॉलर का असर निवेश बाज़ार. लेकिन 2016-17 और 2017-18 के लिए भारत में राष्ट्रीय हरित फंड में वैश्विक निजी वित्त सिर्फ़ 5 प्रतिशत है.

इसकी वजह हरित वित्त की ज़्यादा जोख़िम वाली सोच हो सकती है जो कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के संदर्भ में स्पष्ट है. जोख़िम की सोच को हरित वर्गीकरण की अनुपस्थिति बढ़ाती है जो हरित वित्त को मानक बनाती है और ऐसे वित्त के लिए आर्थिक गतिविधियों/परियोजनाओं/संपत्ति की योग्यता तय करने के लिए नियम बनाती है.

हरित वर्गीकरण विज्ञान के लिए निर्देशक सिद्धांत

एक अच्छी तरह से परिभाषित वर्गीकरण सूचना समानता की अनुपस्थिति की घटनाओं को कम करेगा, हरित वित्त की एक से ज़्यादा प्रस्तुतिकरण को खारिज करेगा और ग़लत जानकारी के जोखिम को कम करेगा. ये निवेश में अंतर्निहित आर्थिक गतिविधियों के पर्यावरणीय निशान की पारदर्शी समझ को प्रदान करेगा.

एक हरित वर्गीकरण पर्यावरणीय रूप से जागरूक निवेश निर्णय लेने में निवेशकों द्वारा मांगा गया मार्गदर्शन और विश्वास प्रदान कर सकता है. ये पूंजी की कमी का सामना कर रहे हरित क्षेत्र को दृश्यता प्रदान कर सकता है, उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा से दूर ज़रूरी निवेश आकर्षित करने की स्वीकार्यता देगा जो वर्तमान में भारत में हरित वित्त का 80 प्रतिशत है. ये वित्तीय संस्थानों (एफआई) और कंपनियों की वित्तीय रूप-रेखा के पर्यावरणीय गुणक के प्रबंधन और निगरानी के लिए पैमाना हो सकता है. वहीं भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) जैसे नियामकों को वर्गीकरण विज्ञान के साथ जुड़ने वाले अधिकार पत्र के प्रकटीकरण के द्वारा उन संस्थानों की देखरेख करने की मंज़ूरी भी देंगे. ये सेबी के हरित बॉन्ड दिशा-निर्देश, जो वर्तमान में “हरित” निवेश की एक से ज़्यादा परिभाषा की इजाज़त देता है, को मज़बूत करने के लिए संदर्भ हो सकता है. ये ईएसजी सूची के निर्माण में शामिल डाटा संग्रह, सूचना और असर मापन की पद्धति के मानकीकरण को आसान बना सकता है. ये वैश्विक नेट-ज़ीरो के दृष्टिकोण के साथ पर्यावरणीय परिणामों की अनुकूलता की निगरानी के लिए सरकार का मापदंड भी हो सकता है जो रास्ते से भटकने की स्थिति में उचित सुधार का रास्ता भी बताएगा. भारतीय हरित वर्गीकरण के विकास में मौजूदा वर्गीकरण से अंतर्दृष्टि ली जा सकती है. इस निबंध में उन वर्गीकरणों की समीक्षा के द्वारा कुछ उदाहरण दिए गए हैं और उनसे सबक़ लेकर, जब घरेलू परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाकर उसी के अनुरूप किया जाए, भारतीय वर्गीकरण के लिए प्रमुख सिद्धांतों की ओर इशारा कर सकते हैं.

वर्गीकरण वाली अर्थव्यवस्थाएं कुछ निश्चित क्षेत्रों को शामिल करने और विशेष उद्देश्य को हासिल करने के लिए इस्तेमाल तौर-तरीक़े अलग-अलग रखते हैं- ये केवल अलग-अलग देशों की प्राथमिकता और बाध्यता में अंतर को दिखाते हैं. 

सिद्धांत 1: एक हरित वर्गीकरण का विकास इस ढंग से हो जिसका हरित वित्त पर बहुआयामी असर हो.

चीन, मंगोलिया और यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा विकसित वर्गीकरण “हरित” की धारणा का मानकीकरण करते हैं और ऐसे मानकीकरण के असर की पहचान वर्गीकरण के उद्देश्य के रूप में करते हैं. भारतीय वर्गीकरण की संरचना इतनी व्यापक हो सकती है कि विभिन्न सकारात्मक परिणाम उत्पन्न हों जो हरित वित्त के प्रवाह पर योगात्मक असर की रचना कर सकें. इन परिणामों की चर्चा ऊपर की गई है.

