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किसी मौजूदा ज़रूरत के ना होते हुए भी किसी संकट या युद्ध और व्यावसायिक मांगों की वजह से भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को दीर्घकाल में समुद्र से लॉन्च की क्षमता विकसित करनी चाहिए.
15 सितंबर 2020 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने एक और कमाल किया लेकिन चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर नज़र रखने वाले कई जानकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया. समुद्र में मौजूद एक जहाज़ से लॉन्ग मार्च 11 स्पेस लॉन्च व्हीकल (SLV) ने नौ सेटेलाइट लॉन्च किए. ये इस तरह का दूसरा लॉन्च था. पहला लॉन्च जून 2019 में हुआ था जब लॉन्ग मार्च 11 रॉकेट से कई सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे गए. अमेरिका और रूस के बाद चीन तीसरा ऐसा देश है जिसके पास समुद्र से अंतरिक्ष में सेटेलाइट भेजने की क्षमता है. इस क़दम से चीन न सिर्फ़ एक एक्सक्लूसिव क्लब में शामिल हो गया है बल्कि ताज़ा लॉन्च से चीन कम वक़्त की तैयारी में सेटेलाइट को स्पेस में भेजने वाला देश भी बन गया है.
अमेरिका और रूस के बाद चीन तीसरा ऐसा देश है जिसके पास समुद्र से अंतरिक्ष में सेटेलाइट भेजने की क्षमता है. इस क़दम से चीन न सिर्फ़ एक एक्सक्लूसिव क्लब में शामिल हो गया है बल्कि ताज़ा लॉन्च से चीन कम वक़्त की तैयारी में सेटेलाइट को स्पेस में भेजने वाला देश भी बन गया है.
समुद्री प्लेटफॉर्म से सफलतापूर्वक सेटेलाइट लॉन्च के बाद चीन के पास संतुष्ट होने की कई वजहें हैं. समुद्र में सेटेलाइट लॉन्च से चीन को तीन ख़ास फ़ायदे हैं. पहला बड़ा फ़ायदा ये है कि इससे चीन के सेटेलाइट लॉन्च को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है. लॉन्च या आसमान में जाने के दौरान रॉकेट के ज़मीन पर गिरने से आबादी वाले इलाक़ों में ख़तरे को देखते हुए चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े लोगों ने स्पेस लॉन्च को समुद्र की तरफ़ शिफ्ट किया. ज़मीन पर मौजूद चीन के बड़े स्पेस लॉन्च सेंटर में से एक उत्तर-पश्चिमी चीन के ज्यूकुआन में मौजूद है जबकि दूसरा उत्तरी चीन के ताईयुवान और तीसरा दक्षिण-पश्चिम चीन के शिचांग में है. समुद्र में चीन का इकलौता स्पेस लॉन्च सेंटर हैनान द्वीप के वेनचांग में है. आबादी के कई केंद्र ज़मीन पर मौजूद स्पेस लॉन्च सेंटर के नज़दीक में स्थित हैं और स्पेस लॉन्च मानवीय आबादी के लिए एक ख़तरा है. दूसरी बात, चीन का मुख्य भाग विषुवत रेखा के उत्तर में या चीन के बिल्कुल दक्षिण में स्थित है, ऐसे में स्पेस लॉन्च के दौरान ज़्यादा शक्तिशाली रॉकेट की ज़रूरत पड़ती है जिसमें काफ़ी ईंधन खर्च होता है. लेकिन समुद्र में सेटेलाइट लॉन्च से ईंधन की खपत कम होती है क्योंकि जहाज़ को विषुवत रेखा के नज़दीक ले जाया जा सकता है जहां पृथ्वी तेज़ी से घूमती है जिससे स्पेस रॉकेट को अतिरिक्त रफ़्तार मिलती है. नतीजतन रॉकेट को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए ज़्यादा ईंधन के इस्तेमाल की ज़रूरत नहीं मिलती. आख़िर में, समुद्र से सेटेलाइट लॉन्च की वजह से चीन के स्पेस लॉन्च व्हीकल में ज़्यादा लचीलापन आया है. जहाज़ के ज़रिए सेटेलाइट लॉन्च होने से चीन के ज़मीन पर मौजूद स्पेस लॉन्च सेंटर पर दबाव कम होता है जिससे वहां के स्पेस लॉन्च कार्यक्रम की क्षमता बढ़ती है. जहाज़ पर मौजूद लॉन्च सेंटर बोझ भी बांटते हैं और जल्दबाज़ी में लॉन्च होने वाले सेटेलाइट के लिए विकल्प बढ़ाते हैं. चीन युद्ध जैसे राष्ट्रीय संकट की हालत में जहाज़ से सेटेलाइट लॉन्च भी कर सकता है. इन्हीं सब वजहों से चीन समुद्री सेटेलाइट लॉन्च को जारी रखे हुए है.
