Author : Hari Bansh Jha

Published on May 09, 2017 Updated 0 Hours ago

क्या यह बात सही है कि नेपाल की वर्तमान सरकार सरकार मधेसियों, थारू और अन्य जनजातीय गुटों की मांगों को गंभीरता से नहीं ले रही है?

नेपाल में स्थानीय चुनाव कराने की तैयारियों के बीच तनाव बरकरार

बीरेंद्र इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, काठमांडू, नेपाल 

नेपाल में, अगले महीने होने जा रहे स्थानीय स्तर के चुनावों को लेकर राजनीतिक वातावरण तनावपूर्ण बना हुआ है। मधेसी, थारू और अन्य जनजाति (स्वदेशी) गुट — जो देश की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा हैं, ने इन चुनावों में रुकावट डालने का संकल्प लिया है। इसका कारण यह है कि ये चुनाव 20 सितम्बर, 2015 को घोषित नए नेपाली संविधान को वैधता प्रदान करने के इरादे से कराए जा रहे हैं, जिसमें अब तक इन गुटों की चिंताओं को दूर नहीं किया गया है।

स्थानीय चुनावों के बहिष्कार के प्रयासों के तहत मधेस, थारू और लिम्बुन (पर्वतीय)पट्टियों में कई तरह के प्रदर्शन कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं। मतदान का दिन — 14 मई, नजदीक आने पर अनिश्चितकालीन हड़ताल भी की जाएगी। ऐसी स्थिति में, जनता की इच्छा के विपरीत मधेस पर चुनाव थोपने का किसी भी तरह का प्रयास किए जाने से चुनाव वाले दिन से पहले नहीं, तो चुनाव वाले दिन तो निश्चित तौर पर संघर्ष होना बिल्कुल तय है।

जैसा कि सभी इस बात से अवगत हैं कि संविधान, मधेसियों की भागीदारी के बिना तैयार किया गया है। इसके अलावा, प्रांतीय सीमाओं को दोबारा रेखांकित करने, जनसंख्या आधारित चुनाव, राज्य व्यवस्थाओं में समानुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित उनकी मांगें और नागरिकता से संबंधित मामलों का अब तक कोई हल नहीं निकल सका है। पिछले साल संविधान में संशोधन किया गया था, लेकिन वह महज ढकोसला भर था।

इसके बाद, मधेस का मामला सुलझाने के लिए पुष्प कमल दहाल के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ने दूसरा संशोधन विधेयक संसद में प्रस्तुत किया। नए संशोधन विधेयक में प्रांतीय सीमाओं को नए सिरे से रेखांकित करने के प्रयासों के तहत तराई क्षेत्र में मदहेशियों के लिए दूसरा प्रांत बनाने का प्रावधान किया गया। इस संशोधन विधेयक में मधेस के उन विवादित जिलों का मामला सुलझाने के लिए एक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है, जिन्हें पर्वतीय प्रांतों के साथ इकट्ठा कर दिया गया है और अब तक मधेस प्रांत के साथ शामिल नहीं किया गया है।

लेकिन आंदोलनकारी मधेसी गुटों को भरोसा न होने के कारण नया संशोधन विधेयक मंजूर नहीं है। मधेसियों को इस बात पर यकीन नहीं है कि आयोग उनके साथ किसी तरह का इंसाफ कर सकता है। वर्ष 2008 में, नेपाल सरकार ने मधेस केंद्रित राजनीतिक दलों के साथ विविधत समझौता किया था कि वह पूर्व की मेची नदी से लेकर पश्चिम की महाकाली नदी तक एक मधेस प्रांत प्रदान करेगी, लेकिन बाद वह इस समझौते से मुकर गई और मधेसी खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे।

