Author : Ayjaz Wani

Published on Aug 09, 2023 Updated 0 Hours ago

यह संकट भारत को कमज़ोर मध्य एशिया के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाने का मौका देता है.

रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: मध्य एशियाई गणराज्यों के सामने ख़ुद को बर्बाद होने से बचाने की बड़ी चुनौती!
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: मध्य एशियाई गणराज्यों के सामने ख़ुद को बर्बाद होने से बचाने की बड़ी चुनौती!

अब जब कि पूरी दुनिया कोरोना महामारी के विनाशकारी आर्थिक प्रभाव के बाद पटरी पर वापस आ रही थी यूक्रेन पर रूस के सैन्य आक्रमण और उसके बाद पश्चिमी देशों का रूस पर प्रतिबंधों को लगाना, दुनिया में नई हलचल पैदा कर रहा है. मध्य एशियाई गणराज्य (सीएआर), जो वॉर ज़ोन से अलग हैं लेकिन मौज़ूदा युद्ध में उन्हें भारी नुक़सान उठाना पड़ रहा है. हालांकि, भारत मध्य एशिया के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाने के लिए इस स्थिति का इस्तेमाल करने के लिए पूरी तरह तैयार है.

हमेशा से इस बात को लेकर सतर्कता बरतता रहा है कि, उससे अलग हुए इस भू-भाग को पश्चिमी राष्ट्र कहीं उसकी क्षेत्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत हित को चुनौती देने के लिए इस्तेमाल ना कर लें. 

रूस और मध्य एशियाई पृष्ठभूमि

तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस ने अपनी शक्ति को इस पर केंद्रित किया है कि सोवियत गणराज्य से अलग होने वाले देश या भू-भाग अमेरिका या यूरोप के क़रीब नहीं जा सकें. सोवियत गणराज्य का पांच हिस्सा – ताज़िकिस्तान, किर्ग़िस्तान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को ध्यान में रखते हुए – जिसे रूस मध्य एशिया में अपना हिस्सा मानता है. लेकिन रूस हमेशा से इस बात को लेकर सतर्कता बरतता रहा है कि, उससे अलग हुए इस भू-भाग को पश्चिमी राष्ट्र कहीं उसकी क्षेत्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत हित को चुनौती देने के लिए इस्तेमाल ना कर लें. दूसरी ओर, एक तरह से लैंडलॉक हो चुके मध्य एशिया गणराज्य के ऐसे देश निर्यात के रास्तों, श्रम बाज़ार और कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए रूस पर बहुत अधिक निर्भर हैं. रूस पर इस तरह की राजनीतिक और आर्थिक निर्भरता को देखते हुए लंबे समय तक रूस-यूक्रेन संघर्ष और रूस के दुनिया में अलग थलग पड़ने से सीएआर देशों के सामने आसमान से गिरे खजूर पर अटकने वाली स्थिति जैसी है.

आर्थिक प्रभाव

रूस पर प्रतिबंधों ने यूरोपीय वस्तुओं और सामानों को रूस के जरिए सीएआर तक पहुंचने से रोक दिया है और संसाधन-समृद्ध सीएआर ने पश्चिम में अपने निर्यात बाज़ारों तक पहुंच को लगभग खो दिया है, जिससे कोरोना महामारी के बाद उनकी प्रगति के रास्ते अवरूद्ध हो गए हैं. हालांकि- अमेरिका ने शेवरॉन के नेतृत्व वाले कैस्पियन पाइपलाइन कंसोर्टियम को प्रतिबंधों से छूट दी है लेकिन इन हाइड्रोकार्बन समृद्ध मध्य एशियाई देशों को रूस के ज़रिए अपने तेल और गैस निर्यात को अब चैनलाइज़ (नई दिशा देना) कर पाना मुश्किल हो रहा है. हालांकि, रूस ने साल 2019 के बाद तुर्कमेनिस्तान से गैस की ख़रीद के करार में बदलाव किया है लेकिन पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा मॉस्को से गैस आपूर्ति में कटौती करने से अश्गाबात (तुर्केमेनिस्तान की राजधानी) पर इसका तत्काल प्रभाव पड़ेगा.

फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से, कज़ाकिस्तान की मुद्रा, टेंज में डॉलर के मुक़ाबले 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई थी. इसी तरह, ताज़िकिस्तान की मुद्रा सोमोनी में रूबल के मुक़ाबले लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. रूबल के साथ ही किर्गिस्तान का सोम भी गिर गया.

