Published on Nov 25, 2020 Updated 0 Hours ago

अर्थव्यवस्था को परिष्कृत बनाने के पीछे एक तर्क ये भी है कि इससे विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के समागम का अवसर बढ़ता है. इसीलिए अलग-अलग स्तरों पर सघन रूप से नीतिगत प्रयास किए जाने चाहिए

भारतीय अर्थव्यवस्था को और ‘परिष्कृत’ बनाने की ओर क़दम बढ़ाना होगा

चौथी औद्योगिक क्रांति और आर्थिक परिष्करण

दुनिया भर में चौथी औद्योगिक क्रांति बड़ी तेज़ी से आकार ले रही है. इसकी एक बड़ी वजह इंसानों और मशीनों की क्षमता में लगातार तेज़ी से हो रहा विकास है. चौथी औद्योगिक क्रांति की सबसे बड़ी ख़ूबी, ‘साइबर और मानवीय व्यवस्थाओं का उद्भव’ है. आज तकनीक जिस तरह से हमारे समाज का अभिन्न अंग बनती जा रही है, चौथी औद्योगिक क्रांति इसी बात की नुमाइंदगी करती है.

आज तकनीक जिस तरह से हमारे समाज का अभिन्न अंग बनती जा रही है, चौथी औद्योगिक क्रांति इसी बात की नुमाइंदगी करती है. वास्तविकता तो ये है कि कोरोना वायरस से पैदा हुई महामारी ने तकनीक के हमारी अर्थव्यवस्था से और सघनता से जुड़ते जाने की गति और तीव्र कर दी है

वास्तविकता तो ये है कि कोरोना वायरस से पैदा हुई महामारी ने तकनीक के हमारी अर्थव्यवस्था से और सघनता से जुड़ते जाने की गति और तीव्र कर दी है. इस कारण से आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में काम-काज और कारोबार की दुनिया में नई व्यवस्था या ‘न्यू नॉर्मल’ दिख रही हैं, जो तकनीक के हमारे जीवन में सहज स्थान बनाने का ही प्रतीक है.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारत को आत्मनिर्भर बनाने का आह्वान और इसके लिए ‘वोकल फॉर लोकल’ पर ज़ोर देने की बुनियाद इस बात पर निर्भर है कि हम अपना घरेलू उत्पादन और खपत की प्रक्रिया को बढ़ाएं. आज के दौर में जब विश्व व्यवस्था में बहुत सी अनिश्चितताएं उत्पन्न हो गई हैं और हम वैश्विक व्यापार और वित्त के भरोसे नहीं बैठे रह सकते, तो भारत के लिए ये आवश्यक हो गया है कि वो अपने यहां एक बहुत मज़बूत घरेलू आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करे. इसके लिए भारत को अपनी अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण को बारीक़ी से देखना होगा और साथ ही साथ अपने निर्यात के उत्पादों की भी नए सिरे से समीक्षा करनी होगी.

पिछले कई वर्षों से लगातार नई तकनीकों के विकास के कारण इनोवेशन में वृद्धि देखी जा रही है. आज आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (3D प्रिंटिंग) और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) के चलते आविष्कारों का सिलसिला तेज़ हो गया है. इन तकनीकी तरक़्क़ियों के चलते इस बात की संभावनाएं बढ़ गई हैं कि हम उत्पादन में कार्यकुशलता को बढ़ाकर अपने व्यापार में कई गुना वृद्धि कर सकते हैं. इससे भारत की अर्थव्यवस्था और परिष्कृत होगी, जिससे अंतत: स्थायी आर्थिक तरक़्क़ी और रहन-सहन बेहतर होने का रास्ता खुलेगा.

अर्थव्यवस्था में पेचीदगी या किसी उत्पाद का ‘आर्थिक परिष्करण’ इस बात से निर्धारित होता है कि किसी उत्पाद को तैयार करने में कैसी क्षमता की आवश्यकता (मानवीय और तकनीकी पूंजी, संस्थानों और व्यवस्था की ज़रूरत) पड़ती है. इसका नतीजा ये होता है कि आर्थिक विकास की दर इस तथ्य पर निर्भर करती है कि अर्थव्यवस्था की उत्पादक संरचनाएं, उच्च उत्पादकता और ज्ञान आधारित गतिविधियों के लक्ष्य की पूर्ति करती हैं (मतलब आर्थिक रूप से परिष्कृत हैं). सच तो ये है कि यूरोपीय क्षेत्र में किए गए कई अध्ययन ये बताते हैं कि आर्थिक परिष्करण के मामले में बहुत अंतर होने के कारण, तमाम देशों के बीच आर्थिक सम्मेलन में मुश्किलें आती हैं. इसका अर्थ ये है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का परिष्करण या आर्थिक पेचीदगी (EXPY) सीधे तौर पर उत्पादकता के स्तर के परिष्करण और उससे जुड़ी तकनीकी अनुपात पर निर्भर करता है, जो किसी देश के उत्पाद और निर्यात किए जाने वाली चीज़ों को देखने से पता चलता है.

