Published on Feb 16, 2019 Updated 0 Hours ago

बांग्लादेश के चुनाव में अनियमितताओं की जांच की मांग को ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पाई क्योंकि प्रधानमंत्री शेख हसीना को काफी अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल हुआ।

प्रधानमंत्री शेख हसीना के अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल के सामने चुनौतियां

बांग्लादेश में 30 दिसंबर को 11वां संसदीय चुनाव हुआ। यह कई कारणों से ऐतिहासिक था: (क) प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जीत की हैट्रिक बनाई और वह देश में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने वाली पहली शख्सियत बनीं। हसीना की पार्टी अवामी लीग (एएल) और उसकी सहयोगी पार्टियों ने 300 में से 288 सीटों पर विजय प्राप्त की। यह जीत 1973 में आयोजित देश के पहले चुनाव में मिली जीत जैसी ही रही जब एएल ने 293 सीटें जीती थीं। (ख) देश में संसदीय चुनावों के इतिहास में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग किया गया। (ग) इस चुनाव में रिकॉर्ड संख्या में महिला प्रत्याशियों ने भी हिस्सा लिया। बहरहाल, यह चुनाव भी विवादों से परे नहीं रहा। अवामी लीग की धुर विरोधी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) जो केवल सात सीटें जीत पाई, ने इस चुनाव के परिणाम को खारिज कर दिया और इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाये। पार्टी ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। यहां चुनावों और देश में राजनीति के भविष्य की दिशा का एक आकलन प्रस्तुत है।

आरोपों के बावजूद, दिसंबर का चुनाव एक समावेशी चुनाव था। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इसमें भाग लिया। दो प्रमुख दलों में से एक — बीएनपी द्वारा 2014 के चुनावों का बहिष्कार किए जाने के बाद कई लोगों ने एक समावेशी चुनाव की आवश्यकता महसूस की थी।

बीएनपी द्वारा बहिष्कार के बाद, हसीना सरकार को दुनिया भर से शिकायतों का सामना करना पड़ा था। बीएनपी ने चुनावों का बहिष्कार एक कार्यवाहक सरकार, जिसे 2011 में एक संवैधानिक संशोधन के बाद समाप्त कर दिया गया था, को पुनर्बहाल करने की उसकी मांग को ठुकराये जाने के बाद किया था। बहरहाल, इस बार सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव में भाग लिया और सरकार को एकतरफा चुनाव कहे जाने की तोहमत से बचा लिया।

एएल एवं बीएनपी देश में वर्चस्व रखने वाली पार्टिया हैं। इन पार्टियों का नेतृत्व दो बेगमों-प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा एएल का एवं खालिदा जिया द्वारा बीएनपी का-द्वारा किया जाता है। 2018 के चुनावों में दोनों पार्टियों ने गठबंधनों को तवज्जो दिया। प्रमुख गठबंधन थे: (1) सत्तारुढ़ एएल के नेतृत्व में महागठबंधन। एएल के साझीदार हैं जटिया पार्टी, जटिया समाजबादी दल, तारीकत फेडरेशन, द वर्कर्स पार्टी, और बिकल्पधारा बांग्ला देश। (2) एएल के पूर्व नेता कमाल हुसैन, जिन्होंने पार्टी के साथ अपने रिश्ते तोड़ लिये थे और गोनो फारम की स्थापना की, के नेतृत्व में जटिया ओइक्यो फ्रंट (जेओएफ)। इसके साझीदारों में बीएनपी, कृषक श्रमिक जनता लीग, जटिया श्रमजतांत्रिक दल एवं नागोरिक ओइकिया शामिल थीं। दिलचस्प बात यह है कि जेओएफ में सहभागिता के अतिरिक्त बीएनपी एक दूसरे गठबंधन का भी नेतृत्व कर रही थी जो 20 पार्टी के गठबंधन के नाम से लोकप्रिय है। 20 पार्टी के गठबंधन में बीएनपी की प्रमुख साझीदार थी- लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी, खिलाफत मजलिस, बांग्ला देश कल्याण पार्टी, जमायत-ए-उलामा-ए-इस्लाम, जटिया पार्टी (काजी जफर), नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी एवं लेबर पार्टी। वाम पार्टियों ने भी लेफ्ट डेमोक्रैटिक एलायंस नाम से एक गठबंधन बनाया और इस गठबंधन की प्रमुख पार्टियां हैं-कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ बांग्ला देश, समाजतांत्रिक दल और रिवोलुशनरी पार्टी ऑफ इंडिया। कुल 39 राजनीतिक दलों ने चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे।

