यूक्रेन का संकट: एक अलग तरह की जंग लड़ रही हैं महिलाएं!
ये लेख हमारी सीरीज़, यूक्रेन संकट: वजह और संघर्ष की कार्रवाई का विवरण का एक हिस्सा है.
यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के जंगी अभियान के लड़खड़ाने का एक नतीजा ये हुआ है कि बेगुनाह आम नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है और सभी वर्गों के लोगों पर भयंकर ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं. सच तो ये है कि 18 अप्रैल को जब यूक्रेन में 400 शव बरामद हुए, जिनमें से कई कचरे की काली पन्नियों में लपेटकर सामूहिक क़ब्रों में दफ़नाए गए थे, तो युद्ध में बड़े पैमाने पर आम नागरिकों की मौत को लेकर पूरी दुनिया में ज़बरदस्त ग़ुस्सा देखने को मिला था. ये शव उन इलाक़ों में मिले थे, जिन्हें यूक्रेन की सेना ने हाल ही में रूसी सेना के क़ब्ज़े से वापस छीना था. लेकिन, आज जब यूक्रेन के नागरिकों पर जंग की ये तबाही टूट रही है, तो यूक्रेन की महिलाएं एक अलग ही तरह का युद्ध लड़ रही हैं. ये ऐसी जंग है, जिसमें महिलाओं को अपने परिवारों और अपने समुदायों के साथ-साथ अपनी हिफ़ाज़त की मशक़्क़त भी करनी पड़ रही है.
रूसी सैनिकों द्वारा यूक्रेन की महिलाओं और नाबालिग लड़कियों और यहां तक कि दस साल उम्र वाली बच्चियों से बलात्कार के आरोप भी लगातार लग रहे हैं. इसके बाद भी, यूक्रेन में चल रहे युद्ध के महिलाओं पर तुलनात्मक रूप से पड़ रहे ज़्यादा बुरे असर के बारे में पूरी तरह से नहीं बताया जा रहा है.
रूस की गोलीबारी और बमबारी के चलते, महिलाओं द्वारा अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों पर बच्चे पैदा करने और नवजात बच्चों को हड़बड़ी में अस्थायी तौर पर बनाए गए बम से बचने के ठिकानों में ले जाने की तस्वीरें पहले ही सोशल मीडिया पर देखी जा रही हैं. इसके अलावा रूसी सैनिकों द्वारा यूक्रेन की महिलाओं और नाबालिग लड़कियों और यहां तक कि दस साल उम्र वाली बच्चियों से बलात्कार के आरोप भी लगातार लग रहे हैं. इसके बाद भी, यूक्रेन में चल रहे युद्ध के महिलाओं पर तुलनात्मक रूप से पड़ रहे ज़्यादा बुरे असर के बारे में पूरी तरह से नहीं बताया जा रहा है.
इसके अलावा, यूक्रेन और रूस के इस युद्ध में महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे जुर्मं के आधिकारिक आंकड़ों भी सामने नहीं आ रहे हैं. हालांकि, एक कड़वा सच ये है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच वहां की महिलाएं कई सेवाओं से महरूम हो गई हैं; उन पर देख-रेख करने की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी आ गई है; और यूक्रेन की महिलाओं के यौन शोषण और ज़ुल्म के शिकार होने का ख़तरा और भी बढ़ गया है. यानी महिलाओं को इस युद्ध के चलते औरों से ज़्यादा बोझ उठाना पड़ रहा है और इसकी न तो राष्ट्रीय और न ही कोई अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही तय हो पा रही है.
सेवाओं तक पहुंच नहीं
यूक्रेन में पारंपरिक रूप से पुरुषवादी समाज होने और लैंगिक असमानता के नियमों और सोच के चलते यूक्रेन की महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं और न्याय सेवा तक पहुंच पहले ही हासिल नहीं थी. अब इस युद्ध के चलते महिलाओं के लिए सुरक्षित जगह तलाश पाना और भी मुश्किल हो गया है.
एक गर्भवती महिला की स्ट्रेचर पर अपना फूला हुआ पेट पकड़े-पकड़े मौत हो जाने की घटना ने उन स्त्रियों की परेशानियों को उजागर किया है, जिन्हें प्रसव से पहले बहुत देख-रेख की ज़रूरत है और जैसा कि एक अनुमान लगाया गया है कि यूक्रेन में अगले तीन महीनों में लगभग 80 हज़ार महिलाओं की डिलीवरी होगी.
रूस द्वारा युद्ध छेड़ने से- यूक्रेन के समाज में महिलाओं की सुरक्षा और सहयोग के पारंपरिक ढांचे के तितर-बितर होने के चलते, देश की नियमित स्वास्थ्य सेवाएं बहुत सीमित हो गई हैं. इससे महिलाओं के लिए स्वास्थ्य की बुनियादी सेवाएं और ख़ास तौर से प्रजनन और यौन संबंधी रख-रखाव हासिल कर पाना और भी मुश्किल हो गया है.
एक गर्भवती महिला की स्ट्रेचर पर अपना फूला हुआ पेट पकड़े-पकड़े मौत हो जाने की घटना ने उन स्त्रियों की परेशानियों को उजागर किया है, जिन्हें प्रसव से पहले बहुत देख-रेख की ज़रूरत है और जैसा कि एक अनुमान लगाया गया है कि यूक्रेन में अगले तीन महीनों में लगभग 80 हज़ार महिलाओं की डिलीवरी होगी. हालांकि, अगर इस दौरान युद्ध जारी रहता है और मां की सेहत के बेहद अहम स्वास्थ्य सेवाएं सीमित रहती हैं, तो बच्चे पैदा करने का तजुर्बा इन महिलाओं के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है.
