ओआरएफ़: 6-14 वर्ष आयु के बच्चों पर ध्यान केंद्रित करके यूएबल का लक्ष्य नई पीढ़ी के नेतृत्व का निर्माण करना है. आप हमें बताएं कि यूएबल इसके लिए तकनीक का इस्तेमाल कैसे कर रहा है?
प्रियंका सुब्रमण्यन: यूएबल एक सिखाने वाली कंपनी है, जो तकनीक का अधिकतम इस्तेमाल करती है. हमारा विज़न केवल तकनीक का इस्तेमाल करके सीखने की प्रक्रिया का दायरा बढ़ाना नहीं है, बल्कि हम तकनीक का इस्तेमाल करके शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना चाहते हैं. यूएबल के ज़रिए सीखने वाले सभी लोगों की उम्र 6 से 14 वर्ष के बीच है, वो सभी डिजिटल युग मे जीने वाले हैं और तकनीक को लेकर उनमें ज़बरदस्त उत्साह भी है और इसके इस्तेमाल को लेकर वो बहुत सहज भी हैं. हमारा लक्ष्य है कि हम ऑनलाइन शिक्षा के ऐसे खेल के मैदान तैयार करें जो रचनात्मक बुद्धिमत्ता का सम्मान करता है.
हम तकनीक की अनूठी ताक़त का इस्तेमाल करके सीखने वालों के भीतर की कल्पनाशीलता को जगाते हैं, उनके अंदर कौतूहल का भाव जगाते हैं, उनके अंदर गहरी समझ पैदा करते हैं और ऐसी रचनात्मकता को बढ़ावा देते हैं, जिससे सीखने वाले उम्मीदों के परे जाकर प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित हों.
हम तकनीक की अनूठी ताक़त का इस्तेमाल करके सीखने वालों के भीतर की कल्पनाशीलता को जगाते हैं, उनके अंदर कौतूहल का भाव जगाते हैं, उनके अंदर गहरी समझ पैदा करते हैं और ऐसी रचनात्मकता को बढ़ावा देते हैं, जिससे सीखने वाले उम्मीदों के परे जाकर प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित हों. यूएबल के ज़रिए सीखने का अनुभव सिर्फ़ किसी उपकरण के सामने बैठकर सुनना और चुपचाप कंटेंट का उपयोग करना नहीं. हमारे छात्रों को सक्रियता से, गहराई तक पैठ बनाने वाली शिक्षा के अनुभव प्राप्त करने की मौक़ा मिलता है, जहां पर वो अपने हम उम्र लोगों के साथ नई चीज़ों की रचना करते हैं, नए तजुर्बे हासिल करते हैं और नए लोगों के संपर्क में आते हैं.
रिसर्च से साबित हुआ है कि हर बच्चे के सीखने और अपनी बात कहने की क्षमता अलग-अलग होती है. हम तकनीक पर आधारित उपकरणों से छात्रों को तमाम अवसरों और विशिष्ट रास्तों का उपयोग करते हुए सीखने की प्रक्रिया से जोड़ते हैं, जिससे कि हर छात्र अपनी क्षमताओं का अधिकतम उपयोग कर सके. हम ये बात तो मानते हैं कि हर बच्चे को उसकी ज़रूरत के हिसाब से सिखाया जाना चाहिए. पर, साथ-साथ हम ये भी मानते हैं कि सीखने की प्रक्रिया बुनियादी तौर पर एक सामाजिक तजुर्बा है. इसीलिए, हम तकनीक की मदद से एक दूसरे से जुड़े बच्चों के समुदायों का निर्माण कर रहे हैं, जो साथ-साथ सीखते हैं, नई रचनाएं करते हैं और रचनात्मक बुद्धिमत्ता का मिलकर जश्न मनाते हैं.
यूएबल एक सामाजिक शिक्षा का उत्पाद है, जो वास्तविक दुनिया में काम आने वाले हुनर सिखाता है, जिससे किसी छात्र को अपनी रचनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास और उसका उपयोग करने का अवसर मिलता है.
यूएबल एक सामाजिक शिक्षा का उत्पाद है, जो वास्तविक दुनिया में काम आने वाले हुनर सिखाता है, जिससे किसी छात्र को अपनी रचनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास और उसका उपयोग करने का अवसर मिलता है. इसके लिए हम:
- लाइव ऑनलाइन हम-उम्र शिक्षण का माहौल देते हैं, जहां छात्रों को वास्तविक जीवन की भूमिकाएं निभाने और ऐसे हुनर सीखना है, जिससे कि वो भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहे.
