भारत के शहरी नौजवानों के नज़रिये से पड़ोसी देशों का आकलन!
हाल के वर्षों में दक्षिण एशिया के पड़ोसी देश भारत के लिए व्याकुलता के साथ-साथ सौहार्द की भी वजह रहे हैं. इस तरह पड़ोसी देशों के लिए भारत की नीतियां मिली-जुली रही हैं. इन नीतियों में सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर द्विपक्षीय सहयोग को प्राथमिकता और क्षेत्रीय मंचों को मज़बूत बनाना शामिल हैं. स्वाभाविक तौर पर अपने पड़ोसी देशों- अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव- के साथ भारत की भागीदारी नीतिगत दायरे के साथ-साथ अकादमिक जगत में भी काफ़ी चर्चा का विषय रही है. इसका नतीजा एक तरफ़ जहां विशेषज्ञों के द्वारा सूक्ष्म विश्लेषण और विशिष्ट अनुशंसा के रूप में निकला है वहीं दूसरी तरफ़ ये आम लोगों की सोच के बारे में नहीं बताता है जो मीडिया की कवरेज, सुनी-सुनाई बातों और याददाश्त के मुताबिक़ तय होती है. लेकिन भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए लोगों की राय को समझना ज़रूरी है ताकि उनकी ज़रूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सके.
एक तरफ़ जहां विशेषज्ञों के द्वारा सूक्ष्म विश्लेषण और विशिष्ट अनुशंसा के रूप में निकला है वहीं दूसरी तरफ़ ये आम लोगों की सोच के बारे में नहीं बताता है जो मीडिया की कवरेज, सुनी-सुनाई बातों और याददाश्त के मुताबिक़ तय होती है.
ओआरएफ के “विदेश नीति सर्वे” की पहली पुनरावृत्ति में एक पूरा अध्याय ‘भारत और उसके पड़ोस’ की तरफ़ भारत के शहरी युवाओं की सोच को समझने के लिए समर्पित किया गया था. इससे गहरी प्रत्याशित और अप्रत्याशित अलग-अलग सोच का ख़ुलासा होता है जिस पर विचार-विमर्श होना चाहिए. इस सोच को समझने के लिए सर्वे में शामिल लोगों से ऊपर बताए गए पड़ोसी देशों के ज़िम्मेदाराना व्यवहार, भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति और क्या पिछले पांच वर्षों में इस तरह की हिस्सेदारी बढ़ी है, को लेकर भरोसे के बारे में सवाल पूछे गए. इन सवालों के मिले जवाब में उम्मीद के आधार पर उन पड़ोसी देशों की सूची बनाई गई जिससे पता चलता है कि किन देशों पर आम लोगों को भरोसा है और किन देशों पर नहीं है.
भारत में रणनीति बनाने वाले लोगों के द्वारा चीन के साथ श्रीलंका की बढ़ती नज़दीकी और हम्बनटोटा बंदरगाह चीन को लीज़ पर देने के फ़ैसले की वजह से चिंता जताने के बावजूद श्रीलंका को सबसे सौहार्दपूर्ण देश के रूप में महसूस किया गया है. इस सकारात्मक रवैये की सबसे बड़ी वजह है पूरब-पश्चिम व्यापार रूट में सामानों को उतारने-चढ़ाने के प्रमुख केंद्र के रूप में श्रीलंका की सफलता, आगे बढ़ती बाज़ार अर्थव्यवस्था के रूप में उभरना और एक समृद्ध पर्यटन उद्योग. लेकिन इस दोस्ती में भी दरार है क्योंकि तमिलनाडु के जिन युवाओं ने सर्वे में भाग लिया, उन्हें श्रीलंका को लेकर संदेह है. इसकी वजह श्रीलंका और वहां सक्रिय रहे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के बीच जातीय झगड़े का इतिहास है. एक वजह पाल्क स्ट्रेट और बंगाल की खाड़ी में मछुआरों के अतिक्रमण की समस्या भी है.
नेपाल-भूटान और मालदीव को लेकर सकारात्मक रवैया
इसी तरह सर्वे में नेपाल कुल मिलाकर सम्मान-सूचक जगह पर पहुंच गया है जबकि पिछले साल भारत के साथ उसके संबंध काफ़ी उथल-पुथल से भरे रहे हैं. नक्शे को लेकर झगड़ा और 2020 के सीमा विवाद ने कई पुरानी यादों को ताज़ा कर दिया जैसे कि 2015 में नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी. इसे मानवीय संकट भी बताया गया था और व्यापार और संपर्क की ताज़ा कोशिशों के बावजूद इस संकट को लेकर भारत विरोधी भावनाएं अभी भी नेपाल में बनी हुई हैं. काफ़ी मीडिया कवरेज के बाद भी भारतीय युवा ऐसे घटनाक्रम से आगे बढ़ गए होंगे. इसका कारण दोनों देशों के बीच साझा सांस्कृतिक विरासत, खुली सीमा के आर-पार लोगों का मुक्त आवागमन और एक पर्यटन केंद्र के रूप में नेपाल का आकर्षण, जो इसकी छवि सकारात्मक बनाता है, हो सकता है.
भूटान को लेकर भारतीय शहरी युवाओं की मौजूदा अस्पष्टता में भी सकारात्मक रवैया है क्योंकि दोनों देशों के बीच हर तरह की स्थिति में दोस्ती के कारण भूटान पसंदीदा पर्यटन केंद्र बना हुआ है. मालदीव भी भारतीय पर्यटकों के लिए पसंदीदा ठिकाना है.
