Author : Harsh V. Pant

Published on Jun 01, 2020 Updated 0 Hours ago

शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले चीन को समझने में भूल मत कीजिए. शी के नेतृत्व वाले चीन के रूप में हम लंबे समय बाद दुनिया में एक ऐसा राष्ट्र देख रहे हैं, जो सबसे आक्रामक और हठधर्मी ताक़त के रूप में सामने आया है.

आक्रामक चीन का संशोधनवाद: हांगकांग से भारत की सीमाओं तक

हांगकांग फिर जल रहा है. यहां पर एक बार फिर से मुख्य भूमि यानी चीन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. क्योंकि, चीन के प्रस्तावित राष्ट्रगान विधेयक के ख़िलाफ़ आवाज़ें एक बार फिर से एकजुट हो रही हैं. इस विधेयक के पास होने पर चीन के राष्ट्र गान का अपमान करना अपराध हो जाएगा. इसके अलावा चीन ने हांगकांग के लिए एक सुरक्षा क़ानून भी बनाया है. कई लोगों को इस क़ानून के कारण इस बात का डर लग रहा है कि इसके कारण से हांगकांग के नागरिकों के बुनियादी स्वतंत्रता के कई अधिकार छिन जाएंगे. हांगकांग में चीन विरोधी प्रदर्शनों का ये दूसरा दौर है. इससे पहले, पिछले साल एक प्रत्यर्पण क़ानून को लेकर भी हांगकांग में चीन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे. भारी जनदबाव के कारण ये क़ानून बाद में वापस ले लिया गया था.

एक राष्ट्र और दो व्यवस्थाओं का ये सिद्धांत, पिछले वर्ष प्रत्यर्पण के इस नए क़ानून के कारण ख़तरे में पड़ गया था. क्योंकि इस क़ानून के कारण हांगकांग से किसी भी व्यक्ति को चीन की मुख्य भूमि पर प्रत्यर्पित किया जा सकता था.

1997 में ‘एक राष्ट्र और दो व्यवस्थाओं’ के सिद्धांत के अंतर्गत, हांगकांग चीन का हिस्सा बन गया था. हांगकांग और चीन के बीच ये सहमति बनी थी कि हांगकांग को, ‘रक्षा और विदेशी मामलों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में व्यापक स्वायत्तता हासिल होगी.’ एक राष्ट्र और दो व्यवस्थाओं का ये सिद्धांत, पिछले वर्ष प्रत्यर्पण के इस नए क़ानून के कारण ख़तरे में पड़ गया था. क्योंकि इस क़ानून के कारण हांगकांग से किसी भी व्यक्ति को चीन की मुख्य भूमि पर प्रत्यर्पित किया जा सकता था. इस क़ानून के विरोध में हांगकांग में बड़े पैमाने पर ग़ुस्सा भड़क उठा था. इस प्रत्यर्पण क़ानून का विरोध करने के लिए हांगकांग के हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए थे. इन लोगों को डर था कि चीन इस क़ानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए कर सकता है. और इसके बाद, मानो चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के इन विरोध प्रदर्शनों से निपटने के तौर तरीक़ों को झटका देते हुए, लोकतंत्र समर्थक ताक़तों को पिछले साल नवंबर में हुए स्थानीय चुनाव में भारी सफलता मिली थी. हांगकांग की 18 में से 17 ज़िला परिषदों में लोकतंत्र समर्थक पार्टियों का नियंत्रण स्थापित हो गया था. चुनाव के दौरान, जनता की अप्रत्याशित भागीदारी भी देखने को मिली थी. पिछले साल के इन चुनावों में 71 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग करके चीन को स्पष्ट संदेश दिया था.

लेकिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए हांगकांग बेहद महत्वपूर्ण है. चीन का बेताज बादशाह बनने से पहले एक समय में शी जिनपिंग के पास, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी में हांगकांग का ही प्रभार था. ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग को अपने सख़्त रवैये पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा है. क्योंकि, आज शी जिनपिंग ने चीन की सारी सत्ता अभूतपूर्व रूप से अपने पास केंद्रित कर ली है. आज की तारीख़ में चीन में कोई दूसरा नेता नहीं है, जो शी जिनपिंग द्वारा प्रस्तावित किसी भी नीति की विफलता का उत्तरदायित्व उनके साथ साझा कर सके. ऐसे में ये बात चौंकाने वाली नहीं है कि चीन के विदेश मंत्री वैंग यी ने हाल ही में कहा था कि, ‘चाहे कुछ भी हो जाए, हांगकांग चीन का अभिन्न अंग है.’ साथ ही चीन के विदेश मंत्री ने ये चेतावनी भी दी थी कि, ‘हांगकांग में अराजकता फैलाने या इसकी समृद्धि और स्थिरता को ठेस पहुंचाने की कोई भी साज़िश कामयाब नहीं होने दी जाएगी.’

