Published on Nov 16, 2020 Updated 0 Hours ago

चीन में परमाणु ऊर्जा के लिए एक तिहाई यूरेनियम शिनजियांग के यिलि बेसिन के खदान से आते हैं. इस इलाक़े में बड़ी तादाद में वीगर भी रहते हैं.

चीन के शिनजियांग में वीगर मुसलमानों की कीमत पर परमाणु साम्राज्यवाद

आज चीन दुनिया में परमाणु ऊर्जा के विकास के सबसे बड़े कार्यक्रम में से एक को सफलतापूर्क चला रहा है. शीत युद्ध के दौरान परमाणु ऊर्जा के व्यवसायीकरण की कोई वजह मौजूद नहीं थी क्योंकि कोयले पर आधारित बिजली केंद्रों और पनबिजली ऊर्जा का चलन था. लेकिन 2005 के बाद चीन ने इस परंपरा को बदल दिया. ध्यान देने योग्य बात ये है कि चीन के इस क़दम से अल्पसंख्यकों के साथ उसकी नाइंसाफ़ी फिर से साबित हुई. चीन के अल्पसंख्यकों की ज़मीन का इस्तेमाल पहले परमाणु हथियारों के परीक्षण के लिए हुआ और अब ऊर्जा के लिए हो रहा है. इस तरह चीन ने परमाणु साम्राज्यवाद के इतिहास को जारी रखा. ये परमाणु साम्राज्यवाद 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के समय से ही चीन के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र शिनजियांग के नस्लीय अल्पसंख्यकों, जिनमें से ज़्यादातर मुस्लिम वीगर है, के ख़िलाफ़ पहले से हो रही हिंसा के अलावा होने वाली ज़्यादती है.

परमाणु साम्राज्यवाद 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के समय से ही चीन के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र शिनजियांग के नस्लीय अल्पसंख्यकों, जिनमें से ज़्यादातर मुस्लिम वीगर है, के ख़िलाफ़ पहले से हो रही हिंसा के अलावा होने वाली ज़्यादती है.

वीगर और चीन की बहुसंख्यक नस्ल हान के बीच बुनियादी अंतरों को देखते हुए वीगर की पहचान हमेशा से जांच के दायरे में थी. 9/11 को लेकर आतंक के ख़िलाफ़ वैश्विक युद्ध के साथ-साथ 5 जुलाई 2009 को उरुमकी दंगों, जिसमें शिनजियांग में प्रदर्शनकारी वीगर, हान और चीन की पीपुल्स आर्म्ड पुलिस के बीच संघर्ष में क़रीब 200 लोगों की जान चली गई थी, उसके बाद सरकार ने ख़ास तौर पर वीगर समुदाय के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाए. चीन की सरकार ने कुछ मुट्ठी भर लोगों के द्वारा की गई ‘आतंकी’ गतिविधियों के लिए पूरे समुदाय को ज़िम्मेदार ठहरा दिया. कुछ लोग भले ही मौक़ापरस्त रुख़ समझें लेकिन चीन ख़ुद को वैश्विक आतंकवाद का शिकार साबित करने में कामयाब रहा ताकि अल्पसंख्यक समूहों पर कार्रवाई को सही ठहरा सके. आतंक की इस कहानी की बदौलत ‘ख़तरनाक जनसंख्या’ को क़ानूनी रक्षा नहीं मुहैया कराई गई और उन्हें अलग-थलग कर दिया गया, उनकी हरकतों को अक्सर सुरक्षा के लिए ख़तरा बता दिया गया. ये शत्रुता कुछ वीगर दंगाइयों तक सीमित नहीं थी. इसके बदले पूरे वीगर समुदाय को खराब बता दिया गया. ये उदाहरण साबित करते हैं कि वीगर समुदाय पर चीन ने किस तरह शासन किया.

वीगरों के ख़िलाफ़ चीन के नज़रिये की वजह से कई स्तर पर कड़ी कार्रवाई हुई है. वीगरों के विरोध, आंदोलन, सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं पर कार्रवाई के साथ ऐसा कार्यक्रम चलाया गया जिसमें उन्हें हान के वर्चस्व वाले समाज में जोड़ने की कोशिश की गई और अब पूरे नस्ल को अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही है. वीगरों से सुनियोजित भेदभाव किया जा रहा है. चीन ने पहले परमाणु हथियार का परीक्षण लोप नोर में किया और अब यिलि बेसिन में यूरेनियम के खनन के ज़रिए वो नये तरह के साम्राज्यवाद को दिखा रहा है.

ये साम्राज्यवाद वीगरों के इलाक़े और वहां मौजूद संसाधनों से भरपूर मिट्टी के ऊपर संप्रभुता को लेकर संघर्ष में बदल गया. सोवियत संघ के साथ रिश्तों में दरार के बाद चीन ने अपने महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम को और बढ़ाने और उसमें तेज़ी लाने का फ़ैसला किया. 