इतना ही नहीं, संशोधन विधेयक में मधेसियों की मूलभूत मांगों को पूरा करने की दिशा में भी कुछ खास नहीं किया गया था। और तो और स्थानीय स्तर के चुनाव में भी, मधेस को केवल 35 प्रतिशत गांव परिषदें/नगर पालिकाएं दी गईं, जबकि इस क्षेत्र में नेपाल की 28 मिलियन आबादी का आधे से ज्यादा हिस्सा बसता है। सरकार को महसूस हुआ कि दूसरा संशोधन विधेयक आंदोलनकारी गुटों को संतुष्ट करने में नाकाम रहेगा, इसलिए बाद में उसकी जगह नया संशोधन विधेयक पेश किया गया। लेकिन नए विधेयक में भी प्रांतीय सीमाओें का नए सिरे से रेखांकन किए जाने की मांग को नजरअंदाज किया गया, जिससे मधेसी और पर्वतीय जनजाति गुट और ज्यादा नाराज हो गए।

सरकार जिस तरीके से स्थानीय स्तर के चुनावों को स्वीकृति दिलाना चाहती है, उससे मधेसियों, थारू और अन्य जनजाति गुटों को 59 सदस्यों वाली नेशनल असेम्बली और देश के राष्ट्रपति पद के चुनावों में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकेगा । इसके अलावा, मधेस क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों का भी अभाव रहेगा। इसलिए मधेस केंद्रित राजनीतिक दल देश में संसदीय, प्रांतीय और स्थानीय स्तर के चुनाव कराने से पहले संविधान में संशोधन कराना चाहते हैं।

वर्ष 2015-16 में, संविधान के विरोध में मधेसी प्रदर्शनों में 60 लोग मारे गए थे और हजारों घायल हो गए थे। हाल ही में, इस साल 6 मार्च में, पुलिस ने स्थानीय चुनावों के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे पांच और मधेसी कार्यकर्ताओं को भारत-नेपाल सीमा के समीप तराई के एक छोटे से कस्बे -राजबीरगंज में गोलियों से छलनी कर दिया।

दुर्भाग्यवश, सरकार मधेसियों, थारू और अन्य जनजाति गुटों की मांगों को गंभीरता से नहीं ले रही है। नेपाल के कानून, न्याय और संसदीय कार्य मंत्री अजय शंकर नायक ने स्थानीय स्तर के आगामी चुनावों के संबंध में मधेस-केंद्रित राजनीतिक दलों के मौजूदा विरोध प्रदर्शनोें को महज ‘ड्रामा’ करार दिया गया है।

लेकिन उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बिमलेंद्र निधि ने महत्वपूर्ण खुलासा किया है कि स्थानीय स्तर के चुनाव कराने के लिए आवश्यक सुरक्षा इंतजाम और जरूरी तैयारियां पर्याप्त नहीं हैं। सरकार में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी — नेपाली कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाले निधि का मानना है कि चुनावों के सफल आयोजन के लिए बातचीत के जरिए मधेसी मामले का राजनीतिक समाधान किया जाना आवश्यक है।

जून 2015 में, संविधान निर्माण की तैयारियां शुरू होने के बाद से प्रमुख राजनीतिक दल — मधेसी, थारू और अन्य जनजाति गुटों को संविधान निर्माण के साथ ही साथ संविधान संशोधन की प्रक्रिया से भी बाहर रखते हुए एक के बाद एक गलतियां करते जा रहे हैं। और तो और, इस बार भी सरकार ने मधेस-केंद्रित राजनीतिक दलों को विश्वास में लिए बिना ही एकपक्षीय रूप से संसद में संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत कर दिया।

इसलिए, मधेस और पवर्तीय इलाकों के कुछ हिस्सों में ताजा संघर्ष टल पाना मुमकिन नहीं दिख रहा है, क्योंकि सरकार और कुछ अन्य राजनीतिक दल चुनाव कराने के पक्ष में है; जबकि मधेस केंद्रित दल और पर्वतीय जनजाति गुट इनमें रुकावटे डालने के मूड में है। स्थानीय चुनावों के मद्देनजर ऐसी स्थिति राष्ट्र के दीर्घकालिक हित में नहीं है, क्योंकि यह पहले से नस्ली आधार पर बंटे देश को और ज्यादा बांट देगी। बेहतर होगा कि संसदीय, प्रांतीय या स्थानीय स्तर के चुनाव कराने से पहले आंदोलनकारी गुटों को संतुष्ट करने के लिए संविधान को संशोधित करते हुए उसे व्यापक बनाया जाए।

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