Author : Kabir Taneja

Published on Dec 23, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत कूटनीतिक और सामरिक तौर पर ऐसे अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग करने के मामले में भी अच्छी हालत में है जो पहले से इस महादेश में आतंक विरोधी गतिविधियों में सक्रिय हैं.

भारत और अफ्रीका के बीच आतंक विरोधी संबंध ज़रूरी

भारत और अफ्रीका- दोनों मज़बूती से मानते हैं कि शांति और सुरक्षा मूलभूत रूप से विकास से जुड़े हैं और आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है. यही वजह है कि स्वाभाविक रूप से भारतीय-अफ्रीकी कोशिशों में सभी रूपों में आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने पर ध्यान दिया गया है.

नवंबर की शुरुआत में तथाकथित इस्लामिक स्टेट (ISIS या अरबी में दाइश) से ख़ुद को जुड़ा बताने वाले इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा 50 लोगों की गला काटकर वीभत्स हत्या के बाद पूर्वी अफ्रीका के तट पर मोज़ाम्बिक में हो रही हिंसा फिर से चर्चा में आई है. मोज़ाम्बिक में प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर उत्तरी इलाक़े काबो डेलगाडो क्षेत्र में इस्लामिक आतंकवाद लगातार बढ़ रहा है. अगस्त में उसी इलाक़े में ISIS समर्थक अंसार अल-सुन्ना से जुड़े आतंकवादियों ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाह पर कब्ज़ा कर लिया. इस दौरान उन्होंने राज्य के सुरक्षा और सशस्त्र बलों को खदेड़ दिया, कई गांवों को जला दिया और स्थानीय लोगों के मन में डर बैठा दिया. ये उसी तरह था जैसे 2013 के बाद ISIS ने सफलतापूर्वक इराक़ और सीरिया के इलाक़ों पर कब्ज़ा किया था. मध्य-पूर्व में ISIS के शुरुआती दौर की तरह ही अंसार अल-सुन्ना ने 2017 से स्थानीय लोगों की दिक़्क़तों को आधार बनाकर भर्तियां की. इस आतंकी संगठन ने मोज़ाम्बिक में मुसलमानों के अल्पसंख्यक दर्जे, आर्थिक बदहाली और भ्रष्टाचार का फ़ायदा उठाया.

अफ्रीका के सामने जहां सुरक्षा की सीधी चुनौती है वहीं 2018 में अफ्रीका महादेश में 18 नये राजनयिक मिशन का एलान करने के बाद भारत यहां अपने कूटनीतिक कौशल का महत्वपूर्ण रूप से विस्तार करने की योजना बना रहा है. 

लेकिन अफ्रीका में मोज़ाम्बिक इकलौता देश नहीं है जहां इस्लामिक आतंकी गुट आगे बढ़ रहे हैं. अफ्रीका का साहेल इलाक़ा हाल के वर्षों में न सिर्फ़ ISIS और अल क़ायदा समर्थक आतंकवाद का अड्डा बना है बल्कि तेज़ी से इन समूहों के फलने-फूलने के लिए ज़्यादा आसान राजनीतिक और भौगोलिक खालीपन यहां है क्योंकि ये काफ़ी हद तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नज़रों से लापता है. माली, नाइजीरिया, चाड़ जैसे देशों ने इस्लामिक स्टेट वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस (ISWAP), इस्लामिक स्टेट सेंट्रल अफ्रीका प्रॉविंस (ISCAP), अल क़ायदा इन इस्लामिक मग़रेब (AQIM) और कई छोटे-छोटे संगठनों, जो इस्लामिक गठबंधन में आते-जाते रहते हैं, के असर को देखा है. ये संगठन जहां साहेल में ख़ुद को मज़बूत कर रहे हैं, वहीं सोमालिया, केन्या, सूडान और दूसरे अफ्रीकी देशों में अल क़ायदा का सहयोगी अल शबाब (और इसके अलग-अलग गुट) एक तरफ़ ख़ुद को मज़बूत कर रहा है और दूसरी तरफ़ पश्चिमी देशों के नेतृत्व में चल रहे आतंक-विरोधी क़दमों का भी सामना कर रहा है. ISIS ने एक आतंकी संगठन के दृष्टिकोण से ऑनलाइन दुष्प्रचार को तेज़ किया लेकिन वास्तव में ये अल शबाब है जिसने सितंबर 2013 में केन्या की राजधानी नैरोबी में वेस्टगेट मॉल पर हमले के दौरान आतंकवाद और इससे संबंधित दुष्प्रचार में सोशल मीडिया का बख़ूबी इस्तेमाल किया. वेस्टगेट मॉल पर हमले को अल शबाब ने ट्विटर पर लाइव पोस्ट किया था.