सिद्धांत 2: वर्गीकरण को भारत की सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए. 

ज़्यादातर वर्गीकरण वाली अर्थव्यवस्थाओं (जैसे बांग्लादेश, चीन, मंगोलिया, मलेशिया और ईयू) में पर्यावरणीय उद्देश्य महत्वपूर्ण रूप से एक-दूसरे से मेल खाते हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन में राहत एवं अनुकूलन, प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण, संसाधन कार्यक्षमता, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र/जैव विविधता का संरक्षण शामिल हैं. लेकिन वर्गीकरण वाली अर्थव्यवस्थाएं कुछ निश्चित क्षेत्रों को शामिल करने और विशेष उद्देश्य को हासिल करने के लिए इस्तेमाल तौर-तरीक़े अलग-अलग रखते हैं- ये केवल अलग-अलग देशों की प्राथमिकता और बाध्यता में अंतर को दिखाते हैं. भारत के वर्गीकरण विज्ञान को निश्चित रूप से अपनी आवश्यक पर्यावरणीय चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए.

कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय कंपनियों को वर्गीकरण विज्ञान के साथ जुड़े अपने राजस्व और टर्नओवर के साथ-साथ पूंजी और परिचालन खर्च का ख़ुलासा आर्थिक गतिविधि से अलग करने का आदेश दे 

जैसा कि पहले संक्षेप में बताया जा चुका है, भारत विश्व में कार्बन उत्सर्जन के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है जिसने 2019 में 2.62 अरब मीट्रिक टन या दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में 7.2 प्रतिशत का योगदान किया था. भारत वैश्विक रूप से दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है और दिल्ली सबसे ज़्यादा प्रदूषित राजधानी है. भारत के 22 शहर दुनिया के 30 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में हैं. भारत का क़रीब 70-80 प्रतिशत सतही पानी दूषित है और इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. भारत अपने इतिहास में सबसे ख़राब पानी के संकट का सामना कर रहा है: 2020 तक भारत के 21 शहर अपने भूजल भंडार को पूरी तरह खाली कर चुके हैं. इसके अलावा, 2030 तक भारत की 40 प्रतिशत आबादी की पहुंच पीने के पानी तक नहीं होगी. भारत की प्रति व्यक्ति पारिस्थितिकीय पदचिन्ह 1.19 हेक्टेयर पर है जबकि प्रति व्यक्ति जैव क्षमता 0.43 हेक्टेयर है. इसका ये अर्थ है कि जैव क्षमता में कमी 0.76 हेक्टेयर है. भारत में 90 प्रतिशत से ज़्यादा जैव विविधता वाले स्थान लुप्त हो चुके हैं.

वर्गीकरण विज्ञान में जलवायु परिवर्तन से राहत, वायु एवं जल प्रदूषण में कमी, पानी की कमी का समाधान और पारिस्थितिकी तंत्र/जैव विविधता के नुक़सान जैसे पर्यावरणीय उद्देश्यों को ज़रूर शामिल किया जाना चाहिए. ये ऊर्जा, उत्पादन, परिवहन, कृषि, बंजर भूमि और इमारत जैसे क्षेत्रों में गंभीर चुनौतियां हैं. इस तरह वर्गीकरण विज्ञान इन क्षेत्रों पर ध्यान देकर वर्गीकरण से पैदा होने की उम्मीद किए जाने वाले सकारात्मक पर्यावरणीय परिणामों को ज़्यादा-से-ज़्यादा कर सकते हैं.

सिद्धांत 3: वर्गीकरण विज्ञान को निश्चित रूप से राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, प्रमुख राष्ट्रीय योजनाओं एवं पर्यावरणीय अभियान के लिए नीतियों और राष्ट्रीय मानदंडों एवं मानकों में जगह मिलनी चाहिए.

लगभग सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय वर्गीकरण अर्थव्यवस्थाएं (जैसे चीन, मंगोलिया, बांग्लादेश, मलेशिया, मिस्र और ईयू) राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (एनडीसी), पर्यावरणीय अभियान के लिए राष्ट्रीय योजना एवं नीतियों के साथ-साथ राष्ट्रीय मानदंडों एवं मानकों का ध्यान रखते हैं.

