Author : Nivedita Kapoor

Published on Aug 07, 2020 Updated 0 Hours ago

क्षेत्रीय मामलों को लेकर रूस और दक्षिण कोरिया की स्थिति- चीन और रूस के साथ उनके रिश्तों को देखते हुए- भी तय करेगी कि आने वाले वर्षों में उनके भू-राजनीतिक उद्देश्य किस तरफ़ होते हैं. 

रूस-दक्षिण कोरिया संबंध: रिश्ते और रिश्ते

2020 में रूस और दक्षिण कोरिया के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 30 वर्ष पूरे हो रहे हैं. हाल के वर्षों में दोनों देशों की तरफ़ से नीतिगत फ़ैसलों में सहयोग को बढ़ाने पर ज़ोर दिखा है. 2012 में रूस ने अपना ध्यान ‘पूर्व के केंद्र बिंदु’ की तरफ़ दिया और 2016 में ग्रेटर यूरेशियन पहल की स्थापना के इरादे का एलान किया. 2017 के चुनाव में राष्ट्रपति मून जे-इन के निर्वाचन के साथ ही दक्षिण कोरिया ने उत्तरी पड़ोसियों के साथ संबंध बेहतर करने के लिए नई उत्तरी नीति (NNP) का एलान किया. उत्तरी पड़ोसियों में रूस ‘अहम साझेदार’ है.

पूर्व की ओर रूस का झुकाव रशियन फार ईस्ट के विकास की कल्पना के साथ था ताकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र की विकासशील अर्थव्यवस्था के साथ बेहतर ढंग से घुल-मिल सके और एशिया में रूस की रणनीतिक मौजूदगी बढ़े. ग्रेटर यूरेशियन पहल एक व्यापक विदेश नीति का नज़रिया है जिसमें अटलांटिक से लेकर प्रशांत तक विशाल क्षेत्र शामिल है. अपने दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए रूस यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) का सहयोग दूसरे ‘दिलचस्पी लेने वाले’ समूहों तक बढ़ाना चाहता है. 2013 में घोषित दक्षिण कोरिया की यूरेशियन पहल के उम्मीद से कम असरदार क्रियान्वयन के बाद राष्ट्रपति मून ने एक बार फिर इस क्षेत्र की तरफ़ ध्यान दिया है. इन नीतिगत फ़ैसलों ने मॉस्को और सियोल के बीच आने वाले वर्षों के लिए बातचीत की ज़मीन तैयार कर दी है.

2018 में दो दशक के दौरान पहली बार दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति सरकारी दौरे पर रूस गए. नियमित विचार-विमर्श के रूप में उप विदेश मंत्रियों के बीच रणनीतिक संवाद होता है. रिपब्लिक ऑफ कोरिया-रशियन फार ईस्ट और साइबेरिया उप समिति इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की कोशिश करती है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम (EEF) का भी नियमित भागीदार है जबकि वास्तव में NNP की घोषणा 2017 में हुई थी. EEF की स्थापना 2015 में रशियन फार ईस्ट (RFE) में निवेश को आकर्षित करने के लिए की गई थी ताकि इसका आर्थिक विकास हो सके और एशिया-प्रशांत के साथ रूस के आर्थिक संबंध को बढ़ावा मिले. ये घटनाक्रम यूक्रेन संकट के बाद पश्चिमी देशों की तरफ़ से लगाए गए सख्त आर्थिक प्रतिबंधों के अगले साल सामने आया था.