अफ्रीका के सामने जहां सुरक्षा की सीधी चुनौती है वहीं 2018 में अफ्रीका महादेश में 18 नये राजनयिक मिशन का एलान करने के बाद भारत यहां अपने कूटनीतिक कौशल का महत्वपूर्ण रूप से विस्तार करने की योजना बना रहा है. अफ्रीका को आतंक विरोधी क्षेत्र में आक्रामक रूप से सहायता और अनुभव की पेशकश देने के मामले में भारत सही जगह पर खड़ा है.

आतंकवाद: अफ्रीकी संदर्भ

आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ अफ्रीका में शांति और सुरक्षा के लिए बड़े ख़तरे बन गए हैं. अफ्रीका महादेश के भीतर और उससे आगे भी इनका अभूतपूर्व विस्तार हो रहा है. पिछले कुछ वर्षों में अल शबाब, बोको हराम, अहलू सुन्ना वा-जामा, लॉर्ड्स रेज़िस्टेंस आर्मी समेत कई संगठनों ने तेज़ी से आधुनिक औज़ारों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है और ख़ुद को सुव्यवस्थित कर सरकार के विकल्प के रूप में बदल लिया है. अफ्रीका में ऐसे आतंकी समूह अस्थिरता की मुख्य वजह बन गए हैं. दो दशकों से अफ्रीकन यूनियन (AU) सक्रिय रूप से आतंकवाद को रोकने और उसका मुक़ाबला करने की कोशिशों में लगा है. आतंकवाद के ख़िलाफ़ समन्वित कार्रवाई को बढ़ावा देने और इसमें मदद के लिए उसने अलग-अलग साधन अपनाए हैं.

इसलिए आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ का मुक़ाबला करने में मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी, जिसमें जानकारी और खुफिया सूचनाओं को साझा करना शामिल है, अफ्रीका के देशों के लिए ज़रूरी है. 

आतंकवाद का मुक़ाबला करने में अफ्रीका की कोशिशों में शामिल है 1999 का अल्जीयर्स समझौता और इससे जुड़ा 2004 का प्रोटोकॉल. इसके अलावा 2002 में आतंकवाद को रोकने और मुक़ाबला करने के लिए अफ्रीकन यूनियन की कार्य योजना, 2004 में अफ्रीकन सेंटर फॉर द स्टडी एंड रिसर्च ऑन टेररिज़्म की स्थापना और 2010 में अफ्रीकन स्टैंडबाई फोर्स की स्थापना भी इन कोशिशों में शामिल हैं. आतंक विरोधी इन उपायों ने अफ्रीका के देशों के बीच बढ़े हुए सहयोग के लिए ठोस क़ानूनी और संस्थागत आधार तैयार करने में मदद की है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये उपाय आतंकी समूहों की गतिविधियों पर जानकारी के आदान-प्रदान के अलावा रिसर्च और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान और अफ्रीका के भीतर और बाहर तकनीकी सहायता जुटाने से जुड़े हैं. लेकिन वित्तीय और मानव संसाधन क्षमता की मजबूरियों के साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी महत्वपूर्ण चुनौती पेश करेंगे. कई उदाहरण ऐसे हैं जब अफ्रीका में आतंकवाद विरोधी पहल को वित्तीय समर्थन नहीं मिला. इसकी एक वजह ये भी है कि आर्थिक, विकास और ग़रीबी उन्मूलन जैसे ज़रूरी मुद्दों के मुक़ाबले अफ्रीका के देशों के लिए आतंकवाद से लड़ाई हमेशा मुख्य प्राथमिकता नहीं है. महत्वपूर्ण होने के बावजूद अफ्रीका में आतंक विरोधी कोशिशें बंटी हुई और ख़तरे के स्तर से कम रहती हैं. अफ्रीकन सेंटर फॉर द स्टडी एंड रिसर्च ऑन टेररिज़्म (ACSRT) के मुताबिक़ अगस्त 2020 तक अफ्रीका में 183 आतंकी हमले हुए जिनमें 763 लोगों की मौत हुई. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC), सोमालिया, माली, मोज़ाम्बिक और बुर्किना फासो सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में हैं.