आर्थिक परिष्करण के क्षेत्र में अभी भारत की स्थिति क्या है

इकोनॉमिक कॉम्पेक्सिटी इंडेक्स वो मानक है, जिसके माध्यम से हम अलग-अलग देशों के उत्पादकता संबंधी ज्ञान और उनकी क्षमताओं का आकलन करते हैं. जापान और जर्मनी जैसे देश (जो ECI सूचकांक में क्रमश: पहले और तीसरे स्थान पर आते हैं) जो ECI सूचकांक में उच्च स्तर पर हैं, वो विविधता भरी और परिष्कृत वस्तुओं का उत्पादन करते हैं. इन देशों द्वारा तैयार माल, वो देश नहीं बना सकते, जो ECI सूचकांक में नीचे के स्तर पर आते हैं.

निम्नलिखित ग्राफ पिछले दो दशक में भारत की ECI रैंकिंग बताता है.

उपरोक्त ग्राफ के ट्रेंड ये बताने के लिए काफ़ी हैं कि भले ही भारत, आर्थिक परिष्करण के मामले में दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी देशों की तुलना में ECI रैंकिंग में काफ़ी बेहतर है. इसके बावजूद भारत की ECI रैंकिंग में पिछले कई वर्षों से कोई ख़ास सुधार नहीं आया है. भारत की तुलना में चीन और थाईलैंड जो वर्ष 2006 तक ECI रैंकिंग में भारत से नीचे थे, उन्होंने वर्ष 2018 में ECI रैंकिंग में क्रमश: 20वां और 24वां स्थान हासिल कर लिया था. जबकि, 142 देशों की इस सूची में भारत 45वें स्थान पर था. भारत के आर्थिक परिष्करण के निचले स्तर पर रहने की प्रमुख वजह ये है कि भारत के अधिकतर उत्पाद जिनका निर्यात होता है, वो कम आमदनी का उत्पादन करने वाली वस्तुओं के दर्जे में आते हैं.

निम्नलिखित सारणी से अलग-अलग सेक्टर में भारत के सबसे अधिक निर्यात किए जाने वाले उत्पादों के बारे में पता चलता है. ये सारणी वर्ष 2018 और 2019 के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर बनाई गई है.

तालिका 1: भारत का निर्यात और उत्पाद जटिलता 

क्रम

संख्या

निर्यात किए गए उत्पाद निर्यात का प्रतिशत मूल्य (अरब अमेरिकी डॉलर में) उत्पाद जटिलता सूचकांक (1018 उत्पादों में से) के अनुसार रैंक
2018 2019 2018 2019
1 रिफाइंड पेट्रोलियम 12.7 13.00 41.5 40.73 812
2 हीरा 8.08 6.31 26.3 19.78 854
3 पैक की गई दवाएं 4.3 4.66 14.0 14.61 270
4 आभूषण 3.81 4.37 12.4 13.68 728
5 चावल 2.29 2.04 7.47 6.39 956

स्रोत:Observatory of Economic Complexity and Ministry of Commerce & Industry

भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले उत्पादों में मुख्य तौर पर रिफाइंड पेट्रोलियम, हीरे, पैकेज्ड मेडिकल तत्व, गहने और चावल (HS वर्गीकरण पर आधारित) हैं. अगर पैकेज्ड दवा तत्वों को छोड़ दें, तो बाक़ी सभी उत्पादों का उत्पाद परिष्करण सूचकांक के अनुसार वर्गीकरण बहुत ही निम्न है. भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले उत्पादों के तकनीक आधारित वर्गीकरण से पता चलता है कि पैकेज्ड मेडिकैमेंट्स उच्च तकनीक से तैयार किए गए उत्पादों की श्रेणी में आते हैं. रिफाइंड पेट्रोलियम मध्यम दर्जे की तकनीक से तैयार उत्पाद है, तो गहने निम्न स्तरीय तकनीक से तैयार उत्पाद है. वहीं, चावल एक प्राथमिक उत्पाद है और हीरा संसाधन आधारित वस्तु है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के सर्विस सेक्टर का ज़बरदस्त गति से विकास हुआ है (और भारत का सर्विस सेक्टर मध्यम दर्जे की आमदनी वाले अन्य देशों जैसे कि चीन, ब्राज़ील रूस और विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों जैसे कि अमेरिका और यूरोपीय संघ की तुलना में ये काफ़ी बेहतर कार्य करता है). भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर एक हिस्सा धीरे-धीरे प्राथमिक और संसाधन आधारित उत्पाद बनाने से निम्न और मध्यम दर्जे की तकनीक से तैयार उत्पाद तैयार करने की दिशा में बढ़ रहा है. धीरे-धीरे ये सभी उत्पादन अधिक परिष्करण से तैयार उत्पाद बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं. मैन्युफैक्चरिंग से तैयार वस्तुओं का भारत का निर्यात 1990-2013 के दौरान 80 प्रतिशत से घटकर 67 प्रतिशत ही रह गया है-हालांकि भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर द्वारा बनाए जा रहे अधिकतर उत्पाद अभी भी निम्न स्तर की तकनीकी मदद से तैयार किए जा रहे हैं. इसीलिए, भारत को उच्च आर्थिक परिष्करण वाले देशों के दर्जे में अपना स्थान बनाने के लिए अभी बहुत लंबा सफर तय करना है.

