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सिंगापुर एक काल्पनिक करिश्मा और ऐसा देश है, जिसे अनियंत्रित भूराजनीतिक कुलबुलाहट से ऊपर उठकर स्थापित होते देखा गया।
मैं सात बरस से सिंगापुर में काम कर रहा था और पिछले चार साल से सरकारी प्रसारक चैनल न्यूजएशिया में न्यूज रिपोर्टर और प्रोड्यूसर के तौर पर कारोबार और अंतर्राष्ट्रीय खबरों को कवर कर रहा था। इस दौरान मैंने सिंगापुर में कारोबार के माहौल के बारे में बार-बार खबरें दीं और बताया कि अतीत में सिंगापुर किस तरह एक आर्थिक चमत्कार रहा है और अपने उत्तरी पड़ोसियों से आजादी प्राप्त करने के महज 50 साल बाद यह कितनी दूरी तक आ पहुंचा है।
लम्बे अर्से से सिंगापुर की आर्थिक विशिष्टता इस तथ्य से सुव्यवस्थित रही है कि यह दुनिया का एक ऐसा देश है, जहां सबसे सुगमता से कारोबार किया जा सकता है, जिसमें प्रतिव्यक्ति लखपतियों का सबसे बड़ा जमावड़ा है (आंकड़े दर्शाते हैं कि यहां हर छह में से एक व्यक्ति लखपति है) और बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हैं, जिनके सिंगापुर में एशिया-प्रशांत मुख्यालय हैं।
सिंगापुर के आर्थिक साहस की बुनियाद का श्रेय काफी हद तक सिंगापुर के संस्थापक प्रधानमंत्री दिवंगत नेता ली कुआन यू की समझदारी और विवेक को दिया जाता है।
इन आर्थिक चमत्कारों को सिंगापुर के शानदार क्षितिज या स्टॉक एक्सचेंज में होने वाले फायदों और शायद मिशेलिन स्टार रेस्तरांओं और ‘अतास’ (और उच्च दर्जे के लिए आम बोलचाल में इस्तेमाल किया जाने वाला अकेला शब्द) कारों में ज्यादा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
सिंगापुर एक काल्पनिक करिश्मा और ऐसा देश है, जिसे अनियंत्रित भूराजनीतिक कुलबुलाहट से ऊपर उठकर स्थापित होते देखा गया और ऐसा राजनीतिक तौर पर जटिल आसियान जैसे पड़ोस में इसके योगदान और चीन के दक्षिण चीन सागर के अभियानों के केंद्र में होने के बावजूद हुआ।
कम समय के लिए सिंगापुर आने वाले पर्यटक या निजी क्षेत्र के कर्मचारी को यहां की सुदृढ़ विदेश नीति ज्यादा स्पष्ट नहीं हो पाती, जिसकी स्थापना भूराजनीति, इतिहास और वास्तविक राजनीति व्यवस्था के बारे में ली की समझ के द्वारा की गई है।
सिंगापुर में कारोबार संबंधी खबरों की वर्षों तक कवरेज करने के दौरान, शुरुआत में मैंने कभी इस बात की कल्पना तक नहीं की थी कि किसी दिन सिंगापुर भूराजनीति और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विमर्श का अहम स्थान बन जाएगा। ऐसा कुछ टीकाकारों द्वारा सिंगापुर को पूर्व का वाशिंगटन की उपाधि दिए जाने के बावजूद था। एक संवेदनशील मीडिया फ्रेमवर्क कुछ भी ऐसा कवर करने से परहेज करेगा, जो दूसरों के लिए, मामूली तौर पर भी कोई समस्या खड़ी कर सकता है। सिंगापुर के बारे में भूराजनीतिक खबर मोटे तौर पर नीरस किस्म की थी जो द्विपक्षीय राजकीय दौरों और बहुपक्षीय कारोबारी समझौतों से संबंधित थी।