और इसीलिए, कुछ महीनों तक ख़ामोश रहने के बाद शी जिनपिंग, हांगकांग के लिए एक नया सुरक्षा क़ानून लेकर आए हैं. इस क़ानून के अंतर्गत, बग़ावत, देशद्रोह, अलगाववाद और चीन की संप्रभुता को चोट पहुंचाने पर प्रतिबंध लग जाएगा. चीन का तर्क है कि हांगकांग में जिस तरह से हिंसक विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं, उनकी रोकथाम के लिए इस क़ानून की सख़्त आवश्यकता है. चीन का ये दावा बेहद असाधारण है. क्योंकि, हांगकांग में विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत, तो चीन के 1997 में हांगकांग के लोगों से किए गए अपने वादे से मुकरने के ख़िलाफ़ हुई थी. लेकिन, शी जिनपिंग के दौर में ये बातें मायने नहीं रखतीं. आज महत्व केवल इस बात का है कि जो भी चीन के प्रभुत्व को चुनौती देता है, उससे सख़्ती से ही निपटा जाएगा.

दुनिया भर में हांगकांग पर अपनी नीतियों के विरोध के बावजूद चीन ने इस मसले पर आगे बढ़ने का फ़ैसला किया है. ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने तो हांगकांग के प्रति चीन के रवैये के प्रति खुल कर अपनी चिंताएं ज़ाहिर की हैं. लेकिन, अमेरिका ने इससे भी आगे जाकर और सख़्त रुख़ अपनाने के संकेत दिए हैं

आज के दौर में जब कोरोना वायरस से निपटने में लापरवाही को लेकर पूरी दुनिया में चीन की किरकिरी हो रही है. और उस पर तमाम देशों का दबाव भी है. ऐसे में हांगकांग में अपने विरोधियों के प्रति सख़्ती दिखाने से शी जिनपिंग को राष्ट्रवाद की घुट्टी मिलेगी. और, देश के भीतर उनके ख़िलाफ़ जो सुर उठ रहे हैं, वो भी देश की एकजुटता के नाम पर ख़ामोश हो जाएंगे. इसीलिए, दुनिया भर में हांगकांग पर अपनी नीतियों के विरोध के बावजूद चीन ने इस मसले पर आगे बढ़ने का फ़ैसला किया है. ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने तो हांगकांग के प्रति चीन के रवैये के प्रति खुल कर अपनी चिंताएं ज़ाहिर की हैं. लेकिन, अमेरिका ने इससे भी आगे जाकर और सख़्त रुख़ अपनाने के संकेत दिए हैं. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने अमेरिकी कांग्रेस के सामने इस बात की पुष्टि की है कि, ‘ज़मीनी हालात को देखते हुए आज कोई भी तर्कपूर्ण व्यक्ति ये दावा नहीं कर सकता है कि हांगकांग को व्यापक स्तर पर चीन से स्वायत्तता हासिल है.’ साथ ही अमेरिकी विदेश मंत्री पॉम्पियो ने ये भी कहा कि, ‘चीन का ये नया सुरक्षा क़ानून चीन की तरफ़ से लगातार उठाए जा रहे ऐसे क़दमों की नई कड़ी है, जिससे हांगकांग की स्वायत्तता और वहां के नागरिकों को मिली स्वतंत्रता बुनियादी तौर पर ख़त्म होती जा रही है.’ विदेश मंत्री के इस बयान के बाद इस बात की पूरी संभावना है कि अमेरिकी कांग्रेस, अमेरिकी क़ानून के अंतर्गत हांगकांग को मिले विशेष व्यापारिक साझीदार की हैसियत को ख़त्म करने का क़दम उठा ले.

