Published on Nov 30, 2019 Updated 0 Hours ago
बदलते भारत की वजह से बदलती रहेगी कूटनीति

ऐसा दुर्लभ ही होता है कि कोई भारतीय विदेश मंत्री ऐसा भाषण दे, जो बौद्धिक रूप से प्रेरक होने के साथ ही हमें परंपराओं से परे सोचने पर विवश कर दे. पूर्व में हमारे कई विदेश मंत्री अच्छे वक्ता रहे हैं, लेकिन उनके बात अधिकतर भाषण परंपरावादी ही रहे हैं। विदेश नीति – सामान्य तौर पर हमारे प्रधानमंत्रियों का अधिकार क्षेत्र रहा है और इस पर उन्होंने श्रेष्ठ भाषण भी दिए हैं, लेकिन इनमें शायद ही कोई वैचारिक रूप से इतना स्पष्ट और राजनीतिक रूप से इतना निर्भीक होगा, जैसा भाषण विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने चौथे रामनाथ गोयनका लेक्चर में दिया. कुछ दिन पहले आयोजित इस कार्यक्रम का विषय था ‘ बियॉण्ड द डेल्ही डोग्मा : इंडियन फॉरेन पॉलिसी इन ए चेंजिंग वर्ल्ड ‘.

जिस देश की महत्वाकांक्षा दुनिया में एक प्रमुख शक्ति बनने की हो, वह अपनी अनिर्धारित सीमाओं के साथ आगे नहीं चल सकता. साथ ही दुनिया के बदलते हालात में वह अड़ियल भी नहीं बना रह सकता.

उन्होंने यहां पर कहा कि ‘ भारत के आगे बढ़ने में रुकावट दुनिया की बाधाएं नहीं, बल्कि हमारी ही नीतियां हैं. ‘उनके भाषण ने भारत की विदेश नीति का एक तरह से संवेदनहीन ऑडिट कर दिया. जयशंकर ने कहा कि भारत आज बदलाव के सिरे पर और अधिक आत्मविश्वास के साथ खड़ा है. उन्होंने तर्क दिया कि जिस देश की महत्वाकांक्षा दुनिया में एक प्रमुख शक्ति बनने की हो, वह अपनी अनिर्धारित सीमाओं के साथ आगे नहीं चल सकता. साथ ही दुनिया के बदलते हालात में वह अड़ियल भी नहीं बना रह सकता. कई मायनों में जयशंकर का यह भाषण एक केंद्रीय दस्तावेज़ बन गया है, जिस पर आने वाले समय में भारत की विदेश नीति को आंका जाएगा. भारतीय विदेश नीति के विभिन्न चरणों को लेकर उनकी संकल्पना और नीति निर्धारकों की आलोचना राजनीति के गलियारों को प्रतिध्वनित करती रहेगी. यह भारतीय विदेश नीति की अनुकूलता के बारे में दुनिया को बताने वाले कूटनीतिक समुदाय और भारतीय हितों की तलाश के लिए एक गंभीर सुधार की तरह है. जब वह कहते हैं कि ‘ सत्तर सालों के बाद भी भारत की विदेश नीति एक मिलीजुली तस्वीर पेश करती है, तो वह इस तथ्य को इंगित करते हैं कि विदेश नीति की अनुकूलता को बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि विदेश नीति की पूर्व में ऐसी आलोचना नहीं की गईं, बल्कि तथ्य यह है कि इस बार यह भीतर से हुई है और ऐसे व्यक्ति ने की है जो खुद कई दशकों तक भारतीय विदेश नीति बनाने वाले प्रतिष्ठान का हिस्सा रहा है और अब इसके शिखर पर है.

बदलते वैश्विक वातावरण में जयशंकर के आकलन का विदेश नीति पर असर पहले से ही दिख रहा है. लेकिन, जब विदेश मंत्री भारतीय कूटनीति की चुनौतियों की निर्भीकता से चीरफाड़ करते हैं तो भी उनके खुद के तर्कों से ऐसा लगता है कि इनके पूरी तरह अनुपालन में कहीं न कहीं विरासत में मिली हठधर्मिता आड़े आती है. एक अधिक वास्तविक नीति की जरूरत के बारे में जयशंकर के आकलन के बाद यह हुआ कि अब हम विभिन्न देशों के साथ अनुबंधों में शामिल हैं, ताकि अधिकतम विकल्प उपलब्ध हों. यह सही है कि वैश्विक स्तर पर अत्यधिक अस्थिरता के इस दौर में सभी देश कूटनीतिक संकीर्णता में लगे हैं. यूरोपियन यूनियन तक एक भू – राजनीति शक्ति के तौर पर उभरना चाहता है और मुद्दा आधारित गठबंधनों का इच्छुक है. यह बहुत कुछ भारतीय विदेश नीति की ‘ मुद्दा आधारित कूटनीति ‘ की ही तरह है.