यौन हिंसा और बलात्कार
इसके साथ साथ महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की समस्या- जिसकी यूक्रेन की महिलाएं शिकार हो रही हैं, उसके बारे में सबको पता है ही. पूर्वी यूक्रेन में तो महिलाएं पिछले आठ साल से जंग और हिंसक दुर्व्यवहार के साए तले जी रही हैं. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड (UNFPA) द्वारा 2019 में प्रकाशित किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़, यूक्रेन की 75 फ़ीसद महिलाओं ने 15 साल की उम्र से ही किसी न किसी तरह की हिंसा का शिकार होने की बात बताई थी. इसके अलावा हर तीन में से एक महिला ने किसी न किसी तरह की शारीरिक या यौन हिंसा भी झेली थी.
चूंकि संघर्षों के दौरान दुश्मन देश अक्सर यौन हिंसा और बलात्कार को हथियार बनाकर अपनी ताक़त दिखाते रहे हैं, तो रूस के सैन्य आक्रमण के चलते यूक्रेन की महिलाओं के यौन और शारीरिक हिंसा, शोषण, बलात्कार और ज़ुल्म के शिकार होने की आशंका और भी बढ़ गई है. यूक्रेन की एक सांसद लेसिया वैसिलेंक ने आगे बढ़ते हुए ये दावा किया है कि रूस के सैनिकों ने महिलाओं का बलात्कार किया और उनके शरीर पर स्वस्तिक के निशान भी दाग़ दिए थे. हालांकि, अब तक तो ऐसे दावों की तस्दीक़ नहीं की जा सकी है. लेकिन, अगर ऐसे दावों में ज़रा भी हक़ीक़त है, तो इन तस्वीरों को सुबूत बनाकर रूस के ख़िलाफ़ युद्ध अपराधों का मुक़दमा चलाया जा सकता है.
यूक्रेन की एक सांसद लेसिया वैसिलेंक ने आगे बढ़ते हुए ये दावा किया है कि रूस के सैनिकों ने महिलाओं का बलात्कार किया और उनके शरीर पर स्वस्तिक के निशान भी दाग़ दिए थे. हालांकि, अब तक तो ऐसे दावों की तस्दीक़ नहीं की जा सकी है.
यूक्रेन की महिलाओं के यौन हिंसा के शिकार होने की आशंका इस बात से और बढ़ गई है कि उन्हें युद्ध के चलते अपने घर-बार को छोड़ने को मजबूर होना पड़ा है. विदेश में पनाह लेनी पड़ी है और नए माहौल में अपनी जान बचाने के लिए बाल विवाह या सेक्स करने को मजबूर होना पड़ा है, जिससे आख़िकार वो शोषण और ज़ुल्म की और भी शिकार होती हैं.
महिलाओं पर देख-रेख का बोझ बढ़ गया
इसके अलावा, यूक्रेन में देख-भाल करने और सेवा देने की पूरी ज़िम्मेदारी महिलाओं की ही मानी जाती है. महिलाओं को ही अपने परिवार, बच्चों और बुज़ुर्गों की देख-रेख का ज़िम्मा उठाना पड़ता है. आज जब रूस के हमले के बीच यूक्रेन की सरकार ने आदेश दिया है कि 18 से 40 साल उम्र के पुरुष देश में ही रहकर अपने मुल्क की हिफ़ाज़त की जंग लड़ें, तो अब यूक्रेन की महिलाओं को और भी तनावपूर्ण माहौल में पूरे परिवार की देख-भाल का ज़िम्मा उठाने को मजबूर होना पड़ा है.
अप्रवास के अंतरराष्ट्रीय संगठन (IOM) के मुताबिक़, यूक्रेन में युद्ध के चलते देश छोड़ने वाले एक करोड़ से ज़्यादा लोगों में महिलाओं और बच्चों की तादाद आधी से भी ज़्यादा है.
मिसाल के तौर पर आज जब महिलाओं के परिवार तितर-बितर हो गए हैं, तो उनके पास परिवार की देख-भाल करने और उनका पेट भरने के संसाधन कम हो गए हैं. हालात इसलिए और भी ख़राब हो गए हैं क्योंकि महिलाओं और बच्चों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा है और उन्हें शरण देने वाले देशों में दोबारा बसने के लिए बहुत कम मदद मिल पा रही है. अप्रवास के अंतरराष्ट्रीय संगठन (IOM) के मुताबिक़, यूक्रेन में युद्ध के चलते देश छोड़ने वाले एक करोड़ से ज़्यादा लोगों में महिलाओं और बच्चों की तादाद आधी से भी ज़्यादा है.
परिवार की देख-भाल की इस अतिरिक्त ज़िम्मेदारी का बोझ बढ़ने से महिलाओं की चुनौतियों से निपटने की क्षमता बोझिल हो गई है. इसके चलते उन्हें मानसिक सेहत की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. वो चिंता, तनाव, डिप्रेशन और भय की शिकार हो रही हैं.
निष्कर्ष
साफ़ है कि रूस और यूक्रेन के युद्ध ने महिलाओं और पुरुषों की पुरानी पारंपरिक भूमिका को और भी मज़बूती दी है, बल्कि महिलाओं पर नई ज़िम्मेदारियों का बोझ भी डाल दिया है. इससे महिलाओं पर उनकी ज़िंदगी तबाह करने वाला असर पड़ रहा है. हालांकि, इस मौजूदा समस्या का दूरगामी और शांतिपूर्ण समाधाना निकालने के लिए यूक्रेन के हालात का लैंगिक आधार पर विश्लेषण करना न सिर्फ़ महत्वपूर्ण हो गया है, बल्कि ये क़दम तुरंत उठाना भी अनिवार्य हो गया है.
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