Published on Nov 18, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत के ओशन्स इनिशिएटिव को इस बात से काफ़ी मज़बूती मिलती है कि उसके अंदर राजनीतिक, सुरक्षा और समुद्री क्षेत्र में सहयोग का एक्शन प्लान समाहित है. इससे फ़ायदा ये होता है कि भारत और आसियान के बीच आपसी समन्वय से संबंध ऐसे विकसित होने की संभावनाएं बनती हैं, जिनसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभर रही नई भौगोलिक सामरिक चुनौतियों का सामना किया जा सके.

भारत और आसियान के बीच सामरिक सहयोग: हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण

33वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान, मंच की पृष्ठभूमि बदलने कार्यकर्ता. नवंबर 2018, सिंगापुर.

कॉपीराइट-ओरे हुईयिंग/गेटी

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भौगोलिक सामरिक स्थिरता का लक्ष्य, हाल के वर्षों में भारत और आसियान देशों के बीच सामरिक सहयोग के तमाम आयामों का केंद्र बिंदु बन गया है. इस संदर्भ में भारत के इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव (IPOI) को भारत और आसियान देशों के संबंधों में मील का एक पत्थर कहा जा रहा है. जिसमें दोनों पक्षों के बीच एक मज़बूत संवाद को नई रफ़्तार देने की संभावना दिखती है. भारत ने इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव का प्रस्ताव नवंबर 2019 में बैंकॉक में हुई ईस्ट एशिया समिट में रखा था. माना जा रहा है कि भारत के इस प्रस्ताव से आसियान और भारत के बीच राजनीतिक-आर्थिक और सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में द्विपक्षीय हितों पर आधारित एक ऐसे संवाद की संभावना बढ़ गई है. इसमें सहयोग के साथ-साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में सुरक्षा, सामुद्रिक मार्गों की रक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सकेगा. सितंबर 2020 में भारत और आसियान देशों के बीच मंत्रिस्तरीय बैठक में एक नए प्लान ऑफ़ एक्शन (2021-2025) पर सहमति बनी है. इससे, IPOI के तहत भारत और आसियान देशों के बीच जिस दिशा में बढ़ने पर सहमति बनी है, उसे और गति मिलेगी. भारत और आसियान के सदस्य देशों के बीच नज़दीगी बढ़ेगी. दोनों पक्ष क़ुदरती साझीदार और सामरिक सहयोग की दिशा में सुनियोजित तरीक़े से आगे बढ़ सकेंगे.

भारत ने इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव का प्रस्ताव नवंबर 2019 में बैंकॉक में हुई ईस्ट एशिया समिट में रखा था. माना जा रहा है कि भारत के इस प्रस्ताव से आसियान और भारत के बीच राजनीतिक-आर्थिक और सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में द्विपक्षीय हितों पर आधारित एक ऐसे संवाद की संभावना बढ़ गई है

यहां तर्क ये है कि भारत और आसियान के बीच जिस व्यापक प्लान ऑफ़ एक्शन (2021-2025) पर सहमति बनी है. वो भारत के IPOI पहल के सामरिक ढांचे से मेल खाता है. और दोनों आपस में मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सामरिक रूप से बेहद संवेदनशील मार्ग में अर्थपूर्ण, प्रभावी और ठोस रूप से संतुलन बनाने का काम करेगा. भारत के इंडो-पैसिफ़िक ओशन्स इनिशिएटिव के सामरिक तत्वों और उसके महत्वाकांक्षी न्यू प्लान ऑफ़ एक्शन के बीच का संबंध IPOI को बेहद ताक़तवर बना देता है. और ये दोनों आपस में मिलकर एक मज़बूत सामरिक रणनीति के रूप में सामने आते हैं, जिनमें वो ताक़त और वो क्षमता है कि वो सामुद्रिक मार्गों की सुरक्षा को सुनिश्चि कर सकें. साझा तरक़्क़ी को बढ़ावा दे सकें. और हर देश की भौगोलिक सीमाओं को अखंड रखते हुए, पूरे क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित व्यवस्था को सुनिश्चित कर सकें. अब जबकि भारत और आसियान देश इस बात को मान रहे हैं कि आपसी संपर्क बढ़ाने सामरिक, आर्थिक और बहुलता पर आधारित सहयोग बढ़ाने की सख़्त ज़रूरत है. जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थायी बुनियादी ढांचे का विकास हो सके. तो, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए IPOI के तहत जो परिकल्पना की गई है, उससे व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अति आवश्यक शक्ति संतुलन और भौगोलिक सामरिक समानता प्रदान करने में मदद मिलेगी.