ट्रंप ने घोषणा की है कि चीन और हांगकांग के उन अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे, जिनके बारे में अमेरिका का ये मानना है कि इन अधिकारियों ने हांगकांग की स्वायत्तता को चोट पहुंचाने की साज़िश की है

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एलान किया है कि वो हांगकांग को कारोबार और यात्रा में मिलने वाली प्राथमिकताओं को ख़त्म करने का सिलसिला शुरू करने जा रहे हैं. ट्रंप ने ये क़दम उठाने का एलान करते हुए ये तर्क दिया कि, ‘चीन ने एक देश और दो व्यवस्थाओं के सिद्धांत की जगह एक देश और एक व्यवस्था के सिद्धांत को लागू कर दिया है.’ ट्रंप ने घोषणा की है कि चीन और हांगकांग के उन अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे, जिनके बारे में अमेरिका का ये मानना है कि इन अधिकारियों ने हांगकांग की स्वायत्तता को चोट पहुंचाने की साज़िश की है. साथ ही साथ अमेरिका, चीन से आने वाले उन विदेशी नागरिकों के भी अपने यहां आने पर प्रतिबंध लगाने का एलान किया है, जिनके बारे में अमेरिका ये मानता है कि ये लोग उसकी सुरक्षा के लिए ख़तरा साबित हो सकते हैं.

लेकिन, अमेरिका के इन क़दमों से हांगकांग को लेकर, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के रवैये पर कोई फ़र्क़ पड़ेगा, इसकी संभावना बहुत कम ही है. क्योंकि, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए ये संदेश देना ज़रूरी है कि वो हांगकांग के हालात से सख़्ती से निपट रही है. अगर, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी हांगकांग को लेकर किसी भी तरह की रियायत देती है, तो इससे चीन की मुख्यभूमि पर लोकतंत्र समर्थकों का हौसला बढ़ाने वाला संदेश जाने का डर है. और जिस समय चीन की अर्थव्यवस्था बेहद कमज़ोर दौर से गुज़र रही है और बेरोज़गारी अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गई है. उस समय चीन कम्युनिस्ट पार्टी के लिए देश की आर्थिक समृद्धि और अपनी सत्ता की राजनीतिक वैधता में से एक का चुनाव करना है. और फिलहाल तो उसकी राजनीतिक वैधता ही सबसे अधिक ख़तरे में नज़र आ रही है. ताइवान के हालात पहले ही बेहद संवेदनशील बने हुए हैं. कोविड-19 के कारण, विश्व मंचों पर ताइवान की स्वीकार्यता को नई गति मिली है. जिससे चीन पहले ही असहज महसूस कर रहा है.

ऐसे में इस बात से किसी को चौंकना नहीं चाहिए कि जब हांगकांग के हालात बेहद ख़राब हैं, तो चीन ने भारत से लगने वाली सीमा पर अपना आक्रामक रवैया दिखाया है. जबकि, भारत में चीन के राजदूत सन वीडॉन्ग ने ज़ोर देकर ये कहा है कि चीन और भारत को चाहिए कि दोनों देश अपने मतभेदों को व्यापक द्विपक्षीय संबंधों के आड़े न आने दें. साथ ही साथ दोनों देश मिलकर आपस में विश्वास को और बढ़ाएं. लेकिन, भारत के सख़्त सैन्य और राजनयिक स्टैंड ने चीन के सामने ये बात बिल्कुल स्पष्ट कर दी है कि भारत सीमा पर तनाव को लेकर लंबी पारी खेलने के लिए तैयार है. चूंकि, चीन वैश्विक और घरेलू स्तर पर पहले ही कई तरह की चुनौतियां झेल रहा है. साथ ही उसे हांगकांग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर अपना ध्यान केंद्रित करना पड़ रहा है. ऐसे में अगर भारत से लगी सीमा पर तनाव कम होता है, तो इससे चीन का ही भला होगा.

लेकिन, इन परिस्थितियों के बावजूद चीन को लेकर कोई कयास लगाना भूल होगी. शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले चीन के रूप में हम लंबे समय बाद दुनिया में एक ऐसा राष्ट्र देख रहे हैं, जो सबसे आक्रामक और हठधर्मी ताक़त के रूप में सामने आया है. इसलिए, हांगकांग की समस्याएं और बढ़ने की ही आशंका है. और भारत को भी अपनी इस पड़ोसी ताक़त के साथ लंबे समय तक संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए. क्योंकि, चीन पूरी तरह से परिवर्तनवादी ताक़त है.

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