रूस का नेतृत्व दक्षिण कोरिया को महत्वपूर्ण निवेशक और आर्थिक साझेदार के तौर पर देखता है. ख़ास तौर पर आर्थिक रूप से अविकसित RFE के लिए. दक्षिण कोरिया रूस का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. 2000 के दौरान आर्थिक संबंध ‘पूर्ण विकसित वृद्धि के चरण’ में पहुंच गया था क्योंकि दक्षिण कोरिया ने सोवियत बाद के युग में पूंजी के अलावा तकनीक का भी निवेश किया. दोनों देश उत्तर-पूर्व एशिया में बदलते भू-रणनीतिक हालात में एक-दूसरे का महत्व भी समझते हैं. इसकी वजह से दोनों देशों के लिए भविष्य में द्विपक्षीय संबंध का विकास ख़ास महत्व रखता है.द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी का रुझान दिखा है और 2020 तक 30 अरब डॉलर के व्यापार तक पहुंचने का लक्ष्य है. हाल की बढ़ोतरी को देखते हुए ये हासिल करने वाला लक्ष्य लग रहा था लेकिन तभी महामारी ने दस्तक दे दी. लेकिन ज़्यादातर स्थिर व्यापार ढांचे- जिसमें रूस प्राकृतिक संसाधन की सप्लाई करता है और तैयार उत्पाद का आयात करता है- की वजह से क़ीमतों के उतार-चढ़ाव का ख़तरा बना हुआ है. कोविड-19 महामारी की वजह से सामानों की क़ीमत में गिरावट आई है और इसका ख़राब असर व्यापार के आंकड़ों पर पड़ेगा.

रूस दक्षिण कोरिया द्विपक्षीय व्यापार (यूएसडी बिलियन)

स्रोत: संयुक्त राष्ट्र कॉमरेड

NNP के तहत दक्षिण कोरिया ने रूस के साथ सहयोग के लिए 9-सेतु रणनीति का प्रस्ताव दिया जिसमें “गैस, रेलवे, बंदरगाह, बिजली, आर्कटिक शिपिंग रूट, जहाज़ निर्माण, औद्योगिक कॉम्प्लेक्स, कृषि और मछली पालन” पर ध्यान देने की बात कही गई. इसके पीछे ये विचार है कि इन सेतुओं का इस्तेमाल दक्षिण कोरिया से व्यापक यूरेशिया तक कनेक्टिविटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा दिया जाए. रूस ने भी इन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए इच्छा जताई है. साथ ही दक्षिण कोरिया के निवेश और तकनीक का स्वागत भी किया है. ख़ास तौर पर उन निवेश और तकनीकों का जिसका मक़सद RFE का विकास है. लेकिन इस क्षेत्र में दक्षिण कोरिया का निवेश अभी भी निचले स्तर पर है, वो भी तब जब उसने अपने कारोबारियों को क्षेत्र में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया है.

NNP के तहत दक्षिण कोरिया ने रूस के साथ सहयोग के लिए 9-सेतु रणनीति का प्रस्ताव दिया जिसमें “गैस, रेलवे, बंदरगाह, बिजली, आर्कटिक शिपिंग रूट, जहाज़ निर्माण, औद्योगिक कॉम्प्लेक्स, कृषि और मछली पालन” पर ध्यान देने की बात कही गई.

कुल मिलाकर रूस में दक्षिण कोरिया का निवेश 2019 में 2.7 अरब डॉलर था. सालाना लिहाज़ से भी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कम रहा है. इसके पीछे कई वजहें बताई गई हैं जिनमें रूस के विकास में बढ़ोतरी का रुकना और पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों का जोखिम शामिल है. हालांकि, दक्षिण कोरिया ने प्रत्यक्ष रूप से रूस पर आर्थिक प्रतिबंध नहीं लगाया है. जब ख़ास तौर से RFE की बात होती है तो ऊपर बताई गई वजहों के अलावा उत्पादन की ज़्यादा लागत, इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, प्रवासन और बाज़ार के छोटे आकार ने भी समस्या बढ़ाई है. पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से रूस के लिए ऊर्जा, निवेश और आधुनिक तकनीक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग में कमी आई है.