- तकनीक पर आधारित स्वयं से सीखने की ऐसी गतिविधियां, जो एक दूसरे से बिल्कुल अलग हों, उनसे छात्रों को नई चुनौतियां दी जाती हैं और साथ ही साथ अपने अपने तरीक़े से सीखने के लिए प्रोत्साहित भी किया जाता है, जिससे कि वो अपने कौशल और सीखने की प्रक्रिया को और बेहतर बना सकें.
- रचनात्मक बुद्धिमत्ता का हुनर पर आधारित मूल्यांकन और उसके लिए ऐसे पैमाने तय करना जो निरपेक्ष मानकों पर आधारित हों और जिनके ज़रिए रचनात्मक बुद्धिमत्ता का अलग-अलग क्षेत्रों में आकलन किया जा सके.
- एक ऐसे समुदाय का निर्माण करना जो ऑनलाइन संपर्क में हो और जहां पर छात्रों को अपनी रचना अपने जैसी सोच रखने वाले अलग-अलग क्षेत्रों के छात्रों, शिक्षकों और विशेषज्ञों को दिखाने का अवसर मिल सके.
ओआरएफ़: आप तकनीकी पृष्ठभूमि से नहीं आती हैं, लेकिन आपने तकनीक पर आधारित ऐसे मंचों का निर्माण किया है, जिनसे सीखने का चहुंमुखी अनुभव हासिल किया जा सके. आप तकनीक के इस्तेमाल के ऐसे रास्ते पर कैसे चल पड़ीं और ऐसी ही कोशिशों में जुटे अन्य लोगों को क्या सलाह देना चाहेंगी?
प्रियंका सुब्रमण्यन: हां, मेरे पास तकनीक की कोई औपचारिक डिग्री नहीं है. लेकिन, तकनीक हमेशा ही मेरी सखी रही है. विज्ञापन उद्योग में विज़ुअल डिज़ाइनर के तौर पर तकनीक से मेरा वास्ता इस तरह पड़ा कि हम कैसे अपनी रचनात्मक सोच को तकनीक के माध्यम से दुनिया से साझा कर सकें. जैसे-जैसे पेशेवर तौर पर मेरी प्रगति हुई, तकनीक के साथ मेरा रिश्ता भी मज़बूत होता गया. तकनीक को लेकर मेरी अधिकतर समझ की बुनियाद वास्तविक दुनिया की ख़ुद से किए गए अनुभवों पर आधारित है.
विज़ुअल डिज़ाइन के क्षेत्र से शिक्षा में आने का मेरा रास्ता तब खुला जब मुझे टीच फॉर इंडिया के लिए पढ़ाने का मौक़ा मिला. ये एक अलाभकारी संगठन है, जो टीच फॉर ऑल नेटवर्क का हिस्सा है. मैंने मुंबई नगर निगम के एक स्कूल में आठ और नौ बरस के उत्साही बच्चों को पढ़ाने से शुरुआत की थी. टीच फॉर इंडिया का मक़सद देश में शिक्षा के क्षेत्र की असमानता को दूर करना है. लेकिन, ये बड़ा काम ऐसे संसाधनों के बिना नहीं हो सकता, जिनसे इस काम को बड़े पैमाने पर किया जा सके. जब मैं पढ़ाने के लिए क्लासरूम में जाती थी, तब सीखने की हर प्रक्रिया का आकलन, निरीक्षण और निगरानी तकनीक आधारित उपकरणों के ज़रिए होता था. उस दौरान मुझे आंकड़ों पर आधारित शिक्षण व्यवस्था से जुड़ने का मौक़ा मिला. इन तकनीकों से ये बात भी पता चलती थी कि शिक्षा के मामले में बच्चों के बीच कैसी असमानता है और बच्चों को अपेक्षित शिक्षण के मानकों के बराबर लाने के लिए क्या किया जा सकता है. इससे मुझे अपने बच्चों के शिक्षण के स्तर को सुधारने और उनका ग्रेड का स्तर बढ़ाने में मदद मिली. बाद में इनमें से कई बच्चों ने तो उम्मीद से कहीं बेहतर करके दिखाया.