उल्लेखनीय है कि एक रुतबेदार धार्मिक राजनीतिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी, जिसे उसके पंजीकरण के रद्द कर दिए जाने के कारण चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया था, ने भी बीएनपी के प्रतीक का उपयोग करते हुए चुनाव में भाग लिया। बीएनपी सरकार (2001-06) की एक प्रमुख गठबंधन साझीदार जमात की सहभागिता से इंगित होता है कि पार्टी देश के राजनीतिक परिदृश्य पर उपस्थित रहेगी भले ही यह पार्टी का नाम या उसके चिन्ह का उपयोग न करे।

बांग्लादेश की संसद ‘जातीय संसद ‘ में 350 सदस्य शामिल है। तीन सौ सदस्य सीधे निर्वाचित होते हैं और शेष 50 महिलाओं के लिए आरक्षित होते हैं जो नामांकित होती हैं। 30 दिसंबर को, 299 सीटों के लिए चुनाव हुआ था क्योंकि एक संसदीय क्षेत्र में मतदान एक प्रत्याशी की मृत्यु के कारण रद्द कर दिया गया था। लगभग 1800 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा जिसमें 69 महिलाएं थीं। महिला प्रत्याशियों की संख्या देश के इतिहास में सर्वाधिक थी, हालांकि महिला मतदाताओं की संख्या की तुलना में अभी भी बहुत कम है जो लगभग पचास प्रतिशत है। 11वें संसद में 22 महिलाएं निर्वाचित हुई हैं। इस चुनाव में अल्पसंख्यक प्रत्याशियों की संख्या लगभग 74 थी-18 का नामांकन एएल द्वारा, 7 बीएनपी द्वारा और 3 गोनो फोरम द्वारा किया गया था। इनमें से लगभग 18 ने जीत हासिल की और उनमें से अधिकांश एएल के थे। बांग्ला देश एक मुस्लिम बहुल देश है जिनमें आबादी के 10 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं।

चुनाव आयोग (ईसी) ने चुनाव का पर्यवेक्षण किया। और यह 2011 में कार्यवाहक सरकार प्रणाली के खात्मे के बाद यह दूसरा चुनाव था। कार्यवाहक सरकार की प्रणाली एक भरोसेमंद चुनाव सुनिश्चित करने के लिए 1996 में एक संवैधानिक संशोधन के बाद स्थापित की गई थी। इसलिए, वर्तमान चुनाव एक निष्पक्ष चुनाव की निगरानी करने के लिए ईसी की साख के लिए एक परीक्षण था। ईसी का दावा है कि चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र था। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने भी इसकी साख पर सवाल नहीं उठाया।

बहरहाल, विपक्ष की कदाचार की शिकायतों से जरुर कुछ संदेह उत्पन्न हुए हैं। विपक्ष नए चुनाव कराने पर जोर दे रहा है। लेकिन विपक्ष की ऐसी मांगों को पूरी किए जाने की संभावना नहीं दिखाई दे रही। चुनाव में विपक्ष के धराशायी होने का परिणाम एक ऐसी स्थिति के रूप में सामने आया है जहां यह संसद में शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। इसके अतिरिक्त, सड़कों पर विरोध प्रदर्शन, जोकि बांग्लादेश में आम तौर पर अपनी मांगें पूरी करने का एक उपाय है, करने की इसकी क्षमता सीमित प्रतीत होती है।

