जनवरी 2022 के आख़िरी हफ़्ते से प्रदर्शनकारी ट्रक चालकों का अपने-अपने ट्रकों के साथ ओटावा में जमावड़ा जारी है. उन्होंने शहर के केंद्र में मुख्य सड़क पर क़ब्ज़ा जमा लिया है. इसी रास्ते पर कनाडा की संसद, बैंक ऑफ़ कनाडा और प्रधानमंत्री के दफ़्तर मौजूद हैं. ज़ाहिर तौर पर सैकड़ों ट्रक चालकों को उनके तथाकथित ‘फ़्री कॉन्वॉय मूवमेंट‘ के लिए समर्थन मिल रहा है. दरअसल, कनाडा और अमेरिका की सीमा पार करने वाले ट्रक ड्राइवरों के लिए कोविड-19 वैक्सीन जनादेश लागू किया गया है. वैक्सीन और क्वारंटीन से जुड़ी इन्हीं बंदिशों के ख़िलाफ़ आंदोलन चल रहा है. तमाम घेरेबंदियों के बीच ट्रक ड्राइवरों का प्रदर्शन जारी है. प्रदर्शनकरियों ने ओटावा पर क़ब्ज़े के ज़रिए इस मुहिम की शुरुआत की थी. अब इस विरोध-प्रदर्शन को उत्तर अमेरिका के संगठित धुर-दक्षिणपंथी समूह अपने एजेंडे के प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं. हालांकि, ये साफ़ करना ज़रूरी है कि कनाडा में जमे सभी ट्रक चालक वैक्सीन के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों में शामिल नहीं हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक “कनेडियन ट्रकिंग एलायंस (सीटीए) का कहना है कि देश की सीमा के आर-पार जाने वाले महज़ 10 फ़ीसदी ट्रक चालकों ने टीका लेने से इनकार किया है. इसके मायने ये हैं कि 15 जनवरी के बाद से ऐसे चालकों को क्वॉरंटीन की मियाद पूरी किए बग़ैर कनाडा लौटने की छूट नहीं है.” ढुलाई उद्योग ने इन विरोध-प्रदर्शनों को सिरे से नकारा है. उन्होंने साफ़ किया है कि इस चक्काजाम का कनाडा में वैक्सीन के प्रति आम लोगों की भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है. ग़ौरतलब है कि कनाडा में 84 फ़ीसदी आबादी को टीके का कम से कम डोज़ लग चुका है. ऐसे में वैक्सीन के ख़िलाफ़ इस तरह की क़िस्सेबाज़ी ग़ैर-मामूली है.
दरअसल, कनाडा और अमेरिका की सीमा पार करने वाले ट्रक ड्राइवरों के लिए कोविड-19 वैक्सीन जनादेश लागू किया गया है. वैक्सीन और क्वारंटीन से जुड़ी इन्हीं बंदिशों के ख़िलाफ़ आंदोलन चल रहा है.
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इन प्रदर्शनों को बहुमत की भावनाओं के ख़िलाफ़ और ‘चंद लोगों’ की करतूत बताकर ख़ारिज कर दिया है. यहां सवाल खड़ा होता है कि ये प्रदर्शनकारी कौन हैं और सरकारी अधिकारियों को इस मसले पर कैसे दख़ल देना चाहिए? एंबेसेडर ब्रिज पर हुए उत्पात से ओंटारियो के विंडसर से डेट्रॉयट के बीच के अहम कारोबारी संपर्क टूट गए. प्रदर्शनकारियों के दूसरे काफ़िले ने मानिटोबा से ओंटारियो के बीच की मुख्य सड़क पर क़ब्ज़ा जमा लिया. इनमें से कुछ प्रदर्शनकारियों ने तो ओटावा एयरपोर्ट जाने वाले रास्ते को भी बाधित करने की कोशिश की. प्रदर्शनों का आयोजन कर रहे ट्रक चालक ब्रायन ब्रेज़ ने दावा किया कि ‘मार्च में कैलिफ़ॉर्निया से अमेरिकी विरोध-प्रदर्शनों की शुरुआत होगी, जबकि दूसरे प्रदर्शनकारी अपने ट्रकों के साथ वॉशिंगटन डीसी का रुख़ करेंगे’. ‘पीपुल्स