Author : Akhil Deo

Published on Mar 14, 2019 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान लम्बे अर्से से जम्मू और कश्मीर में अपने हाई ब्रिड युद्धकर्म को अंजाम देने और उसको पूर्णता प्रदान करने के लिए सूचना कार्रवाइयां को एक टूल की तरह इस्तेमाल करता रहा है।

युद्ध का भ्रमजाल: युद्धकालीन सूचना कार्रवाइयों की पहली झलक

पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद भारत ने जब अपने सैन्य विकल्पों का इस्तेमाल किया, तो ऐसे में अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों के अध्येताओं को भयादोहन सिद्धान्तों (Deterrence Theories) और परमाणु सुरक्षा के बारे में नए अनुभवजन्य साक्ष्य मिले हैं। अनेक अध्येताओं ने जहां भारत के परम्परागत और परमाणु सैन्य विकल्पों का विश्लेषण किया है, वहीं कुछ ने समान रूप से महत्वपूर्ण घटना पर सवाल उठाए हैं: भारत के लिए युद्धकालीन सूचना कार्रवाइयों की पहली झलक।

पाकिस्तान लम्बे अर्से से जम्मू और कश्मीर में अपने हाईब्रिड युद्धकर्म को अंजाम देने और उसको पूर्णता प्रदान करने के लिए सूचना कार्रवाइयां को एक टूल की तरह इस्तेमाल करता रहा है। बीसवीं सदी के दूसरे उत्तरार्द्ध में, पाकिस्तान शीत युद्ध के प्रभाव का लाभ उठा कर यह दावा करने में सफल रहा कि भारत एक “औपनिवेशिक ताकत” है, जो जम्मू कश्मीर पर गैर कानूनी रूप से शासन कर रहा है। वास्तविकता तो यह है कि इस तरह के कथानकों का वजूद 9/11 के बाद भी बरकरार रहा और आतंकवाद के बारे में अपने रुख में तेजी से बदलाव लाना उनके लचीलेपन को दर्शाता है।

पुलवामा के बाद के दिनों में पाकिस्तान की ओर से की गई कार्रवाइयों ने अब भारत को पहली बार इस बात का स्वाद चखाया है कि युद्ध काल में ये कार्रवाइयां कैसी दिख सकती हैं। हथियार की तरह इस्तेमाल की जा रही कम से कम चार विशिष्ट कथानक सामने आ चुके हैं।

वास्तविकता तो यह है कि इस तरह के कथानकों का वजूद 9/11 के बाद भी बरकरार रहा और आतंकवाद के बारे में अपने रुख में तेजी से बदलाव लाना उनके लचीलेपन को दर्शाता है।

पहला, भारत की सैन्य कार्रवाइयों के प्रभाव के बारे में गलत सूचनाएं फैलाना। पाकिस्तान क्षेत्र के अंदरूनी इलाके बालाकोट में भारत के हवाई हमलों के फौरन बाद, पाकिस्तान के सरकारी और अर्द्ध सरकारी सोशल मीडिया हैंडलर्स ने नियंत्रण रेखा के बेहद निकट बालाकोट में हुए हवाई हमलों के बारे में भारत की आधिकारिक घोषणा से पहले ही इसके बारे में बोलना शुरु कर दिया। साथ ही उन्होंने यह दावा भी किया कि मारे गए आतंकवादियों की संख्या के बारे में भारत का दावा झूठा है। पाकिस्तान इस बात का भी झूठा दावा कर रहा था कि 27 फरवरी को दोपहर बाद उसकी वायु सेना ने भारतीय वायु सेना के साथ झड़पों के बाद दो भारतीय विमानों को मार गिराया है।

दूसरा, युद्ध की शुरूआत को न्यायोचित ठहराने वाली घटना से जुड़ी कहानियों को पलट देना और भारतीय मुहिम को कमजोर करना। भारतीय पायलट के पकड़े जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद इमरान खान के भाषण का लहजा और अर्थ स्पष्ट थे: उनके भाषण में कहा गया कि तनाव बढ़ाने के लिए भारत जिम्मेदार है और हालात में सुधार लाने का दायित्व भारत का है। इस हकीकत के बावजूद कि भारत द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ आगे बढ़कर की गई कार्रवाई के जवाब में पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया था। भारत की भावी कार्रवाई की राह में संभावित राजनीतिक अड़चने खड़ी करते हुए इसके फौरन बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में #SayNoToWar का ट्रेंड चल रहा था।