एक पत्रकार के नाते, मेरा इनबॉक्स रोजाना कम से कम 10 प्रेस विज्ञप्तियों से भरा रहता था। जो ज्यादातर वाणिज्यिक उद्यमों, नई आईपीओ लिस्टिंग्स, विलय और विस्तारों से संबंधित समाचारों पर केंद्रित रहती थीं और सिंगापुर के दुनिया के सर्वप्रथम स्मार्ट राष्ट्र बनने की सही राह पर होने के बावजूद, उनमें से बहुत सी खबरें बड़े आंकड़ों, आंकड़ों के विश्लेषण, कृत्रिम आसूचना, डिजिटल भुगतान, वित्तीय प्रौद्योगिकी, चालक रहित वाहनों और आईओटी से संबंधित थीं।
इस हद तक कि मैंने यह ट्वीट तक किया।
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— Akshobh Giridharadas (@Akshobh) May 24, 2017
एक सिटी स्टेट या नगर राज्य के रूप में सिंगापुर में बहुत से दूतावास हैं, लेकिन यहां पर दक्षिण चीन सागर से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, सेमिनार और विचार-विमर्श वित्तीय प्रौद्योगिकी को लेकर होते हैं। हालांकि सिंगापुर की तुलना वाशिंगटन डीसी से करना कठिन होगा। वर्षों के इतिहास, पश्चिमी उदारवादी व्यवस्था, को यदि दरकिनार कर भी दें, तो भी पचास अन्य राज्य हैं,जो अमेरिकी राजधानी की आर्थिक स्थिति को संबल प्रदान करते हैं और इसलिए वह विविध प्रकार के थिंक टैंक्स, गैर-लाभकारी और अन्य केंद्रों का अस्तित्व बर्दाश्त कर सकती है। सिंगापुर को पहले ही अहसास हो गया था कि उसे बेरहमी से उन उद्योगों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता होगी, जो नगर राज्य होने के नाते उसके खजाने को भर सकते थे।
इतना ही नहीं, सिंगापुर की आर्थिक उत्तरजीविता, उसके शुरूआती दिनों से ही मुक्त अर्थव्यवस्था, मुक्त पुनर्निर्यात व्यापार,बैंकिंग और वित्तीय तथा उसके खजाने को भरने वाले और उसकी विकास गाथा को आगे बढ़ाने वाले अन्य उद्योगों के उन्नतिशील केंद्र की रही थी। भूराजनीतिक विमर्श के केंद्र की गुंजायश होना उसके लिए केवल अलंकरण हो सकता है, लेकिन मुख्य तत्व नहीं।
बावजूद इसके, अब सिंगापुर की आर्थिक बुनियाद मजबूती से बिछाई जा चुकी है, वह पांच शीर्ष वित्तीय केंद्रों में से एक और टाइगर इकॉनोमी बन चुका है। परम्परागत रूप से, भूराजनीतिक परिदृश्य की बड़ी खिलाड़ी विशाल अर्थव्यवस्थाएं रहीं — वित्तीय स्थिति भूराजनीतिक प्रभाव में परिणत हुई, इस कारण, जी-8 देशों का अभिजात्य गुट बनाया गया तथा सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य। सिंगापुर को उसके छोटे आकार के कारण अमेरिका और चीन के विशाल ट्रिलियन डॉलर क्लब्स से अलग रखा गया, लेकिन निश्चित रूप से सिंगापुर का प्रभाव उसके आकार की तुलना में अधिक है।
सिंगापुर की विदेश नीति पर ली का कुशल प्रभाव, अमेरिका और चीन के बीच संतुलन कायम करने के दौरान देखा गया। अमेरिका और चीन दोनों ही देशों के साथ सिंगापुर के ऐतिहासिक तौर पर मजबूत रिश्ते रहे हैं। श्री ली, निक्सन और फोर्ड प्रशासन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री के तौर पर सेवाएं प्रदान कर चुके हैनरी किसिंगर के करीबी मित्र रह चुके थे। सिंगापुर के शुरूआती आजादी के आंदोलन के दौरान, साम्यवाद के खिलाफ श्री ली के कड़े रुख ने उन्हें अमेरिका का सहज मित्र बना दिया, जिसे शीत युद्ध के दौरान साम्यवाद के खिलाफ अपने संघर्ष के लिए रक्षात्मक आड़ की तलाश थी। जहां तक एशियाई पड़ोसियों का सवाल है,अपने जातीय चीनी बहुल लोगों के मद्देनजर सिंगापुर के चीन के साथ दीर्घकालिक और मजबूत सांस्कृतिक संबंध रहे हैं।
