Published on Oct 26, 2020 Updated 0 Hours ago

इस विवाद की गंभीरता और इस तथ्य को देखते हुए कि दक्षिणी चीन सागर का ‘सैन्यीकरण’ हो रहा है, ये आसियान देशों के लिए समय है कि वो खुद मज़बूत रुख़ अपनाएं या अमेरिका और दूसरे देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के साथ आवाज़ बुलंद करें.

अमेरिका-चीन तनाव और इसका दक्षिणी चीन सागर ‘विवाद’ पर असर

कोविड-19 महामारी फैलने के वक़्त से दक्षिणी चीन सागर (SCS) में तनाव बढ़ रहा है. इसकी मुख्य वजह चीन का लगातार ज़िद्दी रुख़ और SCS के विशाल क्षेत्र पर चीन के प्रादेशिक दावे की वजह से अमेरिका-चीन संबंधों का बिगड़ना है. हाल के समय में SCS में तनाव अचानक बढ़ गया है, ख़ासतौर पर पिछले कुछ हफ़्तों में क्योंकि इस दौरान अमेरिका और चीन के संबंध सामान्य तौर पर भी बिगड़े हैं. इस मौजूदा लड़ाई की वजह से विवादित समुद्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में और ज़ोर लगाना पड़ रहा है. इस तनाव का एक उदाहरण हैं जुलाई 2020 में एक ही वक़्त पर विवादित इलाक़े में अमेरिका और चीन- दोनों देशों के द्वारा नौसैनिक अभ्यास करना. दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे पर इस अमेरिका-चीन झगड़े का क्या असर रहा है? क्या अमेरिका-चीन झड़प ने दक्षिणी चीन सागर पर दावा करने वाले दक्षिण-पूर्वी देशों को ये विवाद बेहतर ढंग से निपटने में मदद की है? या ये देश बड़ी शक्तियों की दुश्मनी के बीच में फंस गए हैं? दक्षिणी चीन सागर विवाद पर अमेरिका-चीन की मौजूदा लड़ाई को लेकर एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स (ASEAN) को क्या रुख़ अपनाना चाहिए?

अमेरिका-चीन के संबंधों में गिरावट का सबसे ज़्यादा असर दक्षिणी चीन सागर में बढ़ता सैन्य अभ्यास और सैनिकों की तैनाती है. चीन ने पूरे “दक्षिणी चीन सागर में अच्छी दूरी पर” मीडियम रेंज की कई मिसाइल दागी हैं. चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सीनियर कर्नल वू क़ियान के मुताबिक़ इस योजनाबद्ध ड्रिल में शामिल इलाक़े उत्तर-पूर्वी चीन के क़िंगडाउ से लेकर स्प्रैटली तक है जिसका असर हैनान द्वीप और पारासेल द्वीप पर भी पड़ा है. ये अभ्यास चीन की क्षमता का प्रदर्शन और दक्षिणी चीन सागर के हैनान द्वीप में चीन के परमाणु पनडुब्बी अड्डे के इर्द-गिर्द अमेरिकी नौसेना के सुपर कैरियर रोनाल्ड रीगन और निमित्ज़ के द्वारा अभ्यास का जवाब है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने इन अभ्यासों के बाद जारी एक बयान में चीन पर “दक्षिणी चीन सागर का सैन्यीकरण नहीं करने के चीन के पिछले वादे के उल्लंघन” का आरोप लगाया. इसके अलावा इंडोनेशिया के नटुना द्वीप के नज़दीक समुद्र में चीन की मछली पकड़ने वाली नाव की संख्या में लगातार बढ़ोतरी और मलेशिया, ब्रुनेई, वियतनाम और फिलीपींस के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) में जहाज़ों की तैनाती की गई. साथ ही पारासेल और स्प्रैटली द्वीप में दो नये प्रशासनिक ज़िले भी बनाए गए. चीन की तरफ़ से इन कार्रवाइयों की वजह से इलाक़े में तनाव कम करने और स्थायित्व बनाए रखने में अड़चन आई है. निक्केई एशियन रिव्यू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ PLA ने अपने दक्षिणी थियेटर कमांड को तैयार किया है जो दक्षिणी चीन सागर पर नज़र रखता है. ये क़दम चीन के सामरिक वर्चस्व और विवादित समुद्र में अपनी संप्रभुता दिखाने की कोशिश को लेकर बाक़ी देशों को संकेत और अमेरिका को संदेश भी है.

चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सीनियर कर्नल वू क़ियान के मुताबिक़ इस योजनाबद्ध ड्रिल में शामिल इलाक़े उत्तर-पूर्वी चीन के क़िंगडाउ से लेकर स्प्रैटली तक है जिसका असर हैनान द्वीप और पारासेल द्वीप पर भी पड़ा है. ये अभ्यास चीन की क्षमता का प्रदर्शन और दक्षिणी चीन सागर के हैनान द्वीप में चीन के परमाणु पनडुब्बी अड्डे के इर्द-गिर्द अमेरिकी नौसेना के सुपर कैरियर रोनाल्ड रीगन और निमित्ज़ के द्वारा अभ्यास का जवाब है. 

अमेरिका भी अपना रवैया सख़्त कर रहा है और SCS में सैन्य मौजूदगी को बढ़ा रहा है. इसके अलावा विवादित समुद्र में चीन की कार्रवाइयों की खुले तौर पर आलोचना कर रहा है. इस प्रादेशिक विवाद में चीन की विस्तारवादी गतिविधियों की कहानी कोई एकाएक नहीं है. चीन 2013 से कृत्रिम द्वीप पर दावे की गतिविधियों में शामिल है. यहां तक कि चीन 2016 के पंचाट के फ़ैसले को भी अमान्य बताता है और अभी भी दक्षिणी चीन सागर  पर अपना “तथाकथित ऐतिहासिक अधिकार” रखता है. अमेरिका ने अतीत में भी SCS में कार्रवाइयों के लिए चीन की आलोचना की है और ट्रंप प्रशासन के आने के बाद कई फ़्रीडम ऑफ नेविशेगन ऑफ एक्सरसाइजेज़ (FONOPs) में हिस्सेदार रहा है. अमेरिकी नौसेना ने 2014 में बड़े अभ्यास का आयोजन किया जिनमें दोहरा एयरक्राफ्ट कैरियर ऑपरेशन शामिल हैं. अमेरिका की तरफ़ से पनडुब्बी और मैरिटाइम एयर पेट्रोल की तैनाती बढ़ाई गई है. लेकिन पारासेल और स्प्रैटली में FONOPs की संख्या इस साल और ज़्यादा बढ़ाई गई है. यहां अमेरिकी नौसेना ने 2020 में अब तक सात युद्ध अभ्यास किए हैं. 2019 में आठ, 2018 में पांच और 2017 में चार युद्ध अभ्यास किए गए थे. जुलाई 2020 में विवादित समुद्र में दो एयरक्राफ्ट कैरियर की तैनाती के साथ अमेरिकी सेना की मौजूदगी और भी बढ़ाई गई है. अतीत में अमेरिका ने SCS विवाद में संप्रभुता के सवाल पर किसी पक्ष का साथ नहीं दिया था. लेकिन अमेरिकी विदेश विभाग ने 13 जुलाई 2020 को एक रिपोर्ट के ज़रिए, जिसका शीर्षक “दक्षिणी चीन सागर में समुद्रीय दावे पर अमेरिकी रुख” था, विवादित समुद्र में चीन के विस्तारवादी दावों को अवैध करार दिया और इसे 2016 में हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फ़ैसले से जोड़ दिया. इससे साफ़ पता चलता है कि अब अमेरिका इस मसले पर ASEAN के दावेदारों जैसे मलेशिया, वियतनाम और फिलीपींस का साथ दे रहा है. एक और क़दम के तहत अगस्त 2020 में अमेरिकी प्रशासन ने चीन की 24 कंपनियों पर जुर्माना लगाया या उन्हें “व्यापार काली सूची” में डाल दिया. इन कंपनियों ने SCS के विवादित द्वीपों और चट्टानों में कृत्रिम द्वीप बनाने में चीन की मदद की थी. अलग-अलग बयानों में अमेरिका के वाणिज्य विभाग और अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि इन कंपनियों ने “3,000 एकड़ से ज़्यादा इलाक़े में कृत्रिम द्वीप बनाने में चीन की मदद की है जहां एंटी-शिप मिसाइल और दूसरे सैन्य उपकरण तैनात हैं. इसका मक़सद इस क्षेत्र में नये समुद्री दावों पर डटे रहना और फिलीपींस और दूसरे देशों को मछली पकड़ने और समुद्री तट से दूर इलाक़ों में ऊर्जा भंडारों पर उनके अधिकार को लेकर ‘धमकाना’ है.” इसके अलावा अमेरिका ने इन कंपनियों के अधिकारियों और द्वीप निर्माण के काम में शामिल दूसरे लोगों पर वीज़ा पाबंदियां भी लगाई हैं. दूसरी तरफ़ अमेरिका में चीन के दूतावास ने इन क़दमों को “धौंस जमाने वाली कार्रवाई बताया है जो अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को लेकर बुनियादी नियमों का गंभीर उल्लंघन करते हैं.”