हिंद-प्रशांत को लेकर पीएम मोदी की सोच

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत का विज़न क्या है, इसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2018 में शांग्री ला संवाद के दौरान बिल्कुल स्पष्ट तरीक़े से परिभाषित किया था. इसमें पीएम मोदी ने कहा था कि भारत का जो वैचारिक भौगोलिक क्षेत्र है, वो अफ्रीका से लेकर अमेरिका महाद्वीप तक जाता है. जिसमें हिंद और प्रशांत महासागर, दोनों आ जाते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त, समावेशी और खुली समुद्री व्यापार व्यवस्था की भी हिमायत की थी. इसके बाद वर्ष 2019 में बैंकॉक में भारत के ओशन्स इनिशिएटिव (IPOI) की परिकल्पना को प्रस्तुत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने और ज़ोर देकर ये कहा था कि भारत और आसियान देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग की ज़रूरत है. मोदी ने कहा था कि,

हमें समझना होगा कि इस क्षेत्र के सभी देशों को समुद्रों की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करने की ज़रूरत है. जिससे सबके हित सुरक्षित रह सकें. इसके लिए मैरीटाइम सिक्योरिटी को बढ़ाने, समुद्री संसाधनों का संरक्षण करने, क्षमताओं का विकास करने और संसाधनों का संतुलित रूप से इस्तेमाल करने की ज़रूरत है. साथ ही साथ आपदा के जोखिम को घटाने, विज्ञान, तकनीक और अकादेमिक सहयोग को बढ़ाने, मुक्त, निष्पक्ष और आपसी लाभ के व्यापार और समुद्री परिवहन को बढ़ावा देने की ज़रूरत है.

इसके साथ-साथ भारत का प्लान ऑफ़ एक्शन (2021-2025) भारत और आसियान देशों को इस बात का अवसर देता है कि वो परस्पर साझा बातों की संभावनाएं तलाशें. आपसी चिंताओं की प्राथमिकता तय करें और ऐसी व्यवस्था का विकास करें, जिससे इस क्षेत्र में स्थायी शांति, सुरक्षा और साझा समृद्धि का विकास हो सके. क्योंकि, हिंद-प्रशांत क्षेत्र सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री क्षेत्र के पारस्परिक विवाद की पारंपरिक पेचीदगियों का ध्यान रखते हुए और कोविड-19 के बाद के दौर में तेज़ी से बढ़ती भौगोलिक सामरिक दरारों को दृष्टिगत करते हुए, इस एक्शन प्लान के तहत आपसी हित के तमाम विषयों पर सहयोग बढ़ाने का प्रस्ताव है. जिससे कि व्यापार को बढ़ाया जा सके. भारत और आसियान देशों के बीच आर्थिक सहयोग को नई रफ़्तार दी जा सके. दोनों पक्षों के बीच निवेश, ऊर्जा सहयोग, सूचना और संचार तकनीक के सहयोग, संपर्क बढ़ाने और लोगों के बीच परस्पर संवाद स्थापित करने की भी इसके अंदर व्यवस्था है. इस प्लान ऑफ़ एक्शन में इस बात पर ख़ास तौर से ज़ोर दिया गया है कि भारत और आसियान को समुद्री सुरक्षा, रक्षा, ख़ुफिया जानकारियां साझा करने, आतंकवाद का मुक़ाबला करने, साइबर सुरक्षा के लिए क्षमताओं का विकास करने पर ज़ोर देना चाहिए. और इस संबंध में क्षमताओं का विकास करना चाहिए. भारत और आसियान देशों के संबंधों में सुरक्षा के आयाम पर ज़ोर देकर, और रक्षा व ख़ुफ़िया जानकारियां साझा करने के लिए क्षमताओं के निर्माण का ज़िक्र करने से भारत के ओशन्स इनिशिएटिव की पहल को और मज़बूती मिलती है. क्योंकि, इससे भारत और आसियान देशों के बीच संस्थागत संपर्क को बढ़ावा मिल सकेगा. और भारत को इस क्षेत्र में अपनी ताक़त का दायरा बढ़ाने का भी मौक़ा मिल सकेगा.