कॉन्वॉय’ के समर्थक मौजूदा जनभावनाओं के हिसाब से इस तरह के दावे कर रहे हैं. बहरहाल, इन प्रदर्शनों का अब विस्तार हो गया है. ट्रक चालकों के साथ-साथ कई अन्य लोग भी वैक्सीन और मास्क की ज़रूरतों को धीरे-धीरे ग़ैर-ज़रूरी मानने लगे हैं. लिहाज़ा मौजूदा जनभावनाओं के हिसाब से कई आम नागरिक भी इससे जुड़ने लगे हैं. बीतते दिनों के साथ वैक्सीन का विरोध करने के लिए जुटे 4000 से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों के सामूहिक ‘आक्रामक और ग़ैर-क़ानूनी बर्ताव’ के ख़िलाफ़ ओटावा की पुलिस ने कड़ा रुख़ अपनाया है. दंगा-निरोधी वेशभूषा में पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को घेरे में लेने की तस्वीरें लगातार सामने आ रही हैं. बहरहाल हालात को शांतिपूर्ण बनाए रखने और क़ानून का पालन सुनिश्चित कराने की पेचीदगियां बढ़ती जा रही हैं. वैक्सीन नहीं लगवाने की वजह से ट्रक चालकों के अल्पसंख्यक हिस्से (तक़रीबन 10 प्रतिशत) के सामने रोज़ी-रोटी से हाथ धोने का ख़तरा मंडरा रहा है. इन हालात में न सिर्फ़ ओटावा बल्कि अमेरिका तक सियासी संदेश पहुंच रहे हैं.
आर्थिक नुक़सान
कनाडा की संसद ने साफ़ किया है कि ये प्रदर्शन वैक्सीन को लेकर कनाडा की सामूहिक पहचान की नुमाइंदगी नहीं करते. हालांकि आंदोलन के चलते पैदा रुकावटों के प्रभाव कइयों ने महसूस किए हैं. वैकल्पिक रास्तों के अभाव में अमेरिका और कनाडा के बीच होने वाले व्यापार का तक़रीबन एक चौथाई हिस्सा एंबेसेडर ब्रिज से होकर गुज़रता है. ऑटो उद्योग अपनी ज़रूरतों के लिए कलपुर्जों की ढुलाई पर निर्भर है. आपूर्ति में थोड़ी सी भी देरी होने पर ऑटोमोबाइल प्लांट पूरी तरह से ठप हो सकते हैं. अमेरिका और कनाडा के बीच वस्तुओं का सालाना 511 अरब डॉलर का कारोबार होता है. इसके एक तिहाई से भी ज़्यादा हिस्से की ढुलाई सड़क मार्ग के ज़रिए होती है. एंबेसेडर ब्रिज के कर्ताधर्ता द डेट्रॉयट इंटरनेशनल ब्रिज कंपनी ने कनाडाई अधिकारियों से वैक्सीन जनादेश को वापस लेने की अपील की है. ज़ाहिर है कि इन विरोध-प्रदर्शनों को वर्ग से जुड़ी पहचान के इर्द-गिर्द खड़ा किया जा रहा है. ढुलाई में आई रुकावटों से मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के हालात बदतर होते जा रहे हैं. विरोध-प्रदर्शनों की शुरुआत के बाद से ओंटारियो में तक़रीबन आधा कारोबार ठप पड़ चुका है. कारोबारियों की एक बड़ी आबादी के मुताबिक इन प्रदर्शनों के चलते कारोबार में आई रुकावटों से उनकी वित्तीय स्थिति पर भारी असर पड़ा है. चक्काजाम की वजह से कनाडा की अर्थव्यवस्था में वित्तीय ठहराव आ गया है. विंडसर-एसेक्स रीजनल चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के मुताबिक एंबेसेडर ब्रिज हर घंटे 1.35 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर के कारोबार का गवाह बनता है. कनाडाई संसद और बड़े संगठनों ने इन विरोध-प्रदर्शनों की निंदा की है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि इन प्रदर्शनों को कौन आर्थिक मदद पहुंचा रहा है?
