Published on Aug 13, 2019 Updated 0 Hours ago

सस्टेनेबल डिवेलपमेंट के लक्ष्य हासिल करने के लिए महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना होगा और यह तभी संभव है, जब उन्हें सेक्सुअल और रीप्रॉडक्टिव अधिकार मिलें.

अफ्रीकी देश गाम्बिया में लैंगिक समानता, सेक्सुअल और रीप्रोडक्टिव हेल्थ की भूमिका: एक संदर्भ

रीप्रोडक्टिव हेल्थ राइट्स यानी जनन स्वास्थ्य अधिकार महत्वपूर्ण मानवाधिकार हैं. ये 1990 के दशक से अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य और विकास एजेंडा के अहम पहलू रहे हैं. सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स (एसडीजी) यानी सतत विकास लक्ष्यों और अफ्रीकी संघ (एयू) एजेंडा के 2063 ‘अफ्रीका वी वॉन्ट’ लक्ष्यों को हासिल करने में भी इनकी बड़ी भूमिका होगी.

पिछले कुछ साल में लैंगिक समानता को विकास का अहम पैमाना माना जाने लगा है. ICPD + 25 (इंटरनेशनल कॉन्फ़्रेंस ऑन पॉपुलेशन एंड डिवेलपमेंट) की समीक्षा से पिछले दो दशक में लैंगिक समानता के मामले में हुई प्रगति का भी पता चलता है. अधिकतर अफ्रीकी देशों में महिलाओं और लड़कियों को हिंसा से बचाने के कानून लागू किए गए हैं. प्राथमिक स्कूलों में दाख़िला लेने वाली बच्चियों की संख्या भी बढ़ी है और महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में भी कुछ तरक्की हुई है.

गांबिया में 60 प्रतिशत लोगों की उम्र 25 साल से कम है. एक अनुमान के मुताबिक, 18 साल की होते ही यहां की 31 प्रतिशत महिलाएं मां बन जाती हैं और 20 साल की उम्र तक मां बनने वाली महिलाओं की संख्या 49 प्रतिशत है.

परिवार नियोजन के मामले में भी स्थिति कुछ बेहतर दिख रही है, लेकिन प्रति महिला 4.6 बच्चों के साथ दुनिया में अफ्रीका में शिशु जन्म दर सबसे अधिक है. इसका कारण यह है कि महिलाओं को सेक्सुअल और रीप्रॉडक्टिव हेल्थ केयर की सूचनाएं और सेवाएं ठीक ढंग से नहीं मिल पा रही हैं. खासतौर पर गांबिया में एक महिला औसतन 5.6 बच्चों को जन्म देती है. यह दुनिया में सबसे अधिक शिशु जन्म दर है. विश्व में सबसे अधिक युवा आबादी भी यहीं है. गांबिया में 60 प्रतिशत लोगों की उम्र 25 साल से कम है. एक अनुमान के मुताबिक, 18 साल की होते ही यहां की 31 प्रतिशत महिलाएं मां बन जाती हैं और 20 साल की उम्र तक मां बनने वाली महिलाओं की संख्या 49 प्रतिशत है.

साल 2015 में हुए डेमोग्राफिक और हेल्थ सर्वे के अनुसार, 15 से 19 साल की उम्र वाली लड़कियों में से 20 प्रतिशत मां बन चुकी हैं या बनने वाली हैं. बड़ी संख्या में अनचाहे बच्चे पैदा हो रहे हैं. गांबिया में 25 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं की गर्भनिरोध यानी कॉन्ट्रासेप्शन की ज़रूरत पूरी नहीं हो पा रही है. अगर इसमें अविवाहित महिलाओं को शामिल कर लें तो संख्या और भी अधिक हो जाती है. गांबिया में महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधकों यानी पिल्स, आईयूडीएस, इंप्लांट, फ़ीमेल कॉन्डोम और इंजेक्शंस का इस्तेमाल नहीं करतीं. गर्भनिरोधकों को लेकर यहां जागरूकता और जानकारी की कमी है. ये आसानी से मिलते भी नहीं हैं और इसमें धार्मिक मान्यताएं भी आड़े आती हैं.