तकनीकी छानबीन की कसौटी के लिए भारतीय वर्गीकरण विज्ञान को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के द्वारा तय प्रदूषण मानकों पर निर्भर करना चाहिए; पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ-साथ जल शक्ति मंत्रालय द्वारा तय जल उपभोग मानदंडों को मानना चाहिए; और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा परिभाषित पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्रोटोकॉल पर अमल करना चाहिए. पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं के मौद्रिक मूल्यांकन को भी पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के नुकसान का आकलन करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

सिद्धांत 4: योग्यता का मानदंड हर हाल में तकनीकी संशयवादी और 1.5 डिग्री सेल्सियस अनुकूल हो.

बांग्लादेश, मलेशिया और चीन के वर्गीकरण विज्ञान से अलग भारत को हरित वित्त के लिए योग्यता के निर्धारण में अपनी अलग छानबीन का मानदंड स्थापित करना चाहिए. ईयू के वर्गीकरण विज्ञान की तरह भारतीय संस्करण भी तकनीकी संशयवादी होना चाहिए. इस तरह का वर्गीकरण विज्ञान हरित परिवर्तन के वैकल्पिक रास्तों के बीच चुनने की स्वतंत्रता देता है और तकनीकी इनोवेशन के बीच उसे बेकार होने से बचाता है.

जलवायु बॉन्ड पहल (सीबीआई) वर्गीकरण विज्ञान की तरह भारत को ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की सीमा के बारे में तकनीकी छानबीन के मानदंड के लिए नवीनतम जलवायु विज्ञान का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए. ये मानदंड 2 डिग्री सेल्सियस के बदले 1.5 डिग्री सेल्सियस के अनुकूल होना चाहिए.

सिद्धांत 5: वर्गीकरण विज्ञान को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ सुसंगत होना चाहिए.

मौजूदा भारतीय मानकों को घरेलू हालात के भीतर मुहैया कराए गए अवसर में अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के बराबर संशोधित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, अनुचित छूट, मानकीकृत संदर्भ की शर्तें, जन सुनवाई की प्रक्रिया के लिए मानक प्रश्नावली और “माने हुए” भुगतान की शुरुआत ने पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के प्रोटोकॉल की प्रमाणिकता को संकट में डाल दिया है. इस प्रोटोकॉल की छानबीन की कोशिश करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) के प्रदर्शन मानक 1: पर्यावरणीय और सामाजिक जोखिम का मूल्यांकन और प्रबंधन के मुताबिक संचयी प्रभाव मूल्यांकन को जोड़कर बढ़ाया जा सकता है.

सिद्धांत 6: हरित वित्त और वर्गीकरण विज्ञान के साथ प्रकटीकरण मानक की निगरानी का गठबंधन.

बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी)-अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त क्लब (आईडीएफसी) सिद्धांत और मलेशिया, मिस्र और ईयू की वर्गीकरण अर्थव्यवस्था पारदर्शी और अच्छी तरह से परिभाषित प्रकटीकरण और सूचना के ज़रिए जलवायु/हरित वित्त की निगरानी की ज़रूरत को स्पष्ट करते हैं.

आरबीआई और सेबी जैसे नियामकों को वित्तीय बाज़ार के हिस्सेदारों को पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने की रूप-रेखा प्रस्तुत करने का आदेश देना चाहिए. इसमें हर वित्तीय साधन (जैसे बॉन्ड, इक्विटी और कर्ज़) के मुख्य निवेश और ऐसे निवेश का हिस्सा जो वर्गीकरण विज्ञान से जुड़ा हो, एक इंस्ट्रूमेंट, फंड या पोर्टफोलियो में निवेश के भाग के रूप में अभिव्यक्त हो. कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय कंपनियों को वर्गीकरण विज्ञान के साथ जुड़े अपने राजस्व और टर्नओवर के साथ-साथ पूंजी और परिचालन खर्च का ख़ुलासा आर्थिक गतिविधि से अलग करने का आदेश दे और आर्थिक गतिविधियों से हासिल पर्यावरणीय लक्ष्यों की सूची बनाए.

सिद्धांत 7: वर्गीकरण विज्ञान की नियमित समीक्षा और नवीनीकरण.

मंगोलिया, चीन और जलवायु बॉन्ड पहल (सीबीआई) वर्गीकरण विज्ञान विकासात्मक स्तर, तकनीक, नीति, मानक और पर्यावरणीय परिस्थिति में परिवर्तन को सम्मिलित करने के लिए समय पर नवीनीकरण के महत्व को रेखांकित करते हैं. इस सिद्धांत को भारतीय वर्गीकरण विज्ञान में भी शामिल किया जाना चाहिए.