हमारा लक्ष्य सिर्फ़ ये नहीं कि अपने मूल्यांकन में छात्र कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि हम गहराई में जाकर बच्चों को सीखने के हर स्तर पर इनोवेशन के लिए प्रेरित करते हैं, उन्हें बताते हैं कि उन्हें कुछ सीखने की ज़रूरत क्यों है
शिक्षा के क्षेत्र में मेरे शुरुआती कुछ वर्षों के अनुभव से पता चला कि हर सामाजिक आर्थिक तबक़े में शिक्षा के क्षेत्र में असमानता है. ये असमानता कम आमदनी वाले स्कूलों से लेकर उच्च आर्थिक स्तर के स्कूलों तक में है. ऐसे में ज़्यादातर शिक्षण संस्थानों के सामने चुनौती इस बात की होती है कि वो इन समस्याओं की पहचान बच्चों के शुरुआती दौर में ही कर लें, जिससे कि सही समय पर इन चुनौतियों से निपटा जा सके. यही वो मौक़ा है जब मैने शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी तकनीक के क्षेत्र में जाने का फ़ैसला किया. शिक्षा संबंधी प्रयासों से जुड़े मेरे अनुभवों ने मेरा परिचय तकनीक पर आधारित शिक्षा और मूल्यांकन से कराया. अपने इन सभी अनुभवों की मदद से मैंने पियर्सन इंडिया के लिए K12 मूल्यांकन उत्पाद तैयार किया. हमारा दृष्टिकोण ये है कि हम तकनीक पर आधारित ऐसे शिक्षण और मूल्यांकन के संसाधन विकसित कर सकें, जो ब्लूम्स टैक्सोनॉमी से जुड़े हों और जिनसे शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों को अपने मज़बूत गुणों और कमज़ोरियों का पता लगाने और सीखने का मौक़ा मिलेगा. हम अपने तजुर्बों से ये दिखाने में सफल रहे कि हमारे सीखने के अनुभवों से छात्रों को कैसे लाभ हो रहा है.
आज K12 शिक्षण के मामले में हम यूएबल में चहुंमुखी शिक्षण के माध्यम से ऐसी चुनौतियों का मुक़ाबला कर रहे हैं, जिनकी अब तक सबसे अधिक अनदेखी की जाती रही है. हम किसी बच्चे की रचनात्मक बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल करके उसके संपूर्ण विकास की कोशिश में जुटे हैं. हमारा लक्ष्य सिर्फ़ ये नहीं कि अपने मूल्यांकन में छात्र कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि हम गहराई में जाकर बच्चों को सीखने के हर स्तर पर इनोवेशन के लिए प्रेरित करते हैं, उन्हें बताते हैं कि उन्हें कुछ सीखने की ज़रूरत क्यों है? वो क्या सीख रहे हैं? वो कैसे सीख रहे हैं? और जितना वो सीखते हैं, उसमें से क्या याद रह जाता है? फिर वो सीखने के इस अनुभव का रचनात्मकता और कुछ नया करने में कैसे इस्तेमाल करते हैं?
ओआरएफ़: अपने साथ के उन उद्यमियों से आप कैसे अनुभव साझा करते हैं, जो मेक इन इंडिया में शामिल होकर विश्व स्तर के डिजिटल शिक्षण के अनुभवों को घरेलू और अंतररराष्ट्रीय ग्राहकों तक पहुंचाना चाहते हैं?
प्रियंका सुब्रमण्यन: निजी तौर पर मेरा तो ये मानना है कि इस समय हम मेक इन इंडिया के स्वर्णिम दौर से गुज़र रहे हैं. हम ख़ुशक़िस्मत हैं कि हमारे पास आज तेज़ दिमाग़ वाले ऐसे लोग हैं, जो दुनिया को कुछ दे सकते हैं. आज भारत के पास विविधता भरी आबादी का ऐसा ख़ज़ाना है, जो धीरे-धीरे ही सही मगर निश्चित रूप से विश्व स्तर पर प्रतिनिधित्व प्राप्त कर रहा है. भारत में उद्यमियों के तौर पर हम वास्तविक जीवन के तजुर्बों से ऐसे उत्पाद तैयार कर रहे हैं, जो अलग-अलग अनिश्चित माहौल में काम कर सकें, अलग-अलग तरह से इस्तेमाल हो सकें और अलग-अलग वर्ग की ज़रूरतें पूरी कर सकें. किसी उत्पाद के निर्माण का ये विविधता भरा मगर गहराई से युक्त दृष्टिकोण ही हमें बाक़ी लोगों से अलग करता है.
सीखने का मेरा सबसे मज़बूत अनुभव ये रहा है कि किसी को भी ग्राहकों के क़रीब ही रहना चाहिए, भले ही आप कितने बड़े पैमाने पर काम करने लगें या चाहे कितनी भी बड़ी कंपनी बन जाएं. उद्यमियों के तौर पर हम नए नए उत्पाद तैयार करते रहते हैं, जिससे कि अपने उत्पादों और सेवाओं को ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल लायक़, उपयोगी और व्यापक उपयोग के लायक़ बना सकें. मगर, अहम बात ये है कि आप अपने विस्तार के इस सफ़र के दौरान अपने ग्राहकों को भी साथ लेकर चल सकें.