ऐसा दुर्लभ ही होता है कि कोई भारतीय विदेश मंत्री ऐसा भाषण दे, जो बौद्धिक रूप से प्रेरक होने के साथ ही हमें परंपराओं से परे सोचने पर विवश कर दे. पूर्व में हमारे कई विदेश मंत्री अच्छे वक्ता रहे हैं, लेकिन उनके बात अधिकतर भाषण परंपरावादी ही रहे हैं। विदेश नीति – सामान्य तौर पर हमारे प्रधानमंत्रियों का अधिकार क्षेत्र रहा है और इस पर उन्होंने श्रेष्ठ भाषण भी दिए हैं, लेकिन इनमें शायद ही कोई वैचारिक रूप से इतना स्पष्ट और राजनीतिक रूप से इतना निर्भीक होगा, जैसा भाषण विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने चौथे रामनाथ गोयनका लेक्चर में दिया. कुछ दिन पहले आयोजित इस कार्यक्रम का विषय था ‘ बियॉण्ड द डेल्ही डोग्मा : इंडियन फॉरेन पॉलिसी इन ए चेंजिंग वर्ल्ड ‘.

जिस देश की महत्वाकांक्षा दुनिया में एक प्रमुख शक्ति बनने की हो, वह अपनी अनिर्धारित सीमाओं के साथ आगे नहीं चल सकता. साथ ही दुनिया के बदलते हालात में वह अड़ियल भी नहीं बना रह सकता.

उन्होंने यहां पर कहा कि ‘ भारत के आगे बढ़ने में रुकावट दुनिया की बाधाएं नहीं, बल्कि हमारी ही नीतियां हैं. ‘उनके भाषण ने भारत की विदेश नीति का एक तरह से संवेदनहीन ऑडिट कर दिया. जयशंकर ने कहा कि भारत आज बदलाव के सिरे पर और अधिक आत्मविश्वास के साथ खड़ा है. उन्होंने तर्क दिया कि जिस देश की महत्वाकांक्षा दुनिया में एक प्रमुख शक्ति बनने की हो, वह अपनी अनिर्धारित सीमाओं के साथ आगे नहीं चल सकता. साथ ही दुनिया के बदलते हालात में वह अड़ियल भी नहीं बना रह सकता. कई मायनों में जयशंकर का यह भाषण एक केंद्रीय दस्तावेज़ बन गया है, जिस पर आने वाले समय में भारत की विदेश नीति को आंका जाएगा. भारतीय विदेश नीति के विभिन्न चरणों को लेकर उनकी संकल्पना और नीति निर्धारकों की आलोचना राजनीति के गलियारों को प्रतिध्वनित करती रहेगी. यह भारतीय विदेश नीति की अनुकूलता के बारे में दुनिया को बताने वाले कूटनीतिक समुदाय और भारतीय हितों की तलाश के लिए एक गंभीर सुधार की तरह है. जब वह कहते हैं कि ‘ सत्तर सालों के बाद भी भारत की विदेश नीति एक मिलीजुली तस्वीर पेश करती है, तो वह इस तथ्य को इंगित करते हैं कि विदेश नीति की अनुकूलता को बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि विदेश नीति की पूर्व में ऐसी आलोचना नहीं की गईं, बल्कि तथ्य यह है कि इस बार यह भीतर से हुई है और ऐसे व्यक्ति ने की है जो खुद कई दशकों तक भारतीय विदेश नीति बनाने वाले प्रतिष्ठान का हिस्सा रहा है और अब इसके शिखर पर है.