1970 के दशक में, माओ के समय के धुंधले पड़ने और सांस्कृतिक क्रांति के अंतिम दौर में, चीन को एक ऐसी व्यवस्था की तलाश थी, जो उसे कड़े निरंकुश नियंत्रण बरकरार रखते हुए, मुक्त अर्थव्यवस्था को स्वीकार करने की इजाजत दे।
देंग शियाओपिंग 1978 में अपनी सिंगापुर यात्रा के दौरान इस नगर राज्य से बेहद प्रभावित हुए। बहुत से टीकाकारों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि श्री ली के साथ उनकी वार्ता, चीन के आर्थिक विजन की रूपरेखा के तौर पर सिंगापुर का इस्तेमाल करने के उनके फैसले का आधार साबित हुई।
1970 के दशक में चीन के साथ अमेरिका के गर्माहट वाले संबंधों में प्रमुख भूमिका निभाने के अलावा, सिंगापुर, अपनी अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने की जद्दोजहद में जुटे चीन के शुरूआती साझेदारों में से एक था।
एक सम्पादकीय में सिंगापुर के बारे में बिल्कुल सटीक लिखा गया, “यह देश महज अपने धन के बल पर ही शक्तिशाली नहीं बना, बल्कि अपने उन ताकतवर मैत्रीपूर्ण संबंधों की वजह से भी शक्तिशाली बना, जो उसने विश्व की दो विशालतम महाशक्तियों के साथ बनाए थे।”
इस्राइल के साथ सिंगापुर के मजबूत संबंधों में भी अमेरिका-चीन जैसे नाजुक संतुलित संबंधों जैसी ही चतुराई थी। इस्राइल के साथ ये संबंध इसलिए खासतौर पर संवेदनशील थे,क्योंकि करीबी पड़ोसी मलेशिया और इंडोनेशिया,दोनों ही मुस्लिम देश थे और वे यहूदी देश के साथ किसी तरह के कूटनीतिक संबंधों के इच्छुक न थे।
मलेशिया के साथ अचानक आजाद होने के कारण वजूद में आए सिंगापुर को अपने सीमित भूभाग और कम आबादी के लिए सैन्य ढांचा तैयार करने की जरूरत थी। 1960 के दशक के अंतिम वर्षों के दौरान उत्कृष्ट इस्राइली रक्षा बलों ने शुरुआती प्रशिक्षण दिया। शुरू-शुरु में इन संबंधों को छुपाया गया।
दोनों देशों के पास अपने आकार की दृष्टि से बड़ी सुदृढ़ सेनाएं, सेना में युवाओं की अनिवार्य भर्ती और सैन्य आरक्षी बल के कर्तव्य हैं, हालांकि सिंगापुर के विपरीत इस्राइल को अब तक अपने विरोधी पड़ोसियों से अपने अस्तित्व के लिए खतरा महसूस होता है। इस्राइल और सिंगापुर दोनों में ही जोशपूर्ण स्टार्टअप व्यवस्थाएं और नूतन अर्थ प्रबंधन हैं, जो पश्चिम एशिया और दक्षिणपूर्व एशिया के साथ संबंधों को और मजबूत बनाते हैं।
सिंगापुर अनेक निजी क्षेत्र के विवादों का प्रमुख मध्यस्थता केंद्र है, लेकिन वह तेजी से महत्वपूर्ण बैठकों के प्रमुख मेजबान के तौर पर उभर रहा है। 2015 में, इस दक्षिण-पूर्व एशियाई देश ने चीन के नेता और ताइवान के राष्ट्रपति की सर्वप्रथम बैठक की मेजबानी की थी। बैठक के महत्व के संदर्भ में यह तरह से अग्रदूत ही साबित हुई। चंद हफ्ते पहले ही, सिंगापुर ने अमेरिका और उत्तर कोरिया की शिखर बैठक की मेजबानी की थी। इस बैठक को 2017 में अनेक भूराजनीतिक टीकाकारों ने असम्भव करार दिया था।