समुद्र में चीन का इकलौता स्पेस लॉन्च सेंटर हैनान द्वीप के वेनचांग में है. आबादी के कई केंद्र ज़मीन पर मौजूद स्पेस लॉन्च सेंटर के नज़दीक में स्थित हैं और स्पेस लॉन्च मानवीय आबादी के लिए एक ख़तरा है.
समुद्र से चीन के सेटेलाइट लॉन्च का भारत के लिए क्या मतलब है? भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए उस हद तक सबक लेने की ज़रूरत है कि चीन ने व्यावसायिक, नागरिक और सैन्य मांगों को पूरा करने के लिए जहाज़ से सेटेलाइट लॉन्च की क्षमता का प्रदर्शन और पुष्टि की है. समुद्र से सेटेलाइट लॉन्च होने से ज़मीन पर बने लॉन्च स्टेशन पर बोझ कम होता है. इसके आगे भारत या भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम के कर्ता-धर्ता को समुद्री सेटेलाइट लॉन्च को विकसित करने में शायद कोई फ़ायदा ना दिखे. इसकी बड़ी वजह है आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा और तटीय तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्थित मौजूदा लॉन्च सेंटर. तूतीकोरिन का लॉन्च सेंटर जब बनकर तैयार हो जाएगा तो मुख्य रूप से भारत के स्मॉल स्पेस लॉन्च व्हीकल (SSLV) के 500 किलोग्राम तक के सेटेलाइट को लॉन्च करेगा जो कि अभी भी विकसित होने के आख़िरी दौर में है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष के. सिवन ने दिसंबर 2019 में कहा था कि शुरुआती SSLV लॉन्च श्रीहरिकोटा से होंगे और बाद में उन्हें तूतीकोरिन से लॉन्च किया जाएगा. अगर मांग रही तो भविष्य में बड़े सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं. ISRO अध्यक्ष के बयान से पता चलता है कि जब ज़मीन पर मौजूद लॉन्च सेंटर मांग पूरी नहीं कर पाएंगे तब ISRO विचार करेगा कि समुद्र में लॉन्च सेंटर शुरू किए जाएं या नहीं. वास्तव में ISRO को न सिर्फ़ मांग बल्कि भूगोल की वजह से भी समुद्र में लॉन्च सेंटर को शुरू करना चाहिए. भारत ख़ास तौर पर प्रायद्वीपीय भारत स्पेस लॉन्च के लिए वरदान है क्योंकि ये चीन के मुख्य भाग के मुक़ाबले विषुवत रेखा के ज़्यादा नज़दीक है. जैसा कि पहले कहा गया है, विषुवत रेखा से क़रीबी से स्पेस लॉन्च में आसानी होती है. इसके अलावा भारत में स्पेस लॉन्च सेंटर आबादी वाले इलाक़े के पास नहीं हैं. इन वजहों से भारत के पास समुद्र में सेटेलाइट लॉन्च की क्षमता सीमित है.
ISRO को न सिर्फ़ मांग बल्कि भूगोल की वजह से भी समुद्र में लॉन्च सेंटर को शुरू करना चाहिए. भारत ख़ास तौर पर प्रायद्वीपीय भारत स्पेस लॉन्च के लिए वरदान है क्योंकि ये चीन के मुख्य भाग के मुक़ाबले विषुवत रेखा के ज़्यादा नज़दीक है.
कम शब्दों में कहें तो चीन की तरफ़ से दो-दो बार समुद्र से सेटेलाइट लॉन्च करने को लेकर भारत को घबराना तो दूर चिंतित होने की भी ज़रूरत नहीं है. ISRO के लिए समुद्र से सेटेलाइट लॉन्च करने के कार्यक्रम की एकमात्र वजह तब होगी जब भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के कर्ता-धर्ता ये सुनिश्चित करेंगे कि ज़मीन के मुक़ाबले समुद्र से सेटेलाइट लॉन्च करने से ना सिर्फ़ ईंधन और तकनीक के मामले में सहायता मिलेगी बल्कि लॉन्च की लागत भी कम होगी. हालांकि, अच्छा होगा कि ISRO एक प्राथमिक अध्ययन के ज़रिए समुद्री स्पेस लॉन्च के फ़ायदे और नुक़सान के बारे में पता लगाए. कुल मिलाकर, किसी मौजूदा ज़रूरत के ना होते हुए भी किसी संकट या युद्ध और व्यावसायिक मांगों की वजह से भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को दीर्घकाल में समुद्र से लॉन्च की क्षमता विकसित करनी चाहिए.
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Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...
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