इसलिए आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ का मुक़ाबला करने में मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी, जिसमें जानकारी और खुफिया सूचनाओं को साझा करना शामिल है, अफ्रीका के देशों के लिए ज़रूरी है. अफ्रीका महादेश में भारत की लंबे समय से मौजूदगी है. बात चाहे संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में योगदान की हो, मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान हो, रक्षा एकेडमी या कॉलेज की स्थापना हो या अफ्रीका के सुरक्षा और सैन्य कर्मियों के लिए रक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम, यहां भारत अपनी मौजूदगी दिखाता रहा है. इस तरह भारत अफ्रीका का पक्का रक्षा और सुरक्षा साझेदार बनने की काबिलियत रखता है.

भारतीय संदर्भ

पिछले दशक में रक्षा और सुरक्षा सहयोग भारत और अफ्रीका के देशों के लिए 21वीं सदी का महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर उभरा है. इसकी वजह है कि हमारे रणनीतिक सिद्धांत, सैन्य परंपरा, कमांड संरचना और ट्रेनिंग के तरीक़ों में समानता है. भारत और अफ्रीका- दोनों मज़बूती से मानते हैं कि शांति और सुरक्षा मूलभूत रूप से विकास से जुड़े हैं और आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है. यही वजह है कि स्वाभाविक रूप से भारतीय-अफ्रीकी कोशिशों में सभी रूपों में आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने, आतंकी नेटवर्क को अस्तव्यस्त करने, वित्तीय साधनों (हवाला सिस्टम) को मिटाने और सीमा पार गतिविधियों को रोकने पर ध्यान दिया गया है.

पिछले कुछ वर्षों में दो महत्वपूर्ण पहल हुई हैं जो भारत और अफ्रीका के बीच बढ़ते सुरक्षा संबंधों की तरफ़ इशारा करते हैं. पहली पहल है अफ्रीका-इंडिया फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज़ (AFINDEX) की शुरुआत जो मार्च 2019 में पुणे में हुई थी और जिसमें अफ्रीका के 17 देशों की सैन्य टुकड़ियां शामिल हुई थीं. इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य मानवीय सहायता और शांति अभियान की योजना बनाना और उसे संचालित करना था. इसमें संयुक्त राष्ट्र के द्वारा बताए गए काम को करने में सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों और नीतिगत स्तर के अभियान को साझा किया गया. दूसरी पहल है पहली बार भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्री कॉन्क्लेव (IADMC) जो फरवरी 2020 में लखनऊ में आयोजित हुआ. 38 अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों के अलावा 14 अफ्रीकी देशों के रक्षा मंत्री और सेना प्रमुख इसमें शामिल हुए. इस कार्यक्रम में लखनऊ घोषणापत्र को अपनाया गया जो ख़ास तौर पर रक्षा, सैन्य और सुरक्षा सहयोग से जुड़ा है.

भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्री कॉन्क्लेव (IADMC) जो फरवरी 2020 में लखनऊ में आयोजित हुआ. 38 अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों के अलावा 14 अफ्रीकी देशों के रक्षा मंत्री और सेना प्रमुख इसमें शामिल हुए. इस कार्यक्रम में लखनऊ घोषणापत्र को अपनाया गया जो ख़ास तौर पर रक्षा, सैन्य और सुरक्षा सहयोग से जुड़ा है. 