भूटान और मालदीव के लिए सर्वे में लोगों की राय अस्पष्ट है. दोनों देशों के भौगोलिक आकार और यहां स्थायी राजनीतिक माहौल को देखते हुए भारत में मीडिया कवरेज कम है. अगर कवरेज होती भी है तो मुद्दे पर आधारित जैसे कि साझा ख़तरे की समझ. उदाहरण के लिए, 2017 में डोकलाम ट्राई-बाउंड्री क्षेत्र के संकट के दौरान भूटान को भारतीय मीडिया में काफ़ी जगह मिली. उस वक़्त भारत ने इस संकट को पारस्परिक चिंता मानते हुए इस क्षेत्र में चीन के द्वारा सड़क बनाने के काम को रोक दिया था. लेकिन भूटान को लेकर भारतीय शहरी युवाओं की मौजूदा अस्पष्टता में भी सकारात्मक रवैया है क्योंकि दोनों देशों के बीच हर तरह की स्थिति में दोस्ती के कारण भूटान पसंदीदा पर्यटन केंद्र बना हुआ है. मालदीव भी भारतीय पर्यटकों के लिए पसंदीदा ठिकाना है. मालदीव को भारत की तरफ़ से कनेक्टिविटी परियोजनाओं, कोविड के बाद आर्थिक बहाली और बुनियादी ढांचे में विकास सहायता मिलती है.
बांग्लादेश-अफ़ग़ानिस्तान को लेकर तटस्थ
इस सर्वे का एक सबसे अप्रत्याशित नतीजा बांग्लादेश-भारत संबंधों को लेकर है. नीतिगत दायरे में दक्षिण एशिया के भीतर जिसे साझेदारी का ‘आदर्श’ समझा जाता है, उसे लेकर भारत के लोगों की सोच उसी तरह नहीं है. वास्तव में लोगों की राय ज़्यादा तटस्थ है. इसकी वजह दोनों देशों के बीच फलते-फूलते विकास सहयोग को लेकर मीडिया की कवरेज में कमी है. इसके बावजूद असम को छोड़कर पूरे भारत में बांग्लादेश को लेकर भरोसे का एक सामान्य रवैया मौजूद है. बांग्लादेश से सीमा साझा करने वाले असम में अक्सर रोहिंग्या प्रवासी बांग्लादेश से दाखिल होते हैं. यही बांग्लादेश को लेकर असम के संदेह की वजह है. इस आग में घी देने का काम नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करना और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, जो असम में रहने वाले अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान करने के लिए बनाया गया है, वो करता है.
बांग्लादेश की तरह अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भी शहरी युवाओं की सोच तटस्थ है. इसकी वजह दोनों देशों के बीच भिड़ंत का नहीं होना और हमदर्दी की समझ के साथ कूटनीतिक सामंजस्य हैं. सर्वे के नतीजे शायद अफ़ग़ानितान में भारत के महत्वपूर्ण विकास सहयोग की पर्याप्त मीडिया कवरेज के साथ और ज़्यादा सकारात्मक होते लेकिन सर्वे में शामिल लोगों के एक बड़े वर्ग ने इस प्रक्रिया की जानकारी होने से इनकार कर दिया. वैसे पाकिस्तान को लेकर शहरी युवाओं की सोच स्पष्ट रूप से अलग है, हालांकि, ये संभावित है. अतीत की दुश्मनी के साये में द्विपक्षीय संबंध पहले से अंधेरे में है और हाल के घटनाक्रम से लोगों की मौजूदा राय में कोई बदलाव नहीं आया है. पाकिस्तान को लेकर शहरी युवाओं की सोच श्रीलंका के ठीक उलट है, लोगों को लगता है कि पाकिस्तान से ज़िम्मेदाराना बर्ताव की उम्मीद नहीं की जा सकती है. भारत पर बार-बार के हमलों, जैसे पाकिस्तान से काम कर रहे आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के द्वारा 2016 के उरी हमले और 2019 के पुलवामा हमले और जिनकी वजह से सर्जिकल स्ट्राइक किए गए, ने सुर्खियों में जगह बनाई और इन घटनाओं पर फ़िल्में भी बनाई गई. स्वाभाविक तौर पर हर किसी को ये पता होगा कि पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध बिगड़ रहे हैं और भारतीय सरकार के द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के बाद से इसमें और भी गिरावट आई है.
अतीत की दुश्मनी के साये में द्विपक्षीय संबंध पहले से अंधेरे में है और हाल के घटनाक्रम से लोगों की मौजूदा राय में कोई बदलाव नहीं आया है. पाकिस्तान को लेकर शहरी युवाओं की सोच श्रीलंका के ठीक उलट है, लोगों को लगता है कि पाकिस्तान से ज़िम्मेदाराना बर्ताव की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
ऊपर बताए गए विचार बताते हैं कि पूर्व में स्थित पड़ोसी देशों की तरफ़ भारत के शहरी नौजवानों का सकारात्मक रुझान है. शहरी युवा इस क्षेत्र में भारत सरकार के द्वारा संबंधों को और सींचने के काम में हाथ बंटा रहे हैं. ये विचार कई दूसरे घटनाक्रमों से और भी मज़बूत होते हैं जो सर्वे होने के बाद हुए हैं विशेष तौर पर कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद वैक्सीन कूटनीति की राजनीति. इसलिए भारत के नौजवानों की सोच, जो कि भारत के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हिस्सेदार हैं, सरकार के द्वारा पूर्व में स्थित पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने और बहुपक्षीय संस्थानों जैसे बिम्सटेक को मज़बूत करने की सोच के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है. लेकिन इसके बावजूद लोगों की राय को सुधारने के लिए सकारात्मक मीडिया कवरेज में बढ़ोतरी होना चाहिए.
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