चाइना सी में समुद्री विवाद

आसियान के कई देशों, जैसे कि ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और वियतनाम इस समय चीन के साथ साउथ चाइना सी में समुद्री सीमा के विवाद में उलझे हुए हैं. वहीं, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन और भारत के बीच ज़बरदस्त तनातनी है. ऐसे में भारत और आसियान देशों के बीच सामरिक सहयोग को IPOI के माध्यम से बढ़ाना और भी ज़रूरी हो गया है. क्योंकि, इससे भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बेहद संवेदनशील समुद्री मार्ग में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. भारत के ओशन्स इनिशिएटिव में जिस राजनीतिक, सुरक्षा और समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने की बात है, उसे भारत और आसियान देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के एक्शन प्लान से और मज़बूती मिलती है. क्योंकि इससे भारत और आसियान को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तेज़ी से बदल रही भौगोलिक सामरिक स्थिति से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में मदद मिलने की संभावना है. इसके अलावा, आसियान और भारत के बीच सहयोग बढ़ाने का प्लान ऑफ़ एक्शन (2021-2025) भारत और आसियान के सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय आयामों के तहत सहयोग को व्यापक रूप से बढ़ाने का काम करेगा. इसमें फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन, एक दूसरे के ऊपर से हवाई उड़ानों के स्तर पर सहयोग बढ़ाने में मदद मिलेगी. जिससे व्यापार एवं वाणिज्य को अबाध गति से संचालित किया जा सकेगा. इसके अलावा आसियान और भारत के बीच इस सहयोग से समुद्री सीमा के मौजूदा विवादों को हल करने में भी मदद मिलेगी. फिर इन विवादों को अंतरराष्ट्रीय नियम क़ायदों और संयुक्त राष्ट्र के 1982 के कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ़ द सीज़ (UNCLOS) के तहत सुलझाने का रास्ता भी खुलेगा. क्योंकि, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री क्षेत्र के विवाद के समाधान को लेकर इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों का झुकाव भारत की ओर है. ऐसे में IPOI में निहित जो संस्थागत विचार हैं, उन्हें और मज़बूती मिलेगी. इसी तरह से, सिंगापुर, थाईलैंड और म्यांमार ने बार-बार इस बात की इच्छा ज़ाहिर की है कि वो भारत जैसे बड़े बाज़ार के प्रति अलग तरह का लगाव रखते हैं. क्योंकि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था बेहद मज़बूत है. और इससे उन्हें भारत के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाने और प्लान ऑफ़ एक्शन की परिकल्पना के अनुरुप, आपसी सामाजिक सांस्कृतिक संवाद बढ़ाने में मदद मिलेगी

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री क्षेत्र के पारस्परिक विवाद की पारंपरिक पेचीदगियों का ध्यान रखते हुए और कोविड-19 के बाद के दौर में तेज़ी से बढ़ती भौगोलिक सामरिक दरारों को दृष्टिगत करते हुए, इस एक्शन प्लान के तहत आपसी हित के तमाम विषयों पर सहयोग बढ़ाने का प्रस्ताव है. जिससे कि व्यापार को बढ़ाया जा सके. 