ये साल भारत और अफ्रीका के देशों को सुरक्षा साझेदारी मज़बूत करने का ख़ास मौक़ा भी मुहैया कराता है. इस साल अफ्रीकन यूनियन की थीम है, “बंदूक़ को ख़ामोश करना: अफ्रीका के विकास के लिए मददगार हालात बनाना”. ये अफ्रीका की ऐसी पहल है जिसका मक़सद हर तरह के सशस्त्र संघर्ष को रोकना, उनका निपटारा और समाधान को बढ़ावा देना है. ऐसी कोशिशें अफ्रीका के एजेंडा 2063 और प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा 2018 में अपनाई गई भारत-अफ्रीका भागीदारी के लिए 10 मार्गदर्शक सिद्धांत पर आधारित हैं. आतंकवाद का विरोध, हिंसक चरमपंथ का मुक़ाबला करना और अंतर्राष्ट्रीय अपराध जैसे मुद्दों पर ख़ास ध्यान है जो एजेंडा 2063 के साथ भारत के अफ्रीका एजेंडा से भी जुड़े हैं.

अफ्रोबैरोमीटर द्वारा किए गए हाल के एक सर्वे में पता चला कि बाहरी सुरक्षा की मौजूदगी, ख़ास तौर पर साहेलियन क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के साथ बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में चीन की मौजूदगी के कारण अफ्रीकी नागरिकों की नज़र में अफ्रीका में चीन की भूमिका को लेकर सकारात्मक सोच और राय में बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में स्वाभाविक है कि अगर भारत अफ्रीका में अपनी मौजदूगी बढ़ाना चाहता है तो उसे निश्चित रूप से दो-तीन क़दम उठाने होंगे. इन क़दमों में अफ्रीका के देशों में नये मिशन खोलना, संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भारतीय सैनिकों के योगदान में बढ़ोतरी और प्राइवेट सेक्टर की तरफ़ से बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में ज़्यादा निवेश शामिल हैं. ऐसा करने से सुरक्षा की सोच में इज़ाफ़ा होगा लेकिन इसके लिए दीर्घकालीन राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ऐसे सुरक्षा सहयोग को पक्के तौर पर संस्थागत रूप देना होगा.

निष्कर्ष

अगर भारत अफ्रीका के देशों का भरोसेमंद रक्षा और सुरक्षा साझेदार बनना चाहता है तो अफ्रीका के साथ भारत की भागीदारी में आतंकवाद विरोध को प्रमुखता से प्राथमिकता देनी होगी. डिफेंस एक्सपो और एरो इंडिया जैसी रक्षा प्रदर्शनियों में नियमित बातचीत के अलावा अफ्रीका के बाज़ारों में भारत की रक्षा कंपनियों की मौजूदगी को मज़बूती से बढ़ाना होगा. भारत ज़मीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल सिस्टम आकाश, हल्के लड़ाकू विमान (LCA तेजस), तट से दूर गश्त करने वाले जहाज़, डॉर्नियर Do-228 एयरक्राफ्ट, स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल, धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम, हल्के हथियार और गोला-बारूद और नाइट विज़न इक्विपमेंट अफ्रीका के उन देशों को निर्यात करने पर विचार कर सकता है जिनके विचार हमसे मिलते हैं. ऐसा करने से न सिर्फ़ अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी मज़बूत होगी बल्कि आतंकवाद से निपटने में अफ्रीका की क्षमता भी बढ़ेगी.

भारत कूटनीतिक और सामरिक तौर पर ऐसे अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग करने के मामले में भी अच्छी हालत में है जो पहले से इस महादेश में आतंक विरोधी गतिविधियों में सक्रिय हैं. इस मामले में फ्रांस और अमेरिका बड़े देश हैं और वैश्विक सुरक्षा के क्षेत्र में अमेरिका और फ्रांस के साथ भारत की बढ़ती नज़दीकी, जैसा कि इंडो-पैसिफिक और एशिया में आम तौर पर दिख रहा है, साझा मक़सदों जैसे आतंकवाद को हराने में कामयाब होगी.

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