दक्षिण कोरिया द्वारा रूस में FDI (USD मिलियन)

2019 (तिमाही तक) 34
2018 110
2017 59
2016 83
2015 116
2014 130
2013 71
2012 119
2011 -270
2010 318

स्रोत: बैंक ऑफ रूस

रूस ऐसे देश के लिए महत्वपूर्ण तेल और गैस सप्लायर बना हुआ है जो अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का 98% हिस्सा आयात करता है. हालांकि, तब भी रूस दक्षिण कोरिया के लिए ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा साझेदार नहीं है. दक्षिण कोरिया के टॉप तीन तेल सप्लायर देश सऊदी अरब, कुवैत और अमेरिका हैं. इनमें से अमेरिका से सप्लाई धीरे-धीरे बढ़ रही है. मुख्य LNG सप्लायरों में क़तर, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, ओमान, नाइजीरिया और रूस शामिल हैं. RFE में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों को देखते हुए द्विपक्षीय ऊर्जा व्यापार को और बेहतर करने की संभावना मौजूद है.

EEAU-दक्षिण कोरिया मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेकर बातचीत चल रही है. साथ ही सेवा और निवेश के क्षेत्र में रूस-दक्षिण कोरिया FTA को लेकर भी बातचीत हो रही है. विशेषज्ञों की दलील है कि FTA पर दस्तख़त से व्यापार और निवेश के स्तर पर सकारात्मक असर पड़ेगा. लेकिन दक्षिण कोरिया को निर्यात बढ़ाने को लेकर EEAU देशों की क्षमता के बारे में रूस चिंतित है. उसे लगता है कि कहीं उल्टी स्थिति न हो जाए. इसलिए वो और वादा करने से पहले निवेश में बढ़ोतरी चाहता है. 2017 में पहले कोरिया-रूस आर्कटिक कंसल्टेशन के साथ आर्कटिक सहयोग का नज़दीकी क्षेत्र बन गया है. इसमें ‘आर्कटिक रूट, गैस विकास और जहाज़ निर्माण’ पर चर्चा शामिल हैं.

इस बीच जब आर्थिक मुद्दों पर दोनों देशों के बीच चर्चा हो रही है, उसी वक़्त उत्तर-पूर्व एशिया में भू-राजनीतिक हालात अपनी अलग चुनौतियां पेश कर रही हैं. रूस और चीन दोनों दक्षिण कोरिया में थाड मिसाइल सिस्टम की तैनाती के ख़िलाफ़ हैं.

इस बीच जब आर्थिक मुद्दों पर दोनों देशों के बीच चर्चा हो रही है, उसी वक़्त उत्तर-पूर्व एशिया में भू-राजनीतिक हालात अपनी अलग चुनौतियां पेश कर रही हैं. रूस और चीन दोनों दक्षिण कोरिया में थाड मिसाइल सिस्टम की तैनाती के ख़िलाफ़ हैं. अमेरिका से ख़राब संबंधों की वजह से लगातार एक-दूसरे के क़रीब आए दोनों रणनीतिक साझेदारों ने 2019 में पूर्वी चीन सागर में पहली बार साझा हवाई गश्त की. इस गश्त के दौरान दक्षिण कोरिया ने रूस पर अपने एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन में घुसने का आरोप लगाया. इस आरोप के बाद सुझाव दिया गया कि दोनों देश सैनिक हॉटलाइन की स्थापना करें ताकि गैर-इरादतन तनाव में बढ़ोतरी न हो.

रूस के लिए कोरियाई प्रायद्वीप से उसकी निकटता शांति और स्थिरता के मुद्दे को महत्वपूर्ण सुरक्षा मामला बनाती है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य के तौर पर वो उत्तर कोरियाई परमाणु मुद्दे में भी शामिल है. हाल के वर्षों में इस मामले को लेकर उसका असर अपेक्षाकृत कम हुआ है, ख़ास तौर पर 2009 में छह पक्षीय बातचीत रुक जाने के बाद. रूस की वर्तमान नीति अपने क़दमों को चीन के साथ मिलाने पर है क्योंकि वो उभरती हुई शक्ति चीन का बेहद नज़दीकी बन गया है- यहां तक कि वो एक साझा पहल लेकर भी आया जिसको लेकर दक्षिण कोरिया के साथ बात हुई.