चुनाव में शीर्ष विपक्षी नेता खालिदा जिया की गैरमौजूदगी इसकी कमजोरी की एक वजह मानी जाती है। बीएनपी की अध्यक्ष बेगम जिया चुनाव लड़ने में असमर्थ थीं क्योंकि उनकी उम्मीदवारी भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराये जाने के कारण रद्द कर दी गई थी। उन्हें 10 वर्षों के कारावास की सजा दी गई है और बांग्ला देश के संविधान के अनुसार, अगर किसी को दो वर्षों से अधिक की जेल की सजा सुनाई जाती है तो वह चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाता है। इसी प्रकार, उनका बेटा और उत्तराधिकारी तारिक रहमान जो एक दशक से लंदन में रह रहा है, भी चुनाव लड़ने की प्रक्रिया में भाग नहीं ले सका क्योंकि वह एक आपराधिक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। बीएनपी के महासचिव फखरुल इस्लाम आलमगीर ने इस चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया। पार्टी के निम्न प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि बीएनपी के संस्थापक जनरल जिया अभी भी पार्टी के लिए एक प्रमुख कारक हैं और लोग बिना उनके संबंधियों के नए नेतृत्व का परीक्षण करने के लिए तैयार नहीं हैं।

इस चुनाव में पहली बार संसदीय चुनावों में बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग किया गया। ईवीएम की शुरुआत को सक्षम बनाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व आदेश में पिछले वर्ष संशोधन किया गया। ईवीएम का उपयोग प्रायोगिक आधार पर छह संसदीय क्षेत्रों में किया गया। ईवीएम की शुरुआत चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के ईसी के प्रयासों को इंगित करती है।

अभियान के एक माध्यम के रूप में सोशल मीडिया के उपयोग ने चुनाव में एक नया आयाम जोड़ा। अवामी लीग एवं बीएनपी ने सोशल मीडिया का उपयोग मतदाताओं तक पहुंचने के लिए एक बड़े मंच के रूप में किया। बीएनपी ने दावा किया कि पार्टी ने वर्चुअल प्लेटफॉर्म की शरण लेनी पड़ी क्योंकि उसे वास्तविक दुनिया में चुनावी अभियान में प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। देश में कुल 81 मिलियन इंटरनेट यूजर हैं जो देश की आबादी के 49 प्रतिशत हैं। यह संख्या ऐसे देश के लिए काफी अधिक है जहां 100 मिलियन मतदाता हैं। अधिकारियों ने जनधारणा बनाने में वर्चुअल मीडियम के प्रभाव को देखा। चुनाव से पूर्व, अधिकारियों ने एहतियातन लगभग 54 न्यूजसाइट्स को बंद कर दिया था। चुनाव के दौरान, सुरक्षा उपाय के रूप में एक बार फिर इंटरनेट की गति धीमी कर दी गई।

चुनाव के दौरान कानून व्यवस्था बहाल रखने के लिए बड़ी संख्या में सेना और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की तैनाती की गई। चुनाव संपन्न कराने में नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए 270 संसदीय क्षेत्रों को कवर करते हुए 389 उपजिला या सब जिलों में सेना की तैनाती की गई। सेना को सेना समर्थित कार्यवाहक सरकार के तहत 2008 में कराये गए संसदीय चुनावों में इसके प्रयोग के कारण काफी लोकप्रियता हासिल हुई थी जिसे देश के समस्त इतिहास में सबसे विश्वसनीय चुनाव माना जाता है। सेना की तैनाती का सभी राजनीतिक दलों द्वारा स्वागत किया गया। हालांकि चुनाव में 17 व्यक्ति मारे गए पर कुल मिला कर इसे शांतिपूर्ण ही माना गया क्यांकि बांग्लादेश में हिंसा राजनीति का अंदरुनी हिस्सा रही है जहां लोगों का मारा जाना एक सामान्य सी बात है।