तीसरा, भारत द्वारा बताए गए उद्देश्यों की वैधता पर सवाल उठाना और संभावित ढ़ोंग को हाईलाइट करना। भारत के हवाई हमलों के फौरन बाद, कर्नाटक की प्रदेश भाजपा इकाई के अध्यक्ष येदियुरप्पा ने दावा किया कि इन सैन्य कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप उनकी पार्टी कर्नाटक में चुनाव जीत जाएगी। हालांकि निश्चित तौर पर यह ठेठ भारतीय राजनीतिज्ञ की शेखी और आत्मप्रशंसा में कही गई बात थी, लेकिन पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों ने भारतीय सैन्य कार्रवाई की वैधता को कमजोर करने के लिए इस बयान से फायदा उठाया।

आखिर में, पहले से मौजूद राजनीतिक मतभेदों को और गहरा करना। सैन्य कार्रवाई करने का फैसला हमेशा राजनीतिक होता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक समाज में, सैन्य कार्रवाइयों की वैधता और प्रभाव के बारे में गहन असहमतियां होने की संभावना काफी ज्यादा है। भारतीय पायलट के पकड़े जाने के बाद भारतीय जनता की राय में हुआ अत्याधिक ध्रुवीकरण इसका प्रमाण है। इस बात की कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि पाकिस्तान शायद भारतीय जनता की राय को बांटने और सोशल मीडिया पर ध्रुवीकरण में उफान लेन का प्रयास कर सकता है।

भारत जैसे लोकतांत्रिक समाज में, सैन्य कार्रवाइयों की वैधता और प्रभाव के बारे में गहन असहमतियां होने की संभावना काफी ज्यादा है। भारतीय पायलट के पकड़े जाने के बाद भारतीय जनता की राय में हुआ अत्याधिक ध्रुवीकरण इसका प्रमाण है।

इन सबके बीच, यह जाहिर हो चुका था कि भारत की सरकारी मशीनरी खेदजनक रूप से निष्क्रिय थी। भारत सरकार को बालाकोट के हवाई हमलों के बाद के घटनाक्रम के बारे में आधिकारिक बयान जारी करने में सात घंटे लग गए। कश्मीर में झड़पे होने और एक भारतीय पायलट को पाकिस्तान द्वारा पकड़ लिए जाने की पुष्टि करने में उसे पांच घंटे लग गए। इतना ही नहीं, रायटर्स, अटलांटिक काउंसिल की डिजिटल फॉरेंसिक रिसर्च लेब्स तथा अल-जजीरा जैसे संस्थानों की रिपोर्ट में कहा गया कि बालाकोट में बहुत कम आतंकवादी मारे गए या बिल्कुल नहीं मारे गए, इन रिपोर्टों ने केवल भारत के आधिकारिक दावों को ही कमजोर किया है।

28 फरवरी को तीनों सेनाओं की ओर से की गई प्रेस ब्रिफिंग में पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान द्वारा भारतीय ठिकानों पर मिसाइलें दागे जाने का सबूत पेश करने के अलावा, भारत मोटे तौर पर अपनी आक्रामक या रक्षात्मक कार्रवाइयों के प्रभाव के बारे में भरोसेमंद और समयबद्ध सार्वजनिक प्रमाण देने में असमर्थ या अनिच्छुक था। भारत सरकार भी इस कथानक का कारगर जवाब देने में विफल रही कि तनाव कम करने के लिए आवश्यक है कि भारत भविष्य में सैन्य विकल्पों से परहेज करे।

हालांकि पिछले दिनों के घटनाक्रम दर्शा रहे हैं ये “कार्रवाइयां” बिना किसी केंद्रीय नियंत्रण के मोटे तौर पर ऑर्गैनिक और स्वतंत्र थीं, यह देखना आसान होगा कि पाकिस्तान इनसे क्या सबक लेता है।

हालांकि पिछले दिनों के घटनाक्रम दर्शा रहे हैं ये “कार्रवाइयां” बिना किसी केंद्रीय नियंत्रण के मोटे तौर पर ऑर्गैनिक और स्वतंत्र थीं, यह देखना आसान होगा कि पाकिस्तान इनसे क्या सबक लेता है।