एक और अनुभव जो मेरे साथ इस सफर में चलता आया है, वो ये है कि कोई भी कंपनी कितनी अधिक उपलब्धि हासिल कर सकती है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप कैसे लोगों के साथ काम करते हैं. एक मज़बूत, विविधता भरी और महत्वाकांक्षी टीम ही किसी कंपनी को सफल या असफल बनाती है. ऐसे लोगों के साथ काम करना जो आपके विचारों के साझीदार हो सकते हैं और वैचारिक नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं, वो किसी भी कंपनी के लिए प्रेरक का काम कर सकता है.
अपनी उद्यमिता के इस सफर की मैंने हाल ही में यूएबल के साथ शुरुआत की है. लेकिन, हर नया दिन नए तजुर्बे और नए दृष्टिकोण के साथ आता है. ऐसे में एक लचीला रवैया और तरक़्क़ी वाली सोच अपनाने से मैं उतार-चढ़ाव के दौर से आसानी से गुज़र पाती हूं.
ओआरएफ़: यूएबल का तर्क है कि क्रिएटिव इंटेलिजेंस का विचार ख़ास तौर से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के आगमन के बाद से एक नए युग की शुरुआत हुई है, जहां रोज़मर्रा के काम ऑटोमेटेड हो रहे हैं. आप क्रिएटिव इंटेलिजेंस के मानक के ज़रिए किस तरह मानवीय पूंजी का भारत और अन्य देशों विकास करने की सोचती हैं?
प्रियंका सुब्रमण्यन: तमाम अध्ययनों जैसे कि नासा की क्रिएटिव जीनियस स्टडी (जो इस नतीजे पर पहुंची कि इंसानों का क्रिएटिव जीनियस छह वर्ष की आयु में 98 प्रतिशत होता है, जो 18 वर्ष का होते होते गिरकर केवल 2 प्रतिशत ही बचता है) और सर केन रॉबिन्सन जैसे विशेषज्ञ (जिन्होंने अपनी मशहूर TED टॉक में इसका ज़िक्र किया था) ज़ोर देकर जिन असमानताओं का ज़िक्र करते आए हैं, आज उन्हें मान्यता मिल रही है और ऐसा लगता है कि भारत भी इस चुनौती से निपटने के लिए सकारात्मक क़दम उठा रहा है.
हाल के दिनों में हमारे लिए सबसे हर्ष की बात, नई शिक्षा नीति को लागू किया जाना रही है. NEP के माध्यम से देश में शिक्षा को एक नए तरक़्क़ीपसंद और व्यापक दृष्टिकोण से देखा जा रहा है. इसका मक़सद बच्चों को कक्षा के बाहर के जीवन के लिए तैयार करना और आपसी सहयोग, रचनात्मक सोच, समस्या के समाधान और तार्किकता जैसे कौशल का विकास करना है. अब तक देश की शिक्षा व्यवस्था में इन बातों की अनदेखी होती आई है. नई शिक्षा नीति कहती है, ‘शिक्षा व्यवस्था को इस तरह स्वयं को विकसित करना चाहिए कि वो सीखने को ज़्यादा प्रयोगधर्मी, व्यापक, एकीकृत, सवाल पूछने पर आधारित, नई खोज के लिए प्रेरित करने वाली, छात्रों पर केंद्रित, परिचर्चा पर आधारित, लचीली और मज़ेदार बना सके.’ नई शिक्षा नीति इस बात का सबूत है कि आने वाले समय में रचनात्मक बुद्धिमत्ता ही सबसे बुनियादी और दूसरों से अलग करने वाला कारक होगी, जिससे की आज के छात्र भविष्य में सफलता प्राप्त कर सकें.
नई शिक्षा नीति इस बात का सबूत है कि आने वाले समय में रचनात्मक बुद्धिमत्ता ही सबसे बुनियादी और दूसरों से अलग करने वाला कारक होगी, जिससे की आज के छात्र भविष्य में सफलता प्राप्त कर सकें.
