Author : Prathamesh Karle

Published on Mar 15, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत के लिए आर्थिक, राजनीतिक और भौगोलिक रूप से एकीकृत मध्य एशिया बेहद महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र के साथ जुड़कर भारत अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

भारत के लिए सही समय है मध्य एशिया के साथ सम्बन्ध बढ़ाने का

16 नवम्बर 2018 को, 1970 के दशक में की गई पहली परिकल्पना के लगभग तीन दशक बाद, तजाकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमोनोव ने रोगन हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर प्लांट की पहली टर्बाइन का शुभारम्भ किया। इस ऐतिहासिक समारोह में हजारों लोग मौजूद थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद से, यह ताजिक पॉवर प्लांट, नदी की निचली धारा पर स्थित उज्बेकिस्तान के साथ तजाकिस्तान के द्विपक्षीय रिश्तों की प्रमुख अड़चनों में शुमार रहा है। यह परियोजना सीमा विवादों, नृजातीय समस्याओं और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण को लेकर मध्य एशियाई देशों के बीच दशकों तक व्याप्त रहे विश्वास के अभाव का वर्णन करती है। हालांकि रोगन प्लांट की छह में से पहली टर्बाइन की शुरूआत एक स्वागत योग्य कदम है — केवल मध्य एशिया क्षेत्र के नहीं, बल्कि भारत के लिए भी, जो इस क्षेत्र के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने की आशा रखता है।

मध्य एशिया में बदलाव की बयार को महसूस करते हुए, भारत ने पहली बार विदेश मंत्री स्तर पर भारत-मध्य एशिया संवाद का आयोजन कर इस क्षेत्र के साथ अपने सम्बन्धों को बढ़ाने का फैसला किया है। यह मंच हालांकि नया नहीं है और यह 2012 में विदेश राज्य मंत्री ई अहमद द्वारा बिश्केक में प्रारंभ किए जाने के बाद से ही अस्तित्व में है। उस समय पहली बार पांचों मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों ने भारत की पहल पर किए गये इस आयोजन में शिरकत की थी। इसमें अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने भी भाग लिया था। मध्य एशिया के विद्वान और पर्यवेक्षक इस बात पर सहमत होंगे कि मध्य एशियाई देशों के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धों के कारण महज कुछ ही साल पहले ऐसा परिदृश्य दूर की कौड़ी लगता था।

इस क्षेत्र के साथ भारत के सम्बंध दो दशकों की अवधि के दौरान विकसित हुए हैं। शुरुआती वर्षों में, भारत ने इस क्षेत्र के साथ सभ्यतागत सम्बन्धों में नयी जान डालने का सहारा लिया, इस कदम ने विश्वास और सद्भावना की इमारत की बुनियाद रखी। इसके बाद भारत को ‘सॉफ्ट पॉवर’ के रूप में प्रस्तुत करने की नीति का आगाज़ हुआ।

इस क्षेत्र के साथ भारत के सम्बंध दो दशकों की अवधि के दौरान विकसित हुए हैं। शुरुआती वर्षों में, भारत ने इस क्षेत्र के साथ सभ्यतागत सम्बन्धों में नयी जान डालने का सहारा लिया, इस कदम ने विश्वास और सद्भावना की इमारत की बुनियाद रखी। इसके बाद भारत को ‘सॉफ्ट पॉवर’ के रूप में प्रस्तुत करने की नीति का आगाज़ हुआ जिसमें भारत ने क्षमता निर्माण, मानव संसाधन विकास, सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्युटिकल्स और स्वास्थ्य सेवा आदि के क्षेत्र में सहायता उपलब्ध कराई। इसका उद्देश्य सद्भावना सुनिश्चित करना और क्षेत्र के साथ अपने व्यापारिक सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाते हुए यह दर्शाना था कि भारत इन सम्बन्धों के प्रति गंभीर है। हालांकि क्षेत्र के प्रति केंद्रित दृष्टिकोण के अभाव और मध्य एशियाई देशों के बीच आपसी तनाव ने दोनों पक्षों के सम्बन्धों की आर्थिक संभावनाओं को अवरुद्ध रखा। हाल ही में सम्पन्न भारत-मध्य एशिया संवाद को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