अमेरिका भी अपना रवैया सख़्त कर रहा है और SCS में सैन्य मौजूदगी को बढ़ा रहा है. इसके अलावा विवादित समुद्र में चीन की कार्रवाइयों की खुले तौर पर आलोचना कर रहा है. इस प्रादेशिक विवाद में चीन की विस्तारवादी गतिविधियों की कहानी कोई एकाएक नहीं है. चीन 2013 से कृत्रिम द्वीप पर दावे की गतिविधियों में शामिल है. 

चीन और अमेरिका- दोनों की इन कार्रवाइयों और ख़ासतौर पर अमेरिका-चीन संबंधों में गिरावट ने दक्षिण-पूर्व एशिया के दावेदार देशों को मुश्किल में डाल दिया है. अब अमेरिका कह रहा है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दक्षिणी चीन सागर महाशक्तियों के संघर्ष के क्षेत्र बन गये हैं जिसमें चीन शामिल है. ASEAN के देश हमेशा इन हालात में किसी एक पक्ष का साथ देने से पीछे भागते रहे हैं. अमेरिकी विदेश विभाग की 13 जुलाई 2020 की रिपोर्ट जिसमें दक्षिणी चीन सागर विवाद को लेकर अमेरिका का रुख़ साफ़ किया गया है, के बावजूद ASEAN के दावेदार देशों में से वियतनाम को छोड़कर उसे किसी देश का पूरा समर्थन नहीं मिला है. इसकी वजह ये है कि ASEAN के देशों को डर है कि कहीं चीन नाराज़ न हो जाए. वियतनाम ने ज़रूर कुछ शब्दों में सकारात्मक जवाब दिया है. इस बात के संकेत हैं कि दक्षिणी चीन सागर तेज़ी से सैन्य क्षेत्र में तब्दील हो रहा है. अगर अमेरिकी फ़्रीडम ऑफ नेविशेगन ऑफ एक्सरसाइजेज़ (FONOPs) इस साल बढ़े हैं तो चीन की सैन्य गतिविधियां भी बढ़ी हैं. PLA ने अमेरिकी नौसेना के जहाज़ों के पारासेल और स्प्रैटली से गुज़रने के मुद्दे पर विवाद बढ़ाने वाला जवाब दिया है. इसकी वजह से दक्षिणी चीन सागर को लेकर अमेरिका-चीन संबंध गहरे संकट की तरफ़ बढ़ सकता है.

मौजूदा समय में SCS के ‘सैन्यीकरण’ की गंभीरता को देखते हुए ASEAN देशों के लिए ये सही समय है कि वो ख़ुद सख़्त रुख़ अपनाएं या अमेरिका और दूसरे देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत का साथ दें. दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश भी मानते हैं कि दक्षिणी चीन सागर में अपने दावों को मज़बूत करने और विस्तारवाद के लिए चीन महामारी का सहारा ले रहा है. 