फरवरी 2022 में रूस यूक्रेन में जंग की शुरुआत के बाद से ही रूसी रूबल डॉलर के मुक़ाबले लगभग 50 प्रतिशत गिर गया है, जिसका व्यापक असर सीएआर देशों के बीच देखा जा रहा है, जिनकी अर्थव्यवस्था रूस के साथ बेहद क़रीब से जुड़ी है. मिसाल के तौर पर, फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से, कज़ाकिस्तान की मुद्रा, टेंज में डॉलर के मुक़ाबले 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई थी. इसी तरह, ताज़िकिस्तान की मुद्रा सोमोनी में रूबल के मुक़ाबले लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. रूबल के साथ ही किर्गिस्तान का सोम भी गिर गया. घरेलू मुद्राओं के मूल्य में गिरावट ने कुछ सीएआर के राष्ट्रीय बैंकों को बेंचमार्क ब्याज़ दर बढ़ाने और मुद्रा का समर्थन करने और इसके मूल्य को स्थिर बनाए रखने के लिए घरेलू बाज़ार में अपने मुद्रा भंडार से धन लगाने के लिए मज़बूर किया है.

मध्य एशिया की कई अविकसित अर्थव्यवस्थाएं, विशेष रूप से ताज़िकिस्तान, किर्गिस्तान और उज़्बेकिस्तान, रूस में काम करने वाले अपने प्रवासी श्रम बल पर बहुत अधिक निर्भर हैं. पिछले साल भीषण कोरोना महामारी के दौरान भी रूस में सीएआर से 25 लाख से अधिक श्रमिक प्रवासी बन कर काम कर रहे थे. ताज़िकिस्तान और किर्गिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में प्रवासी श्रमिकों द्वारा भेजी गई रक़म का योगदान क्रमशः 26.7 और 31.3 प्रतिशत है. जबकि उज़्बेकिस्तान के प्रवासी श्रमिकों की भेजी गई रक़म का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 11 प्रतिशत है. विश्व बैंक के हाल के अनुमानों के अनुसार अर्थव्यवस्था पर प्रतिबंधों के नकारात्मक प्रभाव के कारण किर्गिस्तान के प्रवासी श्रमिकों द्वारा भेजी गई रक़म में 33 प्रतिशत और ताज़िकिस्तान में 22 प्रतिशत तक अगले बारह महीनों में गिरावट दर्ज़ की जा सकती है.

10 मार्च 2022 से रूस ने यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (ईएईयू) को अनाज और सफेद चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, इससे सीएआर की भी खाद्य असुरक्षा की आशंका गहराने लगी है. उदाहरण के लिए, साल 2021 में कज़ाकिस्तान ने 2.3 मिलियन टन अनाज का आयात किया, जिसमें से 77 प्रतिशत रूस से ख़रीदा गया था. रूस के प्रतिबंध के बाद कज़ाकिस्तान के अधिकारियों ने भी गेहूं के निर्यात को निलंबित करने का फैसला कर लिया जिससे किर्गिस्तान और अन्य देशों में इसी तरह का संकट पैदा हो गया है. किर्गिस्तान, इस क्षेत्र का सबसे ग़रीब देश अपने गेहूं के आयात के लिए मुख्य रूप से रूस और कज़ाकिस्तान पर निर्भर है जो लगभग 90 प्रतिशत के बराबर है.

सीएआरएस के सबसे ग़रीब, विशेष रूप से ताज़िकिस्तान और किर्गिस्तान में भी बढ़ती नागरिक अशांति और बड़े पैमाने पर अस्थिरता देखने की आशंका है, क्योंकि यूक्रेन में जारी संकट से यहां के बेरोज़गार युवाओं में निराशा बढ़ेगी.

सीएआरएस के सबसे ग़रीब, विशेष रूप से ताज़िकिस्तान और किर्गिस्तान में भी बढ़ती नागरिक अशांति और बड़े पैमाने पर अस्थिरता देखने की आशंका है, क्योंकि यूक्रेन में जारी संकट से यहां के बेरोज़गार युवाओं में निराशा बढ़ेगी. इसके साथ ही यह जंग मध्य एशियाई क्षेत्र में सीमा और जातीय समस्याओं की खाई को और चौड़ा करेगा.

सुरक्षा निहितार्थ

पहले, रूस को मध्य एशियाई क्षेत्र में स्थिरता, सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के स्रोत के रूप में देखा जाता था. 