बहरहाल, इन प्रदर्शनों का अब विस्तार हो गया है. ट्रक चालकों के साथ-साथ कई अन्य लोग भी वैक्सीन और मास्क की ज़रूरतों को धीरे-धीरे ग़ैर-ज़रूरी मानने लगे हैं. लिहाज़ा मौजूदा जनभावनाओं के हिसाब से कई आम नागरिक भी इससे जुड़ने लगे हैं
दरअसल ‘फ़्री कॉन्वॉय प्रोटेस्ट्स’ को मीडिया में भरपूर कवरेज मिलने से इसे अमेरिका में दक्षिणपंथी गुटों की हमदर्दी हासिल होने लगी. ये आंदोलन दक्षिणपंथी दलों के लिए गोलबंदी का सबब बन गया. इसी बहाने वो महामारी से जुड़ी पाबंदियों के जनादेश और क़ानूनों को कठघरे में खड़ा करने लगे हैं. कुछ अमेरिकी ट्रक चालकों ने कनाडाई प्रदर्शनकारियों के समर्थन में न्यूयॉर्क के बफ़ेलो से ओंटारियो के फ़ोर्ट एरी को जोड़ती सीमा के आर-पार जाने वाली सड़क पर ट्रकों का काफ़िला भेजने का एलान किया. टेड क्रूज़ और डोनाल्ड ट्रंप सरीखे राजनेताओं ने सार्वजनिक तौर पर इन प्रदर्शनकारियों के प्रति समर्थन जताया है. अंतरराष्ट्रीय दानकर्ताओं से रकम जुटाने वाले बड़े-बड़े क्राउड-फ़ंडिंग साइट्स इन प्रदर्शनकारियों को आर्थिक मदद मुहैया कराने के प्राथमिक स्रोत हैं. इनके ज़रिए प्रदर्शनकारियों के लिए अब तक 80 लाख अमेरिकी डॉलर की रकम इकट्ठा की जा चुकी है. कनाडा में जारी चक्काजाम को प्रदर्शित करते ‘GoFundMe’ के पेज से ये बात ज़ाहिर होती है. बहरहाल, ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शन’ के ग़ैर-क़ानूनी क़ब्ज़े में बदल जाने के चलते वेबसाइट ने अपने पेज से चंदा उगाही से जुड़ी क़वायदों को हटा दिया है. हालांकि, ‘कनेडियन फ़्रीडम कॉन्वॉय’ ने चंदा जुटाने के लिए ‘GiveSendGo’ का रुख़ कर लिया है. ये वेबसाइट धुर-दक्षिणपंथी अतिवादी गुटों के हिमायती के तौर पर जाना जाता है. इस साइट ने अतीत में काइल रिटनहाउस और प्राउड ब्वॉयज़ चेयरमैन एनरिक़ टारियो के लिए क़ानूनी बचाव सुनिश्चित करने को लेकर चंदा इकट्ठा करने का काम किया था.
फंड जुटाने की क़वायदों को परे रखें तो भी इस मुहिम में दक्षिणपंथी धड़े की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. प्रदर्शनकारियों ने कंफेडरैट झंडे और स्वास्तिक के निशान वाले झंडे उठा रखे थे. ये तमाम झंडे दक्षिणपंथी अतिवादी समूहों की भावनाओं को दर्शाते हैं. ज़ाहिर है कि वैक्सीन विरोधियों की आजीविका को सुरक्षित बनाने को लेकर शुरू हुआ आंदोलन रूढ़िवादी भावनाओं के प्रकटीकरण के मौक़े में तब्दील हो गया है. इसके ज़रिए वैश्विक स्तर पर धुर-दक्षिणपंथी और अतिवादी भावनाओं का प्रसार हो रहा है.
