Author : Manoj Joshi

Published on Mar 06, 2018 Updated 0 Hours ago

दक्षिण एशिया में भारत और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता बढ़ने के आसार हैं।

भारत और चीन में बढ़ सकती है प्रतिद्वंद्विता

चीन के राष्ट्रपति शी के साथ प्रधानमंत्री मोदी

जिस तरह चीन की आर्थिक और सैन्य ताकत का विस्तार हो रहा है और वह खुद को वैश्विक केंद्र में स्थापित करने की जद्दोजहद कर रहा है, उसी तरह वह क्षेत्रीय स्तर पर पूर्व, दक्षिण, उत्तर और पश्चिम में भी हावी होने कोशिश कर रहा है।

दक्षिण एशिया में, जिसे भारत लम्बे अर्से तक अपना आंगन समझता आया है, वहां चीन की स्थिति पहले से ही प्रमुख आर्थिक शक्ति और सैन्य सहायता प्रदान करने वाले देश की है और अब वह कूटनीतिक स्तर पर भी अपनी स्थिति मजबूत बना रहा है। यह बात क्षेत्र के विभिन्न पक्षों के बीच जारी विवादों को सुलझाने के प्रयास करने की उसकी बढ़ती इच्छा से जाहिर हो रही है।

अतीत में, चीन ने “अन्य देशों के अंदरूनी मामलों में दखल न देने या अपनी इच्छा दूसरों पर न थोपने” की घोषणा करते हुए वैश्विक स्तर पर आत्मकेंद्रित दृष्टिकोण को अपना प्रमुख सिद्धांत बना लिया था। इससे ऐसा करने में चीन की असमर्थता तो जाहिर होती ही है, साथ ही यह भी हकीकत है कि अक्सर कुछ न करना ही उसके हित में होता था। इस तरह चीन ने आक्रामक शासनों और तानाशाहों के समूह से दोस्ती कर ली और उस समय के ज्वलंत मामलों पर अपना रुख तय करने से बच भी गया।

लेकिन अब दुनियाभर में चीन के आर्थिक और राजनीतिक हित विकसित हो चुके हैं और ऐसे में मसलों को नज़रअंदाज़ पाना उसके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हो चुका है। दरअसल, अपने हितों की रक्षा और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए, चीन स्थानीय तनावों और संघर्षों के समाधान ​के प्रयासों में खुद को शरीक कर रहा है।

पिछले दो वर्षों में ही चीन ने भारत और पाकिस्तान के बीच तथा बांग्लादेश और म्यांमार के बीच मध्यस्थता करने की पेशकश की है। इतना ही नहीं, म्यांमार और उसके जातीय विद्रोहियों, साथ ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच के मसलों को सुलझाने के प्रयासों में वह पहले से ही शामिल है।

चीन इस समय भारत,पाकिस्तान और म्यांमार का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और क्षेत्र के अन्य देशों के साथ भी उसके संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं। वह पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार को सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा सप्लायर है। प्रमुख बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के अंतर्गत वह ढांचागत परियोजनाओं का सबसे बड़ा निवेशक बनकर उभर रहा है।


दुनियाभर में चीन के आर्थिक और राजनीतिक हित विकसित हो चुके हैं और ऐसे में मसलों को नज़रअंदाज़ पाना उसके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हो चुका है। दरअसलअपने हितों की रक्षा और उन्हें आगे बढ़ाने के लिएचीन स्थानीय तनावों और संघर्षों के समाधान के प्रयासों में खुद को शरीक कर रहा है।


इस महीने चीन ने मालदीव के संकट के समाधान के लिए सुंयक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की बात ठुकरा दी थी। लेकिन उसने विभिन्न पक्षों के बीच स्वयं मध्यस्थता की पेशकश की थी। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआँग ने आधिकारिक ब्रीफिंग के दौरान कहा, “चीन मालदीव में उपयुक्त पक्षों के साथ निकट सम्बध बनाना चाहता है ताकि मालदीव में जल्द से जल्द सामान्य स्थिति बहाल की जा सके और उसके लिए सहायता दी जा सके।” बुनियादी ढांचे और पर्यटन क्षेत्रों में बड़े निवेश के कारण मालदीव की अर्थव्यवस्था में चीन की प्रमुख भूमिका है।