यह घटना दो दृष्टिकोणों से इस क्षेत्र के प्रति भारत की नीति के लिए महत्वपूर्ण रही।

  • भारत की मध्य एशिया नीति उस अगली अवस्था तक पहुंच चुकी है, जहां दृष्टिकोण अब सम्बन्धों को संस्थागत रूप प्रदान करने के जरिए सम्बन्ध प्रगाढ़ बनाने पर केंद्रित है। भारतीय विदेश मंत्री ने भारत-मध्य एशिया व्यापारिक परिषद और भारत-मध्य एशिया विकास समूह के गठन का प्रस्ताव रखा है, ताकि ये संबंधों को प्रगाढ़ बनाने और ठोस प्रस्ताव तैयार करने के मंच के रूप में योगदान दे सकें।

  • अफगानिस्तान को आमंत्रित करके भारत ने अपनी मध्य एशियाई नीति को अफगानिस्तान के साथ और अफगानिस्तान संबंधी नीति को मध्य एशियाई नीति के साथ जोड़ दिया। उसे आशा है कि ऐसा करके वह अफगानिस्तान के सामाजिक-आर्थिक विकास और राजनीतिक स्थायित्व में मध्य एशियाई देशों को साथ जोड़ सकेगा। इससे बेहतर सम्पर्क और क्षेत्रीय अखंडता का कायम हो सकेगी। भारत सरकार को उम्मीद है कि इससे उसे लाभ हो सकता है। इस तरह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ भारत के संबंधों की दृष्टि से देखें, तो ये दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के साथ पेचीदा रूप से संबद्ध हैं।

भारत ऐसे मुनासिब मौके पर मध्य एशिया के साथ संबंध मजबूत बनाने की नए सिरे से कोशिशें कर रहा है, जबकि वहां क्षेत्रीय एकीकरण की संभावनाएं पहले से कहीं ज्यादा प्रबल दिखाई दे रही हैं। उज्बेकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति इस्लाम करिमोव की मौत के बाद शवकत मिर्जियोयेव के नेतृत्व में हुए सत्ता परिवर्तन ने इस क्षेत्र में जीवंत राजनीतिक वातावरण की शुरूआत की। 2016 में पद पर आसीन होने के बाद से ही उज्बेक राष्ट्रपति ने ‘जीरो प्राब्लम्स’ नीति के तहत अपने पड़ोसी देशों के साथ जटिल मसलों को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित किया है। उनका नया दृष्टिकोण पिछले दो साल के दौरान घोषित साझा परियोजनाओं में परिलक्षित हो चुका है। यूरोपीय शैंगेन वीजा के अनुरूप, कजाकिस्तान ने ‘सिल्क वीजा’ प्रोजेक्ट की पेशकश की है, जो एकल या सिंगल वीजा के साथ पर्यटकों को मध्य एशियाई देशों का दौरा करने की इजाजत देगा। यह प्रस्ताव सबसे पहले उज्बेकिस्तान को दिया गया था, जबकि किर्गिज़स्तान और तजाकिस्तान ने भी दिलचस्पी जाहिर की थी।

अफगानिस्तान को आमंत्रित करके भारत ने अपनी मध्य एशियाई नीति को अफगानिस्तान के साथ और अफगानिस्तान संबंधी नीति को मध्य एशियाई नीति के साथ जोड़ दिया

कजाकिस्तानके राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव ने भी उज्बेकिस्तान की सीमा से सटे इलाके में एक आर्थिक क्षेत्र, ड्राई पोर्ट बनाने की पेशकश की थी, जो चीन के साथ बनाए गए ‘खोरगोस सेंटर‘ की तर्ज पर होगा। उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान ने भी 10 बॉर्डर क्रॉसिंग खोलने पर सहमति प्रकट की, और इस तरह सीमा विवादों के कारण बरसों से चली आ रहे दुश्मनी खत्म हो गई।