परमाणु हथियारों का परीक्षण 60 के दशक के मध्य में शुरू हुआ. उसके फ़ौरन बाद वीगरों के इलाक़े में हान समुदाय के उपनिवेश के अलावा एक तरह के परमाणु साम्राज्यवाद की शुरुआत हुई. ये साम्राज्यवाद वीगरों के इलाक़े और वहां मौजूद संसाधनों से भरपूर मिट्टी के ऊपर संप्रभुता को लेकर संघर्ष में बदल गया. सोवियत संघ के साथ रिश्तों में दरार के बाद चीन ने अपने महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम को और बढ़ाने और उसमें तेज़ी लाने का फ़ैसला किया. शीत युद्ध के दौरान चीन परमाणु हथियार विकसित करने वाला पांचवां देश बन गया. चीन ने औपचारिक तौर पर 1956 में

1976 में माओत्से तुंग की मौत के बाद सांस्कृतिक क्रांति का दौर ख़त्म हो गया और आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हो गया. ध्यान देने योग्य बात ये है कि लोप नोर परीक्षण केंद्र इस बदलाव के दौरान भी बना रहा. लेकिन इलाक़े की वीगर आबादी पर इसका असर नुक़सानदेह रहा. उन्हें जिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा उनमें पर्यावरण को नुक़सान, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और अपने परंपरागत तौर-तरीक़ों पर पाबंदियां शामिल हैं. प्रोफेसर जुन तकाडा ने एक अध्ययन के ज़रिए बताया कि किस तरह परमाणु परीक्षण की वजह से रेडियो सक्रियता के उच्च स्तर ने आने वाली पीढ़ियों पर असर डाला. कुछ लोगों में जन्मजात खराबी और कैंसर के मामले पाए गए. इस इलाक़े में कैंसर के मामले बाकी प्रांत के मुक़ाबले क़रीब 35% ज़्यादा थे. परंपरागत दवाओं के सहारे वीगर कैंसर से मुक़ाबला नहीं कर पाए. संक्षेप में कहें तो सरकार को जहां अपनी ज़िम्मेदारी से बचाया गया वहीं वीगर समुदाय सेहत का जोखिम उठाता रहा. लोप नोर में परमाणु परीक्षण से प्रभावित वीगरों को सरकार की तरफ़ से कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया. दूसरी तरफ़ हान समुदाय के कई लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में सरकार की तरफ़ से भरोसा दिया गया. इसकी वजह से शिनजियांग में बाद के वर्षों में हान और वीगरों के बीच तनाव और बढ़ गया.

आज चीन में परमाणु ऊर्जा के लिए एक तिहाई यूरेनियम शिनजियांग के यिलि बेसिन के खदान से आते हैं. इस इलाक़े में बड़ी तादाद में वीगर भी रहते हैं. चीन ने शिनजियांग को परमाणु ऊर्जा उद्योग के प्राथमिक केंद्र में तब्दील कर दिया है. 

इसके बाद शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू हो गए. नवबर 1985 में बीजिंग में परमाणु हथियारों के परीक्षण के ख़िलाफ़ छात्रों की अगुवाई में प्रदर्शन को सरकार ने कुचल दिया. 1993 में वीगर समुदाय के लोगों ने लोप नोर में जमा होकर परमाणु परीक्षणों पर पाबंदी की मांग की लेकिन उन्हें चीन की सेना ने रोक दिया. इस दौरान कई प्रदर्शनकारियों को गोली भी मारी गई. टाइगर ऑफ लोप नोर नाम के एक संगठन ने तो परमाणु परीक्षण की जगह पर टैंक भी भेज दिया और विरोध में जहाज़ों को उड़ा दिया. इस माहौल में हान राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ पहले से संघर्ष में शामिल वीगर और उग्र हो गए. परमाणु विरोधी आंदोलन अलगाववाद में बदलने लगा.

आज चीन में परमाणु ऊर्जा के लिए एक तिहाई यूरेनियम शिनजियांग के यिलि बेसिन के खदान से आते हैं. इस इलाक़े में बड़ी तादाद में वीगर भी रहते हैं. चीन ने शिनजियांग को परमाणु ऊर्जा उद्योग के प्राथमिक केंद्र में तब्दील कर दिया है. लोप नोर टेस्ट साइट के उत्तर में चीन परमाणु रिसर्च में लगा हुआ है. यिलि के आस-पास रहने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोई सरकारी योजना नहीं है. इससे पता चलता है कि परमाणु साम्राज्यवाद फिर से ज़िंदा हो गया है. अब परमाणु परीक्षणों से ज़्यादा यूरेनियम उत्खनन हो रहा है. वहीं सरकार की तरफ़ से कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई है. न तो परमाणु क़ानून को लागू किया गया है, न ही परमाणु गतिविधियों की निगरानी की जा रही है.