चीन ने पिछले साल म्यांमार में न केवल शांति प्रक्रिया में सहायता के लिए धन उपलब्ध कराया, बल्कि म्यांमार के जटिल जातीय विवादों को सुलझाने के लिए दोहरे आयाम वाले प्रयास भी जारी रखे। 2016 में, उसने तीन विद्रोही गुटों — नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस आर्मी, द यूनियन लीग ऑफ अराकान आर्मी तथा तांग नेशनल लिब्रेशन आर्मी— को म्यांमार सरकार की छमाही यूनियन पीस कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए राजी किया।

साथ ही साथ, उसने विद्रोहियों के समर्थन वाली संघीय राजनीतिक समझौता वार्ता और सलाहकार समिति के गठन में भी सहायता की। इस समिति ने म्यांमार सरकार के साथ बातचीत करने की मांग की।

म्यांमार, बेशक भारत और चीन दोनों के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देश और पड़ोसी है। वह चीन को हिंद महासागर तक महत्वपूर्ण पहुंच उपलब्ध कराता है। एक गैस और तेल पाइपलाइन पहले से ही कुन्मिंग को क्योकप्यू से जोड़ रही है, जहां चीन एक डीप — सी पोर्ट और एक औद्योगिक क्षेत्र का निर्माण कर रहा है, हालांकि रेलवे लाइन ​बिछाने की योजना फिलहाल ठंडे बस्ते में है। चीन, म्यांमार का प्रमुख निवेशक है, जो अपने दक्षिणी प्रांतों को जोड़ने वाले बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

अप्रैल 2017 में, चीन ने म्यांमार और बांग्लादेश के बीच मध्यस्थता के जरिए रोहिंग्या संकट के हल में मदद करने की पेशकश की। उसके विशेष दूत सुन गाओशियांग ने प्रक्रिया की संभावनाओं का पता लगाने के लिए दोनों देशों का दौरा किया। साल के आखिर तक, चीन ने इस मसले को सुलझाने के लिए तीन सूत्री योजना की पेशकश की और साथ ही शरणार्थियों के लिए राहत सामग्री भी उपलब्ध कराई।

बांग्लादेश में चीन हथियारों की आपूर्ति करने के साथ ही साथ वहां सड़कों और बिजली घरों के निर्माण के जरिए अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करा रहा है। 2016 में शी जिनपिंग ने बांग्लादेश का दौरा किया। यह पिछले 30 बरस में किसी चीनी राष्ट्रपति की पहली बांग्लादेश यात्रा थी। इस दौरान चीन की ओर से 24 बिलियन डॉलर की राशि वाले सौदों पर हस्ताक्षर किए गए।

अफगानिस्तान, बांग्लादेश और सीपीईसी

चीन, अफगानिस्तान में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की दिशा में भी कदम बढ़ा चुका है। इससे पहले वह अमेरिका और अफगानिस्तान के साथ चार पक्षीय समन्वय समूह का भी हिस्सा था, जो अब निष्क्रिय हो चुका है। 2017 के मध्य में, चीन ने पाकिस्तान-अफगानिस्तान तनाव में कमी लाने के लिए मध्यस्थता की औपचारिक प्रक्रिया शुरू की।

चीन के विदेश मंत्री वेंग यी ने काबुल और इस्लामाबाद के बीच दौरे किए और दो सूत्री समझौता कराने में सफलता पाई, जिसके अंतर्गत चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संकट निवारण और प्रबंधन तंत्र तथा त्रिपक्षीय वार्ता करना तय किया गया। इनकी पहली बैठक पिछले साल दिसम्बर में हुई। इस प्रयास का परिणाम अफगान-पाकिस्तानी संबंधों में भूमिका निभाने के लिए चीन के तत्पर होने का संकेत देना तथा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विस्तार अफगानिस्तान में करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करना था।