राजनीतिक दबाव
अमेरिकी सरकार ने इस मुहिम से पैदा आर्थिक रुकावटों से निपटने के लिए कनाडा की संसद से संघीय शक्तियों के इस्तेमाल का अनुरोध किया है. चक्काजाम के चलते हर घंटे अनुमानित नुक़सान बढ़ता जा रहा है. ऐसे में ये माना जा सकता है कि कनाडा की सरकार काफ़ी दबाव में है. ख़ासतौर से उसपर अमेरिकी दबाव बढ़ता जा रहा है. बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका में बने सामानों की ख़रीद का कार्यकारी आदेश जारी कर रखा है. ज़ाहिर तौर पर कनाडा की सरकार इस बात को लेकर आशंकित है कि इलेक्ट्रिक कार और बैट्रियों के निर्माण पर अमेरिका द्वारा दी जा रही सब्सिडियां बढ़ाए जाने से कनाडा की फैक्ट्रियों को नुक़सान हो सकता है. ग़ैर-भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता की छवि बनने की आशंका से कनाडा बेहद नाज़ुक स्थिति में है. इसके नतीजे सामने भी आने लगे हैं. टोयोटा ने 12 फ़रवरी 2022 को ओंटारियो में अपना उत्पादन रोक दिया. उत्पादन में कटौतियों और किल्लतों के चलते फ़ोर्ड भी ऑटो पार्ट्स आयात करने पर विचार कर रहा है. ओंटारियो की अदालत ने ‘GiveSendGo’ ऐप के ज़रिए प्रदर्शकारियों को चंदे में मिली रकम के लेन-देन पर रोक लगा दी है. अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में नागरिक व्यवस्था बहाल करने का आदेश भी पारित किया है. लगातार जारी विरोध-प्रदर्शनों पर लगाम लगाने के लिए जस्टिन ट्रूडो ने 15 फ़रवरी 2022 को आपातकालीन अधिनियम लागू कर दिया. अपने पिता पियरे ट्रूडो के बाद ऐसा अधिनियम लागू करने वाले जस्टिन पहले असैनिक अधिकारी हैं. ज़्यादातर लोगों को ऐसे फ़ैसले की उम्मीद नहीं थी. ट्रूडो ने इस मुहिम के प्रति बल प्रयोग नहीं करने का रुख़ अख़्तियार कर रखा है. उन्होंने साफ़ किया है कि सरकार अब भी ज़रूरत के मुताबिक सख़्ती नहीं बरत रही है. दरअसल ये क़ानून इकट्ठा होने या मुक्त रूप से घूमने की आज़ादी को मुल्तवी करने के लिए अमल में लाया गया है. इस क़ानून का निशाना न सिर्फ़ ट्रक चालक बल्कि सभी प्रदर्शनकारी हैं. क़ानून के तहत वित्त मंत्रालय को संदेह के आधार पर निजी और कॉरपोरेट खातों को फ्रीज़ करने की शक्ति मिल गई है.
दरअसल ‘फ़्री कॉन्वॉय प्रोटेस्ट्स’ को मीडिया में भरपूर कवरेज मिलने से इसे अमेरिका में दक्षिणपंथी गुटों की हमदर्दी हासिल होने लगी. ये आंदोलन दक्षिणपंथी दलों के लिए गोलबंदी का सबब बन गया. इसी बहाने वो महामारी से जुड़ी पाबंदियों के जनादेश और क़ानूनों को कठघरे में खड़ा करने लगे हैं.
कनाडा के आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भावनाएं भड़का दी हैं. ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और बेल्जियम में भी ऐसे ही प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं. हाल ही में पेरिस के बाहरी इलाक़ों की कई सड़कों के ज़रिए तक़रीबन 500 ट्रकों के काफ़िले ने शहर में घुसने की नाकाम कोशिश की. 14 फ़रवरी 2022 को फ्रांसीसी पुलिस ने सख़्ती दिखाते हुए पेरिस की सड़कों को जाम करने वालों के लिए 4500 यूरो के जुर्माने और दो साल की क़ैद का आदेश जारी किया. हालांकि चेतावनियों के बावजूद प्रदर्शनकारियों का उत्पात जारी है. नतीजतन मध्य पेरिस में अहम प्रवेश मार्गों की क़िलेबंदी कर दी गई है. इन इलाक़ों में तक़रीबन 7200 पुलिसकर्मी तैनात हैं. नीदरलैंड्स और न्यूज़ीलैंड में भी प्रदर्शनकारी संसद के सामने की सड़कों को जाम करने की कोशिशें कर चुके हैं.