इसलिए मौजूदा समय में SCS के ‘सैन्यीकरण’ की गंभीरता को देखते हुए ASEAN देशों के लिए ये सही समय है कि वो ख़ुद सख़्त रुख़ अपनाएं या अमेरिका और दूसरे देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत का साथ दें. दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश भी मानते हैं कि दक्षिणी चीन सागर में अपने दावों को मज़बूत करने और विस्तारवाद के लिए चीन महामारी का सहारा ले रहा है. ये अचार संहिता (COC) पर बातचीत के दौरान लंबे समय के लिए चीन जैसे प्रतियोगी से निपटने में अमेरिका से कुछ फ़ायदे हासिल करने का भी सही समय होगा. नौसैनिक शक्ति और क्षमता में काफ़ी असमानता की वजह से दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश सिर्फ़ ख़ुद को बेहतर उपकरणों से लैस करने के तरीक़ों के बारे में सोच सकते हैं ताकि वो अपने एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZs) में चीन की गतिविधियों पर नज़र रख सकें. अमेरिका ने ये इच्छा जताई है कि वो दावेदार देशों को रडार, ड्रोन और गश्ती नाव जैसे उपकरण देकर समर्थन के लिए तैयार है जिनकी मदद से EEZs में चीन की गतिविधियों पर बेहतर ढंग से नज़र रखी जा सकेगी ख़ासतौर पर अवैध तरीक़े से मछली पकड़ने और चीन के सरकारी जहाज़ों पर.

अगस्त 2020 में अमेरिकी प्रशासन ने चीन की 24 कंपनियों पर जुर्माना लगाया या उन्हें “व्यापार काली सूची” में डाल दिया. इन कंपनियों ने SCS के विवादित द्वीपों और चट्टानों में कृत्रिम द्वीप बनाने में चीन की मदद की थी. 

चीन की गतिविधियों पर बेहतर ढंग से नज़र रखने के अलावा दावेदार देशों के लिए COC के निष्कर्षों को फास्ट ट्रैक करने, बहुपक्षीय मंचों जैसे ईस्ट एशिया समिट (EAS), ASEAN रीजनल फ़ोरम (ARF) के ज़रिए चीन पर दबाव डालने का विकल्प भी है. इन मंचों पर अमेरिका, ऑस्ट्रलिया, भारत और जापान जैसे देश भी मौजूद हैं जो COC की प्रक्रिया को मौजूदा महामारी की आड़ में और नहीं रोकेंगे. COC के बाद अवैध मछली पकड़ने वाले जहाज़ों के अतिक्रमण को रोकने और खोजबीन और ड्रिलिंग की गतिविधियों में शामिल दावेदार देशों के जहाज़ों को परेशान करने पर पाबंदी जैसे क़दम उठाए जा सकते हैं. आख़िर में विवादित समुद्र में सैन्य जहाज़ों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने पर ध्यान दिया जा सकता है. छोटे दावेदार देशों के लिए बेशक समुद्री क़ानून ‘मज़बूती का हथियार’ साबित होगा. मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, वियतनाम- सभी देश संयुक्त राष्ट्र को राजनयिक चिट्ठियों के ज़रिए चीन के नाइन-डैश लाइन को ठुकरा रहे हैं. साथ ही दक्षिणी चीन सागर पर “ऐतिहासिक अधिकार” के चीन के दावों को UNCLOS के विरुद्ध बता रहे हैं. ये देश 2016 के फ़ैसले पर ज़ोर दे रहे हैं. यहां तक कि ब्रुनेई ने भी दक्षिणी चीन सागर पर अपने पहले बयान में फ़ैसले का ज़िक्र किया. हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय क़ानून ताक़तवर प्रक्रिया है लेकिन चीन ने पूर्व में 2016 के पंचाट के फ़ैसले को पूरी तरह खारिज कर दिया था. ऐसे में बहुपक्षीय मंच, जहां दूसरे देश जैसे अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत जैसे देश भी मौजूद हैं और इस विवाद में जिनकी भागीदारी है, पर लगातार चीन के साथ बातचीत होनी चाहिए. साथ ही ऐसा COC जिसे मानना मजबूरी हो, को लागू करवाना चाहिए. दक्षिणी चीन सागर में चीन से निपटने के यही तरीक़े हैं.

ये लेख द चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ के तहत 101वां लेख है.

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