सिंगापुर, आसियान का संस्थापक सदस्य, ट्रांस-पेसेफिक पार्टनरशिप (टीपीपी)के प्रमुख संचालकों में से भी एक है। सिंगापुर की गिनती विश्व की शीर्ष 20 विशालतम अर्थव्यवस्थाओं में नहीं होने के बावजूद उसे जी-20 शिखर सम्मेलनों में प्रतिभागी के तौर पर आमंत्रित किया जाता है, जो उसके भूराजनीतिक महत्व का प्रमाण है।
मेरे लिए विडम्बना की बात यह है कि जब दुनिया की निगाहें इन दो बेहद झगड़ालु भूराजनीतिक हस्तियों पर टिकी थीं, उस समय मैं दुनिया के वास्तविक भूराजनीतिक केंद्र-वाशिंगटन डीसी में था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन, कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त बनाने के बारे में चर्चा करने भव्य सेन्टोसा द्वीप (जहां सर्वत्र गोल्फ कोर्सेज और यूनिवर्सल स्टुडियोज़ हैं) पहुंचे। विषमता कई कारणों से जाहिर हो रही थी। यह महज दो अविश्वसनीय व्यक्तियों की बैठक या दुनिया के प्राचीनतम लोकतंत्र और निरंकुश देश के साथ-साथ होने के कारण नहीं, बल्कि सिंगापुर में सभी स्थानों की बैठक में होने में थी?
इसका कारण मैं शुरूआत में पूरी तरह नहीं समझ सका? स्विट्जरलैंड या स्वीडन, और तो और चीन या कोरिया गणराज्य के सुव्यवस्थित राजनयिक स्थानों को क्या हुआ? इन दोनों एशियाई देशों की सीमाएं उत्तर कोरिया से सटी हुई हैं और वे सीधे तौर पर शामिल हैं।
सिंगापुर, कई कारणों से विवेकपूर्ण पसंद साबित हुआ है। इस ऐतिहासिक शिखर बैठक का आयोजन करने के उसके स्वयं के उत्साह के अलावा, उत्तर कोरिया से उसकी निकटता ने किम को लम्बी यात्रा से बचा लिया। सिंगापुर में सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन ज्यादा नहीं थे और ऐसे में मानवाधिकार कार्यकर्ता और उत्तर कोरिया के अन्य असंतुष्ट खेल नहीं बिगाड़ सके। सिंगापुर के उत्तर कोरिया के साथ कूटनीतिक रिश्ते रहे हैं और वह एक ऐसा देश है, जहां किम परिवार स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। इस उच्च कोटि की शिखर बैठक के लिए सिंगापुर के शानदार लॉजिस्टिक्स और कड़े सुरक्षा प्रबंधों की बदौलत सभी कार्य, योजना के अनुसार सुचारु रूप से सम्पन्न हुए।
इस शिखर सम्मेलन की सफलता पर भले ही बहस की जा सकती हो, किम के साथ मुलाकात करने के लिए भले ही ट्रम्प का तिरस्कार किया जा सकता हो, लेकिन सिंगापुर इस शिखर सम्मेलन का सीधे तौर पर हिस्सा बने बिना उसकी मेजबानी, आयोजन करने में समर्थ हो सका।
सिंगापुर की सफलता की दास्तान लम्बे अर्से से उसके धन और समृद्धि के आर्थिक लैंस के जरिए सुनाई जाती रही है। लेकिन, शायद, यहां तक कि प्राचीन समय में भी, वह इतना समृद्ध था कि साम्राज्य की शासनकला में उसकी भूमिका थी।
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Akshobh Giridharadas was a Visiting Fellow based out of Washington DC. A journalist by profession Akshobh Giridharadas was based out of Singapore as a reporter ...
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