आर्थिक परिष्करण के लिए भारत अभी क्या कर रहा है?

किसी भी देश के कुल उत्पादन को बढ़ाने में तकनीक की भूमिका बहुत बड़ी होती है, क्योंकि इससे कुशलता बढ़ती है और तैयार माल व सेवाओं में पेचीदगी की एक और परत जुड़ती है. फिर इनके आधार पर भारत जैसे विकासशील देशों के विकास की नई राह निकलती है. अब जबकि ऐसे परिष्कृत उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने में भारत के लिए काफ़ी संभावनाएं हैं, ख़ास तौर से महामारी के बाद की वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थायी और लंबी अवधि के लिए आर्थिक विकास के लिए इसकी बड़ी ज़रूरत है.

भारत इसके लिए कई सकारात्मक क़दम उठा रहा है, जिससे वो अपने आपको डिजिटल अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करके अपने आर्थिक परिष्करण को बढ़ा सके. भारत की ‘मेक इन इंडिया’  वाली पहल का मक़सद निर्माण की क्षमताओं का विकास करना है और इससे अच्छी गुणवत्ता वाले परिष्कृत उत्पाद तैयार करना है. इसके साथ साथ, ‘मेक इन इंडिया’ का एक लक्ष्य इनोवेशन और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना भी है, जिससे कि डिजिटल स्तर पर विकसित अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सके.

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर द्वारा बनाए जा रहे अधिकतर उत्पाद अभी भी निम्न स्तर की तकनीकी मदद से तैयार किए जा रहे हैं. इसीलिए, भारत को उच्च आर्थिक परिष्करण वाले देशों के दर्जे में अपना स्थान बनाने के लिए अभी बहुत लंबा सफर तय करना है.

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, कुछ क़दम उठाए गए हैं जिससे देश में इंटरनेट के उपभोक्ताओं की संख्या बढ़े. इसके कारण आज भारत दुनिया की दूसरी सबसे तेज़ी से विकसित  होने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है. इसके अलावा, ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है. आज भारत दुनिया में सूचना एवं संचार संबंधी तकनीक और सेवाओं का बड़ा निर्यातक बन गया है.

सौभाग्य से भारत में वित्तीय वर्ष 2019-2020 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 14 प्रतिशत बढ़ गया है. भारत में विदेशी निवेशकों की इस दिलचस्पी की बड़ी वजह ये हो सकती है कि आज बहुत सी कंपनियां अपने निवेश के लिए चीन के बाज़ार के विकल्प तलाश रही हैं. इसका एक कारण अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापारयूद्ध है, तो दूसरी वजह चीन के साथ आर्थिक कूटनीति में बढ़ा तनाव और महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में पड़ा खलल है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह में वृद्धि भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है कि वो अपने आपको आर्थिक रूप से परिष्कृत देश बनाने की दिशा में तेज़ी से क़दम बढ़ाए-जहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कारण परिष्कृत उत्पादों का निर्माण कई गुना बढ़ाकर आर्थिक विकास को नई गति दी जा सके.

अर्थव्यवस्था को परिष्कृत बनाने के पीछे एक तर्क ये भी है कि इससे विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के समागम का अवसर बढ़ता है. इसीलिए अलग-अलग स्तरों पर (और तमाम सेक्टर्स में भी) सघन रूप से नीतिगत प्रयास किए जाने चाहिए, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को और अधिक परिष्कृत बनाया जा सके. इससे आगे चलकर भारत की अर्थव्यवस्था के विकसित देशों के साथ तालमेल के द्वार भी खुलेंगे.

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