दोनों बातों पर गौर किया जाए, तो सुव्यवस्थित रूप से की गई सूचना कार्रवाइयां राजनीतिक और सामरिक एजेंडे को निर्धारित करने के भारत की क्षमता को कमजोर कर सकती हैं, द्विपक्षीय रूप से पाकिस्तान के साथ, बहुपक्षीय रूप से अन्य देशों के साथ, और तो और घरेलू रूप से अपनी जनता के साथ। हालांकि पिछले दो दिनों के घटनाक्रम दर्शा रहे हैं ये “कार्रवाइयां” बिना किसी केंद्रीय नियंत्रण के मोटे तौर पर ऑर्गैनिक और स्वतंत्र थीं, यह देखना आसान होगा कि पाकिस्तान इनसे क्या सबक ले सकता है।

परम्परागत सैन्य ताकत के संदर्भ में, पाकिस्तान बेहद नुकसान की स्थिति में है। इसीलिए वह आतंकवाद जैसे असंयमित विकल्पों का लाभ उठाता है। जैसे-जैसे सूचना संचार प्रौद्योगिकियां तेजी से परम्परागत सार्वजनिक क्षेत्रों की जगह ले रहे हैं, वैसे-वैसे पाकिस्तान के सामने प्रभावी कार्रवाइयों को कारगर रूप से अंजाम देने के नए विकल्प प्रस्तुत हो रहे हैं। इन हथकंडों को कृत्रिम आसूचना यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी नई प्रौद्योगिकियां आसानी से पूर्णता प्रदान कर सकती हैं। मिसाल के तौर पर “जेनरेटिव एडवर्सियल नेटवर्क,” नामक मशीन लर्निंग टेक्नीक वास्तविक दिखने वाले फर्जी वीडियो या विश्वसनीय दिखने वाले “डीप फेक्स,” तैयार कर सकती है। युद्धकाल के दौरान भ्रम पैदा करने के लिए ऐसी तकनीको इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है। भारत अभी तक विकासशील देश है, कई तरह के सामाजिक भेद मौजूद है, जो केवल इस जोखिम को और ज्यादा बढ़ाने का काम ही करते हैं।

एक मुक्त समाज होने के नाते, भारत व्यापक सूचना प्रवाह को रोक नहीं सकता। जनता द्वारा तेजी से आधिकारिक सूचनाएं मांगे जाने की वजह से भारत 24/7 के समाचार चक्र को जवाब देने के लिए विवश भी हो गया है।

यदि सच में भारत सरकार हैरत में है, तो पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से सबक सीखने की जरूरत है। एक मुक्त समाज होने के नाते, भारत व्यापक सूचना प्रवाह को रोक नहीं सकता। जनता द्वारा तेजी से आधिकारिक सूचनाएं मांग जाने की वजह से भारत 24/7 के समाचार चक्र को जवाब देने के लिए विवश भी हो गया है। गलत सूचनाओं और झूठे प्रचार का प्रभावी ढंग से जवाब देने में नाकाम रहने से भारतीय जनता की भावनाओं, राजनीतिक गणनाओं और सैन्य उद्देश्यों के बीच अनिश्चित फीडबैक की व्यवस्था तैयार हो सकती है। जब भी भारत अपनी बदले की कार्रवाई की आधिकारिक स्तर पर जांच करता है तो अच्छा होगा कि वह इस बात की तय तक पहुंचे कि सूचना कार्रवाइयां किस तरह भविष्य में उसके सामरिक उद्देश्यों को कमजोर कर सकती हैं।

अल्पकालिक उपायों से परे, भारत के लिए अब समय आ गया है कि वह युद्ध से संबंधित अपनी धारणाओं में इस गणना को स्वीकार करे — कि दिमाग पर काबू पाना भी सैन्य कार्रवाइयों में शुमार है। “युद्ध का भ्रम” जिसे कभी सेना के पास मौजूद सीमित कार्रवाई योग्य सूचना के तौर पर देखा जाता था, आज बहुत सहज रूप से कहा जा सकता है कि उसका आशय युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर सूचना (भ्रामक) का प्रसार है। भारत को भविष्य में अपने समाज, सरकार और सेना को इसका जवाब देने यहां तक कि बदले की सूचना कार्रवाइयों को अंजाम देने के लिए आवश्यक रूप से तैयार करना होगा।

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