2018 के पैनमुंजॉम घोषणापत्र में अमेरिका और चीन को शामिल करके चार देशों की बातचीत की बात कही गई थी लेकिन इसमें रूस का नाम नहीं लिया गया था. रूस एक व्यापक बहुपक्षीय संरचना को प्राथमिकता देगा लेकिन ये अभी तक वास्तविकता में नहीं बदला है. यही वजह है कि रूस इस मुद्दे पर दोनों कोरिया के साथ बातचीत की कोशिश में लगातार लगा हुआ है. इस बीच गैस पाइपलाइन, बिजली और रेलवे के क्षेत्र में रूस और दोनों कोरिया को शामिल करके बनी त्रिपक्षीय परियोजना संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से रुकी हुई है.

एक सकारात्मक बदलाव के तहत रूस के ख़िलाफ अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों में दक्षिण कोरिया शामिल नहीं हुआ वो भी तब जब वो अमेरिका का संधि सहयोगी है. इसकी जगह दक्षिण कोरिया, रूस के फार ईस्ट पर उसकी नज़र का इस्तेमाल करके अपनी यूरेशियन पहल को बढ़ावा देने में लगा हुआ है. रूस के लिए ये मौक़ा चीन पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता की जगह रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण उत्तर-पूर्व एशिया में अपने संबंधों को मज़बूत करने का है. दक्षिण कोरिया के लिए NNP के आर्थिक पहलू के अलावा ये एशिया में एक ताक़त के तौर पर अपनी मौजूदगी बढ़ाने का भी मौक़ा है ताकि वो ‘क्षेत्रीय भू-राजनीति को आकार’ देने में मदद कर सके. इसकी वजह से रूस-दक्षिण कोरिया संबंधों को मज़बूती मिलने की उम्मीद बढ़ गई है क्योंकि दोनों देश अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने की करने की कोशिश में लगे हुए हैं.

महामारी के प्रकोप वाली दुनिया में भू-राजनीतिक पहलू और भी जटिल होगा क्योंकि क्षेत्रीय व्यवस्था में बदलाव हो रहा है और स्थापित और उभरती हुई शक्तियों में मुक़ाबला बढ़ रहा है. उत्तर कोरियाई मुद्दा, पूर्वी चीन सागर, ताइवान- ये ऐसे मामले हैं जो उत्तर-पूर्व एशिया में शांति को भंग कर सकते हैं.

इसका ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये आसान काम नहीं है क्योंकि दोनों देशों का संबंध अभी भी गौरवपूर्ण स्तर पर नहीं पहुंचा है. आर्थिक क्षेत्र में इसका मतलब पहले से तय समय पर ख़ास परियोजना को पूरा करना, FTA पर आगे बढ़ना, ज़्यादा ऊर्जा व्यापार और निवेश, RFE में कारोबार की स्थिति को सुधारना जैसे काम शामिल हैं.

महामारी के प्रकोप वाली दुनिया में भू-राजनीतिक पहलू और भी जटिल होगा क्योंकि क्षेत्रीय व्यवस्था में बदलाव हो रहा है और स्थापित और उभरती हुई शक्तियों में मुक़ाबला बढ़ रहा है. उत्तर कोरियाई मुद्दा, पूर्वी चीन सागर, ताइवान- ये ऐसे मामले हैं जो उत्तर-पूर्व एशिया में शांति को भंग कर सकते हैं. मौजूदा व्यवस्था में ना तो रूस, ना ही दक्षिण कोरिया ख़ुद को नियम तय करने वाला पाते हैं, ऐसे में उन्हें पूरे क्षेत्र में तरह-तरह के संबंध बनाने होंगे. क्षेत्रीय मामलों को लेकर रूस और दक्षिण कोरिया की स्थिति- चीन और रूस के साथ उनके रिश्तों को देखते हुए- भी तय करेगी कि आने वाले वर्षों में उनके भू-राजनीतिक उद्देश्य किस तरफ़ होते हैं.

फिलहाल उनके रिश्ते “ना तो क़रीबी हैं, ना ही गहरे”. हालांकि, दोनों देशों ने इरादे दिखाए हैं कि हालात में सुधार किया जाए. राजनयिक संबंधों की स्थापना के 30वें साल में संबंधों को वाकई में रणनीतिक बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.

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