तुर्कमेनिस्तान ने भी 11 जनवरी 2019 को जब 600 किलोमीटर लम्बे अशगाबात-तुर्कमेनबाद हाइवे के निर्माण का उद्घाटन करके उज्बेकिस्तान तक अपनी पहुंच बनाई। यह हाइवे तुर्कमेनिस्तान के राजधानी शहर को उज्बेकिस्तान से सटी सीमा तक जोड़ता है। यह परियोजना तुर्कमेनिस्तान द्वारा अपनी भू-राजनीतिक क्षमता का इस्तेमाल करके गैस के निर्यात के जरिए प्राप्त होने वाले राजस्व पर बढ़ती निर्भरता के बीच उसकी आर्थिक विविधता की नीति का अंग है। यह परियोजना धातुओं और कृषि जिन्सों के प्रमुख उत्पादक उज्बेकिस्तान जैसे बंदरगाह विहीन देश को भी कैस्पियन सागर के किनारों तक पहुंच बनाने का अवसर देती है। इस हाईवे का अन्य भाग अशगाबात को कैस्पियन सागर के किनारों से जोड़ता है, जिसके 2020 तक बनकर तैयार हो जाने की संभावना है। ये सभी परियोजनाएं और पहल इस बात का प्रमाण है कि पिछले दो वर्षों में भरोसे का वातावरण तैयार हुआ है।

ऐसे समय में जब मध्य एशियाई देशों के बीच आपसी रिश्तों में वह निकटता आ रही है, जैसी पहले कभी नहीं देखी गई, तो ऐसे में भारत के लिए मध्य एशिया के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ बनाने का यह बिल्कुल मुनासिब मौका है। राजनीतिक, भौगोलिक और आर्थिक रूप से एकीकृत मध्य एशिया इस क्षेत्र के साथ ‘जुड़ने’ के भारत के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण है। यह अनेक पनबिजली परियोजनाओं और ऐसे अन्य उद्यमों में निवेश करने का अवसर भी उपलब्ध कराता है, जिन्हें दो क्षेत्रीय देशों के सहयोग के बिना कार्यान्वित नहीं किया जा सकता। रोगन पॉवर प्लांट रुके हुए प्रोजेक्ट का उत्तम उदाहरण है, जिसके लिए साझा नदियों के कारण तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच सहयोग की जरूरत है। हालांकि राजनीतिक और भौगोलिक एकीकरण के लिए कुछ उपाय किए गए हैं और उन्हें व्यापक बनाने का सिलसिला जारी रहेगा, अगर इन उपायों के लाभ निरंतर रूप से सभी को मिलते रहे, तो आगे चलकर आर्थिक एकीकरण भी किया जाएगा। इसलिए भारत को क्षेत्रीय देशों को एक मंच उपलब्ध कराना चाहिए, जहां वे अपने बीच सम्पर्क,परिवहन और लॉजिस्टिक्स से संबंधित मसलों पर चर्चा कर सकें। भारत ने हालांकि भारत-मध्य एशिया संवाद के प्रारूप के भीतर सरकारों और कारोबारियों के लिए आपस में संवाद करने के लिए संस्थाओं के गठन की पेशकश की है, इसलिए उसे सक्रिय रूप से ऐसे उपायों का समर्थन करना चाहिए, जिनसे उनके बीच आर्थिक और सम्पर्क से संबंधित मसलों के समाधान हो सके। शुरूआत में भारत उज्बेक राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित मध्य एशियाई देशों की क्षेत्रीय परिवहन परिषद के गठन के लिए सहायता और अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर सकता है। यह प्रस्तावित परिषद परिवहन और लॉजिस्टिकल समस्याओं को सुलझाने के मंच के रूप में कार्य करेगी। कजाकिस्तान ने हाल ही में एक संघ बनाने का प्रस्ताव रखा है, जो कजाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ईरान के रेलवे नेटवर्क्स को चाबहार बंदरगाह से जोड़ेगा और इस तरह मध्य एशिया से भारत तक वस्तुओं की लाना संभव हो सकेगी। इस तरह, भारत के साथ अपने संबंधों में विविधता लाने की मध्य एशियाई देशों में राजनीतिक इच्छा शक्ति है और उनकी ओर से इस दिशा में पहल की जा रही है साथ ही वे भारत की ओर से किए जा रहे क्षेत्रीय एकीकरण के आह्वान पर भी गौर कर रहे हैं। ऐसे में भारत को अपनी आर्थिक सीमाओं को उत्तरी मोर्चे तक फैलाने के अवसर का लाभ हर हाल में उठाना चाहिए।

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