यूएबल में हमने एक ऐसा फ्रेमवर्क तैयार किया है, जिससे किसी बच्चे की रचनात्मक बुद्धिमत्ता तक पहुंच बनाई जा सके, उसे मापा और विकसित किया जा सके. हमारा लक्ष्य है कि हम हर छात्र को उसकी ख़ास ज़रूरतों के हिसाब से वो पथ प्रदर्शन करें, जिससे कि ऐसे कौशल का विकास कर सकें, जो उन्हें अपनी ताक़त और अपनी दिलचस्पी की बातें सीखने का मौक़ा दे. इससे वो आगे चलकर अधिक जागरूक होंगे और अपने करियर को लेकर सही फ़ैसले ले सकेंगे. ये दृष्टिकोण विकास पर आधारित है और ये सुनिश्चित करता है कि हर बच्चे को अपनी रचनात्मक बुद्धिमत्ता के प्रति जागरूक बनाया जा सके.
- पहरा चरण: 6-9 वर्ष (शुरुआती साल: खोज और कौशल विकास) ये बच्चों की वो उम्र होती है, जब उनका ज्ञान संबंधी विकास होता है और अपने शिखर पर पहुंचने वाला होता है. इस दौर में बच्चे नई चीज़ें सीखने और कौशल विकास के लिए तैयार होते हैं. ये उम्र का वो दौर होता है, जहां बच्चे अपने हम-उम्र लोगों से सीखना शुरू करते हैं. चहुंमुखी विकास और अन्वेषण के लिए ये ज़रूरी होता है. यूएबल में बच्चे वास्तविक जीवन की तमाम भूमिकाओं को निभाने का मौक़ा पाते हैं. उन्हें कलाकार, लेखक, परफॉर्मर, प्रयोग करने वाले, आविष्कारक या कोड बनाने वालों की भूमिकाएं निभाने का मौक़ा मिलता है, जिससे वो बुनियादी हुनर सीख पाते हैं.
- दूसरा चरण:10-12 वर्ष (मध्यम आयु: उन्नत कौशल एवं गहराई से खोज के ज़रिए किसी ख़ास क्षेत्र में हुनर का विकास) उम्र के इस दौर में यूएबल के कार्यक्रम और प्रगति के चरण बच्चों को कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में विकास करने का अवसर प्रदान करते हैं, जिससे वो तीव्रता से/उन्नत पथों पर चलकर ऐसी दिलचस्पियां अपने भीतर पैदा करते हैं, जिससे वो स्वायत्त तरीक़े से काम कर सकें.
- तीसरा चरण:13-15 वर्ष (करियर की संभावनाएं तलाशना, मेंटॉरिंग और इंटर्नशिप) जैसे ही बच्चे आठवीं या नौवीं कक्षा में पहुंचते हैं, उन्हें मां-बाप, समवर्ती छात्रों व अन्य लोगों से एक ही सवाल का सामना करना पड़ता है-‘आप भविष्य में क्या बनना चाहते हैं?’ यूएबल में हमारा मानना है कि हर बच्चे को अपने भविष्य का रास्ता चुनने का अधिकार मिलना चाहिए जिससे कि वो प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकें. लेकिन, उम्र के इस पड़ाव में लिए गए कुछ फ़ैसलों से वो उन्हें करियर के कुछ विशिष्ट मार्गों, विश्वविद्यालयों और दाख़िलों की परीक्षाओं की ओर ले जाते हैं. उनका आगे का जीवन कैसा होगा, ये इसी फ़ैसले पर निर्भरता है. इस चरण के दौरान बच्चों को ऐसी भूमिकाओं से जुड़े कार्यक्रमों में शामिल होने का मौक़ा मिलता है, जिससे वो अपनी रचनात्मक संभावना को अधिकतम रूप से तलाशन सकें. वो अधिक गहराई वाले प्रोजेक्ट से जुड़ते हैं, वो अपने काम का एक मज़बूत पोर्टफोलियो बनाते हैं और ऐसे मेन्टॉर से जुड़ पाते हैं जो उनके विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित होते हैं. इसके अलावा इसी दौरान अपनी पसंद नापसंद के बारे में भी छात्रों की ठीक समझ विकसित होती है.
हम ये मानते हैं कि वास्तविक जीवन की भूमिकाओं के ज़रिए बच्चों की रचनात्मक बुद्धिमत्ता और कौशल का विकास किया जाना चाहिए. इससे उनके अंदर आत्मविश्वास भी आएगा और वो हमारी सामाजिक, सक्रिय शिक्षा व्यवस्था के ज़रिए सामुदायिक स्तर पर भी जुड़ने के लिए तैयार होंगे. इससे उनके अंदर आत्मविश्वास भी आएगा और वो अपनी ताक़त और कमज़ोरियों से भी अच्छी तरह वाक़िफ़ होंगे. तभी हम भविष्य के लिए युवा उद्यमी तैयार कर सकेंगे.
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