बदलते वैश्विक वातावरण में जयशंकर के आकलन का विदेश नीति पर असर पहले से ही दिख रहा है. लेकिन, जब विदेश मंत्री भारतीय कूटनीति की चुनौतियों की निर्भीकता से चीरफाड़ करते हैं तो भी उनके खुद के तर्कों से ऐसा लगता है कि इनके पूरी तरह अनुपालन में कहीं न कहीं विरासत में मिली हठधर्मिता आड़े आती है. एक अधिक वास्तविक नीति की जरूरत के बारे में जयशंकर के आकलन के बाद यह हुआ कि अब हम विभिन्न देशों के साथ अनुबंधों में शामिल हैं, ताकि अधिकतम विकल्प उपलब्ध हों. यह सही है कि वैश्विक स्तर पर अत्यधिक अस्थिरता के इस दौर में सभी देश कूटनीतिक संकीर्णता में लगे हैं. यूरोपियन यूनियन तक एक भू – राजनीति शक्ति के तौर पर उभरना चाहता है और मुद्दा आधारित गठबंधनों का इच्छुक है. यह बहुत कुछ भारतीय विदेश नीति की ‘ मुद्दा आधारित कूटनीति ‘ की ही तरह है.

देश में मध्य और दक्षिणपंथी उभार बढ़ रहा है. इसलिए भारत की विदेश नीति में बदलाव आता रहेगा

जयशंकर ने कहा कि दुनिया के रुख को सही से भांपना बहुत गंभीर विषय है, क्योंकि ‘ हम अपनी तात्कालिक स्थिति को सही भी रखें पर एक बड़े परिदृश्य को समझने में गलती महंगी पड़ सकती है. ‘ . इस सावधानी को इंगित करने के अलावा जयशंकर ने उद्देश्य की गंभीरता की ओर भी इशारा किया, जिसकी अब तक भारतीय घोषणाओं में कमी थी. वह पहले की नीतियों पर सवाल उठा सकते हैं, क्योंकि देश में मध्य और दक्षिणपंथी उभार बढ़ रहा है. इसलिए भारत की विदेश नीति में बदलाव आता रहेगा और इस वजह से नहीं आएगा कि वैश्विक वातावरण बदल रहा है, बल्कि इसलिए आएगा कि भारत बदल रहा है. इस बदलते भारत ने ही यह संभव बनाया कि जयशंकर ऐसा भाषण दे सके. यह बदलता भारत ही हमारे नीति निर्धारकों को अपने सिद्धांतों को बदलने पर मजबूर करेगा. हालांकि, परंपरावादी जयशंकर के भाषण में आलोचना के लिए बहुत कुछ खोज सकते हैं, लेकिन भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं और इसकी पूर्व की सफलताओं और असफलताओं पर एक स्वस्थ व ईमानदार बहस की लंबे समय से ज़रूरत थी. कभी नहीं से देरी भली.


यह लेख मूलरूप से दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका हैं.

देश में मध्य और दक्षिणपंथी उभार बढ़ रहा है. इसलिए भारत की विदेश नीति में बदलाव आता रहेगा

जयशंकर ने कहा कि दुनिया के रुख को सही से भांपना बहुत गंभीर विषय है, क्योंकि ‘ हम अपनी तात्कालिक स्थिति को सही भी रखें पर एक बड़े परिदृश्य को समझने में गलती महंगी पड़ सकती है. ‘ . इस सावधानी को इंगित करने के अलावा जयशंकर ने उद्देश्य की गंभीरता की ओर भी इशारा किया, जिसकी अब तक भारतीय घोषणाओं में कमी थी. वह पहले की नीतियों पर सवाल उठा सकते हैं, क्योंकि देश में मध्य और दक्षिणपंथी उभार बढ़ रहा है. इसलिए भारत की विदेश नीति में बदलाव आता रहेगा और इस वजह से नहीं आएगा कि वैश्विक वातावरण बदल रहा है, बल्कि इसलिए आएगा कि भारत बदल रहा है. इस बदलते भारत ने ही यह संभव बनाया कि जयशंकर ऐसा भाषण दे सके. यह बदलता भारत ही हमारे नीति निर्धारकों को अपने सिद्धांतों को बदलने पर मजबूर करेगा. हालांकि, परंपरावादी जयशंकर के भाषण में आलोचना के लिए बहुत कुछ खोज सकते हैं, लेकिन भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं और इसकी पूर्व की सफलताओं और असफलताओं पर एक स्वस्थ व ईमानदार बहस की लंबे समय से ज़रूरत थी. कभी नहीं से देरी भली.


यह लेख मूलरूप से दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका हैं.

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