2003 में चीन में एक क़ानून था जो यूरेनियम खदान के विकास से होने वाले रेडियो-सक्रिय प्रदूषण की रोक-थाम और नियंत्रण के लिए बनाया गया था. इसका मतलब था कि पर्यावरण विभाग को परमाणु परीक्षण करने वाली जगह की जांच-पड़ताल का काम सौंपा गया था. लेकिन क़ानून में ये भी था कि किसी भी हादसे की हालत में पूरे संगठन के बदले कुछ ख़ास लोगों को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा. इस क़ानूनी प्रावधान की वजह से कामगारों की हिफ़ाज़त को सुनिश्चित करना कोई प्रेरणादायक काम नहीं रह गया. वास्तव में छानबीन का काम काफ़ी हद तक होता ही नहीं है.

2008 के बाद चीन तेज़ी से यूरेनियम का खनन करने लगा. चीन के पास फिलहाल 44 काम-काजी परमाणु रिएक्टर हैं और 18 अन्य का निर्माण किया जा रहा है. चीन का लक्ष्य है कि 2030 तक उसकी बिजली ज़रूरत का पांचवां हिस्सा परमाणु ऊर्जा से हासिल  ethnic minorities, nuclear weapon testing, censorship, Islamism, cultural protests, nuclear energy, sickness, exposition, China, minorities in China, Xinjiang, radioactive pollution

2008 के बाद चीन तेज़ी से यूरेनियम का खनन करने लगा. चीन के पास फिलहाल 44 काम-काजी परमाणु रिएक्टर हैं और 18 अन्य का निर्माण किया जा रहा है. चीन का लक्ष्य है कि 2030 तक उसकी बिजली ज़रूरत का पांचवां हिस्सा परमाणु ऊर्जा से हासिल हो. इस इलाक़े में अल्पसंख्यकों के आंदोलन को अधिकारी अक्सर आतंकी कार्रवाई या सांस्कृतिक प्रदर्शन समझते हैं जबकि वास्तव में ये परमाणु उद्योग के ख़िलाफ़ है. परमाणु के ख़िलाफ़ और ज़्यादा आंदोलन पूर्व के प्रांतों शेनडोंग, जियांग्सु और गुआंगडोंग में हो रहे हैं. इसकी वजह ये है कि रक्षा नहीं करने वाली परमाणु नीतियों को लेकर लोगों में चिंताएं हैं. लोगों की राय को संगठित करने के लिए ऑनलाइन याचिका और सक्रिय मीडिया धीरे-धीरे इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं. लेकिन ये भी समझना होगा कि ज़्यादा दिन नहीं बचे हैं जब चीन उन्हें शांत कर देगा.

इस तरह के ऑनलाइन विरोध को रोकने के लिए अक्सर सेंसरशिप का इस्तेमाल किया जाता है. सबसे बुरी बात ये है कि शिनजियांग के वीगरों के पास अपनी शिकायतों को आवाज़ देने के लिए कोई संगठन नहीं है जबकि पूर्व के प्रांतों में ऐसे मामलों में परमाणु पावर प्लांट को दूसरी जगह बसाया जाता है. इससे भी बढ़कर ये परिवर्तन उन ज़िंदगियों की क़ीमत पर होते हैं जिन्हें कम असरदार समझा जाता है और जिनके ख़िलाफ़ सरकार ने पहले से अभियान चला रखा है. हान समुदाय उन लोगो के लिए कोई चिंता नहीं दिखाता जिनके यहां प्लांट लगाए जाते हैं.

शिनजियांग चीन का मुख्य़ परमाणु केंद्र बना हुआ है. चीन वीगर अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक और राजनीतिक तौर पर पूरी तरह समाप्त करने के लिए क़दम जारी रखे हुए है और इस तरह नफ़रत और सांस्कृतिक नरसंहार की झलक दिखा रहा है. 

इस तरह शिनजियांग चीन का मुख्य़ परमाणु केंद्र बना हुआ है. चीन वीगर अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक और राजनीतिक तौर पर पूरी तरह समाप्त करने के लिए क़दम जारी रखे हुए है और इस तरह नफ़रत और सांस्कृतिक नरसंहार की झलक दिखा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से जब तक बहुत ज़्यादा दबाव नहीं पड़ता और चालाकी नहीं दिखाई जाती तब तक शिनजियांग में ये सब चलता रहेगा जहां प्रतिरोध और आत्महत्या, बलिदान और मुक्ति, शहादत और स्वतंत्रता के बीच की रेखा धुंधली है.


तारा राव ORF में एक रिसर्च इंटर्न है.

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