अफगानिस्तान को आशा है कि चीन अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान को अपनी जमीन पर तालिबान को पनाह में देने से रोकेगा, जबकि पाकिस्तान को उम्मीद है कि अफगानिस्तान में चीन की प्रतिबद्धता बढ़ने से वहां भारत का प्रभाव कम करने में मदद मिल सकेगी। जहां तक चीन का सवाल है, तो वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान में स्थायित्व को शिनजियांग की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण समझता है।

दक्षिण एशिया का ​सबसे विशाल देश भारत,इनमें से बहुत सी गतिविधियों के संदर्भ से मुंह नहीं मोड़ सकता। लम्बे अर्से से चीन, पाकिस्तान के जरिए दक्षिण एशिया में भारत को सीमित रखता आया है। अब, चीन की मजबूरी बढ़ चुकी है, क्योंकि राष्ट्रपति शी के शब्दों में वह वैश्विक ”केंद्र में आने का” प्रयास कर रहा है। इसलिए उसे भारत जैसे स्थानीय देशों को नियंत्रित रखने या उन पर रौब जमाने की जरूरत होगी, जिनके अपने स्थानीय हित हैं।

 ‘रचनात्मक भूमिका 

दक्षिण एशिया में हितकारी देश की छवि बरकरार रखते हुए चीन ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की भी पेशकश की। पिछले साल जुलाई में, एक प्रश्न के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा था कि चीन “भारत और पाकिस्तान के संबंधों में सुधार लाने में रचनात्मक भूमिका निभाना चाहता है।” उन्होंने ​जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के संदर्भ में यह बात कही।

तेजी से दृढ़ रवैया अख्तियार करता जा रहा चीन, भारत को लेकर दुविधा में है। जहां एक ओर वह खुद को इस विवाद से अलग रखता है और खुद को एक महान ताकत समझता है, जो क्षेत्र के सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए प्रयासरत है। वहीं दूसरी ओर, वह जापान और अमेरिका के सहयोगी भारत को अपने ऐसे प्रतिस्पर्धी के तौर पर देखता है, जिसे हर कदम पर रोका जाना चाहिए।

पिछले साल कमेंटेटर हू वेजिया ने रोहिंग्या मामले का हवाला देते हुए ग्लोबल टाइम्स में लिखा था कि चीन के उत्थान ने “देश के बाहर संघर्षों में मध्यस्थता करने की” उसकी क्षमता में इजाफा कर दिया है। हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत पर टिके रहना महत्वपूर्ण है, लेकिन चीन को विदेशों में अपने देश की कम्पनियों के निवेश की भी रक्षा करनी है।

उन्होंने कहा, सचमुच, बीआरआई में किए गए ”बहुत बड़े निवेश” के मद्देनजर अब “क्षेत्रीय संघर्षों के समाधान में सहायता देना चीन के हित में है।” इसमें भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मामले को लेकर जारी विवाद भी शामिल है, जिसके बारे में उनका कहना है कि चीन के विदेशी हितों से संबंधित क्षेत्रीय मामलों में इस क्षेत्रीय मसले से निपटना सबसे ज्यादा मुश्किल है।

चीन की इस नई तरह की सक्रियता ने भारत को हैरान कर दिया है, जो लम्बे अर्से तक न सिर्फ दक्षिण एशिया को अपने प्रभाव वाला क्षेत्र मानता आया है, बल्कि क्षेत्र के देशों को सुरक्षा भी प्रदान करता आया है। लेकिन क्षेत्र के छोटे देशों को चीन, भारत की बेतहाशा उपस्थिति को संतुलित करने के मार्ग के साथ ही साथ महत्वपूर्ण निवेश और सहायता के स्रोत की भी पेशकश कर रहा है।

भारत को क्षेत्र में केवल उसके भूगोल से मदद मिली है और वह अपने पड़ोसियों को महत्वपूर्ण सहायता और ऋण उपलब्ध कराता आया है। लेकिन उसके पास चीन जितना वजन नहीं है। वह खुद हथियारों का आयात करता है, इसलिए वह चीन की तरह सैन्य सहायता के बल पर दोस्त बनाने और उन्हें प्रभावित करने का कार्य नहीं कर सकता।

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