कुछ अन्य दूसरे और अहम् मुद्दे

कृषि के अलग स्वरूप और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की निगरानी की व्यावहारिकता में कमी, वायु और जल प्रदूषकों के साथ-साथ कृषि स्तर पर पानी के इस्तेमाल को देखते हुए वर्गीकरण विज्ञान में परिमाणात्मक तकनीकी छानबीन मानदंड के मुक़ाबले पहले से तय टिकाऊ कृषि और भारतीय संदर्भ के लिए पशुधन कृषि की पद्धति को शामिल किया जा सकता है. टिकाऊ कृषि पद्धतियों में ऑर्गेनिक फार्मिंग, एग्रोफॉरेस्ट्री, प्राकृतिक खेती, चावल की खेती बढ़ाने की प्रणाली (एसआरआई) और सूक्ष्मता खेती शामिल हैं. टिकाऊ पशुधन कृषि की पद्धतियों में बेहतर चारागाह प्रबंधन, पशु आहार एवं आनुवांशिकी, उन्नत खाद प्रबंधन, उर्वरक प्रबंधन और पशु स्वास्थ्य नियोजन शामिल हैं. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी उद्योग मंत्रालय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को टिकाऊ कृषि और पशुधन कृषि पद्धतियों के पक्ष में ठोस, विश्वसनीय और मज़बूत प्रमाण तलाशने के लिए रिसर्च करने का काम सौंपे. इस तरह की रिसर्च ज़रूरी पद्धतियों की रूप-रेखा भी प्रस्तुत करेंगे जिन्हें जब सामूहिक रूप से इस्तेमाल किया जाएग तो भारत में अलग-अलग जैवभौतिक परिस्थितियों में प्रशंसनीय पर्यावरणीय लाभ हासिल करेंगे.

अलग-अलग क्षेत्रों में ख़राब अनुपालन की संस्कृति वर्गीकरण विज्ञान के क्रियान्वयन को लेकर “ग़लत जानकारी” के जोखिम का पर्दाफ़ाश करते हैं. औद्योगिक प्रदूषण के मानदंड और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के प्रोटोकॉल के उल्लंघन को अनुपालन के प्रोत्साहन अनुरूप सुधार के तौर-तरीक़ों की स्थापना से किया जा सकता है

अलग-अलग क्षेत्रों में ख़राब अनुपालन की संस्कृति वर्गीकरण विज्ञान के क्रियान्वयन को लेकर “ग़लत जानकारी” के जोखिम का पर्दाफ़ाश करते हैं. औद्योगिक प्रदूषण के मानदंड और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के प्रोटोकॉल के उल्लंघन को अनुपालन के प्रोत्साहन अनुरूप सुधार के तौर-तरीक़ों की स्थापना से किया जा सकता है. उदाहरण के लिए परिवहन सेक्टर में ग़लत जानकारी को कम करने के लिए चेसिस डाइनेमोमीटर और कॉन्सटेंट स्पीड फ्यूल कंज़म्पशन (सीएसएफसी) टेस्ट की जगह कार्बन उत्सर्जन की सीमा के साथ प्रमाणित करने वाले अनुपालन में इंजन डाइनेमोमीटर टेस्ट की ज़रूरत पड़ेगी. ये ऐसे सत्यापन में इलेक्ट्रिक वाहनों को ज़्यादा प्राथमिकता देने को धीरे-धीरे ख़त्म करने, अनुपालन दिखाने के लिए वाहन उत्पादक की ज़रूरत से टाइप अप्रूवल और कॉन्फॉर्मिटी ऑफ प्रोडक्शन (सीओपी) टेस्टिंग से वित्तीय प्रोत्साहन हटाने और वर्गीकरण विज्ञान में ऐसे ईंधन से जुड़ी गतिविधियों से जैव-ईंधन की कार्बन तटस्थता स्थापित करने को आवश्यक बनाता है.

निष्कर्ष

राष्ट्रीय वर्गीकरण विज्ञान की शुरुआत वैश्विक नेट-ज़ीरो दृष्टिकोण में भारत के योगदान को बढ़ाने की आकांक्षा का प्रदर्शन करेगी. वर्तमान में हरित वित्त अभी भी भारत में एक “कुटीर उद्योग” है.  वर्गीकरण विज्ञान को स्पष्ट करने से हरित वित्त के “औद्योगीकरण” में मदद मिलेगी, इसे “बूंद से धारा” में परिवर्तित किया जा सकेगा जो बदले में भारत के महत्वाकांक्षी हरित परिवर्तन पर असर डालेगा.

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