मुहिम के फैलने की आशंका
तमाम देशों की राजधानियों में बढ़ती अशांति और कनाडा में जारी मुहिम की ‘नकल’ उतारने की कोशिशों से चिंता बढ़ती जा रही है. कनाडा के प्रदर्शन राजनीतिक नज़रियों और आंदोलन के व्यापक गठजोड़ में तब्दील हो सकते हैं. इससे रुढ़िवादी राजनीतिक भावनाएं और महामारी के चलते पैदा असंतोष का घालमेल और गहरा हो सकता है. महामारी के पूरे मियाद में आज़ादी, मास्क की मुख़ालफ़त और वैक्सीन के विरोध से जुड़ा मज़मून सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन गया था. वैश्विक स्तर पर यही क़िस्सा दोबारा नज़र आ रहा है. अमेरिकी संसद भवन में हुए दंगे ज़ाहिर करते हैं कि लोकतांत्रिक देशों में नागरिक अशांति और राजनीतिक विभाजनों के बीच बहुत बारीक रेखा होती है. उभरते विरोध-प्रदर्शनों का सबसे बड़ा कुप्रभाव आर्थिक मोर्चे पर पड़ने की आशंका हैं. बहरहाल, कनाडा में जारी चक्काजाम से श्रम से जुड़े मुद्दों के निपटारे में कोई सहायता नहीं मिली है. इससे ढुलाई उद्योग को मदद मिलने की बजाए उलटा नुक़सान हुआ है. नतीजतन कई ट्रक चालक इन प्रदर्शनों से दूरी बनाने लगे हैं. यहीं से उम्मीद की एक किरण निकल सकती है.
लगातार जारी विरोध-प्रदर्शनों पर लगाम लगाने के लिए जस्टिन ट्रूडो ने 15 फ़रवरी 2022 को आपातकालीन अधिनियम लागू कर दिया. अपने पिता पियरे ट्रूडो के बाद ऐसा अधिनियम लागू करने वाले जस्टिन पहले असैनिक अधिकारी हैं.
2021 में हुए संघीय चुनावों में ट्रूडो को 32.6 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. उनके लिए राजनीतिक तौर पर हालात आसान नहीं हैं. कनाडा की घरेलू राजनीति में इन प्रदर्शनों के दीर्घकालिक या हुकूमत-बदलने वाले प्रभाव सामने आ सकते हैं. भले ही इन विरोध-प्रदर्शनों को छोटे अल्पसंख्यक समूह की करतूत करार दिया गया है, लेकिन कनाडा की सरकार को इसे कम करके नहीं देखना चाहिए. प्रधानमंत्री ट्रूडो इन ख़तरों को कतई ख़ारिज नहीं कर सकते. कई प्रदर्शनकारियों ने दावा किया है कि ट्रूडो द्वारा प्रधानमंत्री का पद छोड़े जाने तक वो डटे रहेंगे. भले ही इन प्रदर्शनों से ट्रक चालकों को दीर्घकाल में कोई फ़ायदा न हो लेकिन इससे ट्रूडो के सियासी रसूख़ पर आंच आना तय है. ज़ाहिर तौर पर नागरिक उपद्रवों पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रही सरकारें वोटरों का भरोसा खो देती हैं. दरअसल इन नाकामियों का ठीकरा पुलिस की बजाए शीर्ष अधिकारियों पर ही फूटता है. कारोबारी नुक़सानों और आर्थिक मोर्चे पर लगातार जारी बर्बादियों से राष्ट्रीय स्तर पर दबाव का माहौल बनेगा. प्रचार अभियान के दौरान ट्रूडो को इन मसलों का निपटारा करना पड़ेगा. ज़ाहिर है कि ट्रूडो की सियासी साख ख़तरे में है. प्रदर्शनों के प्रति उनके नरम रुख़ से मुट्ठीभर वोटरों के ही इत्तेफ़ाक़ रखने के आसार हैं. ट्रूडो और बाइडेन प्रशासन द्वारा ट्रक चालकों के लिए टीकाकरण की ज़रूरतों से जुड़े आदेश के वापस लिए जाने की संभावना नहीं है. ऐसे में घरेलू मोर्चे पर ट्रूडो क्या फ़ैसले लेते हैं और क्या क़दम उठाते हैं, इसपर सबकी नज़रें टिकी रहेंगी.
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