हालांकि, यूक्रेन में रूसी आक्रमण के बाद सीएआर को अपनी संप्रभुता का डर सताने लगा है. हालांकि, सीएआर ने रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर तटस्थ रहने की कोशिश की है. मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में संघर्ष पर विशेष आपातकालीन सत्र में, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान अनुपस्थित रहे, जबकि किर्गिस्तान, कज़ाकिस्तान और ताज़िकिस्तान ने मतदान से अपनी दूरी बनाए रखी. सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) पर मध्य एशिया की ज़्यादा निर्भरता हाल ही में तब सामने आई जब इस संगठन के सैनिकों को जनवरी 2022 में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कज़ाकिस्तान भेजा गया था, जिसके बाद क़ीमत बढ़ोतरी को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.

अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े ने एक बार फिर सीएआर में सुरक्षा दुविधाएं और आर्थिक निहितार्थ पैदा कर दिए हैं, ख़ासकर उन राज्यों में जो काबुल के साथ 2,387 किलोमीटर लंबी और आसानी से इधर-उधर जा सकने वाली खुली सीमा साझा करते हैं. सुरक्षा संरक्षक के रूप में, सीएसटीओ के तहत ताज़िक-अफ़ग़ान सीमा पर रूस ने सैन्य उपकरण भेजे और तालिबान के किसी भी दुस्साहस को रोकने के लिए ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास को भी अंजाम दिया. हालांकि, यूक्रेन पर अपनी पूरी सैन्य ताक़त के साथ रूस के आक्रमण ने निकट भविष्य में रूस से इस तरह की सहायता प्राप्त करने के बारे में सीएआर को संदेह में छोड़ दिया है. यूक्रेन में रूस के पूर्व-कब्ज़े वाले इलाक़ों ने भी सीएआर में आतंक की चिंता बढ़ा दी है जो इस क्षेत्र में पहले से मौज़ूद है और यहां तक कि आईएसआईएस जैसे नए आतंकी चुनौतियां भी इसमें शामिल हैं. रूसी मदद की अनिश्चितता को देखते हुए तालिबान का उदय और अन्य आतंकवादी समूहों की मौज़ूदगी सीएआर को एक नई सुरक्षा व्यवस्था की तलाश करने के लिए मज़बूर करेगी.

भारत के लिए चुनौतियां और अवसर

हालांकि, मध्य एशिया की रूस पर आर्थिक और सुरक्षा को लेकर निर्भरता थी लेकिन यह क्षेत्र मॉस्को के प्रभाव को कम करने के लिए एक बहु-आयामी विदेश नीति के दृष्टिकोण में बदलाव लाने और आगे बढ़ाने का प्रयास करेगा. रूस-यूक्रेन संघर्ष के आर्थिक और सुरक्षा परिणामों को देखते हुए चीन इस क्षेत्र के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक जुड़ाव को तेज़ करने का प्रयास करेगा. सीएआर में बीजिंग का बढ़ता कद भारत के क्षेत्रीय हितों के ख़िलाफ़ जाएगा. हालांकि, मास्को के हितों के साथ टकराव से बचने के लिए चीन अभी भी मध्य एशिया के सुरक्षा मामलों में किसी भी तरह की बड़ी भूमिका निभाने से हिचकिचाता रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में झटके के बाद मध्य एशिया का चीन की ओर झुकाव नई दिल्ली के लिए और अधिक रणनीतिक चिंताएं पैदा करेगा.

भारत को इस स्थिति का इस्तेमाल करना चाहिए और इससे पहले कि चीन इस अवसर को भुनाना शुरू करे भारत को फौरन सीएआर के देशों के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाना चाहिए.

भारत को इस स्थिति का इस्तेमाल करना चाहिए और इससे पहले कि चीन इस अवसर को भुनाना शुरू करे भारत को फौरन सीएआर के देशों के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाना चाहिए. भारत ने पिछले दो वर्षों में, विशेष रूप से तालिबान के उदय के बाद, अपने भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक क्षेत्रों में मध्य एशिया के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाया है लेकिन नई दिल्ली को रणनीतिक ढांचागत परियोजनाओं में निवेश को प्राथमिकता देने और मध्य एशिया तक निर्बाध पहुंच के लिए ईरान में चाबहार बंदरगाह को अश्गाबात से जोड़कर क्षेत्रीय लाभ उठाने की आवश्यकता है.

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