साल 2018 में यहां सिर्फ 8 प्रतिशत महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल कर रही थीं, जो समूचे अफ्रीका में (द गांबिया नेशनल फैमिली पॉलिसी, 2019-2026) में सबसे कम है. इन आंकड़ों से भी साबित होता है कि महिलाओं और लड़कियों को यहां बुनियादी सेक्सुअल और रीप्रॉडक्टिव स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल रही हैं. सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं से भी समस्या बढ़ी है. गांबिया में अगर कोई महिला बच्चे को जन्म देती है तो उसे सम्मान की नजर से देखा जाता है. इस तरह से महिलाओं पर जनन और वंश बढ़ाने की उम्मीद और जवाबदेही का बोझ थोपा जा रहा है. कई बार यह उम्मीद अनुचित भी होती है. गांबिया में समाज पर पितृसत्तात्मक सोच हावी है और वही इस समस्या की जड़ है (ब्राम और हेसिनी, 2014).

महिलाओं के लिए स्वस्थ और सुरक्षित जीवन दुश्वार हो गया है. बाल विवाह, ख़तना, उत्तराधिकार कानून और सामान्य अधिकारों की कमी के कारण महिलाएं अपने शरीर तक के बारे में फैसले नहीं कर पा रही हैं और इससे यह समस्या विकराल रूप ले रही है.

ICPD की स्थापना के दो दशक से अधिक समय गुजरने के बाद भी महिलाओं के शरीर पर विचारधारा की जंग लड़ी जा रही है. मर्द और औरतों के बारे में जो सामाजिक सोच है, उससे लैंगिक भेदभाव बढ़ रहा है. ऐसे में महिलाओं के लिए स्वस्थ और सुरक्षित जीवन दुश्वार हो गया है. बाल विवाह, ख़तना, उत्तराधिकार कानून और सामान्य अधिकारों की कमी के कारण महिलाएं अपने शरीर तक के बारे में फैसले नहीं कर पा रही हैं और इससे यह समस्या विकराल रूप ले रही है.

परिवार नियोजन सहित सेक्सुअल और रीप्रॉडक्टिव हेल्थ सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, मदद और आर्थिक संसाधनों की जरूरत है. इस समस्या को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर दखल देने के साथ लैंगिक शिक्षा बढ़ानी होगी. जिन चीजों से लैंगिक समानता बढ़ती है, उन्हें मज़बूत करना होगा. कहीं कहा गया है कि ‘सस्टेनेबल डिवेलपमेंट के लक्ष्य हासिल करने के लिए महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना होगा.’ यह तभी संभव है, जब उन्हें सेक्सुअल और रीप्रॉडक्टिव अधिकार मिलें. इन्हीं कारणों को देखते हुए समर्पित कार्यकर्ताओं के समूह ने सेक्सुअल और रीप्रॉडक्टिव राइट्स नेटवर्क (SRRNet) की स्थापना की है. यह स्त्रीवादी आंदोलन है, जिसका मकसद मानवाधिकारों की मदद से सबके लिए सेक्सुअल और रीप्रॉडक्टिव हेल्थ और राइट्स हासिल करना है. यह ग्रुप खासतौर पर गांबिया में महिलाओं के जीवनस्तर में सुधार के लिए समर्पित है. इस साल 4 मई को सेक्सुअल एंड रीप्रॉडक्टिव हेल्थ एंड राइट्स पर पहली नेशनल कोअलिशन बिल्डिंग मीटिंग भी हुई. महिलाओं और लड़कियों के तजुर्बों के आधार पर इसमें स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने का संकल्प लिया गया. हम उम्मीद करते हैं कि इस क्षेत्र में स्पष्ट रणनीति बनाने से लैंगिक समानता, मानवाधिकार और गांबिया में महिलाओं से संबंधित स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होंगी.

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