मानवाधिकार समूहों एवं लोकतंत्र के पर्यवेक्षकों ने चुनावों के पूरी तरह निष्पक्ष होने को लेकर संदेह जताया। आरंभ में यूरोपीय संघ एवं अमेरिका ने चुनावों में हुई अनियमितताओं की जांच किए जाने की मांग की। बहरहाल, अनियमितताओं की जांच की मांग को ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पाई क्योंकि प्रधानमंत्री शेख हसीना को काफी अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल हुआ।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें बधाई देने वाले पहले व्यक्ति थे। जल्द ही, चीन ने भी इसका अनुसरण किया। रूस, सऊदी अरब, कतर, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, भूटान एवं पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री हसीना को बधाई दी। ईयू और अमेरिका ने भी उनकी सरकार को सहयोग देने का वचन दिया। अंतरराष्ट्रीय मान्यता ने भी देश में प्रधानमंत्री हसीना की स्थिति को सुदृढ़ बनाया है।

इस महीने के आरंभ में, हसीना ने लगतार तीसरी बार पद और गोपनीयता की शपथ ली और 21 पूर्ण मंत्रियों, 19 राज्य मंत्रियों एवं तीन उपमंत्रियों सहित 46 सदस्यीय कैबिनेट का गठन किया। अपने मंत्रिमंडल को नया रूप देते हुए, उन्होंने कई प्रभावशाली नेताओं को हटा दिया जो लंबे समय में उनके मंत्रिमंडल में थे। उनके मंत्रिमंडल के 31 सदस्य कैबिनेट के नये चेहरे हैं।

रुझानों से प्रदर्शित होता है कि प्रधानमंत्री हसीना अगले पांच वर्षों के लिए देश पर शासन करने के लिए एवं लोगों से किए गए वायदों को पूरा करने के लिए मुस्तैद हैं। अपने अभियान के दौरान हसीना ने विकास एवं लोकतंत्र के वायदे किए थे और उम्मीद है कि वह बांग्लादेश को एक विकसित देश के रूप् में तबदील कर देंगी। आर्थिक विकास में तेजी लाने के साथ साथ लोकतांत्रिक संस्थानों में सुधार लाए जाने की भी जरुरत है क्योंकि 1971 में पाकिस्तान से मुक्ति के लिए लड़ाई में लोगों की इच्छा एक लोकतांत्रिक सरकार की भी थी।

प्रधानमंत्री हसीना के लिए समक्ष कुछ प्रमुख कार्य भी लंबित पड़े हैं जैसे अपने आक्रामक पार्टी कैडरों पर अंकुश लगाना जो लगातार लोगों का उत्पीड़न कर रहे हैं, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना (अनियंत्रित भ्रष्टाचार के कारण बैंकिंग क्षेत्र को नुकसान हुआ) और धार्मिक कट्टरता को काबू में रखना। प्रधानमंत्री हसीना ने आतंकवाद को काबू में रखने के लिए सराहनीय कार्य किए हैं लेकिन बढ़ती धार्मिक कट्टरता चिंता का सबब बनी हुई है। पर्यवेक्षकों को भय है कि हफाजत जैसे चरमपंथी समूहों के साथ उनका मेलजोल धार्मिक कट्टरता को और भड़काएगी और देश की उदार नीति पर खतरा पैदा करेगी। देश के आर्थिक विकास के सामने भी चुनौतियां हैं क्योंकि एक अल्पतम विकसित देश (एलडीसी) से विकासशील देश में इसकी पदोन्नति के बाद इसका निर्यात भी प्रभावित होगा। वर्तमान में बांग्लादेश के निर्यात को कई विकसित देशों में शुल्क मुक्त प्रवेश प्राप्त है। ये विशेषाधिकार अब समाप्त हो जाएंगे। देश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से निर्यात केंद्रित है जिसमें रेडीमेड गारमेंट उसका मुख्य उत्पाद है।

यह देखने वाली बात होगी कि प्रधानमंत्री हसीना किस प्रकार इन चुनौतियों का सामना करती है।

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