हालांकि, मलेशिया और कंबोडिया आम तौर पर चीन की ओर अधिक झुकाव रखते हैं. लेकिन, चीन की दादागीरी वाली नीतियों और नीयत को देखते हुए ये दोनों देश भी ये मानते हैं कि चीन का मुक़ाबला करने में भारत की शक्ति काफ़ी काम आ सकती है. इसके अलावा भारत से सहयोग बढ़ाकर इन देशों को अपना व्यापार और वाणिज्य विकसित करने के लिए भारत के विशाल बाज़ार तक पहुंच बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. इसके साथ-साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के बीच जो मौजूदा त्रिपक्षीय संवाद हो रहा है, वो भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत के विज़न और इनिशिएटिव के लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार होगा. इससे भी भारत को मुक्त, सुरक्षित एवं स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की परिकल्पना को साकार करने में मदद मिलेगी. भारत की ऐसी सहयोगात्मत कूटनीति का एक उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला, जब भारत ने वियतनाम को अपने इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव (IPOI) का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया. ये इस बात की मिसाल है कि भारत और वियतनाम IPOI व आसियान देशों के हिंद-प्रशांत क्षेत्र संबंधी दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए आपसी सहयोग के लिए आतुर हैं. क्योंकि इससे दोनों देशों को इस क्षेत्र में सबके लिए सुरक्षा, समृद्धि और समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी. हाल में हुई ये सभी घटनाएं इशारा करती हैं कि IPOI के तहत निर्धारित लक्ष्यों से एक साथ कितने मक़सद साधने की संभावनाएं बनती हैं. भारत, इस क्षेत्र के देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के समुद्री और ज़मीनी अधिकार जताने के दावों को चुनौती देने की स्थिति में पहुंच सकता है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री क्षेत्र के विवाद के समाधान को लेकर इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों का झुकाव भारत की ओर है. ऐसे में IPOI में निहित जो संस्थागत विचार हैं, उन्हें और मज़बूती मिलेगी. इसी तरह से, सिंगापुर, थाईलैंड और म्यांमार ने बार-बार इस बात की इच्छा ज़ाहिर की है कि वो भारत जैसे बड़े बाज़ार के प्रति अलग तरह का लगाव रखते हैं.

IPOI के तहत भारत ने आसियान देशों के साथ सहयोग को केंद्र में रखकर जिस लक्ष्य को प्राप्त करने की परिकल्पना की है, वो उसकी एक्ट ईस्ट की कूटनीति से बहुत मेल खाता है. इसके साथ-साथ भारत का ये इनिशिएटिव, इस क्षेत्र में भारत के अन्य भौगोलिक सामरिक भूमिकाओं जैसे कि ईस्ट एशिया समिट और क्वॉड सहयोग से भी मेल खाता है. QUAD के तहत भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ सामरिक सहयोग बढ़ा रहा है. जिससे कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री मार्गों की सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके. ऐसा करना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र से वो प्रमुख समुद्री व्यापार का मार्ग गुज़रता है, जो हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 सितंबर 2020 को संयुक्त राष्ट्र महासभा वे 75वें अधिवेशन में अपने संबोधन में कहा था कि, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के समावेशी विकास के लिए इस क्षेत्र की सुरक्षा बढ़ाकर, यहां स्थिरता प्रदान करने के लिए कार्य करने को कटिबद्ध है. पीएम मोदी द्वारा जताई गई ये प्रतिबद्धता, आसियान देशों के साथ भारत की बढ़ते सामरिक साझेदारी और बहुआयामी सहयोग के विज़न से बिल्कुल सटीक मेल खाती है.

IPOI के तहत भारत ने आसियान देशों के साथ सहयोग को केंद्र में रखकर जिस लक्ष्य को प्राप्त करने की परिकल्पना की है, वो उसकी एक्ट ईस्ट की कूटनीति से बहुत मेल खाता है. इसके साथ-साथ भारत का ये इनिशिएटिव, इस क्षेत्र में भारत के अन्य भौगोलिक सामरिक भूमिकाओं जैसे कि ईस्ट एशिया समिट और क्वॉड सहयोग से भी मेल खाता है. 

भारत के इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव (IPOI) और आसियान देशों के साथ सहयोग के प्लान ऑफ़ एक्शन के आपसी समन्वय की मदद से भारत, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जिस तरह अपनी कूटनीतिक पहुंच को आगे बढ़ा रहा है, उससे एक बात तो बिल्कुल तय है. इससे भारत और आसियान देशों के सहयोग के ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव आएगा, जिसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे. और ये बात भी तय है कि इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सामरिक शक्ति संतुलन में भी बहुआयामी बदलाव आएगा. भारत और आसियान देशों के बीच हाल ही में 17वां शिखर सम्मेलन भी हुआ. इसमें दोनों पक्षों ने आवश्यक बिंदुओं पर सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया और भविष्य की रणनीति पर भी चर्चा की. इसका मक़सद, आपस में मिल-जुलकर हिंद-प्रशांत जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में तेज़ी से बदल रहे समीकरणों और सामरिक चुनौतियों से पार पाना है.

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